गुरुवार, 31 अगस्त 2023

शिव शक्ति नाम में भारतीय दर्शन की व्यापक सोच

अवधेश कुमार

चंद्रयान-3 के चंद्रमा पर उतरने की जगह का नाम शिव शक्ति हो चुका है। उस स्थान को जहां चंद्रयान-2 ध्वस्त हुआ, तिरंगा नाम दिया गया। कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने कहा कि नरेंद्र मोदी जी ने उसका नाम कैसे रख दिया? क्या वह चांद के मालिक हैं ? यह गलत बात हैआदि आदि। ये ऐसी प्रतिक्रियाएं हैं जिनका उत्तर देना भी अपना समय नष्ट करना होगा। चंद्रयान 1 जहां 2008 में  उतरा था उसका नाम तत्कालीन संप्रग सरकार ने जवाहर रख दिया। हालांकि चंद्रयान  की योजना अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान बनी थी और उन्होंने 1999 में ही घोषणा की थी कि 2008 में चंद्रयान 1 प्रक्षेपित होगा। भाजपा मांग कर सकती थी कि बाजपेयी जी का नाम रखा जाए। शिव शक्ति और तिरंगा राजनीतिक नाम भी नहीं। इस नाम के पीछे गहरी सोच है। हमारे धर्मग्रंथो में शिव और चंद्रमा के संबंध  बताने की आवश्यकता नहीं। शिव शक्ति भारतीय सभ्यता संस्कृति का प्रतीक नाम है। नामकरण के कुछ उद्देश्य होते हैं। शिव सृष्टि के कल्याणकर्ता हैं। वे कालों के काल महाकाल भी हैं। कल्याण के लिए वे विषपान तक चले गए। उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है। तो शिव शक्ति नाम का अर्थ यह हुआ कि भारत का अंतरिक्ष अभियान या चंद्रमा पर चंद्रयान का उतरना संपूर्ण मानवता या सृष्टि के कल्याण के लिए है और कालातीत है। यानी हमारा अंतरिक्ष अभियान विज्ञान की प्रकृति पर विजय को दर्शाने या महाशक्ति की धौंस जमाने के लिए नहीं है।

यही भारतीय दृष्टि आज हमारी समस्त विदेश नीति, रक्षा नीति, विज्ञान नीति का मूल दर्शन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद आंतरिक और बाह्य नीतियों में भारतीय सभ्यता संस्कृति का दिग्दर्शन हो रहा है और विश्व मानवता भी हमारी व्यापक दृष्टि और व्यवहार से परिचित हो रही है। उन्होंने चंद्रयान 3 की सफलता के बाद दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि यह केवल भारत की और भारत के वैज्ञानिकों की सफलता नहीं है, संपूर्ण विश्व की, मानवता की सफलता है।  प्रधानमंत्री ने अपने देश की वैज्ञानिक उपलब्धियां, अनुसंधान आदि की चर्चा की, पर धौंस जमाने या यह प्रदर्शित करने का दंभ नहीं था कि भारत के समक्ष दूसरे देश छोटे या बौनें हैं। संपूर्ण विश्व का साझा अभियान बताकर प्रधानमंत्री ने संदेश दिया कि भारत का वैश्विक दृष्टिकोण क्या है। भारतीय जीवन दर्शन में उपलब्धियों और समृद्धि के साथ विनम्रता और त्याग को जोड़ा गया है।  ब्रिक्स सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी थे। चीन अंतरिक्ष की उपलब्धियां पर गर्वोन्मत भाव प्रकट करता है। इसी कारण कई गुनी बड़ी आर्थिक शक्ति होते हुए भी चीन को भारत की तरह विश्व में भविष्य के नेता या उम्मीद की दृष्टि से नहीं देखा जाता।  बिना उपलब्धि के विश्व मानवता की भाषा बोलें तो कोई सुनने वाला नहीं होता। उपलब्धियां हासिल करने के बाद अपना दर्शन रखते हैं तो सारे देश गंभीरता से सुनते और विचार करते हैं। 

