बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

किसान आंदोलन के परिपेक्ष्य में समय का चक्र

अरूण सेहरावात 
अगर समाज की सबसे छोटी परिभाषा दी जाए। तो इसका एक उदाहरण है। कि एक बार एक जंगल में एक लंगड़ा और एक अंधा व्यक्ति फंस गए और जंगल में आग लग गई।  दिक्कत यह है की लंगड़ा देख सकता है, कहीं चल कर जा नहीं सकता। और अंधा कही चलकर जा सकता है पर वह देख नहीं सकता। यानी एक के पास देखने की काबिलियत है और दूसरे के पास कहीं चल कर जाने की ताकत। 
तो वो दोनों एक दूसरे के साथ एक समझौता करते हैं या कहें कि सहयोग करते हैं। और इस सहयोग की नींव भरोसा है। जिसके पैर मजबूत है। वो लंगड़े को अपने कंधों पर बिठा लेता है और लंगड़ा व्यक्ति जो देख सकता है। वो अंधे को दिशा दिखाता है और वो दोनों आपसी सहयोग से जंगल की आग से बचकर निकल जाते हैं। तो यह है समाज की सबसे छोटी परिभाषा और सबसे आसान भी।
अपने आप में कोई परिपूर्ण नहीं है और सहयोग से ही हम पूर्ण बन सकते हैं। यह ‘मैं’ से ‘हम’ का रास्ता है जो सभी को तय करना है।
पर मैं इस कहानी को और आगे बढ़ाता हूँ। अब होता ये हैं। जिसके पास आंख है वह समाज के उस तबके का प्रतिनिधित्व करता है जिसके पास दर्शन है। वो समाज को दिशा दिखाता है। ओर और जिसने कंधे पर बैठाकर दर्शन वाले व्यक्ति को आग से बचाया। वह व्यक्ति प्रतिनिधित्व करता है समाज के उस तबके का जो कि कहलाता है कमेरा वर्ग। जो समाज को अपने कंधों पर बैठाकर आगे बढ़ाता है। एक समय आता है। जब वो दार्शनिक वर्ग। ये समझने लगता है की कमेरा वर्ग तो जो मैं कहता हूँ वही करता है और मानने लग जाता है की कमेरे वर्ग को आगे जो भी कहा जाएगा। वह उसे वैसा ही मानेगा और इसके रास्ते की दिशा भी मैं ही तय करूँगा। और दार्शनिक वर्ग, कमेरे वर्ग को मूर्ख समझने लग जाता है।
दार्शनिक वर्ग कमेरे वर्ग को उस दिशा में ले कर जाता है जहाँ पर रास्ता ठीक नहीं है। शुरुआत में कमेरा वर्ग बताता है कि यार मेरे को दर्द हो रहा है, मेरी सुन लो, यह रास्ता ठीक नहीं है क्योंकि मुझे दर्द हो रहा है। पर दार्शनिक वर्ग कहता है कि नहीं मेरे को दिखाई दे रहा है, यही रास्ता ठीक है। पर कमेरा वर्ग फिर भी चलता रहता है। कमेरे वर्ग के पैर धीरे धीरे लहूलुहान होने लगते हैं। फर्क ये आ गया कि अब जिसके पास दर्शन है और उसे कमेरे वर्ग का दर्द महसूस नहीं हो रहा। पर फिर भी वो उसे थोड़ा और आगे तक ढोता है।
एक परिस्थिति ऐसी आती है।  जहाँ पर कमेरे वर्ग को लगता  है कि मैं तो मर गया। और वो दार्शनिक वर्ग को अपने कंधों से उठाता है और  पथरीली और कांटों भरी जमीन पर पटक देता है। इसे कहते है, सामाजिक क्रांति। अब दोनों दर्द में जब कराहते हैं। तब एक नया दार्शनिक वर्ग खड़ा होता है। वो फिर दोबारा से एक वादा करता है की यार देखो इस बार मैं आपका ध्यान रखूँगा, इस बार आपको मैं गलत रास्ते में नहीं लेके जाऊंगा। और आपके सुख दुःख का ध्यान रखूँगा क्योंकि दोनों के पास सहयोग के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। दोनों को एक दूसरे की जरूरत है। समय का चक्र दोबारा शुरू हो जाता अपने आप को दोबारा दोहराने के लिए।
अगर हमें आगे बढ़ना है और समय के इस दुष्चक्र को तोड़ना है। तो हमें मिल जुलकर काम करना होगा। और यही एक रास्ता है। यही एक व्यवस्था है। तो मैं उस वर्ग को कहूंगा जिसके पास दर्शन है। एक बेहतर रास्ता चुनें। और वो एकमात्र बेहतर रास्ता है। ग्राम सभा के प्रति जागरूकता और ग्राम सभा का सशक्तिकरण। यही एक व्यवस्था है।
“गाम राम” एक देहाती सोच। है।
“गाम राम” की जय।
http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/