शुक्रवार, 24 मार्च 2017

योगी के आने से ‘सेकुलरिये’ सकते में

श्याम कुमार

आजादी के बाद अब तक एक ओर भ्रष्टाचारियों एवं घोटालेबाजों की चांदी रही है तो दूसरी ओर कट्टरपंथी मुसलमानों एवं फर्जी सेकुलरवादियों की। देश में अब तक इन्हीं लोगों का तुश्टीकरण एवं संरक्षण होता रहा है। यह तुष्टीकरण एवं संरक्षण भी भ्रश्टाचार ही था। मजहब के आधार पर नागरिकों में भेदभाव करना व हक मारना अन्याय है तथा यह अन्याय भ्रश्टाचार का दूसरा रूप है। योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने से कट्टरपंथी मुसलमान एवं फर्जी सेकुलरिए सकते में हैं। उनमें खलबली मची हुई कि यह क्या हो गया? नेहरू वंश के नेतृत्व में कांग्रेसी षासन हिन्दुओं के लिए काला अध्याय रहा है। उस दौर में हिन्दुओं को दूसरे दर्ज का नागरिक बना दिया गया था। अब तक कट्टरपंथी मुसलमान एवं फर्जी सेकुलरिए ही हावी रहे हैं तथा वे प्रथम श्रेणी के नागरिक बने हुए थे। वे दोनों एक-दूसरे के पर्याय हैं, क्योंकि दोनों की भाशा एवं नीयत एक है-हिन्दुत्व एवं भारतीय संस्कृति का विरोध। फर्जी सेकुलरियों में नकली वामपंथियों, नकली समाजवादियों, तथाकथित बुद्धिजीवियों आदि की जमातें षामिल हैं। 

हाल में ‘आप की अदालत’ में रजत शर्मा ने योगी आदित्यनाथ पर ‘मुकदमा’ चलाया था, जिसमें योगी से बड़े तीखे सवाल पूछे गए थे। रजत शर्मा ने पूछा था कि गोरखपुर में कतिपय मुहल्लों के मुसलिम नामों को क्यों बदल दिया गया है, जैसे अलीनगर का नाम आर्यनगर, मियां बाजार का नाम माया बाजार आदि। योगी ने उत्तर में कहा था कि ये जो बदले हुए नाम हैं, वे वस्तुतः उन मुहल्लों के मूल एवं असली नाम थे, जिन्हें मुसलिम षासनकाल में बदल दिया गया था। अतः जब उस समय नाम बदले जाने पर आपत्ति नहीं की गई तो अब भी आपत्ति नहीं की जानी चाहिए। इसी प्रकार एक अन्य प्रश्न के उत्तर में योगी आदित्यनाथ ने आंकड़े देकर बताया था कि जो हिन्दू बहुल इलाके हैं, वहां हिन्दुओं से मुसलमानों को किसी प्रकार का कश्ट नहीं मिलता है। लेकिन जिन क्षेत्रों में मुसलमानों का प्रतिशत अधिक होता है, वहां फसाद होते हैं तथा हिन्दुओं का चैन से रहना मुश्किल होता है। जहां मुसलमानों की संख्या बहुत अधिक होती है, वहां दंगे होते हैं तथा हिन्दुओं को उत्पीडि़त कर वह इलाका छोड़ने को विवश किया जाता है। योगी आदित्यनाथ की बात बिलकुल सही है तथा उत्तर प्रदेश के अनेक हिस्सों में हिन्दू आबादी वाले मुहल्ले धीरे-धीरे मुसलिम आबादी वाले मुहल्ले हो गए हैं। 

हिन्दू को विश्वास नहीं हो रहा है कि अब उसे आजादी मिल गई है। पिछले आठ सौ साल से गुलामी झेलते-झेलते उसकी गुलाम बने रहने की आदत पड़ गई थी। पहले मुसलिम हमलावरों ने गुलाम बनाया। चूंकि हिन्दू स्वभाव से अतिउदार एवं अतिसहिश्णु होता है, इसलिए बार-बार धोखा खाकर भी क्षमा करना उसकी प्रवृत्ति होती है। इसी से क्षमा करने के सिद्धांत के पुरोधा महात्मा गांधी ने भी झुंझलाकर कह दिया था कि हिन्दू कायर कौम है। न्यायमूर्ति अब्दुल करीब छागला हिन्दू को चरित्र से सेकुलर एवं न्यायप्रिय मानते थे। वास्तविकता यही है कि हिन्दू धर्म वास्तविक रूप में सेकुलरवादी, अर्थात पंथनिरपेक्षता के सिद्धांत का अनुयायी है। सम्पूर्ण हिन्दू दर्शन में ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का सिद्धांत निहित है। यह दर्शन ‘न्याय सबके साथ, अन्याय किसी के साथ नहीं’ सिद्धांत का प्रतिपादक है। भारतीय जनता पार्टी ने इसी आदर्श को ग्रहण कर अपना सिद्धांत बनाया है-‘सबका साथ, सबका विकास’। नरेंद्र मोदी षुरू से कह रहे हैं कि उनका लक्ष्य समस्त सवा सौ करोड़ देशवासियों का कल्याण एवं विकास करना है। इन सवा सौ करोड़ में हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई आदि सभी धर्मावावलम्बी शामिल हैं। देश के सभी लोगों का कल्याण एवं समस्त क्षेत्रों का विकास नरेंद्र मोदी का ऐसा लक्ष्य है, जो देश को पुराना गौरव वापस दिलाएगा तथा हमारा देश पुनः ‘सोने की चिडि़या’ बन सकेगा।

अपने उदार स्वभाव के कारण ही हिन्दू भारत ने तमाम विदेशियों को अपने यहां शरण दी और उनका अस्तित्व समाप्त होने से बचाया। यहूदी इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। आज विश्व में यहूदियों का जो अस्तित्व बचा हुआ है, वह सिर्फ हिन्दू भारत के कारण है। भारत ने ही उन्हें षरण देकर नश्ट होने से बचाया था। पारसियों के बारे में भी यही बात लागू होती है। षकों व हूणों को भारतीय समाज ने ऐसा आत्मसात किया कि वे अलग नहीं रह गए। लेकिन मुसलिम हमलावरों एवं अंग्रेजों के मामले में भारतीयों की उदारता आत्मघाती सिद्ध हुई। दोनों ने हमारी उदारता एवं सदाशयता का फायदा उठाकर हमें अपना गुलाम बना लिया और लगभग आठ सौ साल तक हमें उनकी गुलामी झेलनी पड़ी। विदेशी मुसलिम हमलावरों के बाद अंग्रेजों की गुलामी झेली और जब उनसे मुक्ति मिली तो हिन्दू नेहरू वंश के नेतृत्व वाले कांग्रेसी राज में कट्टरपंथी मुसलमानों एवं फर्जी सेकुलरियों की गुलामी के चंगुल में फंस गया। इन लोगों की जिद एवं कलह के कारण ही देश का वातावरण स्थायी रूप से अशांत बना हुआ है। ये लोग ‘न्याय सबके साथ, अन्याय किसी के साथ नहीं’ सिद्धांत के बजाय ‘हिन्दू के साथ अन्याय, मुसलमान के साथ पक्षपात’ सिद्धांत चाहते हैं। अयोध्या का ‘रामजन्मभूमि प्रकरण’ इसका ज्वलंत उदाहरण है। 

हिन्दुओं की मान्यता है कि अयोध्या भगवान राम की अवतार-स्थली है। इलाहाबाद उच्चन्यायालय द्वारा कराई गई जांच से सिद्ध हो गया कि अयोध्या में विवादित स्थल पर विशाल मंदिर था, जिसे तोड़कर उस पर मस्जिद बना दी गई। किन्तु कट्टरपंथी मुसलमान एवं फर्जी सेकुलरिए वहां जबरदस्ती विवाद खड़ा किए हुए हैं। यदि सामान्य मंदिर की बात होती तो उसे वहां से अन्यत्र हटाया जा सकता था। लेकिन उस स्थल का रामजन्मभूमि होने का महत्व है। इसी प्रकार चूंकि वहां मुसलमानों के लिए मस्जिद का कोई विशिष्ट महत्व नहीं है, इसलिए उसे वहां के बजाय अन्यत्र बनाया जा सकता है। लेकिन कट्टरपंथी मुसलमानों एवं सेकुलरियों ने जानबूझकर ‘बाबरी मसजिद विवाद’ खड़ा कर दिया और देश की शांति नष्ट कर दी। यदि वहां रामजन्मभूमि मंदिर का निर्माण हो जाने दिया जाता तो उससे हिन्दुओं एवं मुसलमानों के बीच स्थायी रूप से सौहार्द एवं प्रेमभाव स्थापित किया जा सकता था।         


मेरी पत्रकारिता के छप्पन वर्ष

श्याम कुमार

गत 2 नवम्बर, 2016 को मेरी पत्रकारिता का 57वां वर्ष आरम्भ हो गया। अर्थात आधी षताब्दी से भी अधिक समय हो गया है। इसी प्रकार 10 नवम्बर, 2016 से मेरी उम्र का 76वां साल षुरू हुआ है। मैं बीस वर्ष का था, जब पत्रकारिता में आया था। आज भी मुझे वह दिन याद है, जब 2 नवम्बर, 1961 को मैंने इलाहाबाद के लीडर प्रेस परिसर में पहली बार कदम रखा था। वहां से देश के दो सुविख्यात राष्ट्रªीय समाचारपत्र ‘भारत’ व ‘लीडर’ प्रकाशित होते थे। ‘भारत’ के नित्य कई संस्करण प्रकाशित होते थे तथा अनेक राज्यों में अखबार का व्यापक प्रसार था। लीडर प्रेस परिसर में ‘भारती भंडार’ नामक प्रसिद्ध प्रकाशन-केंद्र भी था, जहां से प्रायः सभी महान साहित्यकारों की पुस्तकें प्रकाशित होती थीं। उस समय इलाहाबाद पूरे देश का केंद्र-विंदु था तथा शिक्षा, विधि, पत्रकारिता, सांस्कृतिक कार्यकलापों, राजनीति आदि का देश का सबसे बड़ा गढ़ माना जाता था। जिस दिन मैंने पत्रकारिता में कदम रखा, उस दिन से मेरा जीवन अपना नहीं रहा तथा पूरी तरह पत्रकारिता को समर्पित हो गया। मुझे केवल सोने का समय मिल पाता था, शेष कोई भी समय अपना नहीं था। पारिवारिक परम्परा के अनुसार समाजसेवा के कार्याें में भी बहुत रुचि थी। 1961 में ही जनवरी में अखिल भारतीय सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं समाजसेवी संस्था ‘रंगभारती’ की स्थापना की, जिसके कार्यकलापों की लम्बी श्रृंखला बन गई। ‘रंगभारती’ ने 1961 में इलाहाबाद के परीभवन में देश का पहला हास्य कवि सम्मेलन आयोजित किया तथा अन्य अनेकानेक कार्यक्रमों की पहली बार नींव डाली। 

दैनिक ‘भारत’ के प्रधान सम्पादक शंकर दयालु श्रीवास्तव मेरे पिता जी के मित्र थे तथा मेरे यहां उनका आना होता था। लेकिन मेरी उनसे कभी भेंट नहीं हुई थी। मैं जब हाईस्कूल में था, तभी से मेरी भाशा पूर्णरूपेण मंज चुकी थी तथा अर्धविराम तक की त्रुटि नहीं होती थी। मैं दैनिक ‘भारत’ में ‘पाठकों के पत्र’ स्तम्भ में पत्र लिखा करता था, जिससे प्रधान सम्पादक शंकर दयालु श्रीवास्तव प्रभावित थे। अचानक पिताजी का देहावसान होने के बाद उन्होंने मुझे ‘भारत’ में बुला लिया। उसी वर्ष मैंने एमए किया था। ‘भारत’ में मुझे अपने वरिश्ठों से पत्रकारिता का अत्यंत कठोर प्रशिक्षण मिला। मैंने अपने जीवन में डाॅ. धर्मवीर भारती एवं हेरम्ब मिश्र से अधिक योग्य पत्रकार आजतक नहीं देखे। हेरम्ब मिश्र मेरे वरिष्ठ थे। अवकाशप्राप्त आईएएस अधिकारी अरविंद नारायण मिश्र के बाबा बाबूराम मिश्र भी मेरे वरिश्ठ सहयोगी थे। शंकर दयालु श्रीवास्तव उच्चकोटि के सम्पादक थे तथा उनका बड़ा नाम था। दैनिक ‘भारत’ में वरिश्ठों ने मुझे सीख दी कि पत्रकार के लिए देशहित सबसे बड़ा होना चाहिए। पत्रकारिता भाव, भाशा एवं अभिव्यक्ति का मिश्रण है, यह मेरा सिद्धांत बन गया। मेरे परिवार के अन्य लोग भी पत्रकार हैं तथा हम सबने हमेशा ईमानदारी, आदर्श एवं उच्चकोटि की पत्रकारिता की।