यह मानना होगा कि भारत के अंतरिक्ष सफलता के साथ विश्व के अंतरिक्ष अभियानों के दृष्टिकोण में बदलाव आएगा। प्रधानमंत्री कोरोना काल के बाद जिस विश्व व्यवस्था की बात करते हैं उसमें भारतीय दर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। प्रधानमंत्री मोदी हर ऐसे अवसर का इस दृष्टि से उपयोग करते हैं और अपने अनुसार विश्व को संदेश देने में सफल होते हैं। यही चंद्रयान-3 के मामले में है और इसे भारतवासियों को गहराई से समझना चाहिए। दुर्भाग्य है कि जहां संपूर्ण विश्व भारत को बधाई दे रहा है और बड़ी संख्या में देश भारत की सफलता से खुश होकर नेतृत्व की दृष्टि से हमारी ओर देख रहे हैं वहां हम राजनीतिक तू तू मैं मैं में उलझे हैं। कांग्रेस ने 2019 में भी चंद्रयान 1 के उड़ान के साथ भी श्रेय वैज्ञानिकों के अलावा पंडित नेहरू को दिया। इस बार भी कांग्रेस का स्वर यही है।  सरकारें निरंतरता में चलतीं हैं। स्वतंत्रता के समय कांग्रेस ही थी और तब विकास की नींव डालने की भूमिका उनकी थी। हालांकि कोई उपलब्धि  एक नेता या केवल सरकार की नहीं होती, पर उसकी महत्वपूर्ण भूमिका अवश्य होती है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान और कार्य की नींव डालने में नेहरू जी की भूमिका थी। किंतु सब कुछ उन्हीं के कारण हो रहा है केवल दंभ कहा जाएगा। यह सच भी नहीं है। यह मानसिकता स्वयं को ही महान और सर्वोपरि मानती है और दूसरे को स्वीकार नहीं करती।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में अंतरिक्ष, रक्षा या अन्य वैज्ञानिक अनुसंधानों को मिली शक्ति, दिशा और व्यापक आयाम अतुलनीय है।  यूपीए सरकार के अंतिम समय में अंतरिक्ष बजट और आज के बजट को देखें तो यह तीन गुना से भी ज्यादा हो जाता है। अंतरिक्ष को व्यापक आयाम दिया गया।  अंतरिक्ष के व्यावहारिक लक्ष्य तय हुए। यानी भारतीय दृष्टि तथा अंतरिक्ष लोगों के दैनिक जीवन से जुड़े इस पर फोकस करने का लक्ष्य मिलने के बाद वैज्ञानिकों ने केंद्रित होकर काम किया है। अमेरिका में नासा की ताकत निजी क्षेत्र है। केवल सरकार की बदौलत अंतरिक्ष या किसी क्षेत्र में आवश्यक ऊंचाइयां हासिल नहीं कर सकते। निजी क्षेत्र को अनुमति दी गई। इंडियन स्पेस एसोसिएशन की स्थापना और भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र यानी इन स्पेस का गठन हुआ।  श्रीहरिकोटा सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में एक निजी लॉन्चपैड और मिशन नियंत्रण केंद्र की स्थापना हुई। आज 140 स्टार्टअप अंतरिक्ष क्षेत्र में काम कर रहे हैं। स्टार्टअप में 2021 से अभी तक 20 करोड डॉलर का निवेश आया है। 2030 तक इसरो ने अपना स्पेस स्टेशन स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। भारत दूसरे देशों का सबसे ज्यादा उपग्रह प्रक्षेपित करने वाला देश है। 2040 तक अंतरिक्ष बाजार एक खरब डालर का हो सकता है और उसमें भारत को सर्वाधिक महत्वपूर्ण हिस्सा पाना है तो उसके अनुरूप उद्देश्य, विचारधारा, आधारभूत संरचना, माहौल और सरकारी प्रोत्साहन होना चाहिए। व्यावहारिक दृष्टिकोण नहीं हो तो दूसरे देशों को आप नहीं समझा सकते कि वे उपग्रह क्यों छोड़ें। उपग्रहों से आम व्यक्ति का दैनंदिन जुड़ाव इतना ज्यादा है कि सभी देश आगे बढ़ना चाहते हैं। इस समय हमारा अंतरिक्ष बाजार चार प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रहा है।

