शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

यह सरकार या भाजपा का नहीं देश का विरोध है

 

अवधेश कुमार

देश अगर कोई जीव होता तो निश्चय मानिए वह इस समय राजनीतिक दलों के व्यवहार पर चीत्कार कर रहा होता। भारत सरकार के पाक अधिकृत कश्मीर, गिलगित बलतिस्तान और बलूचिस्तान पर मुखर रवैये से पूरे देश में नए उत्साह और रोमांच का अनुभव किया जा रहा है। देश की सामूहिक आवाज यह है कि लंबे समय बाद या कई मायनों में पहली बार भारत सरकार ने पाकिस्तान के संदर्भ में एक निर्णय किया, जिस पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है और आगे बढ़े। लेकिन राजनीतिक पार्टियों को देखिए तो वे सरकार के विरोध की मानसिकता में ऐसे बयान दे रहे हैं जिनसे पाकिस्तान का समर्थन हो रहा है और भारत का विरोध। आप देख लीजिए सलमान खुर्शीद, पी. चिदम्बरम, दिग्विजय सिंह....कोई छोटे नेता नहीं हैं। इनकी आवाज सुन लीजिए। लगेगा ही नहीं कि कोई ऐसा भारतीय नेता बोल रहा है जो स्वयं शासन में रहा है। दिग्विजय सिंह तो सरकार के विरोध में पता नहीं किस तरह अपना संतुलन खो बैठे कि हमारे कश्मीर को भारत अधिकृत कश्मीर तक कह दिया। जब उन्हें किसी पत्रकार ने याद दिलाया तो वे उसे वापस लेने की बजाय कुतर्क करने लगे। दिग्विजय सिंह कांग्रेस पार्टी के पहले नेता होंगे जिनकी शब्दावली तथा पाकिस्तान और हुर्रियत कॉन्फ्रंेस के नेताओं की शब्दावली समान हैं। ठीक यही स्थिति कश्मीर में लंबे समय तक शासन करने वाली पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं की है।

सच कहा जाए तो 12 अगस्त के सर्वदलीय सम्मेलन के बाद ऐसा लगा था कि कश्मीर, बलूचिस्तान एवं समग्र पाकिस्तान नीतियों के संदर्भ में देश में राजनीतिक एकता कायम हुई है। उससे यह संदेश निकला था कि भारत फिर एक इतिहास बनाएगा, लंबे समय से कश्मीर पर अपने रक्षात्मक रवैये से निकलकर पाकिस्तान को रक्षात्मक होने और उसे दबाव में लाने में ही सफल नहीं होगा, बलूचांें का राष्ट्रवादी आंदोलन यदि आगे भारत की मदद से सफल हुआ तो पाकिस्तान तीसरी बार विभाजित हो जाएगा। यह यहीं तक नही रुकेगा सिंध एवं खैबर पख्तूनख्वा तक में आजादी का आंदोलन तीव्र होगा।  उसके बाद जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से इनका जिक्र कर दिया तो साफ हो गया भारत वाकई उस दिशा में मुखर होकर आगे बढ़ने का निर्णय कर चुका है। उसके बाद की घटना देखिए तो जब पाकिस्तान ने भारत के पास अपनी छलनीति के तहत कश्मीर मुद्दे पर विदेश सचिव स्तर की बातचीत के लिए प्रस्ताव भेजा तो भारत ने नहले पर दहला मारते हुए कहा कि हां, हम बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन आपके यहां से जो आतंकवाद हमारे यहां आ रहा है उस पर होगी। विदेश सचिव की ओर से जारी पत्र में यह भी पूछा गया कि आप अपने कब्जे वाले कश्मीर को खाली कब कर रहे हैं।

निश्चय मानिए पाकिस्तान को इस तरह के उत्तर की कल्पना नहीं रही होगी। शायद ही किसी को याद हो कि भारत की ओर से बाजाब्ता औपचारिक पत्र में पाक अधिकृत कश्मीर खाली करने की बात की गई हो। सच कहें तो भारत लंबे समय से कश्मीर और पाकिस्तान के संदर्भ में ऐसी ही नीतियों के लिए छटपटा रहा था। तो देश के आम अवाम ने इस नीति को हाथों-हाथ लिया है। जाहिर है, आम अवाम का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियों से यह उम्मीद है कि वो इन नीतियों पर कंधे से कंधा मिलाकर सरकार के साथ खड़े होंगे। लोगों की अपेक्षा यह है कि राजनीतिक दलों का स्वर एक हो ताकि बाहर इन मामलों पर देश की एकता का संदेश जाए। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, नेताओं के बयान ऐसे आ रहे हैं मानो भारत की ही नीति गलत हो। सलमान खुर्शीद मानते हैं कि इससे पाकिस्तान भारत पर आंतरिक मामले में दखल का आरोप लगाएगा और संयुक्त राष्ट्र में उसका पक्ष मजबूत होगा। आश्चर्य है ऐसा व्यक्ति भारत का विदेश मंत्री रह चुका है। उन्हें मालूम होना चाहिए कि जब 1971 में इंदिरा गांधी की सरकार ने बांग्लादेश में सैनिक हस्तक्षेप का निर्णय किया तो संयुक्त राष्ट्र के हमारे खिलाफ जाने की संभावना ज्यादा थी। उस समय हम एक गरीब और कमजोर देश थे, अमेरिका और पश्चिमी यूरोप हमारे लिए अनुकूल देश नहीं थे। आज तो हमने अभी केवल बलूचिस्तान में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन, बलूचों के उत्पीड़न की बात की हैं। सैनिक हस्तक्षेप की बात भी नहीं हुई है। भारत की विश्व पटल पर आज 1971 से बिल्कुल अलग भविष्य के महाशक्ति की छवि है और अमेरिका सहित चीन को छोड़कर दुनिया के प्रमुख देश भारत के प्रति अनूकूल रवैया रखते हैं। सलमान खुर्शीद जैसे नेता को यह समझ क्यों नहीं आ रहा कि पाकिस्तान को उसकी भाषा में जवाब देने तथा कश्मीर समस्या के समाधान कर लेने की शुरुआत का यही उपयुक्त समय है। उसने कश्मीर और पंजाब को हमसे अलग करने की कोशिश की तो उसका जवाब क्या है?