मैं बहुत सम्पन्न घर का था तथा मैंने अपने माता-पिता को हमेशा देते देखा, कभी लेते नहीं देखा। हमारे घर में अनेक रिश्तेदारों के लड़कों को षरण मिली, जिनका अच्छा भविष्य मेरे माता-पिता ने बनाया। उन्हें पढ़ाया और नौकरी लगवाई। दर्जनों गरीब कन्याओं का विवाह कराया। धीरे-धीरे हमारे घर की सम्पन्नता परोपकार की वेदी पर बलि चढ़ती गई। गांव में करोड़ों की जायदाद थी, जिसकी जानकारी पिताजी को ही थी तथा वही देखभाल के लिए वहां जाया करते थे। चकबंदी नहीं हुई थी, अतः उनका अचानक देहांत हो जाने से उस सम्पत्ति का पता ही नहीं लग पाया। माता-पिता से परोपकार एवं समाजसेवा के संस्कार मुझे भी मिले, जो नशे की तरह मुझमें समा गए तथा ‘घर फूंक तमाशा देख’ सिद्ध हुए। मेरी सारी कमाई उनमें खर्च होती गई। सरकार से मुझे कभी मदद नहीं मिली। मैंने तमाम लड़कों की नष्ट हो रही जिंदगी बचाकर उन्हें अच्छी जिंदगी दी और उज्ज्वल भविष्य बनाया। किन्तु किसी ने एहसान नहीं माना और कुछ ने तो न केवल बहुत क्षति पहुंचाई, बल्कि प्राणलेवा वेदनाएं दीं। केवल एक व्यक्ति ऐसा है, जिसने एहसान माना। वह व्यक्ति एक भिक्षा मांगने वाले का पुत्र था, जो मेरी मदद पाकर डाॅक्टर बन गया और अब अत्यंत वरिश्ठ डाॅक्टर है। 

लीडर प्रेस सुविख्यात उद्योगपति घनश्याम दास बिरला का था तथा उतना विशाल परिसर देश के किसी समाचारपत्र के पास नहीं था। उसमें पत्रकारों के लिए आवासीय बंगले भी बने हुए थे। उस समय मेरा दिल्ली, मुम्बई व अन्य महत्वपूर्ण नगरों में प्रायः जाना होता था तथा सभी जगह अखबारों में पत्रकारों व सम्पादकों से मेरी घनिष्ठता थी। जितने अधिक योग्य पत्रकार ‘भारत’ में थे, उतने कहीं भी नहीं थे। हेरम्ब मिश्र, कुसुम कुलश्रेष्ठ, कृष्ण बिहारी श्रीवास्तव पत्रकारिता के बेजोड़ रत्न थे। वहां विश्वम्भर नाथ जिज्जा थे, जो पत्रकारिता ही नहीं, पुरानी राजनीतिक गतिविधियों के भी जीवंत इतिहास थे। हिन्दी की पहली कहानी उन्होंने लिखी थी। जब मैं ‘भारत’ परिवार में षामिल हुआ, जिज्जा जी 75 वर्ष के थे तथा स्वभाव के बड़े कड़क थे। मजाल नहीं था कि कोई नया पत्रकार टेलीप्रिंटर छू ले। लेकिन ‘भारत’ में अधिकांश पत्रकार घोर अर्थाभाव में थे। मैं सम्पन्न परिवार का था, इसलिए उस गरीबी को देखकर दहल गया था। उस समय अधिकांश समाचार ‘पीटीआई’ व ‘यूएनआई’ से टेलीप्रिंटर पर अंग्रेजी में आते थे। ‘हिन्दुस्थान समाचार’ व ‘नाफेन’ आदि समाचार हिन्दी में भेजते थे, किन्तु उनकी मात्रा नगण्य थी। सम्पादकीय मेज पर हर पत्रकार को नित्य अंग्रेजी से हिन्दी में चार काॅलम समाचार अनुवाद करना होता था। 

‘भारत’ में अधिकांश सहयोगी कठोर परिश्रमी थे। सामान्य ड्यूटी में कठिन परिश्रम करने के बाद आर्थिक लाभ के लिए वे ‘डबल ड्यूटी’ किया करते थे। जब मैं वहां नया था तो एक दिन मेरे वरिष्ठ सहयोगी गणेश भारती मुझे अनुवाद के लिए थोक में समाचार देते जा रहे थे। मैं बोल पड़ा कि इतनी मेहनत करने पर मर जाऊंगा तो भारती जी ने उत्तर दिया-‘मेहनत करने से कोई नहीं मरता’। उनका वह वाक्य मैंने आत्मसात कर लिया और अस्वस्थता में भी जब तक बिलकुल मजबूर न हो जाऊं, मैं सारे कार्य पूर्ववत करता रहता हूं। पत्रकारिता में मेरी लगन, परिश्रम एवं समर्पण का ही फल है कि मुझे निकट से जानने वाले जो थोड़े लोग बचे हैं, वे आज भी मेरे योगदान को अद्भुत मानते हैं और भूरि-भूरि सराहना करते हैं। मैं हमेशा जनजीवन से निकट रूप में जुड़ा रहा, इसीलिए आम जनता में मुझे सदैव भरपूर सराहना मिली तथा मेरी छप्पन-वर्षीय पत्रकारिता में वही सराहना मेरा सबसे बड़ा सम्मान सिद्ध हुई।

रिक्शे वाले ने योगी की भविष्यवाणी की

श्याम कुमार
उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता कल्याण सिंह, जो वर्तमान में राजस्थान के राज्यपाल हैं, जब भी लखनऊ आते हैं तो पूरे उत्तर प्रदेश से उनसे मिलने आने वालों का उनके आवास पर तांता लग जाता है। हर तरह के लोग आते हैं, इसलिए प्रायः रोचक अनुभव भी होते हैं। ऐसा ही एक अनोखा अनुभव गत सात मार्च को हुआ था, जो उस समय अनोखा नहीं लगा था। कल्याण सिंह कक्ष में सोफे पर बैठे थे, जिनके बगल में मैं बैठा हुआ था। बड़ा कक्ष आगंतुकों से भरा हुआ था। बुलंदशहर से आए वहां के पूर्व-विधायक डाॅ. सतीश शर्मा पास के सोफे पर बैठे थे। तभी उन्होंने अपना एक अनुभव सुनाया। उन्होंने बताया कि गत वर्ष जनवरी में कल्याण सिंह के जन्मदिन के अवसर पर वह लखनऊ आए थे। एक दिन जब वह कल्याण सिंह के आवास से लौट रहे थे तो उन्हें उनके आवास के पास माल एवेन्यू में ही एक रिक्शेवाला मिल गया था। रिक्शेवाला हट्टा-कट्टा था और उसने समझ लिया था कि डाॅ. शर्मा कल्याण सिंह से मिलकर आए हैं। रिक्शा चलाते हुए वह रिक्शावाला बातें करने लगा। उसने बताया कि पांच वर्ष पूर्व उसने भविष्यवाणी कर दी थी कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। उस समय जब उसने भविष्यवाणी की थी, लोग उसकी बात पर हंसे थे। लेकिन उसका कथन सच हुआ। रिक्शेवाले ने डाॅ. सतीश शर्मा से कहा कि अब उसकी भविष्यवाणी है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा-चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को तीन सौ से अधिक सीटें मिलेंगी, महंत योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनेंगे तथा कल्याण सिंह देश के राष्ट्रपति होंगे।
डाॅ. सतीश शर्मा ने बताया कि पहले तो उन्होंने रिक्शेवाले की बातों पर अधिक ध्यान नहीं दिया, क्योंकि उसने मोदी के बारे में जो भविष्यवाणीवाणी की, वैसा दावा तो बाद में अन्य लोग भी करने लगे थे। मुझे याद आया, मेरा स्टेनो कई वर्शाें से लगातार मुझसे कहता था कि मोदी प्रधानमंत्री बन जाएं, तभी इस देश का उद्धार होगा। चूंकि उस समय कांग्रेसियों, कट्टरपंथी मुसलमानों एवं फर्जी सेकुलरियों ने देश-विदेश में मोदी के विरुद्ध इतना अधिक दुश्प्रचार कर डाला था कि मोदी प्रधानमंत्री बन सकेंगे, यह बात किसी के भी गले नहीं उतरती थी।
डाॅ. सतीश शर्मा ने कहा कि भाजपा तीन सौ से अधिक सीटें जीतेगी, रिक्शेवाले की इस बात को भी उन्होंने कोई महत्व नहीं दिया। कारण यह कि उस समय सभी पार्टियां तीन सौ से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रही थीं तथा बड़ी संख्या में लोगों का यह भी मानना था कि किसी पार्टी को बहुमत नहीं प्राप्त होगा। लेकिन रिक्शे वाले की अन्य दो भविष्यवाणियों पर वह चैंके। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए महंत योगी आदित्यनाथ की चर्चा कभी-कभी उड़ जाती थी, लेकिन उस चर्चा को कोई महत्व नहीं दिया जाता था। मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा में अन्य लोगों के नाम अधिक चर्चित थे। इसी प्रकार राष्ट्रªपति पद के लिए कल्याण सिंह के नाम की दूर-दूर तक कहीं चर्चा नहीं थी। डाॅ. सतीश शर्मा ने बताया कि उन्होंने रिक्शेवाले से कहा कि यदि उसकी कल्याण सिंह वाली भविष्यवाणी सत्य हुई तो वह उसे एक ई-रिक्शा भेंट करेंगे। उन्होंने रिक्शेवाले से उसका नाम व पता पूछा तो उसने बताया कि वह बनारसी के नाम से मशहूर है और ‘सहारा’ के पास रहता है।
कल्याण सिंह की मौजूदगी में गत सात मार्च को जब डाॅ. सतीश शर्मा ने यह बात बताई थी तो वहां मौजूद सभी लोग इस बात से तो सहमत थे कि कल्याण सिंह राष्ट्रपति पद के लिए उपयुक्त पात्र हैं, किन्तु यह कथन इसलिए सच होने की संभावना नहीं है कि उस पद के लिए पहले से ही लालकृश्ण आडवाणी, डाॅ. मुरली मनोहर जोशी, सुमित्रा महाजन, वेंकैया नायडू आदि नाम चर्चित हैं। कल्याण सिंह ने भी ऐसी किसी संभावना से इनकार किया। गत दिवस कल्याण सिंह के यहां डाॅ. सतीश शर्मा पुनः मिल गए तो मुझे उनकी बातें याद आ गईं। चुनाव-परिणाम घोशित होने से पहले सात मार्च को कल्याण सिंह के यहां उन्होंने रिक्शेवाले की जो यह भविष्यवाणीी बताई थी कि भाजपा को तीन सौ से अधिक सीटें मिलेंगी, वह पूरी तरह सही निकली। भाजपा को 325 सीटें मिल जाने का चमत्कार हुआ। यदि कल्याण सिंह राष्ट्रªपति न बनें तो भी रिक्शेवाले की योगी एवं भाजपा के बारे में डाॅ. शर्मा के सामने की गई भविष्यवाणी तो सत्य सिद्ध हुई ही। डाॅ. सतीश शर्मा ने गत सात मार्च को जब कल्याण सिंह के सामने रिक्शेवाले की भविष्यवाणी की चर्चा की थी, उस समय तक न तो चुनाव-परिणाम घोषित हुए थे और न मुख्यमंत्री पद के लिए योगी के नाम की चर्चा थी।   
गत दिवस जब मैं कल्याण सिंह के यहां पहुंचा तो वह जयपुर प्रस्थान करने के लिए भीतर तैयार हो रहे थे। अन्य लोगों के साथ मैं भी कक्ष में बैठ गया। कल्याण सिंह का पौत्र संदीप सिंह प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री हो गया है, अतः उससे मिलने वाले भी आ रहे थे। तभी सिटी माॅन्टेसरी स्कूल के संस्थापक जगदीश गांधी एक बड़ा पिटारा लिए हुए अपनी पुत्री एवं नाती के साथ कल्याण सिंह से मिलने आ गए। वे लोग संदीप सिंह से मिले और कल्याण सिंह की प्रतीक्षा करने लगे। जगदीश गांधी की पुत्री जब संदीप सिंह से निरंतर अंग्रेजी में ही बात करने लगी तो लोगों को उसके इस अंग्रेजी-प्रेम का बुरा लगा।
 जगदीश गांधी ने बताया कि उसके बच्चों ने अलग-अलग देश के लोगों से षादी की है। जगदीश गांधी के बारे में अकसर चर्चा हुआ करती है कि उनके स्कूलों में नेता, पत्रकार एवं अधिकारीगण अपने बच्चों को प्रवेश दिलाते हैं, इसलिए जगदीश गांधी उन सभी पर अपना भारी प्रभाव रखते हैं। यह भी चर्चा होती है कि  शिक्षण-संस्थाओं में गरीब बच्चों को प्रवेश दिलाने का सरकार द्वारा जो निर्धारित कोटा है, उस पर जगदीश गांधी ने अपनी शिक्षण-संस्थाओं में अमल नहीं किया और उस आदेश के विरुद्ध सर्वाेच्च न्यायालय तक लड़ने चले गए। लेकिन वहां उन्हें हार मिली। बताया जाता है कि सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद जगदीश गांधी ने अपनी शिक्षण-संस्थाओं में गरीब बच्चों के कोटे वाले आदेश पर अमल नहीं किया है। इस पर लोग तुलसीदास की यह पंक्ति याद करते हैं-‘समरथ को नहि दोश गोसाईं’।