सही लक्ष्य, विचारधारा,माहौल देने तथा नेतृत्व द्वारा लगातार प्रोत्साहन मिलने के बाद वैज्ञानिक, कर्मचारी सब अपने आपको झोंक देते हैं क्योंकि सब उनके मन के अनुकूल होता है। हमारा चंद्रयान-3 केवल 600 करोड रुपए में सफल हुआ जबकि रूस का लूना 16000 करोड रुपए खर्च करके विफल। यानी बड़ी सफलताओं के लिए भी बहुत ज्यादा धन नहीं चाहिए। विचारों और लक्ष्यों की प्रेरणा तथा नेतृत्व का प्रोत्साहन मूल होता है। 2019 में चंद्रयान-2 की विफलता के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने जिस ढंग से तत्कालीन इसरो प्रमुख को गले लगाया और भाषण दिया वह अद्भुत था। इस बार भी विदेश से लौटते हुए सीधे बेंगलुरु उतर केंद्र पर जाकर उन्होंने वही भूमिका निभाई है। नेतृत्व का दृष्टिकोण देखिए। उन्होंने छात्रों व युवा वैज्ञानिकों से कहा कि हमारे खगोल विज्ञान की गणनाओं को आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर सही साबित करें ताकि हम विश्व को बता सकें कि हमारी धरोहर क्या है। यही बात पहले क्यों नहीं कही गई? इसरो प्रमुख सोमनाथ ने कहा था कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में जो कुछ भी आज है वह  वेदों में पहले से हैं, बीजगणित , अंकगणित, ज्यामिति, त्रिकोणमिति सबके आधार वहां है और पश्चिम ने उसी को नए पैकेज में पेश किया है। सोमनाथ की इस कथन पर पीठ थपथपाई गई। हो सकता है दूसरी सरकार होती तो उनकी हंसी उड़ाई जाती। भारत की ज्ञान शक्ति को साबित करने का लक्ष्य भी वैज्ञानिकों को मिल गया है। तो चंद्रयान तीन की सफलता  भारत के उस दर्शन की सफलता है, जिसका आधार अद्भुत ज्ञान के खजाने का सबको लाभ पहुंचाना और संपूर्ण सृष्टि का कल्याण है। भारत चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश ही नहीं बना भविष्य में संपूर्ण विश्व के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को सही दिशा देने की आधारभूमि भी तैयार कर दिया है।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल -9811027208



आवश्यक शिक्षण मानक के अभाव में कोचिंग संस्थानों के पास शोषण का अवसर?

