अवधेश कुमार
अरविन्द केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी की सुर्खियांे में आने की कला की दाद देनी होगी। जरा ध्यान दीजिए, मामला न्यायालय का है। केजरीवाल ने कई नेताओं के साथ भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष नितीन गडकरी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। गडकरी ने अपने खिलाफ जांच का निष्कर्ष आने के बाद न्यायालय में उनके खिलाफ मानहानि का मामला दायर किया, साक्ष्य दिए...और अब बारी केजरीवाल के जवाब देने की है। पहले केजरीवाल न्यायालय में उपस्थित नहीं हुए, इसलिए न्यायालय ने उनसे कहा कि आप 10 हजार रुपए का निजी मुचलका भर दीजिए, और इतने की गारंटी दीजिए, क्योंकि यह कानूनी प्रक्रिया है। यह न्यायालय की एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसे कोई भी पूरा करता, मुचलका भर कर बाहर रहता और न्यायालय की तिथियों पर उपस्थित होकर अपना पक्ष रखता। इसमें न कहीं गडकरी हैं न भाजपा, लेकिन केजरीवाल और उनके साथियों ने इसे ऐसा बना दिया है मानो गडकरी पर आरोप लगाने के कारण उन्हें तिहाड़ जेल जाना पड़ा है। यह सफेद झूठ है लेकिन दृश्य देखिए वे सड़कों पर उतरे हैं, हंगामा कर रहे हैं....। सच कहा जाए तो यह विरोध केवल न्यायालय के विरुद्ध हो सकता है, जिसने कहा कि अगर आप मुचलका भरने की कानूनी प्रक्रिया पूरी न करेंगे तो आपको जेल जाना होगा।
मेेरे संज्ञान में भारतीय राजनीति में यह पहला अवसर है जब किसी नेता ने मानहानि के मामले में मुचलका न भरकर उसे इस तरह मुद्दा बनाया हो। वास्तव में अरविन्द केजरीवाल ने न्यायालय में जो कुछ किया..... उनके समर्थक जिस तरह की दलीलंे दे रहे हैं उनको किन शब्दों में व्यक्त किया जाए यह सारे तटस्थ विश्लेषकों के लिए सबसे बड़े उधेड़बुन का विषय हो गया है। अगर इसे एक राजनीतिक महत्वाकांक्षी व्यक्ति का राजनीतिक स्टंट कहें तो भी इसकी व्याख्या नहीं होती। जो लोग यह कह रहे हैं कि अभिनय में माहिर केजरीवाल और उनके साथियों ने दिल्ली में फिर से जनता का ध्यान खींचने के लिए ऐसा किया है तो यह भी इसकी पूरी व्याख्या नहीं करता। इसी तरह यह कहने से भी कि विधायकों के विद्रोह और असंतोष को रोकने के लिए इस अवसर का उनने गलत इस्तेमाल किया है सम्पूर्ण निहितार्थ साफ नहीं होता। अगर यह कहा जाए कि इवेंट मैनेजमेंट की अपनी कला का फिर से दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने इस्तेमाल आरंभ कर दिया है तो यह भी उनकी पूरी कारगुजारी को साफ नहीं करता। इन सबको मिला दिया जाए तो भी उनकी गतिविधियों का पूरा विश्लेषण नहीं होता।
लेकिन ये सारी बातें इन पर लागू होतीं हैं। सच कहा जाए यह किसी भी राजनीतिक पार्टी और उसके नेता की ऐसी हरकत है जिसमें एक साथ आम राजनीतिक मर्यादा, न्यायालय की गरिमा.....का हनन तो होता ही है, पहली बार कोई पार्टी परोक्ष तौर पर यह आरोप लगा रही है कि सत्ता बदलने के कारण न्यायालय ने केजरीवाल के साथ ऐसा व्यवहार किया है। यानी मामला भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितीन गडकरी का है और नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने जा रही इसलिए न्यायालय ने ऐसा किया है। मनीष सिसोदिया ने कहा कि अच्छे दिन आ गए हैं। ंसंजय सिंह ने भी यही आरोप लगाया। मामला न्यायालय और केजरीवाल के बीच का है और सएमएस किए जा रहे थे कार्यकर्ताआंे को तिहाड़ जेल पहुंचने के लिए। वे पहुंचे और विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं। थोड़े शब्दों में कहा जाए तो एक अत्यंत ही घटिया, आपत्तिजनक और राजनीतिक हित साधने के लिए शर्मनाक धारावाहिक आरंभ हो गया है। हालांकि इस धारावाहिक की पटकथा अब दिल्ली और देश के लोगों के गले उतरेगी इसमें संदेह है।