शनिवार, 18 मार्च 2017

ईवीएम पर बावेला का सच

 अवधेश कुमार

जब बसपा प्रमुख मायावती ने चुनाव परिणाम में तस्वीर स्पष्ट होने के साथ अपनी पार्टी की पराजय और भाजपा की विजय के लिए ईवीएम यानी ईलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन पर सवाल उठाया तो आम प्रतिक्रिया यही थी कि इसे कोई पार्टी गंभीरता से नहीं लेगी। इतने समय से ईवीएम से मतदान हो रहे हैं और उन परिणामों को भी देश ने स्वीकार किया है। चुनाव आयोग की निष्पक्षता, निगरानी और सतर्कता पर पूरे देश को विश्वास है। इसे ध्यान मंे रखते हुए माना गया कि मायावती अपन बुरी हार को सहन नहीं कर पा रहीं हैं, इसलिए वो ईवीएम से छेड़छाड़ का आरोप लगा रहीं हैं। किंतु कुछ समय के बाद अखिलेश यादव ने भी कह दिया कि अगर बसपा प्रमुख ऐसा कह रहीं हैं तो कुछ सोच समझकर ही कह रही होंगी, इसलिए इसकी एक बार जाचं हो जानी चाहिए। उसके बाद कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला हे कहा कि कांग्रेस चुनाव परिणामों को तो स्वीकार कर रही है, लेकिन बसपा की नेता ने अगर कहा है तो उसका संज्ञान लिया जाना चाहिए। हालांकि कांग्रेस ने बाद में इस पर जोर नहीं दिया।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसमें कूदे और साफ आरोप लगा दिया कि ईवीएम के माध्यम से उनकी पार्टी के वोट अकाली और कांग्रेस को स्थानांतरित करा दिए गए। उनके अनुसार ऐसा नहीं होता तो आप की विजय सुनिश्चित थी। उन्होंने निर्वाचन आयोग से दिल्ली की नगर निकायों का चुनाव मतदान पत्रों से कराने की मांग की। यह बात अलग है कि दिल्ली राज्य चुनाव आयोग ने दिल्ली सरकार को बता दिया है कि नगर निगम चुनाव ईवीएम से ही होंगे।

वास्तव में ईवीएम पर जब भी सवाल उठाए गए चुनाव आयोग का यही मत रहा है कि ईवीएम से किसी तरह की छेड़छाड़ संभव नहीं। यह बिल्कुल सुरक्षित मतदान का यंत्र है। इस बार भी मयावती के पत्र के जवाब में आयोग ने साफ किया है कि आपके आरोप स्वीकार करने योग्य नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि ईवीएम को पहली बार कठघरे मंें खड़ा किया गया है। 2004 से इसका व्यापक प्रयोग आरंभ हुआ और तभी से इस पर प्रश्न उठाए जाते रहे हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने अनेक बार कहा है कि जिसे आशंका है वो आकर तकनीकी रुप से हमें बताएं कि इसमें छेड़छाड़ कैसे की जा सकती है लेकिन कोई आयोग तक इसके लिए गया नहीं। हां, दावे जरुर किए जाते रहे। ईवीएम को खलनायक मानने वालों में भाजपा भी रही है। 

2009 के लोक सभा चुनाव परिणाम के बाद भाजपा ने इसके खिलाफ एक प्रकार का अभियान चलाया था। किरीट सौमैया ने कई शहरों में इसका प्रदर्शन किया था जिसमें उनके साथ एक विशेषज्ञ कम्प्यूटर-लैपटॉप पर दिखाता था कि ईवीएम में कैसे गड़बड़ी की जा सकती है। भाजपा के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने ईवीएम पर डेमोक्रेसी एट रिस्क, कैन वी ट्रस्ट अवर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन शीर्षक से एक किताब लिखी। इसकी भूमिका लालकृष्ण आडवाणी ने लिखी थी। इस किताब में ईवीएम में की जाने वाली गड़बड़ियों का जिक्र है। तब कांग्रेस तथा अन्य कई पार्टियों ने इसे खारिज कर दिया था। आज वही पार्टियां अपनी पराजय के लिए इसमें गड़बड़ी किए जाने का आरोप लगा रहीं हैं।

विरोधी तर्क देते हैं कि आखिर ऐसी कौन सी मशीन है जिसमें गड़बड़ियां नहीं की जा सकतीं? एक क्षण के लिए यह सही लग सकता है। किंतु  ईवीएम की कार्यप्रणाली तथा मतदान के पूर्व और मतदान के दौरान तथा बाद में उसके रख-रखाव सहित सारी प्रक्रियाओं को समझने के बाद किसी भी निष्पक्ष व्यक्ति का निष्कर्ष यही होगा कि इसमें छेड़छाड़ संभव नहीं है। मामला उच्चतम न्यायालय तक भी गया और वहां भी सारे मंथन के बाद निष्कर्ष यही आया कि ईवीएम में सेंध लगाना संभव नहीं है। 

ईवीएम के बारे में सबसे गलत धारणा यह है कि इसे ऑनलाइन हैक किया जा सकता है। जब इसमें इंटरनेट कनेक्शन होता नहीं, यह किसी दूसरी मशीन से भी जुड़ी नहीं होती तो फिर इसके हैकिंग या ऑनलाइन दूसरी गड़बड़ियों की कोई संभावना ही नहीं। इसमें वन टाइम प्रोग्रामेबल चिप होता है जो बगैर वाईफाई और किसी कनेक्शन के चलता है। वस्तुतः ईवीएम का सॉफ्टवेयर कोड वन टाइम प्रोग्रामेबल नॉन वोलेटाइल मेमोरी के आधार पर बना है। किसी से छेड़छाड़ करनी हो तो फिर निर्माता से कोड हासिल होगा। ईवीएम का सॉफ्टवेयर अलग से रक्षा मंत्रालय और परमाणु ऊर्जा मंत्रालय के यूनिट बनाते हैं। बगैर पीठासीन अधिकारी के मतपत्र को कंट्रोल यूनिट के साथ जोड़े कोई वोट नहीं कर सकता है। ईवीएम मशीन को लगातार चेक किया जाता है ताकि मतदान के दौरान कोई गड़बड़ी न हो। 2006 के बाद से ईवीएम में तारीख और समय को लेकर नए फीचर जोड़े गए। इससे हर मतदाता का डेटा और उसका वोट सुरक्षित रहता है। इसमें एक कंट्रोल यूनिट, बैलेट यूनिट और पांच मीटर केबल होता है। कंट्रोल यूनिट मतदान अधिकारी के पास होता है व बैलेटिंग यूनिट वोटिंग कम्पार्टमेंट के अंदर रखा होता है। कंट्रोल यूनिट का प्रभारी मतदान अधिकारी बैलेट बटन दबाता है। यह मतदाता को बैलेटिंग यूनिट पर पसंद के अभ्यर्थी एवं चुनाव चिन्ह के सामने बटन को दबाकर मत डालने में सक्षम बनाता है। इसके साथ ही एक तीसरी तरह की यूनिट भी अब जोड़ दी गई है इसे वीवीपैट कहा जाता है। इसमें वोट देने के कुछ सेकेंड के अंदर मतदाता को पर्ची दिखाती है कि उसने किसको वोट दिया है। हालांकि चुनाव आयोग की तरफ से अभी तक इस तरह की मशीन का इस्तेमाल सभी मतदान केन्द्रो पर नहीं किया गया है।

फिर प्रयोग की प्रणाली देखिए। कौन सी ईवीएम मशीन किस मतदान केन्द्र पर रहेगी इस बात का पता पहले से नहीं होता। मतदान कराने वाले दल को एक दिन पहले पता चलता है कि उनके पोलिंग बूथ पर कौन से सीरिज़ की ईवीएम आएगी। मतदान आरंभ होने से पहले ईवीएम  की जांच की जाती है कि यह ठीक है या नहीं। स्वाभाविक ही इस जांच में यह भी शामिल है कि कहीं किसी तरह की छेड़छाड़ तो नहीं की गई है। इस प्रक्रिया को मॉक पोलिंग भी कहा जाता है। इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद ही मतदान शुरू करवाई जाती है। 

सभी पोलिंग एंजेट से मशीन में वोट डालने को कहा जाता है ताकि ये जांचा जा सके कि सभी उम्मीदवारों के पक्ष में वोट गिर रहा है कि नहीं। यानी किसी मशीन में टेंपरिंग या तकनीकि गड़बड़ी होगी तो मतदान के शुरू होने के पहले ही पकड़ ली जायेगी। मॉक पोल के बाद सभी उम्मीदवारों के पोलिंग एंजेट मतदान केन्द्र की पोलिंग पार्टी के प्रभारी को सही मॉक पोल का प्रमाण पत्र देते है। यह प्रमाण पत्र मिलने के बाद ही संबंधित मतदान केन्द्र में मतदान शुरू की जाती है। मतदान आरंभ होने के बाद मतदान केन्द्र में मशीन के पास मतदाताओं के अलावा मतदान कर्मियों के जाने का निषेध है। वे ईवीएम के पास तभी जा सकते है जब मशीन की बैट्री डाउन हो या कोई अन्य तकनीकि समस्या उत्पन्न हो गई हो। हर मतदान केन्द्र में एक रजिस्टर बनाया जाता है जिसमें मतदान करने वाले मतदाताओं का विस्तृत विवरण अंकित रहता है। रजिस्टर में जितने मतदाताओं का विवरण होता है उतने ही मतदाताओं की संख्या ईवीएम में भी होती है। मतगणना वाले दिन इनका आपस मे मिलान मतदान केंद्र प्रभारी की रिपोर्ट के आधार पर होता है।

इतनी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद यदि कोई छेड़छाड़ का आरोप लगा रहा है तो फिर उसे कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। यह भारतीय राजनीति के पतन को दर्शाता है। केजरीवाल कह रहे हैं कि सारे विशेषज्ञ बता रहे थे कि लोग अकाली और भाजपा को हराने के लिए मतदान कर रहे थे तो फिर उनको हमसे ज्यादा वोट कैसे आ गए? वे यह भी कह रहे हैं कि एक घर में जहां कई वोलंटियर हैं वहां उनसे भी कम मत निकले हैं। इसी तरह मायावती प्रश्न कर रहीं हैं कि मुस्लिम प्रभाव वाले क्षेत्रों में भाजपा को कैसे ज्यादा मत पड़ गया? इनसे यह कहना होगा आपके प्रश्नों का उत्तर आपकी राजनीति में है, राजनीति की बदलती धारा मंे हैं तथा लोगों की आपके प्रति धारणा में है। इसका उत्तर ईवीएम में नहीं है। भारत में चुनाव की निष्पक्षता और विशिष्टता को स्वीकार करिए जिसकी प्रशंसा दुनिया करती है। अगर ईवीएम में समस्या होती तो चुनाव आयोग इसे स्वीकार ही क्यों करता? उसकी भूमिका निष्पक्ष चुनाव कराने की है और इसे ध्यान में रखते हुए ही उसने इसका प्रस्ताव किया तथा इसे शत प्रतिशत लागू कर दिया। कुछ देशों का उदाहरण दिया जाता है कि उनने इसे बंद किया या परीक्षण के बावजूद लागू नहीं किया। यह उनकी सोच है। हमारे यहां अभी तक इसमें समस्या नहीं दिखी है। भारत ने कई देशोें को ईवीएम मशीनों को बेचा है जिनसे वहां मतदान हो रहा है। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह कि ईवीएम को खलनायक बनाना उचित नहीं। इसकी बजाय पार्टियां पराजय के असली कारणों, जो उनकी राजनीति में निहित है, पर आत्मचिंतन करें।

