शनिवार, 16 दिसंबर 2023

महुआ मोइत्रा का निष्कासन से क्या सांसदों को सीख मिलेगी

बंसत कुमार
पिछले सप्ताह टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा की पैसा लेकर संसद में प्रश्न पूछने के मामले में संसद सदस्यता रद्द किए जाने पर सियासत तेज हो गई है, टीएमसी समेत कई विपक्षी दल इस कार्यवाही का विरोध कर रहे है। उनका आरोप था कि संसद की आचार समिति की रिपोर्ट लोकसभा में रखने के पूर्व मीडिया में लीक कर दी गई और इस संबंध में महुआ मोइत्रा को अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं दिया गया क्योकि यह कार्यवाही निष्पक्ष तभी मानी जाती जब आरोपित व्यक्ति को अपनी सफाई देने का पूरा मौका दिया जाता। पर इस मामले में शिकायतकर्ता दर्शन हीरा नंदानी को समिति के समक्ष नहीं बुलाया गया और सारी कार्यवाही उनके द्वारा दिए गए हलफनामे के आधार पर की गई। जबकि कायदे से उनको समिति के सामने यह बताना चाहिए था कि यह हलफनामा उन्हीं के द्वारा दिया गया है और आचार समिति द्वारा यह नहीं बताया गया कि कितनी नगदी का लेन-देन हुआ है और न कोई सबूत दिया गया है।
लोकसभा में बोलते हुए जेडीयू सांसद गिरीश यादव ने बताया कि मेरे द्वारा संसद में पूछे गए सवाल में नहीं मेरा निजी सचिव बनाता है और मुझे अपना आईडी पासवर्ड नहीं पता और इसे भी मेरा निजी सचिव लॉग इन करता है सांसद की इस बात पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा माननीय सांसद खुद ही अपना प्रश्न बनाएं और खुद डालें, माननीय लोकसभा अध्यक्ष की यह बात सही हो सकती है पर वास्तविकता यह है कि अधिकांश सांसदों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न उनके साथ काम करने वाले लोग ही बनाते हैं और यह भी सच है कि करोड़पतियों और बाहुबलियों का आज की राजनीति में इतना अधिक वर्चस्व हो गया है कि अधिकांश सांसद ऐसे आ रहे हैं जो अपने द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न और अपने भाषण स्वयं तैयार कर सकें और इनमें से अधिकांश इन कार्याे के लिए अपने स्टाफ पर आश्रित रहते हैं।
मुझे 15वीं लोकसभा की एक घटना याद आ रही है जब प्रश्न काल के दौरान मछली शहर उत्तर प्रदेश के सांसद श्री राम चरित्र निषाद का उनके द्वारा पूछे गए प्रश्न के संबंध में उनका नाम पुकारा गया तो उन्हें यह नहीं पता था कि उन्हे कौन-सा प्रश्न पूछना है और उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष को बताया कि मुझे यह नहीं पता कि क्या पूछना है, जबकि 2-3 दशक पूर्व तक सांसदों के लिए प्रश्न पूछना बहुत महत्वपूर्ण होता था और वरिष्ठ से वरिष्ठ सांसद जिन्हे सांसद के रूप में कई दशकों का अनुभव होता था फिर भी वे संसद पूरी तैयारी के साथ जाते थे। मुझे भी कई वरिष्ठ सांसदांे और मंत्रियों के साथ काम करने का अवसर मिला और वर्ष 2009-2012 के बीच भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक श्री कलराज मिश्र के साथ काम करने का अवसर प्राप्त हुआ। उन वर्षाे में मैं उनके द्वारा पूछे गए प्रश्नों और उनके पूरक प्रश्नों और राज्यसभा में उनके द्वारा दिए गए भाषणों व वक्तव्यों को तैयार किया करता था और उस समय तक श्री मिश्र को संसद और विधानसभा का चार दशक का अनुभव हो चुका था पर संसद जाते समय एक नए छात्र की तरह तैयार हो कर जाते थे और हर बिंदु पर मुझसे बात करने में संकोच नहीं करते थे और उनकी कड़ी मेहनत और लगन का ही नतीजा था कि इतने लम्बे समय तक वे पार्टी व सरकार में अनेक उत्तरदात्यिवांे का सफलतापूर्वक निर्वाह करते रहे।