जरा न्यायालय की कार्रवाई और तीन पृष्ठ के आदेश की टिप्पणियों को देखिए। मजिस्ट्रेट ने साफ कहा कि बेल बांड जमा कराना एक कानूनी प्रकिया है और ऐसा नहीं कर आप अलग व्यवहार चाह रहे हैं। आपसे उम्मीद की जाती है कि आप एक आम आदमी की तरह व्यवहार करें। अंत मंे अदालत ने फैसला सुनाया कि जमानत नहीं लेने या निजी मुचलका नहीं भरने की स्थिति में केजरीवाल को जेल भेजा जाए। उनके वकीलों प्रशांत भूषण और राहुल मेहरा ने न्यायालय से कहा कि आम आदमी पार्टी के सिद्धांत के अनुसार केजरीवाल जमानत के लिए मुचलका नहीं भरेंगे। यह बड़ी विचित्र दलील है......हमारी पार्टी का सिद्धांत है कि हम मुचलका नहीं भरेंगे, इसलिए न्यायालय इसके अनुसार कार्रवाई करे, कानून के अनुसार नहीं। मुचलका भरने से इनकार पर न्यायालय ने केजरीवाल से पूछा कि क्या वह ऐसा चाहते हैं कि उनके साथ कुछ विशेष तरह का व्यवहार किया जाए? दरअसल सुनवाई के दौरान केजरीवाल ने मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट गोमती मनोचा से कहा कि वह यह हलफनामा देने को तैयार हैं कि वह न्यायालय के समक्ष पेश होंगे, लेकिन मुचलका नहीं भरेंगे। इस पर मैजिस्ट्रेट ने कहा, वह (केजरीवाल) जमानत के लिए बॉन्ड क्यों नहीं भरेंगे? एक प्रक्रिया है और हमें इस मामले में दूसरी प्रक्रिया क्यों अपनानी चाहिए? न्यायालय ने केजरीवाल के लिए अंग्रेजी में जो शब्द प्रयोग किए हैं वे हैं सनक, जबरन अपनी बात पर अड़ना और उसी तरह न्यालयालय पर काम करने का दबाव डालना। न्यायालय ने कहा कि ‘किसी की सनक और झनक में न्यायालय की प्रकिया को हवा में नहीं उड़ा दिया जा सकता। अगर कोई वादी इरादतन कानून की स्थापित प्रक्रिया का उल्लंघन करने पर उतारु है तो न्यायालय उसके सामने मूकदर्शक बना नहीं रह सकता।’ मनीष सिसौदिया कह रहे हैं कि केजरीवाल के खिलाफ चल रहे मानहानि के दूसरे मामलो में बांड भरने को कहा नहीं गया, लेकिन नई सरकार के आते ही ऐसा कहा गया और उन्हें जेल भेज दिया गया। विचित्र तर्क है। अगर किसी एक न्यायालय ने नहीं कहा और दूसरे ने कहा तो इसमें राजनीतक साजिश कहां से आ गई।
यह साफ तौर पर न्यायालय के खिलाफ विरोध करना है। गडकरी को हम किसी प्रकार का प्रमाण पत्र नहीं दे रहे, लेकिन जांच रिपोर्ट में उनके खिलाफ कुछ भी नहीं निकला। जिस अंजलि दमानिया के कथन पर अरविन्द केजरीवाल ने नितीन गडकरी पर आरोप लगाया नागपुर की जनता ने उनकी जमानत जब्त करा दी। आपने अपने आरोप से एक व्यक्ति का राजनीतिक जीवन एक प्रकार से खत्म कर देने की कोशिश की। अगर आरोप नहीं लगता तो गडकरी आज भाजपा अध्यक्ष होते। तो भी उस व्यक्ति ने मान्य कानूनी रास्ता पकड़ा। बात सीधी है या तो आप आप साबित करिए या फिर मानहानि की सजा भुगतिए। लेकिन अभी तो केजरीवाल को तिथियों पर उपस्थित होना था जो नहीं हुए तो न्यायालय में मुचलका भरने में समस्या क्या थी?