अवधेश कुमार, ई: 30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाष.ः01122483408, 9811027208

 

 

 

 

आम आदमी नागरिक सेवा समिति की बैठक हुई

 

संवाददाता

नई दिल्ली। आम आदमी नागरिक सेवा समिति एक बैठक हुई। इस बैठक में समिति के काफी संख्या में कार्यकर्ता शामिल हुए। इस बैठक की अध्यक्षता समिति के अध्यक्ष मो. अनीस ने की। इस अवसर पर सीलमपुर विधान सभा के अध्यक्ष निजाम मसूदी, उपाध्यक्ष दिलशाद मसूदी, जरनल सेकेटरी हाफिज शेरवानी, सेकेटरी शारुक अंसारी, कोषाध्यक्ष फैज़ान अंसारी, 41-ई वार्ड अध्यक्ष आमिर अंसारी, 43-ई वार्ड अध्यक्ष मंसूर इलाही, सलमान सैफी माईनौरिटी अध्यक्ष, सीलमपुर, ज़की अख्तर, समाजसेवी अकरम मसूदी सीनियर मुरसलीन मनसूरी समाज सैवक इमाम मुनीरी नदीम राहिन ६ समाज सैवक दानिश जहांगिरी मौसिन मनसूरी वाड॒ अधयक्ष 42/E सभी ने देश के हालात पर चरचा की अचछे नेताओ को जिताने की सहमती जताई और बड़ी सखंया मे सहमती जताई।

 

बुधवार, 15 मार्च 2017

स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत

राम निवास

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
चलो देश को स्वच्छ बनाएं
आओ भारत को स्वस्थ बनाएं
घर-घर में जीवन मुस्काएं।

गांधी जी का था ये सपना
स्वच्छ देश भारत हो अपना
संकल्प फिर से वही दोहराएं
चलो देश को ..............

प्रदूषण, राक्षस-सा विकराल खड़ा है
कैसे करें नियंत्रण ये संकट बहुत बड़ा है
छोड़ के दामन भौतिकता का प्रकृति से मेल बढ़ाएं।
चलो देश को ..............

जो कुछ दिया कुदरत ने, उसका सम्मान करो
धरती मात हमारी है, मत इसका अपमान करो
बनी रहे सुंदरता इसकी, ना करकट फैलाएं।
चलो देश को ..............

स्वच्छता और स्वस्थता का, है गहरा नाता
होंगे निरोग, तो बनेंगे खुद के भाग्य विधाता
हरियाली ही हरियाली हो, धरती को स्वर्ग बनाएं।
चलो देश को ..............

पवित्र-पावन नदियां अपनी, प्रदूषण को रोती हैं
गंदे नाले बनके रह गईं, आभा अपनी खोती हैं
जल ही जीवन ऐसा कहते, आओ पीने लायक बनाएं
चलो देश को ..............

आहार स्वस्थ हों, विचार स्वस्थ हों
हर गली मोहल्ला, परिवार स्वस्थ हों
दुनिया भर में रोशन हो, ऐसा हिन्दुस्तान बनाएं।
चलो देश को ..............

हर नगर, हर गांव स्वच्छ तो, सुधरेगा परिवेश
हर रोग मिटेंगे, ना होगा कोई क्लेश
मोदी जी का यह संदेश जन-जन में फैलाएं।
चलो देश को स्वच्छ बनाएं।
राम निवास,
डी-121, मोती बाग-1, नई दिल्ली-110021


मंगलवार, 14 मार्च 2017

चुनाव परिणामों में आश्चर्य के तत्व नहीं

 अवधेश कुमार

चुनाव परिणाम आने के पहले एक्जिट पोल ने इसकी दिशा दे दी थी। इन चुनाव परिणामों से केवल उनको ही आश्चर्य हुआ होगा जो धरातली वास्तविकता से परे अपने राजनीतिक विचारों के मद्दे नजर पूर्व आकलन कर रहे थे। सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश को लें तो भाजपा की ऐसी विजय से बहुत लोग विस्मित हैं। वे यह नहीं सोचते कि परिवार और पार्टी में इतनी बड़ी कलह तथा कानून और व्यवस्था के स्तर पर विफल सरकार को जनता क्यों दोबारा सत्ता में वापस लाएगी जबकि उसके पास विकल्प मौजूद हैं। सत्ता में रहते वक्त हमेशा नेतागण अपनी क्षमता और लोकप्रियता का जरुरत से ज्यादा आकलन करते हैं तथा उनके आसपास के लोग उनको और आकाश में चढ़ाने की भूमिका निभा देते हैं। अखिलेश यादव के साथ ऐसा ही हुआ है। उनके सबसे बड़े सलाहकार रामगोपाल यादव ने उन्हें प्रधानमंत्री मैटेरियल तक घोषित कर दिया। चुनाव में जय-पराजय होती रहती है, लेकिन अखिलेश यादव ने जिस ढंग से विद्रोह करके पूरी पार्टी को अपने एकच्छत्र साम्राज्य में लाया तथा स्वयं एवं अपनी पत्नी डिम्पल यादव को मुख्य प्रचारक बना दिया उसके पीछे भाव तो यही था न कि इन दोनों की लोकप्रियता इतनी है कि विजय के लिए और किसी की आवश्यकता भी नहीं। इसमें उन्होंने अपने पिता तक को चुनाव प्रचार से वानप्रस्थ लेने को विवश कर दिया। कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी के गठबंधन का भी कोई तार्किक आधार नहीं था। यह सोचना कि इससे मुस्लिम मतों के बंटवारे को रोका जा सकेगा गलत आकलन था। कारण, कांग्रेस तो पिछले 28 वर्षों से अपने जनाधार के लिए प्रदेश में तरस रही है। मुसलमान उसके साथ होते तो उसकी 2012 एवं उसके पूर्व 2007 में वैसी दुर्दशा नहीं हुई होती। कांग्रेस के पास ऐसा जनाधार है भी नहीं कि इसे किसी पार्टी को स्थानांतरित करा सके।

वास्तव में इन सब हालातों में यदि अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की विजय होती तो यह आश्चर्य की बात होती। जनता को यदि समाजवादी पार्टी को विजयी नहीं बनाना था तो उसके पास दो विकल्प थे, भाजपा एवं बसपा। बसपा का शासन लोगों ने 2007-12 देखा है। उसमें ऐसा कुछ नहीं था जिससे उसकी तरफ बहुमत का आकर्षण हो। दूसरी ओर भाजपा है जिसने परिवर्तन का नारा दिया। हर चुनाव में एक प्रमुख कारक होता है जो राज्यव्यापी भूमिका निभाता है और अन्य कारक या उपकारक उसके ईर्द-गिर्द जुड़ते जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने परिवर्तन का जो नारा दिया वह लोगों को अपील करने लगा। जब मोदी कहते थे कि उत्तर प्रदेश के पास सब कुछ है लेकिन अच्छी सरकार नहीं है तो यह लोगों को अपील करता था। इसने एक मनोवैज्ञानिक स्थिति कायम की। वैसे भी 18 से 30 वर्ष के युवा मतदाताओं ने केन्द्र में भाजपा की सरकार देखी है, 2002 तक की सरकार को लेकर उनका कोई परिपक्व अनुभव नहीं है। इस कारण भी भाजपा की ओर उनका आकर्षण स्वाभाविक था। अगर लोगों को परिवर्तन करना था तो फिर बसपा से भाजपा उनको हर दृष्टि से बेहतर विकल्प लगा। इससे पता चलता है कि नरेन्द्र मोदी के प्रति लोगों का विश्वास अभी कायम है। उनकी लोकप्रियता बनी हुई है।

भाजपा ने विजय के लिए अगड़ों और गैर यादव अति पिछड़ी जातियों का समीकरण बनाने की जो कोशिश की वह वाकई सफल रही है। समाजवादी पार्टी के शासनकाल में एक जाति विशेष को पुलिस प्रशासन में जरुरत से ज्यादा तरजीह देने से अन्य जातियां नाराज थीं एवं उनके पास भाजपा विकल्प में रुप में था। हम यह न भूलें कि बसपा में जो विद्रोह हुआ और उससे अति पिछड़े निकले उससे उसकी छवि को धक्का लगा। बसपा ने आरंभ में मुसलमानों एवं दलितों का समीकरण बनाने की कोशिश की। मुसलमानों की आबादी के अनुपात से ज्यादा 100 टिकट दिए, जिससे दूसरी जातियां नाराज हुईं। जब मायावती को लगा कि खेल खराब हो रहा है तो उनने फिर पिछड़ जातियों का सम्मेलन आरंभ किया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। वैसे भी जिन लोगों ने 2007 से 2012 के बीच उनका शासन देखा है उसमें कोई ऐसा आदर्श तत्व नहीं था जिससे उनके प्रति बहुमत का आकर्षण हो। मुसलमानों ने भाजपा को हराने के लिए जो रणनीतिक मतदान आरंभ किया उसका असर भी हिन्दुओं पर हुआ और वह भी परिणाम में निर्णायक तत्व बन गया। सबसे अंत में 6ठे चरण के दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वाराणसी में जनदर्शन के नाम से रोड शो तथा उसके बाद अंतिम चरण के पूर्व दो दिनों तक वाराणसी में रहना, रोड एवं सभाए करना ऐसी रणनीति थी जिसने उसके लिए कभी भी अनुकूल न रहे पूर्वांचल में आलोड़न पैदा कर दिया।

अन्य राज्यों में उत्तराखंड मंें पिछले चुनाव में केवल .66 प्रतिशत से कांग्रेस आगे थी। उसे बहुमत भी नहीं मिला था। तो यह परिणाम कभी भी बदल सकता था। हालांकि हरीश रावत ने चुनाव रणनीति में पूरी परिपक्वता का परिचय दिया लेकिन उनकी पार्टी में जो भारी विद्रोह हो चुका था उसकी भरपाई जरा कठिन थी। भाजपा को भारी बहुमत मिला है। हरीश रावत की दोनों स्थानों से पराजय यह बताता है कि उनके एवं उनकी सरकार के खिलाफ कितना जन आक्रोश था। पंजाब में लोकसभा चुनाव के समय ही मोदी लहर के बावजूद अकाली एवं भाजपा का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं था। आम आदमी पार्टी ने 33 विधानसभा सीटों पर तथा कांग्रेस ने 37 विधानसभा सीटों पर बढ़त पाई थी। उस समय आम आदमी पार्टी चरम लोकप्रियता पर थी। विधानसभा चुनाव आने के पूर्व ही उसकी पार्टी में विभाजन हो गया। वह मालवा क्षेत्र में सिमटी रह गई। इसके विपरीत कांग्रेस संगठन की दृष्टि से उससे आगे थी। वह मांझा और दोआबा मंें भी मजबूत थी। अकाली भाजपा सरकार के विरुद्व गुस्से का लाभ उठाने की हालत में वह ज्यादा थी। नवजोत सिंह सिद्वू का अंतिम समय में कांग्रेस में आना और चुनाव लड़ना भी उसके पक्ष में गया। सिद्धू भाजपा में रहते हुए चाहते थे कि उनको पंजाब में राजनीति करने दिया जाए, पार्टी अकाली से रिश्ता तोड़े तथा अकेले दम पर आगे बढ़े। पार्टी को यह स्वीकार नहीं था। हालांकि उनकी बात मानी जाती तो भाजपा आज संभवतः बेहतर स्थिति में होती। जो भी हो पंजाब में कांग्रेस की विजय उसके लिए प्राणवायु के समान है। 2013 के बाद पहली बार कहीं वह अपनी बदौलत विजय पाने में सफल हुई है। हालांकि इसमें कैप्टन अमरिंदर सिंह की भूमिका बहुत बड़ी है जिनने लोगों से भावुक अपील की थी यह उनके जीवन का अंतिम चुनाव है।

अन्य दो राज्यों गोवा एवं मणिपुर में को लें तो वहां भी परिणाम अपेक्षा के विपरीत नहीं है। गोवा में  संघ के पुराने प्रचार सुहास वेलिंगकर ने गोवा रक्षा मंच बनाया, शिवसेना एवं महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के साथ गठबंधन बनाया और वह भाजपा को कुछ नुकसान पहुंचाने में सफल रही है। वह बहुमत तक नहीं पहुंच पाई। आम आदमी पार्टी ने प्रचार तो बहुत किया लेकिन गोवा में परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों भाजपा एवं कांग्रेस के बीच पैठ बनाना उसके लिए कठिन था। इन दोनों पार्टियों का वहां पुराना संगठन है। यहां तक कि भाजपा वहां कैथोलिक ईसाइयों तक को अपनी नीतियों से साथ रखने में लंबे समय से सफल रही है। इस बार मनोहर पर्रिकर के मुख्यमंत्री न होने का असर था। किंतु सबसे बड़ी चिंता कांग्रेस को होनी चाहिए कि आखिर भाजपा के शासन के विरुद्ध असंतोष का भी लाभ वह नहीं उठा सकी तथा वेलिंगकर के विद्रोह का भी। मणिपुर की ओर लौटें तो वहां के मतदाताआंे के एक बड़े वर्ग को विकल्प की तलाश थी। पहले उसे विकल्प नहीं मिल रहा था। इस बार एक ओर नगा पीपुल्स फंट ने नागाओं को विकल्प दिया तथा दूसरी और भाजपा ने उत्तर पूर्व राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बनाकर विकल्प देने की कोशिश की। जितनी संख्या में कांग्रेस के लोगों ने पार्टी का परित्याग कर भाजपा का दामन थामा था उससे लग रहा था कि मुख्यमंत्री इकराम ओबीबी सिंह के नेतृत्व को लेकर असंतोष है। नए जिला बनाने के विरुद्ध जो बंद हुआ वह भी कांग्रेस के खिलाफ गया। उसे वह परिणाम नहीं मिला जो 2012 में था। भाजपा की प्रदेश में इतनी बड़ी पैठ सामान्य नहीं है।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208

शुक्रवार, 10 मार्च 2017

चुनाव में न्यायालय की अवमानना?