पी. के. प्रमाणिक
माता-पिता चिंतित है वे अपने बच्चों की पढ़ाई के आसमान छूते खों को पूरा करने के लिए खुद को बढ़ा रहे हैं, अगर उनके एक से अधिक बच्चे है, तो उनकी वित्तीय स्थिति हमेशा अनिति होती है, चाहे उनकी आप कुछ भी हो....
आज के समय में, बच्चों को अच्छे स्कूलों में भेजना इतना महंगा क्यों हो गया है और सरकार ने इस समस्या पर अपनी जद करती है जैसे कि उन्हें 'चिंता करने की कोई बात नहीं है।
यह किसी भी सरकार की विफलता है जो राज्य सरकारों द्वारा संचालित कुछ मुट्ठी भर स्कूलों को छोड़कर आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गुणवत्ता वाले स्कूलों को जोड़ने में सक्षम नहीं है, अधिकांश स्कूल खराब गुणवत्ता वाले लेकिन उच्च वेतन वाले शिक्षकों या कर्मचारियों के साथ सबसे खराब बुनियादी ढांचे के साथ हैं, जो ज्यादातर बड़े व्यापारिक घरानों या शिक्षा माफियाओं द्वारा चलाए जाते हैं। जो लोग पाते हैं कि भारत में स्कूल या कॉलेज चलाना सबसे आकर्षक और मुनाफाखोरी का व्यवसाय है, जिसमें विकास शुल्क आदि के नाम पर फीस या अन्य अत्यधिक शुल्क पर राज्य या केंद्र सरकार का शायद ही कोई नियंत्रण है, उन माता-पिता से एकत्र किए जाते हैं जिनके पास नाक के माध्यम से खर्च करने के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं है। यह बिल्कुल स्पष्ट है, ये स्कूल या कॉलेज भारत की बड़ी आबादी की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकते हैं, इसलिए कई लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों या कॉलेजों के पास डाल रहे हैं, जिसमें शायद ही कोई शिक्षण प्रणाली हो, चाहे शिक्षक हो या प्रयोगशालाएं व्यावहारिक कक्षाएं।
यहाँ कुछ लोगों के लिए बढ़ते व्यावसायिक अवसरों की भूमिका आती है, जो विशेष रूप से हाई स्कूल या +2 कॉलेज के छात्रों के लिए अतिरिक्त सहायता प्रदान करने के नाम पर, जिन्हें कठिन बोर्ड परीक्षा या जेईई, एनईईटी, एनडीए, यूपीएससी और कई अन्य जैसे पेशेवर या तकनीकी परीक्षणों का सामना करना पड़ता है.....।
सरकारी स्कूलों या कॉलेजों में खराब शिक्षा स्तर का लाभ उठाते हुए, अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों को कोचिंग संस्थानों में भेजने के लिए मजबूर होते हैं, जो अपनी फीस या अन्य शुल्कों पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं होने के साथ एक उद्योग बन गए है, इस उम्मीद के साथ कि उनके निजी स्कूल के बच्चों की की मराबरी कर सकते हैं, जबकि निजी स्कूल के बच्चों के माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे अधिक उत्कृष्टता प्राप्त करे और सभी विषयों में 100/100 स्कोर करें ट्रेंड यह है कि भारतीय स्कूल या कॉलेज ऐसे हैं जो शीर्ष स्कूलों या कॉलेजों में प्रवेश कट ऑफ अंकों से परिलक्षित होते हैं...।
ध्यान रहे केवल परीक्षा पास करने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और गहन शिक्षण में बड़ा अंतर है, जो एकमात्र आया है और कोचिंग संस्थान भारी पैसे का भुगतान करके संकायों को नियुक्त करते हैं जो शॉर्टकट सिखा सकते हैं और जो कोचिंग पास राशन के लिए मेहतर सुनिश्चित करते है, हालांकि वे संस्थान व्यापक पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाते हैं जो छात्रों में उचित ज्ञान और लंबे समय तक चलने वाली स्मृति के लिए आवश्यक बच्चे परीक्षा में सफल हो सकते हैं लेकिन उन्हें हमेशा अपनी आगे की पढ़ाई में समस्या का सामना करना पड़ेगा क्योंकि उनका आधार कमजोर और खोखला है। 
कोचिंग संस्थान भी छात्रों पर उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए अत्यधिक दबाव डालते हैं, इसके लिए वे अपमान, खुलेआम छात्रों का मजाक उड़ाने जैसे किसी भी हद तक जा सकते है, जिससे सात्रों में अवसाद या मानसिक आघात हो सकता है जो किसी भी तरह प्रदर्शन करने में रहते हैं। यदि आप एनईईटी या अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों द्वारा की गई आत्महत्याओं को देखें, तो आपको यह जानकर होगा कि कोटा, पटना, हैदराबाद, बैंगलोर या भुवनेचा, दिल्ली या पुणे जैसे शहरों में जाने वाले कई छात्र अनुचित दबाव के आगे झुक जाते हैं और आत्महत्या कर लेते हैं और यह प्रवृत्ति बढ़ रही है।
माता-पिता, सरकार और शिक्षानियों को सच्चाई स्वीकार करनी चाहिए कोचिंग संस्थान प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कठिन विषयों में केवल थोड़े समर्थन के लिए है, वे पारंपरित स्कूलों या कॉलेजों का प्रतिस्थापन नहीं है, बल्कि यदि आप परिणामों का विषण करते हैं, तो अधिकांश टॉपर्स केवल अपने स्वयं के अध्ययन और माता-पिता, शिक्षकों के समर्थन के कारण उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं।
कोचिंग संस्थान निजी अस्पतालों की तरह सिर्फ पैसा कमाने वाला व्यवसाय है, जो बूचड़खानों से भी बदतर हपूछो कहां भूषण खानों से बेहतर है, जहां न केवल बच्चों को बल्कि उनके माता-पिता को का सामना करना पड़ता है और केवल उनके बेहतर परिणामों की उम्मीद में लाइन में लग जाते है जो सफल भविष्य सुनिचित नहीं करते हैं।
करियर सलाहकार के रूप में मेरा पुरजोर है कि अपने बच्चों स्कूल में पढ़ने और पापा को संस्थानों से दूर रहें जी आपको जात में पैसा कमाने के लिए यहां है और भोले-भाले माता-पिता जल में फंसने के लिए तैयार हो जाते हैं और 9वीं या 10वीं कक्षा के छात्रों के लिए लाखों रुपये खर्च करते है को कोचिंग में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना बंद करें क्योंकि उसका अध्ययन पूर्ण हो जाता है और कई बार जीवन के लिए खो जाता है।
कारको कोचिंग संस्थानों को उनकी फीस और अत्यधिक शुल्क पर नियमित करना चाहिए और बच्चों को सामान्य रूप से हार्मोन इंजेक्शन वाले चूनों को आवश्यकता से जल्दी बड़ा होने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
सरकार के साथ-साथ माता-पिता स्कूलों पर डालते हैं कि अपने मानक को संस्थानों के साथ मेल खाने के लिए अड करें और सभी कोचिंग संस्थान फीस कम करेंगे या विनियमित किए जा सकते हैं। हमारे स्कूलों और कॉलेजों को उच्च प्रेरणा और प्रदर्शन आधारित प्रशंसा और के साथ बेहतर शिक्षण कर्मचारियों की आवश्यकता है और कोचिंग संस्थानों में प्रवास को नियंत्रित करने के लिए बेहतर बुनियादी ढांचे की भी आवश्यकता है। यह माता-पिता को अनुचित अनुचित वयख और तनाव से बचाएगा।
(लेखक भुवनेश्वर में करियर कंसलटेंट हैं।)
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