एल. एस. हरदेनिया
जहां साधारणतः निजी क्षेत्र विज्ञापन की ऐसी नीति अपनाता है वहीं सरकारों की विज्ञापन की नीति भिन्न होती है। सरकारें विज्ञापन के माध्यम से मीडिया पर नियंत्रण रखने का प्रयास करती हैं। जिन देशों में सैकड़ों वर्षों से लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है, वहां यह मान्यता है कि लोकतंत्र उसी हालत में फलता-फूलता है जहां प्रतिपक्ष शक्तिशाली हो। ब्रिटेन में तो प्रतिपक्ष को हर मेजिस्टिीज अपोजीशन कहा जाता है। परंतु इसके विपरीत उन देशों में जो कुछ दशकों पहले ही आजाद हुए, सत्ता में बैठा दल प्रतिपक्ष को कमजोर करने का सतत प्रयास करता रहता है। सत्ता में बैठा दल ऐसा ही व्यवहार मीडिया के साथ भी करता है।
इस समय मेरे घर पर 20 से 25 दैनिक समाचारपत्र आते हैं। मैं प्रायः देखता हूं कि मध्यप्रदेश सरकार के विज्ञापन लगभग सदैव ऐसे समाचारपत्रों में प्रकाशित होते हैं जिनके कालमों में सरकार विरोधी सामग्री कम ही छपती है। कबजब सरकार विरोधी समाचारपत्रों में ऐसे विज्ञापन भी नहीं छपते जिनका उद्धेश्य ऐसे कार्यक्रमों एवं योजनाओं की जानकारी पाठकों को देना होता है जो मूलतः जनहितैषी हैं।
जैसे कुछ दिन पहले मध्यप्रदेश में पोलियो अभियान लांच किया गया। परंतु इस अभियान का विज्ञापन उन समाचारपत्रों को नहीं दिया गया जिन्हें सरकार अपना विरोधी मानती है। वर्तमान में सरकारी विज्ञापन ‘दैनिक भास्कर‘ में नजर नहीं आते। कम से कम मुझे तो दैनिक भास्कर में पोलियो अभियान का विज्ञापन नहीं दिखा। पोलियो हमारे देश का अत्यधिक महत्वपूर्ण अभियान है जिसपर हमारे बच्चों का भविष्य निर्भर है। पोलियो ड्राप की दो बूंदे इस बात की गारंटी होती हैं कि आप पर लकवे का हमला नहीं होगा। ऐसा जनोपयोगी विज्ञापन जिन अखबारों में नहीं छपा उनके पाठकों को इस बात का पता नहीं लगेगा कि उन्हें अपने बच्चों को पोलियो की दवा की दा बूंदें पिलाना है।
कोरोना के संदर्भ में भी अनेक चेतावनी भरी सूचनाएं दी जाती हैं। विज्ञापन के माध्यम से भी यह किया जाता है। परंतु ये सूचनाएं उन समाचारपत्रों के पाठकों तक नहीं पहुंच पातीं जिन्हें किन्हीं कारणों से सरकारी विज्ञापन नहीं मिल रहे हैं।
पता नहीं यह संभव होगा या नहीं परंतु चुनावों के माध्यम से सत्ता हासिल करने वाली सरकारों को मीडिया के नजरिए के आधार पर अपनी विज्ञापन नीति निर्धारित नहीं करनी चाहिए। संसदीय प्रजातंत्र के तीन स्तंभ हैं - विधायिका, न्यायपालिका व कार्यपालिका। विधायिका के सदस्यों को (प्रतिपक्ष सहित) सरकारी कोष से वेतन व अन्य सुविधाएं मिलती हैं। इसी तरह किसी न्यायाधीश का वेतन इस कारण नहीं रोका जाता क्योंकि उसने सरकार विरोधी फैसले सुनाए। इसी तरह किसी अधिकारी का वेतन मात्र इस कारण नहीं रोका जाता कि उसने फाईल में मंत्री की राय के विपरीत राय दी है।
मीडिया को प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। आए दिन मंत्री और अन्य राजनीतिक नेता मीडिया का गुणगान करते रहते हैं। परंतु जब मीडिया पर हमला होता है तब वे मौन धारण कर लेते हैं। मीडिया को भी जहां तक संभव हो ‘न काहू दोस्ती, न काहू से बैर' का रवैया अपनाना चाहिए और लगभग ऐसा ही रवैया सरकारों को भी अपनाना चाहिए। ऐसा होने पर ही मीडिया रचनात्मक भूमिका अदा कर सकता है।
-एल. एस. हरदेनिया, (मो. 9425301582)