 श्याम कुमार

‘कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे’, महाकवि नीरज की यह काव्य-पंक्ति हमारे वर्तमान निर्वाचन आयोग पर सटीक बैठती है। जब उसे कुछ करना चाहिए था, तब तो उसने कुछ किया नहीं और धृतराष्ट्र बना बैठा रहा। मौनी बाबा की तरह मौन धारण किए रहा। अब जब लगभग चुनाव बीत चुका है तो आयोग वे कदम उठा रहा है, जो उसे चुनाव से पहले उठाने चाहिए थे। राजनीतिक दल एवं पत्रकार महीनों से कह रहे थे कि निश्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव से सम्बंधित नौकरषाही में ऊपर से नीचे तक आमूल परिवर्तन किया जाना चाहिए तथा चुनाव केंद्रीय पुलिस बल की पूरी निगरानी में ही होने चाहिए। स्वयं आयोग ने काफी पहले वक्तव्य दिया था कि वह प्रदेश की गतिविधियों पर पैनी नजर रखे हुए है। लेकिन जब कोई ‘धृतराष्ट्र’ बन जाय तो दृश्टि के अभाव में उसके पैनेपन का सवाल ही नहीं पैदा होता है। एक समाचार के अनुसार मतदान हो जाने के बाद आयोग ने फिरोजाबाद के जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक एवं एक उपजिलाधिकारी को बदल दिया। भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी एवं अन्य दलों ने चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग से मांग की थी कि वह फिरोजाबाद के जिलाधिकारी राजेश प्रकाश को, जो पदेन जिला निर्वाचन अधिकारी भी थे, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हिमांशु कुमार को तथा शिकोहाबाद के उपजिलाधिकारी को जनपद से हटा दे। लेकिन चुनाव आयोग ने  मांग पर ध्यान नहीं दिया और वहां जब मतदान सम्पन्न हो चुका है तो अब वहां से उक्त तीनों अधिकारियों को हटा दिया है।

रामपुर में भी मतदान सम्पन्न हो चुका है और अब वहां के जिलाधिकारी को हटाकर आयोग ने लखनऊ में जिलाधिकारी के रूप में भारी ख्याति अर्जित कर चुके राजषेखर को रामपुर का जिलाधिकारी बनाया है। हरदोई के एक समाचार के अनुसार वहां चुनाव आयोग ने छह मास पहले से चुनाव की तैयारियां षुरू कर दी थीं, जो चुनाव के दिन तक पूरी नहीं हो पाईं। वहां मतदान सम्पन्न हो जाने के एक सप्ताह बाद छह थानेदारों को हटाने का चुनाव आयोग ने आदेश दिया है। इन थानेदारों में से कुछ थानेदार अपनी पहुंच के बल पर तीन साल से अधिक समय से हरदोई में जमे हुए थे। कुछ तो वर्श 2012 व 2014 के चुनाव में भी हरदोई में थानेदार थे। बताया जाता है कि चुनाव आयोग ने सितम्बर में ऐसे थानेदारों को हटाने का निर्देश दिया था, किन्तु हरदोई में तत्कालीन अधीक्षक राजीव मलहोत्रा ने उस निर्देष का पालन नहीं किया। सब जानते हैं कि हरदोई में नरेश अग्रवाल की जबरदस्त तूती बोलती है। राजीव मलहोत्रा का सरकारी वाहन रहस्यमय तरीके से गायब हो गया, किन्तु उनके विरुद्ध कार्रवाई नहीं हुई। चुनाव के समय राजनीतिक दलों द्वारा बहुत षोर मचाए जाने पर चुनाव आयोग ने राजीव मलहोत्रा को हटाया।

चुनाव आयोग की ‘निष्पक्ष चुनाव की सक्रियता’ का एक और उदाहरण सामने आया है। चुनाव आयोग ने ‘सख्त’ निर्देष दिया था कि मतदान से पूर्व लखनऊ जनपद की समस्त 78 शस्त्र दुकानों की जांच की जाय तथा उन दुकानों से बेचे गए कारतूसों का ब्योरा संग्रहित किया जाय। लेकिन प्रशासन द्वारा एक भी दुकान की जांच नहीं कराई गई। शस्त्र जमा करने के निर्देष का भी समुचित पालन नहीं हुआ। चुनाव के समय थानों से मिली नोटिस के बावजूद 50 प्रतिशत से अधिक शस्त्रधारकों ने अपने हथियार नहीं जमा कराए। सर्वाेच्च न्यायालय ने चुनाव से पूर्व फैसला दे दिया था कि चुनाव में चुनाव लड़ने वाला या उसे समर्थन देने वाला जाति एवं मजहब का हरगिज इस्तेमाल नहीं करेगा। लेकिन चुनाव आयोग ने उस फैसले पर अमल नहीं किया, उसके परिणामस्वरूप फैसले का जमकर उल्लंघन हुआ। बुद्धिजीवियों की संस्था ‘विचार मंच’ की महत्वपूर्ण संगोष्ठी में वरिष्ठ मजदूर नेता सर्वेश चंद्र द्विवेदी ने कहा कि सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले की अवहेलना पर न केवल उम्मीदवारों आदि के विरुद्ध, बल्कि निर्वाचन आयोग के विरुद्ध भी न्यायालय की अवमानना का मामला बन सकता है।

उत्तर प्रदेश विधानसभा का यह चुनाव जाति एवं मजहब के ‘नंगेनाच’ के लिए याद किया जाएगा। चुनाव आयोग की निष्क्रियता भी स्मरणीय रहेगी। लोग उदाहरण दिया करेंगे कि कहां टीएन शेषन और कहां नसीम जैदी! नसीम जैदी उत्तर प्रदेश संवर्ग के आईएएस अधिकारी रहे हैं तथा उनकी छवि धाकड़ अफसरों वाली नहीं थी। वह सामान्य अधिकारी माने जाते थे। उत्तर प्रदेश में मुख्य निर्वाचन अधिकारी टी वेंकटेश की छवि भी धाकड़ अधिकारी की नहीं रही है। वह अच्छे अधिकारी माने जाते रहे हैं, किन्तु चुनाव कराने वाले अधिकारी के रूप में जिस योग्यता की आवश्यकता होती है, वह उनमें नहीं है। अंततः पूरी जिम्मेदारी तो निर्वाचन आयोग एवं मुख्य चुनाव आयुक्त की ही थी, जिनकी विफलता का परिणाम चुनाव में जाति एवं मजहब के खुले इस्तेमाल के रूप में मिला। सौभाग्य से शेषन के समय निर्वाचन आयोग का जो रोबदाब एवं साख स्थापित हो गई थी तथा बाद में मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी ने उसे कायम रखा, उसी का फल है कि उस चली आ रही आभा के प्रभाव से पांच राज्यों में वर्तमान चुनाव सफलतापूर्वक सम्पन्न हो रहे हैं। किन्तु जब उक्त आभा क्षीर्ण होगी तथा चुनाव आयोग की वर्तमान-जैसी शिथिलता जारी रहेगी तो भविष्य में परिस्थितियां संभाले नहीं संभलेंगी। डाॅ. नसीम जैदी के बाद मुख्य निर्वाचन आयुक्त पद पर बहुत सोच-समझकर तैनाती होनी चाहिए। यह पद कितना महत्वपूर्ण है, इसका प्रमाण इसी बात से मिल जाता है कि टीएन शेषन ने हमारे लोकतंत्र को नष्ट होने से बचा लिया था। यदि शेषन न हुए होते तो हमारे यहां चुनाव ‘जंगलराज’ का नमूना पेश कर रहे होते।


‘स्मार्ट गांव’ बनाएंः कल्याण सिंह

श्याम कुमार

कल्याण सिंह पिछले चार दशकों में उत्तर प्रदेश के ऐसे लोकप्रिय जननेता रहे हैं, जिनका कुशलतम मुख्यमंत्रित्व काल भी लोगों के मन में बसा हुआ है। इस समय राजस्थान के राज्यपाल के रूप में भले ही वह जयपुरवासी हो गए हैं, लेकिन जब भी उनका लखनऊ आगमन होता है, यहां उनके आवास पर मिलने वालों का तांता लग जाता है। गत पांच जनवरी को वह जन्मदिन मनाने लखनऊ आए थे तो उन्हें शुभकामनाएं देने के लिए प्रदेशभर से जनता उमड़ी थी। उत्तर प्रदेश उनके ह्रदय में तथा वह उत्तर प्रदेश  के ह्रदय में बसे हुए हैं। किन्तु राजस्थान के राज्यपाल के रूप में वहां भी उन्होंने भारी लोकप्रियता हासिल कर ली है। जिसकी प्रवृत्ति रचनात्मक होती है, वह कहीं भी रहे, उसका रचनात्मक दिमाग कभी भी अपनी सक्रियता नहीं छोड़ता है। यही बात कल्याण सिंह के साथ है। राज्यपाल के पास मुख्यमंत्री की तरह रचनात्मकता दिखाने का असीम दायरा नहीं होता है। लेकिन चूंकि विश्वविद्यालय राज्यपाल के अधीन होते हैं, इसलिए वहां उसे कुछ करने का अवसर मिल जाता है। कल्याण सिंह जब राज्यपाल बनकर राजस्थान पहुंचे तो उन्हें वहां के 26 विश्वविद्यालयों की दुर्दशा देखकर बड़ा आश्चर्य और दुख हुआ। उन्होंने अपनी आदत के अनुसार सुधार का अभियान शुरू कर दिया तथा कुछ ही महीनों में वहां के विश्वविद्यालयों को पटरी पर ले आए। 

राजस्थान के विश्वविद्यालय दीक्षांत समारोहों की बात भूल चुके थे, क्योंकि अनेक वर्षाें से वहां ये आयोजन नहीं हुए थे। कल्याण सिंह ने दीक्षांत समारोहों के आयोजन का आदेश दिया। परिणाम यह हुआ कि राजस्थान के विश्वविद्यालयों में जो दीक्षांत समारोह आयोजित हुए, उनमें तीन-तीन पीढि़यों ने एकसाथ डिग्रियां हासिल कीं। इतना ही नहीं, दीक्षांत समारोहों की अंग्रेजों के समय वाली परम्परा को त्यागकर उन्होंने उनका भारतीयकरण कर दिया। उपाधियां प्राप्त करने वाले विद्यार्थी राजस्थानी पगड़ी धारण कर भारतीय परिवेश में मंच पर आए। कल्याण सिंह ने राजस्थान में एक और चमत्कार किया। उन्होंने सभी विश्वविद्यालयों से एक-एक गांव गोद लेकर उन गांवों का सर्वांगीण विकास करने के लिए कहा। घुड़सवार जितना कुशल होता है, घोड़े पर उसका उतना ही अच्छा नियंत्रण होता है। उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री बनने पर अपनी चमत्कारिक क्षमता के बल पर प्रदेश की सुस्त नौकरशाही को सही रास्ते पर दौड़ा दिया था। वही चमत्कार उन्होंने राजस्थान में किया। उनके लगाम कसते ही राजस्थान के ‘सुस्त अश्व’ सरपट दौड़ने लगे। जिन गांवों को विश्वविद्यालयों ने गोद लिया, उनका तेजी से कायाकल्प होने लगा तथा वे विकास के प्रतीक बन गए। कल्याण सिंह स्वयं भी समय निकालकर जब-तब उन गांवों का निरीक्षण करते हैं तथा उपयोगी सुझाव देते रहते हैं।