 हालांकि कांग्रेस का औपचारिक स्टैण्ड यह है कि पार्टी सरकार के साथ है, लेकिन उसके बड़े नेता इससे अलग बयान दे रहे हैं। पी. चिदम्बरम गृह मंत्री रहे हैं। वो कह रहे हैं कि कश्मीर की वर्तमान समस्या सरकार की विफलता है। वो इसका उपचार भी सुझाते हैं- पीडीपी भाजपा से अलग हो जाए तथा आगे कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस एवं पीडीपी की सरकार बने। जब 2010 में ऐसी ही पत्थरबाजी और हिंसा हुई थी तो चिदम्बरम का बयान था कि यह देश विरोधी तत्वों की कार्रवाई है जो पाकिस्तान के इशारे पर काम कर रहे हैं और लश्कर ए तैयबा के प्रभाव में हैं। जब वे गृहमंत्री थे तो यह देशविरोधियांे और पाकिस्तान की कार्रवाई थी और आज जब वे विपक्ष में हैं तो यह सरकार की विफलता हो गई। इन्हंीं बयानों को पाकिस्तान उद्वृत कर रहा है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने जो प्रेस वक्तव्य जारी किया उसमें कहा है कि भारत सरकार ने बलूचिस्तान एवं आजाद कश्मीर यानी पाक अधिकृत कश्मीर पर जो स्टैण्ड लिया है उस पर वहां एक राय नहीं है। माकपा जैसी पार्टियंा हैं जो सर्वदलीय सम्मेलन में तो सरकार के साथ रहती है लेकिन टीवी चैनलों की बहस में और आम प्रतिक्रियाओं में कश्मीर पर भारत सरकार के रवैये की आलोचना करती है तथा हुर्रियत की आवाज निकालती है। उनके मुंह से एक बार भी नहीं निकल रहा है कि कश्मीर की वर्तमान स्थिति के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। उसकी जगह वो अपनी सरकार को कोस रहे हैं। वो नहीं कह रहे हैं कि बलूचिस्तान में बलूचों के उत्पीड़न की आवाज उठाने का भारत को हक है।

नेशनल कॉन्फ्रेंस जिसने लंबे समय कि जम्मू कश्मीर पर शासन किया उसका रवैया देखिए। इसके प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला विपक्षी दलों के साथ राष्ट्रपति से मिले और केवल प्रदेश एवं केन्द्र सरकार की शिकायत की। वे प्रधानमंत्री से भी मिले। उनका बयान है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पाक अधिकृत कश्मीर एवं बलूचिस्तान से पहले अपने कश्मीर की चिंता करें। वे वर्तमान स्थिति के लिए पाकिस्तान को जिम्मेवार मानते ही नहीं। यह कैसा बयान है? वे स्वयं शासन में थे और 2010 में जब पत्थरबाजी एवं हिंसा आरंभ हुई थी तो उनका बयान इसके उलट था। आखिर पाक अधिकृत कश्मीर पर बात करने से उनको क्यों समस्या है? कश्मीर में अशांति के पीछे पाकिस्तान है जिसके इशारे पर अलगाववादी तत्व लोगों को उकसा कर स्थिति बिगाड़ रहे हैं। अगर उमर अब्दुल्ला इसमें पाकिस्तान का हाथ नहीं मानने का बयान देते हैं तो इसे क्या कहा जाए। यह तो पाकिस्तान को बचाना हो गया। वे भूल रहे हैं कि इससे पाकिस्तान का समर्थन हो जाता है।

वास्तव में सरकार के विरोध में हमारे नेता उस सीमा तक जा रहे हैं जिनसे भारत की नीतियों का विरोध एवं पाकिस्तान का समर्थन हो जा रहा है। यह उचित नहीं है। तो राजनीतिक दलों से निवेदन होगा कि वो देश के लोगों का मूड समझें, कश्मीर समस्या के समाधान की आवश्यकता को ध्यान लाएं तथा पाकिस्तान को उसकी भाषा में जवाब देने की आवश्यकता को महसूस करें एवं सरकार के साथ खड़े हों। यह इतिहास निर्माण की नींव डालने की वेला है जिसमें पूरे देश की आवाज एक होनी चाहिए।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408,09811027208  

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