जहां तक सांसदों जनप्रतिनिधियों द्वारा पूजीपतियों या अन्य धन्नसेठों से सुविधाएं लेने का प्रश्न है तो 20वीं सदी के आखिरी दशक में हवाला कांड के खुलासे के बाद जैन डायरी में नाम आने के बाद कई मंत्रियों और सांसदो को अपने पद से त्याग पत्र देना पड़ा था और इसकी कीमत दिल्ली को चुकानी पड़ी थी जब उस समय सबसे मेहनती और उर्जावान मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना को असमय अपने पद से त्याग पत्र देना पड़ा था पर वह पाक-साफ होने पर भी वह दुबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाए और उनके द्वारा प्रारंभ की गई योजनाएं अधूरी रह गईं। यद्यपि सांसदो द्वारा व्यापारी वर्ग से फेवर लेने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि अधिकांश सांसद विधायक ऐसे लोगों से हमेशा फेवर लेते रहते हैं। यदि इस आधार पर सांसदों की सदस्यता रद्द होने लगे तो एथीक्स कमेटी के चेयरमेन सहित अधिकांश सांसदों की सदस्यता समाप्त हो जाएगी। यदि महुआ मोइत्रा का निष्कासन का मामला लोकसभा में रिश्वत लेकर प्रश्न पूछने का है उनके उपर निष्कासन के अतिरिक्त भ्रष्टाचार निरोधक एक्ट के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए और दोषी पाए जाने पर उन्हे जेल के साथ-साथ सांसद के रूप में मिलने वाली पेंशन आदि बन्द कर देनी चाहिए पर सिर्फ किसी की शिकायत और हलफनामे के आधार पर किसी की सदस्यता रद्द करना उचित नहीं है। जब देश में भ्रष्टाचार से निपटने हेतु पीसी एक्ट जैसे प्रावधान उपलब्ध है तो सांसदों को इससे छूट क्यों मिले। ऐसे मामलों का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए और न ही भ्रष्टाचार में लिप्त सांसदों, मंत्रियों के साथ कोई ढिलाई बरती जानी चाहिए।
पर आज कल के सांसद अपने विधायी कार्याें के उत्तरदायित्व के सफल निर्वहन और संसद की कार्यवाही में रुचि लेने के बजाय मंत्रियों और बड़े लोगों के साथ फोटोबाजी और उसे फेसबुक पर शेयर करने में व्यस्त रहते हैं! आज कल पंडित नेहरू से लेकर अटल युग की स्तरीय परिचर्चा संसद में अब सपना हो गई हैं। जब सांसद को यही नहीं पता होगा कि मुझे संसद में क्या पूछना है तब तक इस बात की संभावना रहेगी कि सांसद ने किसी प्रलोभन के कारण यह प्रश्न पूछा है या किसी प्रलोभन के कारण उनके निजी स्टाफ् ने इस प्रकार का प्रश्न बनाया है जिसे सांसद आंख मूंद कर हस्ताक्षर कर देते हैं। जैसा कि महुआ मोइत्रा के साथ हुआ होगा, उनके निष्कासन के पश्चात् यह कहा गया कि आचार समिति मुझे इस बात के लिए दंडित कर रही हैं जो लोकसभा में सामान्य है, स्वीकृत और सामान्य है और जिसे प्रोत्साहित किया जाता हैं। मेरे खिलाफ पूरा मामला लॉग इन डिटेल शेयर करने पर आधारित है जबकि इसके लिए कोई नियम तय नहीं है। इस निष्कासन के बाद एक अन्य सांसद ने कहा कि मोइत्रा ने नियम तोड़ा है और कोई भी व्यक्ति कानून से उपर नहीं होना चाहिए। यह पक्ष-विपक्ष का मामला नहीं है बल्कि संसद की मर्यादा का प्रश्न है, क्योंकि एक सांसद क्षेत्र के लाखों लोगों का प्रतिनिधित्व करता है और यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है और जब कोई इस जिम्मेदारी से चूक करता है तो प्रश्न उठना लाजमी है।



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