जब कल्याण सिंह लखनऊ में मौजूद होते हैं तो नित्य उनके पास जाना मेरी दिनचर्या में शामिल हो जाता है। उनकी बौद्धिक क्षमता एवं स्मरणशक्ति गजब की है। उनसे तरह-तरह के विशयों पर चर्चा का आनंद मिलता है। कल्याण सिंह ने वार्तालाप में एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात यह कही कि हमारे यहां ‘स्मार्ट गांव’ बनाए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद आशा की जा रही थी कि महात्मा गांधी के ‘ग्राम स्वराज’ की अवधारणा का अनुसरण कर गांवों के उन्नयन पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, लेकिन हुआ उसका उलटा। हमारे गांव अधिकाधिक बदहाल होते गए तथा वहां के लोगों का तेजी से शहरों की ओर पलायन होने लगा। कल्याण सिंह ने मत व्यक्त किया कि गांवों के विकास के लिए ही नहीं, हमारे देश व प्रदेशों के विकास के लिए भी इन तीन बुनियादी चीजों की आवष्यकता है-पानी, बिजली और सड़क। जनता की ये तीन मूलभूत आवष्यकताएं हैं तथा यदि गांवों में इन तीनों जरूरतों को पूरा कर दिया जाय तो गांवों का कायाकल्प हो सकता है। पर्याप्त पानी उपलब्ध होने से समय पर फसलों की आवष्यक सिंचाई हो सकेगी और फसलें अच्छी होंगी। किन्तु अच्छी फसलों के साथ किसानों को उन फसलों का उचित मूल्य भी मिलना जरूरी है। लागत न निकल पाने के कारण ही प्रायः किसान आलू, टमाटर आदि सड़कों पर फेंक देने को विवष होते हैं।

कल्याण सिंह ने यह महत्वपूर्ण बात कही कि हर प्रखण्ड(ब्लाॅक) में एक शीतगृह (कोल्ड स्टोरेज) एवं खाद्य-प्रसंस्करण ईकाई आदि की स्थापना होनी चाहिए। इससे किसान की फसल न केवल सुरक्षित रह सकेगी, बल्कि उसके लाभ के अवसर बढ़ेंगे। इसी प्रकार गांवों में बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित होने पर वहां तेजी से सभी प्रकार के विकास-कार्य हो सकेंगे तथा रोजगारपरक उद्योग-धंधे स्थापित होंगे। नतीजा यह होगा कि गांवों से शहरों की ओर पलायन रुकेगा तथा मानव-शक्ति का गांवों में उपयोग हो सकेगा। बिजली की उपलब्धता होने पर अन्य जनोपयोगी सुविधाएं भी गांवों में मिलने लगेंगी। वहां डाॅक्टर रहने लगेंगे तथा अस्पतालों की दशा में सुधार होगा। शिक्षण-संस्थाओं का प्रसार होगा। कल्याण सिंह ने सड़कों के संबंध में कहा कि अच्छी सड़कें होने पर गांवों से शहरों के बीच ही नहीं, एक गांव से दूसरे गांव के बीच भी गमनागमन सुगम हो जाएगा। अच्छी सड़कों से किसानों का हर प्रकार से भला होगा। कल्याण सिंह ने इस बात पर बहुत संतोश व्यक्त किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी दिशा में अग्रसर हैं। उन्हें जनता की मूलभूत आवश्यकताओं का पता है। वह जानते हैं कि गांवों के विकास में ही देश का विकास निहित है और इसीलिए वे गांवों और किसानों के कल्याण के लिए समर्पित हैं। कल्याण सिंह छह मार्च को जयपुर के लिए रवाना हो गए।

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

उप्र को कदापि नहीं बंटने दिया जाए

श्याम कुमार

केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा निर्मलीकरण मंत्री उमा भारती के बारे में जनता में यह धारणा थी कि वह सबसे अधिक निश्क्रिय मंत्री हैं तथा उनकी निश्क्रियता के कारण ही गंगा का निर्मलीकरण-अभियान परवान नहीं चढ़ पाया है। लेकिन उमा भारती ने गत दिवस प्रदेश भाजपा के लखनऊ-मुख्यालय में आयोजित पत्रकारवार्ता में इस धारणा को समाप्त कर दिया। उन्होंने अपनी अत्यंत कुषल एवं सफल मंत्री की छाप छोड़ी। गंगा के निर्मलीकरण के बारे में उन्होंने बताया कि किस प्रकार उन्हें विभिन्न बाधाओं का सामना करना पड़ा तथा उत्तर प्रदेश सरकार का असहयोग भी झेला। किन्तु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका हौसला बढ़ाया तथा हर प्रकार से मदद की। नतीजा यह हुआ कि पिछली जुलाई, 2016 को सभी कठिनाइयां दूर हो गई हैं तथा अब गंगा-निर्मलीकरण का कार्य तेजी से चलेगा। उमा भारती की पत्रकारवार्ता इस दृष्टि से अत्यंत सार्थक थी कि उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर अपने विभाग की विभिन्न उपलब्धियों पर प्रकाष डाला। एक विशेष चर्चा बुंदेलखण्ड को लेकर हुई। बुंदेलखण्ड उत्तर प्रदेश का सर्वाधिक पिछड़ा क्षेत्र है तथा आजादी के बाद विगत दशकों में उसके विकास के अनगिनत सपने दिखाए गए, लेकिन सारे सपने भ्रष्टाचार एवं अकर्मण्यता की भेंट चढ़ते गए। बुंदेलखण्ड आज भी भयंकर रूप से गरीबी एवं पिछड़ेपन का षिकार है।

नेताओं को जनकल्याण के बजाय अपने कल्याण की अधिक चिंता रहती है। यही बुंदेलखण्ड को लेकर भी हुआ। हमारे नेताओं ने बुंदेलखण्ड के विकास में सही योगदान करने के बजाय अलग बुंदेलखण्ड राज्य बनाने का नारा शुरू किया तथा जनता को यह बरगलाने लगे कि अलग राज्य बनने पर बुंदेलखण्ड स्वर्ग बन जाएगा। वहां राजा बुंदेला-जैसे अनेक नेता पनप गए, जो बुंदेलखण्ड राज्य के निर्माण को ही समस्या का हल बताने लगे। जनता को यह तथ्य पता नहीं है कि उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र को अलग राज्य बना देने से उस क्षेत्र को कोई लाभ नहीं हुआ है, बल्कि बहुत अधिक नुकसान हो गया है। फायदा केवल नेताओं का हुआ है। वहां विधायकों एवं मंत्रियों की लम्बी फौज खड़ी हो गई, जिसके भ्रष्टाचार के किस्से अकसर सामने आते रहते हैं। वहां जनता गरीब की गरीब बनी हुई है, केवल नेताओं के घर समृद्धि से भर गए हैं। स्वार्थी नेता यही हाल बुंदेलखण्ड का भी करना चाहते हैं। वहां भी विधायकों एवं मंत्रियों की फौज खड़ी हो जाएगी तथा जनता के टैक्स से वसूला गया एवं केंद्र सरकार से प्राप्त धन नेताओं की सुख-सुविधाओं की भेंट चढ़ जाएगा। वहां की जनता फकीर की फकीर बनी रहेगी। अनेक पत्रकार भी आस लगाए बैठे हैं कि वे बुंदेलखण्ड राज्य बनने पर आसानी से विधायक व मंत्री बन जाएंगे। इसीलिए वे बुंदेलखण्ड राज्य के गठन का समर्थन किया करते हैं।उमा भारती की पत्रकारवार्ता में बुंदेलखण्ड राज्य के गठन का प्रश्न उठा तो उन्होंने कहा कि वह तो अनेक वर्षाें से बुंदेलखण्ड राज्य के गठन की समर्थक हैं। किन्तु पहली बात यह कि राज्य पुनर्गठन आयोग ही इस मसले के विभिन्न पहलुओं पर समुचित विचार कर निर्णय करेगा। दूसरी बात यह कि बुंदेलखण्ड का अधिक हिस्सा मध्य प्रदेश में है, जो बुंदेलखण्ड के उत्तर प्रदेश वाले हिस्से की तरह ही बेहद पिछड़ा हुआ था तथा भयंकर गरीबी से ग्रस्त था। लेकिन मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने वहां बुंदेलखण्ड क्षेत्र का चमत्कारपूर्ण ढंग से इतना अधिक विकास कर दिया है कि वहां की जनता ने मध्य प्रदेश से अलग होने से इनकार कर दिया है। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश की सरकारों ने यहां बुंदेलखण्ड का विकास किए जाने की ओर बिलकुल ध्यान नहीं दिया। केंद्र सरकार ने जो भारी धनराषि इस क्षेत्र के विकास-कार्याें के लिए भेजी, वह यहां या तो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई अथवा उपयोग के बिना केंद्र सरकार को लौटा दी गई। उमा भारती ने बुंदेलखण्ड का विकास एवं कायाकल्प करने के लिए ऐसी अनेक योजनाओं पर प्रकाष डाला, जिन्हें उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनते ही कार्यान्वित किया जाएगा तथा मध्य प्रदेश वाले बुंदेलखण्ड के हिस्से की तरह यहां के बुंदेलखण्ड  क्षेत्र को भी पूर्णरूपेण विकसित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि नई सरकार बुंदेलखण्ड विकास बोर्ड का गठन करेगी। उमा भारती ने यह भी बताया कि बुंदेलखण्ड क्षेत्र में कम पानी से अधिक सिंचाई की नई तकनीक के उपयोग हेतु भारत सरकार ने इजराइल सरकार से एक समझौता किया है।  
बुंदेलखण्ड उत्तर प्रदेश का ऐसा प्यारा हिस्सा है, जिसका जितना अधिक विकास होगा, उससे सम्पूर्ण प्रदेश को लाभ होगा। उस क्षेत्र को विकसित करने की असीम संभावनाएं हैं। जिस प्रकार आजादी के बाद यदि पूरे उत्तर प्रदेश का समुचित विकास किया जाता तो हमारा पूरा प्रदेश पर्यटन की दृश्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बन सकता था, वही बात बुंदेलखण्ड पर भी लागू होती है। वह समूचा क्षेत्र अत्यंत ऐतिहासिक महत्व का है तथा उसे प्राकृतिक दृश्टि से भी बड़ा रमणीक रूप दिया जा सकता है। वहां जल की समस्या बताई जाती है, किन्तु वास्तविकता यह है कि वहां जल उपलब्ध है, जिसका सही संयोजन एवं उपयोग नहीं हो रहा है। केंद्र सरकार ने इजराइल से जो समझौता किया है, वह बुंदेलखण्ड का कायाकल्प करने में सहायक होगा। उत्तर प्रदेश को बड़ा राज्य कहकर विभाजन की मांग करने वाले भूल जाते हैं कि यह प्रदेश देश का सबसे अनूठा प्रदेश है। यहां इतने रंग विद्यमान हैं, जो पूरे प्रदेश के लिए गर्व का विशय हैं। बुंदेलखण्ड क्षेत्र एवं वहां की जनता के वास्तविक कल्याण का एकमात्र रास्ता उसे राज्य बनाया जाना नहीं, बल्कि उस क्षेत्र का अधिक से अधिक विकास किया जाना है। इसका प्रमाण मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान ने प्रस्तुत कर दिया है, जिन्होंने वहां बुंदेलखण्ड क्षेत्र का इतना अधिक विकास किया कि वहां की जनता मध्य प्रदेश से अलग होने के विरुद्ध हो गई है। ऐसा ही उत्तर प्रदेश में भी हो सकता है।