वस्तुतः आम आदमी पार्टी का काम करने का अभी तक यही तरीका रहा है। यह उसे दिल्ली में अपनी पुनर्वापसी का अवसर दिखा और उसने इसका इस्तेमाल आरंभ कर दिया। अरविन्द एवं आम आदमी पार्टी के सामने अपनी साख की समस्या है। राज्यपाल की चिट्ठी लीक हो गई जिसमें अपने पुराने स्टैण्ड के विपरीत उनने विधानसभा भंग करने में थोड़ा समय लेने का निवेदन किया गया था। इसमें लिखा गया था कि हम जनता से पूछना चाहते हैं कि क्या सरकार पुनः बनानी चाहिए। यानी सरकार बनाने की भी इच्छा थी। हालांकि चिट्ठी लीक होते ही केजरीवाल ने घोषणा किया वे चुनाव में जाना चाहते हैं और जनता से माफी मांगी। विधायकों का बड़ा वर्ग नाराज है। कुछ भाजपा से सौदेबाजी कर रहे हैं। पहले समर्थन देने वाले अब साफ कर चुके हैं कि दोबारा वे ऐसा नहीं करेंगे। तो यही एक मौका था जब पूरे मामले से ध्यान हटाकर फिर से स्वयं को महाक्रांतिकारी और व्यवस्था को नकारने वाले हीरो क रुप में अपने को दिखाएं। आम आदमी पार्टी की चार यूएसपी रही है- इवेट मैनेजमेंट, कमजोर लक्ष्य पर हल्लाबोल, अभिनय और आत्ममप्रचार। इस तरह अपने यूएसपी के अनुसार ही वे काम कर रहे हैं। लेकिन क्या इस प्रकार की अभिनय, आत्मप्रचार और निरर्थक हल्लाबोल की शैली को जनता उबाउ नहीं मानेगी?
यह तर्क दिया जा रहा है कि आम आदमी पार्टी को दिल्ली की जनता ने नकारा नहीं है। उसे पिछले विधानसभा चुनाव से 4 प्रतिशत मत अधिक मिले हैं। यकीनन मिले हैं, और कांग्रेस का स्थानापन्न उसने किया है। लेकिन लोकसभा चुनाव परिणाम का दूसरा पहलू यह है कि भाजपा का करीब 14 प्रतिशत प्रतिशत बढ़ा है। विधानसभा चुनाव मेें आम आदमी पार्टी ने 28 सीटंें जीतीं, इस बार केवल 8 सीटों पर बढ़त मिली है। इसके समानांतर भाजपा की बढ़त 61 सीटों पर है। इन दोनों को मिलाकर जब विवेचन करेंगे तब जनमत साफ दिखाई देगा। मान लीजिए, आपको जनमत मिले भी तो क्या ऐसे आचरण का किसी दृष्टिकोण से समर्थन किया जा सकता है? कतई नहीं। राजनीति का यह तरीका देश में ऐसे कई प्रकार के सामाजिक राजनीतिक असंतुलन और अशांति उत्पन्न करेगा जो कि वर्तमान चुनौतियों और संकटों से निपटने में बाधा खड़ी करेगां। इसलिए ऐसी हरकतों का पुरजोर विरोध होना चाहिए।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर काॅम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208