उन्हें ‘गुजरात’ दिखता है, ‘गोधरा’ नहीं

श्याम कुमार

26 एवं 27 फरवरी की तिथियां देश के दो महान क्रांतिकारियों के महाप्रयाण की तिथियां हैं। 26 फरवरी को महाविभूति वीर सावरकर का निधन हुआ था तो 27 फरवरी को महाविभूति चंद्रषेखर आजाद देश के लिए बलिदान हो गए थे। देश का दुर्भाग्य है कि जो नेहरू वंष सत्ता के सारे सुख भोगते हुए सिर्फ अपने नाम को आगे बढ़ाता रहा तथा देश की वास्तविक महाविभूतियों के नाम को दबाने का भरपूर कुचक्र रचा, उस वंष के लोगों की जन्म एवं मरण की तिथियों पर हमारे देश के राष्ट्रपति श्रद्धासुमन अर्पित करने जाते हैं। लेकिन देश के लिए जीवन निछावर कर देने वाली वास्तविक महाविभूतियों की जयंतियों व पुण्यतिथियों पर वह श्रद्धांजलि के दो शब्द बोलने का कर्तव्य-निर्वाह भी नहीं करते। 27 फरवरी की तिथि में एक और बड़ा बलिदान हुआ था। वर्ष 2002 की 27 फरवरी को गुजरात के गोधरा रेल स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन की दो बोगियां फूंक दी गई थीं, जिनमें सवार सारे कारसेवक नृषंसतापूर्वक जिंदा जला डाले गए थे। वे कारसेवक अपने परिवारों के साथ, जिनमें छोटे-छोटे बच्चे भी षामिल थे, अयोध्या में रामलला के दर्षन कर ट्रेन की दो आरक्षित बोगियों में सवार होकर गुजरात अपने घर लौट रहे थे। गोधरा के मुस्लिम आतंकियों को इस बात की जानकारी थी और उन्होंने उनकी हत्या करने का कुचक्र रच लिया था। ट्रेन जब गोधरा स्टेशन से प्रस्थान कर आगे मुसलिम आबादी वाले क्षेत्र में आउटर पर पहुंची तो उसे रोक लिया गया और दोनों बोगियों पर जबरदस्त पथराव कर फूंक दिया गया। इस प्रकार कारसेवकों को उनके बाल-बच्चों सहित निर्ममतापूर्वक जिंदा जला डाला गया। जब यह दिल दहला देने वाली खबर फैली तो उसकी प्रतिक्रिया में गुजरात में दंगे भड़क उठे थे।

गोधरा का कांड इतना जघन्य काण्ड था कि वैसी अमानवीय घटनाएं कम हुआ करती हैं। उस कुकृत्य की देशभर में निंदा होनी चाहिए थी तथा दोशियों को कठोरतम दण्ड दिया जाना चाहिए था। लेकिन वैसा बिलकुल नहीं किया गया तथा देश की फर्जी सेकुलर जमात ने उस पर पूरी तरह चुप्पी साध ली। ऐसा प्रदर्षित किया गया, जैसे वह घटना हुई ही नहीं तथा हुई भी तो बहुत मामूली घटना थी। यहां तक कहा गया कि कारसेवकों ने स्वयं आग लगा ली थी। इसके विपरीत गोधरा काण्ड की प्रतिक्रिया में जो दंगे भड़के, उन पर भयंकर शोर मचाया गया और वह शोर अभी भी जारी है।  

जवाहरलाल नेहरू ने देश में फर्जी सेकुलरवाद की जो नींव डाली, उसमें सिर्फ मुसलमानों की जान को कीमती समझा जाता है। हिन्दुओं की जान का कोई महत्व नहीं माना जाता है और न उनके हित की बात की जाती है। सारे नेता ‘हाय मुसलमान, हाय मुसलमान’ करते रहते हैं तथा घोर साम्प्रदायिक बातें करके भी अपने को सेकुलर घोशित करते हैं। इसके विपरीत यदि कोई हिन्दूहित का तनिक भी उल्लेख कर दे तो उसे साम्प्रदायिक घोषित कर दिया जाता है तथा उसकी कटु निंदा की जाती है। गत दिवस एक टीवी चैनल पर एक मौलाना ने कहा कि वह पहले मुसलमान हैं, जिसके बाद भारतीय हैं। पहले भी टीवी-चैनलों पर एवं भाशणों में मौलाना व अन्य बहुत पढ़े-लिखे लोग ऐसा ही कहते रहे हैं, किन्तु उस पर कभी कोई आपत्ति नहीं की जाती है। लेकिन यदि कोई हिन्दू कह दे कि वह पहले हिन्दू है, फिर भारतीय है तो उसकी चारों ओर घोर निंदा की जाने लगेगी। मनमोहन/सोनिया की कांग्रेस सरकार ने शड्यंत्र कर साध्वी प्रज्ञा एवं असीमानंद को झूठे देशविरोधी कृत्य में फंसा दिया, जिसके बाद उन्हें बदनाम करने की फर्जी सेकुलरियों में होड़ लग गई। मुशायरों में शायरों ने उन दोनों का उल्लेख करते हुए हिन्दुओं पर व्यंग्यात्मक रचनाएं पढ़ीं। लेकिन जब यह कहा जाए कि जितने गद्दार पकड़े जाते हैं, वे प्रायः सभी मुसलमान होते हैं तो तुरंत यह ‘टर्र-टर्र’ शुरू हो जाएगी कि ऐसा कहना साम्प्रदायिकता है। वे यह भी कहने लगते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।   

पिछले दिनों पाकिस्तान के जासूस के रूप में कुछ हिन्दू पकड़े गए, जिसके बाद हिन्दुओं पर तरह-तरह के लांछन लगाए जाने लगे हैं। इससे इनकार नहीं कि स्वार्थ के लिए हिन्दू भी देशद्रोह करते रहे हैं। जयचंद ने गद्दारी न की होती तो देश मुसलिम हमलावरों की गुलामी से बच जाता। कट्टर मजहबपरस्त मौलाना एवं राजनीतिक नेता हिन्दुओं के विरुद्ध जहर उगलते रहते हैं, फिर भी अपने को सेकुलर कहते हैं। जो हिन्दू नामधारी फर्जी सेकुलरिए हैं, वे उन कट्टरपंथी मुसलमानों से अधिक हमारे देश एवं हिन्दू धर्म को गंभीर क्षति पहुंचा रहे हैं। वे तो घर के भीतर रहकर वार कर रहे हैं। पिछले दिनों मुसलिम विद्वान एवं राष्ट्रवादी तारेक फतह पर कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा घातक हमला किया गया। उनका सिर काटने वाले के लिए 50 लाख रुपये के इनाम की घोशणा की गई है। लेकिन इसकी किसी भी सेकुलरिए ने निंदा नहीं की और न तारेक फतेह की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत की। बल्कि यह आरोप लगाया कि उनकी बातों से मुसलमानों की भावनाओं को चोट पहुंचती है। हकीकत यह है कि तारेक फतह जो बातें कहते हैं, वे मुसलमानों के वास्तविक हित की होती हैं। तसलीमा नसरीन ने बंगलादेश में मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों की सच्ची घटनाओं का अपनी पुस्तक में उल्लेख कर दिया तो कट्टरपंथी मुसलमानों ने आरोप लगा दिया कि उक्त उल्लेख से उनकी भावनाओं को चोट पहुंची है। केंद्र की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने फौरन उस पुस्तक एवं तसलीमा नसरीन पर प्रतिबंध थोप दिए। हिन्दुओं के विरुद्ध आपत्तिजनक बातों एवं हरकतों को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ कहकर बचाव किया जाता है, किन्तु मुसलिम कट्टरपंथियों या फर्जी सेकुलरियों की किसी हिन्दू-विरोधी बात का विरोध किया जाय तो वहां हिन्दुओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भूलकर निंदा-अभियान शुरू कर दिया जाता है। जवाहरलाल नेहरू द्वारा शुरू किए गए फर्जी सेकुलरवाद का आधार ही मुसलिम-तुष्टीकरण एवं हिन्दू-विरोध है। यही कारण है कि ऐसे लोगों को गोधरा का नृशंस हत्याकाण्ड नहीं दिखाई देता, केवल गुजरात का दंगा दिखाई देता है।  

उप्र में अफसर ‘जुगाड़’ लगाने में जुटे

श्याम कुमार

उत्तर प्रदेश की नौकरशाही इस समय अपने को बिलकुल निस्पृह दिखाने की कोशिश कर रही है, लेकिन हकीकत कुछ और है। नौकरशाही चिंता में डूबी हुई है। वह बहुत टोह लेने की कोशिश कर रही है कि विधानसभा के चुनाव में क्या होने वाला है? अपनी सूंघने की शक्ति का वह भरपूर इस्तेमाल कर रही है। अनेक नौकरशाहों की सूंघने की शक्ति कुत्ते से भी तेज होती है और इसी के बल पर वे अपनी निष्ठाएं बदलकर हर राज में चांदी काटते रहते हैं। लेकिन यह पहला चुनाव है, जिसमें जनता पूरी तरह मौन है। उसकी चाल-ढाल या भाव-भंगिमा, किसी से कुछ झलक ही नहीं रहा है कि उसकी दिशा क्या है? तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। भांति-भांति के विवेचन किए जा रहे हैं। उन्होंने आईएएस की परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए भी जितना परिश्रम नहीं किया होगा, उतना परिश्रम वे चुनाव की रुझान जानने के लिए गहरे पानी में पैठ लगाकर कर रहे हैं। तमाम ‘गधों’ को ‘बाप’ बना रहे हैं कि शायद उनसे ही कुछ संकेत मिल जाय, लेकिन ‘गधे’ भी काम नहीं आ रहे हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी ने ज्योतिषियों के चुनाव-परिणामों को जो पटकनी दी थी, उसके बाद ज्योतिषियों को मौन रहने में ही अपनी इज्जत सुरक्षित लग रही है। अब कहीं से किसी भी ज्योतिशी की कोई भविष्यवाणी नहीं सुनाई देती है। 

सबसे ज्यादा खलबली उन अफसरों में है, जो मलाई काटने के आदी रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक भाषण में ऐसे ही अफसरों की चर्चा करते हुए कहा था-‘कुछ अफसर अपार क्षमता से परिपूर्ण होते हैं। महाभ्रष्ट होने के बावजूद उनमें यह योग्यता होती है कि वे हाकिम की इच्छा पूरी करने में पटु होते हैं और इसलिए जो भी सत्ता में आता है, ये उसके नजदीकी हो जाते हैं।’ उत्तर प्रदेश में कुछ दशकों से यही हो रहा है तथा महाभ्रष्ट अफसर चांदी काट रहे हैं। यहां हजारों-करोड़ की कमाई कर चुकने वाले अफसरों की ही नहीं, ऐसे लिपिकों आदि की भी लम्बी जमात है। कायदे से उन्हें जेल में होना चाहिए, लेकिन वे अपनी ‘कलाबाजी’ का इस्तेमाल कर सारे सुख-वैभव का उपभोग कर रहे हैं। वे किसी एक हाकिम की आंखों के तारे होते हैं तो अपनी पटाने की कला के बल पर उस हाकिम के कट्टर विरोधी के सत्ता में आ जाने पर उसकी आंख की पुतली बन जाने में सफल होते हैं। जनता को भी जिज्ञासा है कि अब यदि कहीं वर्तमान सत्ता की धुरविरोधी सत्ता आ गई तो वर्तमान समय में सोना-चांदी काट रहे अफसरों की बड़ी फौज का क्या होगा?

भविष्य का परिदृश्य साफ न होने के कारण ये ‘कलाबाज’ अफसर विभिन्न माध्यमों से अलग-अलग पार्टियों के खास लोगों तक पहुंचने की कोशिश में जुट गए हैं। वे बड़ी पार्टियों के ही नहीं, छोटी पार्टियों के भी प्रभावशाली लोगों को साध रहे हैं, ताकि यदि गठबंधन की सरकार बने तो वे उन छोटे दलों के माध्यम से ‘माखन वाली हांडी’ तक पहुंच सकें। कांग्रेस का दर्द ही यह हो गया था कि वह सत्ता के अभाव में ऐसी दयनीय स्थिति में पहुंच गई कि उसके पास चाटुकारी के लिए अफसर झांकने भी नहीं आते और ‘तबादला-पोस्टिंग’ के सुख से वह वंचित है। इसीलिए वह गठबंधन हेतु लालायित थी तथा उसके सौभाग्य से अखिलेश यादव के रूप में उसे उद्धारकर्ता मिल गया। अखिलेश यादव यदि उसे एक भी सीट नहीं देते तो भी वह सपा से गठबंधन के लिए तैयार हो जाती। यही कारण है कि उसके कई विधायक विपक्ष की भूमिका में होने के बावजूद मुख्यमंत्री की चाटुकारी की भूमिका निभाते थे। मायावती तक पहुंचना लगभग असम्भव होता है तथा उनके पास अपने चहेते अफसरों की बड़ी सूची है। वे अफसर अभी किनारे पड़े माला जप रहे हैं। सुना जा रहा है कि मायावती सत्ता में आईं तो शशांक शेखर के अभाव में वह कुंवर फतेह बहादुर को कैबिनेट सचिव बनाएंगी। एक अफसर, जो कभी उनका सबसे खास हुआ करता था और सपा के सत्तारूढ़ होने पर अखिलेश यादव का निकटवर्ती हो गया, उसके बारे में सुना जा रहा है कि वह फिर मायावती के निकट जाने की जुगाड़ में है तथा वह सफल हो गया तो वह मुख्यमंत्री बनने पर मायावती का प्रमुख सचिव बनेगा।

जुगाड़ू अफसर भारतीय जनता पार्टी को साधने में भी अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं। मुझे आश्चर्य हुआ कि जब भारतीय जनता पार्टी के एक खास व्यक्ति ने ऐसे जुगाड़ू अफसरों का पक्ष लेते हुए कहा कि उन अफसरों की कुछ भी पृष्टभूमि रही हो, नई सरकार यदि उनकी योग्यता का इस्तेमाल करती है तो हर्ज क्या है? हमेशा चांदी काटने वाले ऐसे जुगाड़ू अफसर भारतीय जनता पार्टी की कमजोर कडि़यों को टटोल रहे हैं। भाजपा के एक कद्दावर नेता को भी उन कमजोर कडि़यों में माना जा रहा है। जुगाड़ू अफसर पटाने की क्रिया में धन-बल का तो इस्तेमाल करते ही हैं, जाति-बल का भी पूरा उपयोग करते हैं। हमारे यहां पैसे के बाद जाति ऐसा चुम्बक है, जो बड़ी आसानी से किसी को अपने साथ चिपकाने में सफल हो जाता है। लखनऊ में मेरे एक मित्र रामेश्वर प्रसाद सिंह थे, जो यहां पूर्वाेत्तर एवं उत्तर रेलवे में मंडल रेल प्रबंधक रह चुके थे। चूंकि मैं जातिवाद का कट्टर विरोधी हूं और उसे हिन्दू समाज का सबसे बड़ा षत्रु मानता हूं, इसलिए मुझे किसी की जाति जानने में कभी कोई रुचि नहीं होती। अटल-सरकार में जब नीतीश कुमार रेलमंत्री बने थे तो मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ था कि रामेश्वर प्रसाद सिंह कुर्मी हैं और इसी वजह से वह कुर्मी नीतीश कुमार के निकट हो गए। उस समय वे रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष बनने में भी सफल हो गए थे। बहरहाल, उत्तर प्रदेश की नौकरशाही पूरी शिद्दत से यह जानने में जुटी हुई है कि उत्तर प्रदेश में ऊंट किस करवट बैठने वाला है?    

आईएस आतंकवादियों की गिरफ्तारी भयभीत करने वाला

 

अवधेश कुमार

निश्चित रुप से इस खबर से देशभर में भय और सनसनाहट का माहौल बना हुआ है। यह पहली बार है जब देश में इस्लामी स्टेट यानी आईएसआईएस के दो संदिग्ध आतंकवादी पकड़े गए हैं। जी हां, गुजरात पुलिस की माने तो दोनों आतंकवादियों को उस समय गिरफ्तार किया गया जब वे अलग-अलग विस्फोटक बनाने में लगे हुए थे। उनके पास से विस्फोटक सामग्रियों के अलावा जिहादी साहित्य बरामद किए गए हैं। जो कुछ इनसे पूछताछ के बारे में गुजरात के आतंकवाद निरोधक दस्ते ने बताया है उसके अनुसार ये चोटिला स्थिज चामुंडा मंदिर सहित कई धार्मिक स्थलों पर हमला करने की योजना बना चुके थे। साथ ही ये अन्य जगहों पर रासायनिक हमले की योजना भी बना रहे थे। कहने की आवश्यकता नहीं कि इनकी योजना कितनी खतरनाक थी। मजे की बात देखिए कि पकड़े गए वसीम और नईम दोनों सगे भाई हैं तथा इनके पिता आरिफ रमोड़िया जिला स्तर के क्रिकेट अंपायर भी है। पिता का कहना है कि दोनों की गतिविधियों के बारे उनको कोई जानकारी नहीं है। संभव है पिता सच बोेले रहे हों, क्योंकि कोई भारतीय पिता अपने बेटे को इस तरह आतंकवादी बनते नहीं देखना चाहेगा। किंतु गुजरात आतंकवाद निरोधक दस्ता यदि कई महीनों से इन पर नजर रख रहा था और पुख्ता सूचना और सबूत के बाद गिरफ्तार किया है तो इस समय हमारे पास इसे सच स्वीकारना ही होगा।

जबसे यह खबर आई कि आईएस ने दक्षिण एशिया के लिए अपना कमाडर नियुक्त कर दिया है और वह यहां गतिविधियां चलाने की कोशिश में है तब से ही आतंकवाद के जानकार भारत को लेकर चिंतित थे। हालांकि अभी तक आईएस से प्रभावित होकर देश से भागने वाले के बारे में सूचनाएं थीं, कुछ युवक भागते हुए पकड़े गए.....कई सोशल मीडिया के माध्यम से आईएस का प्रचार करते तथा उसके लिए युवाओं का मानस बदलने के काम में लगे भी पकड़ में आए। पिछले माह एनआईए ने एक केरल निवासी को भी आईएस के संदिग्ध आतंकी के तौर पर गिरफ्तार किया था तथा पिछले वर्ष राजस्थान के आतंकवादी निरोधक दस्ते ने सीकर जिले से आईएस के एक ऑपरेटिव को गिरफ्तार किया था। इस पर आतंकवादी संगठन को धन स्थानांतरित करने का आरोप लगा है। इस प्रकार आईएस का किसी तरह हमारे यहां विस्तार हो रहा है यह तो स्पष्ट लग रहा था किंतु बाजाब्ता योजना बनाकर हमला करने वाले आईएस के आतंकवादी हमारी जमीन पर पैदा हो चुके हैं ऐसी सूचना पहली बार मिल रही है। जैसा पुलिस बता रही है ये दोनों भाई लगातार देश के बाहर आईएसआईएस आतंकवादियों के साथ स्काइप, ट्विटर और सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों के जरिए संपर्क में थे। इसके अनुसार दोनों आईएस के प्रचारक अब्दुस सामी कासमी से संबंध बनाए हुए थे।

हमारे पड़ोस बंगलादेश में आईएस का हमला हो चुका है और काफी लोगों की पकड़ धकड़ हुई है। हाल ही में पाकिस्तान में सूफी दरगाह पर हुए बड़े आत्मघाती हमलों की जिम्मेवारी आईएस ने ली थी। इसे देखते हुए हमारी चिंता यह थी कि ये कहीं हमारे यहां भी न पहुंच जाए। हालांकि कश्मीर घाटी में आईएस के झंडे लहराते हुए दिखने के बावजूद वहां भी अभी तक आईएस की किसी गतिविधि की सूचना नहीं है। इस तरह गुजरात में हुई गिरफ्तारी भारत के लिए आसन्न खतरे का संदेश है जिसके बाद पूर्व से कहीं ज्याद चिंता करने और चौकन्ना होने की आवश्यकता है। इस तरह के आतंकवावदियों को लोन वुल्फ कहते हैं। इनका सीधा संगठन से रिश्ता हो, या संगठन की योजना से ये हमला करने आवश्यक नहीं। उससे प्रभावित होकर अकेले योजना बनाकर ये हमला करते हैं। यानी जिस तरह भेड़िया दवे पांव आकर अकेले हमला करता है वैसे ही ये करते हैं। दुनिया में ऐसे कई हमले हो चुके हैं। फ्रांस के नीस शहर का हमला हम भूले नहीं होंगे। पिछले वर्ष फ्रांस के लोग 14 जुलाई की रात बास्तिल के पतन की वर्षगांठ के जश्न में थे और एक आतंकवादी ट्रक लेकर घुसा तथा लोगों को रौंदता चला गया। 90 लोग मारे गए तथा 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। जश्न सेकेण्डांें में मातम में बदल गया। इसी तरह 13 जून को अमेरिका के फ्लोरिडा में समलैंगिक पल्स नाइट क्लब में एक बंदूकधारी ने हमला कर 49 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। उसने तो पुलिस को फोन करके कहा कि मैं आईएस का समर्थक हूं।

ऐसे और कई हमलों का यहा जिक्र किया जा सकता है। यह आईएस की नई रणनीति है। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। सितंबर, 2014 में इस्लामिक स्टेट के मुख्य प्रवक्ता अबू मोहम्मद अल-अदनानी ने अपने एक भाषण में इस्लामिक स्टेट के समर्थकों से यह अपील की थी कि वे अब अपने स्तर पर हमले करें। यानी आप अकेले निजी तौर पर हमले करने की तैयारी करें। अदनानी ने अपने भाषण में कहा था कि जो कोई भी हथियार आपके हाथ आए, उसी से हमला बोल दें। उसने कहा था कि अगर तुम्हें बम या गोली नहीं मिलते तो उनके सिर को पत्थर से फोड़ दो, या उन्हें छुरा घोंप दो, या उन पर अपनी कार चढ़ा दो, या उन्हें किसी ऊंची जगह से फेंक दो, उनका गला घोंट दो, या उन्हें जहर दे दो ...अगर तुम यह भी नहीं कर पा रहे हो, तो उनके घर, उनकी कार, उनके कारोबार को राख कर दो, उनकी फसलें तबाह कर दो। और कुछ नहीं, तो उनके चेहरे पर थूक दो। इसे हम लोन वुल्फ आतंकवाद विचार कह सकते हैं। इसको अमली जामा पहनाना आरंभ हो चुका है। वैसे भी आईएस इस समय इराक एवं सीरिया में भारी हमलों से पस्त है। इसलिए दुनिया के जिस क्षेत्र के लिए अल बगदादी ने खिलाफत यानी खलीफे के साम्राज्य की घोषणा की है सब जगह संगठित समूह में जाकर लड़ना या तथाकथित जेहाद करना उसके लिए संभव नहीं है। इसलिए यह रास्ता ज्यादा आसान है।

लेकिन दुनिया के लिए यह सबसे बड़ा खतरा और सबसे बड़ी चुनौती है। ऐसे लोगों को पकड़ पाना खुफिया एजेंसियों के लिए आसान नहीं होता। कौन कहां किस समय किस चीज को हथियार बनाकर आतंकवादी बन जाए आप कल्पना नहीं कर सकते। पिछले वर्ष फ्रांस के पहले बंाग्लादेश में जो दूसरा हमला हुआ उसमें स्थानीय आतंकवादी थे जिनके हाथों छूंड़ा था और स्थानीय स्तर पर उनने बम बनाया था। क्यूबेक में एक आतंकवादी ने दो कनाडाई सैनिकों पर अपनी कार चढ़ा दी थी। वैसे भी चाहे आईएस हो या अल कायदा या ऐसे दूसरे संगठन ये एक विचार भी हैं जो लोगों को मजहबी उन्माद से भरकर उनके भीतर हिंसा करने की उद्याम प्रेरणा पैदा करते हैं। इससे ये स्वयं अपना संपर्क विकसित करते हैं, विस्तार करते हैं, विस्फोटक से लेकर संसाधन तक की स्वयं व्यवस्था करते हैं और योजना बनाकर हमला भी खुद ही करते हैं। न तो फ्रांस में हमला करने वाले का आईएस संगठन से सीधा संबंध था न अमेरिका के क्लब पर हमला करने वालों का।

गुजरात में पकड़े गए दोनों भाइयों के बारे में विस्तृत सूचना मिलनी अभी शेष है, लेकिन यदि ये वाकई आईएस के वुल्फ आतंकवादी हैं तो फिर यह मानकर चलना पड़ेगा कि इनकी संख्या इन दो तक ही सीमित नहीं हो सकती। ये देश में अन्यत्र भी फैले होंगे। जो लोग अभी भी आईएस के खतरे को दूर की कौड़ी मानकर उस पर चिंता करने वालों का उपहास उड़ाते थे उनको कम से कम अब अपने विचार बदल लेने चाहिए। हाल ही में आईएस के चंगुल से छूटने वाले भारतीय डॉक्टर के रामामूर्ति ने कहा है कि आईएस भारत में ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच अपनी सोच को फैलाना चाहता है। रामामूर्ति के मुताबिक आईएस में शामिल युवा बेहद पढ़े लिखे हैं उन्हें भारत के बारे में काफी कुछ जानकारी हैं। यहां तक की वह यह भी जानते हैं कि यहां की विकास दर कितनी है और शिक्षा में भारत कितना विकसित है। इन्हीं  वजहों से भारत उनका पसंदीदा देश बन गया है। राममूर्ति को दो साल पहले लीबिया से आईएसआईएस न अपहरण कर लिया था। जो व्यक्ति इतने ंलंबे समय तक आईएस के चंगुल में रहा हो उससे ज्यादा पुख्ता जानकारी भारत के संदर्भ में उनकी सोच के बारे में और कौन दे सकता है। इस प्रकार भारत को इस नए खतरे के बारे में समग्रता से विचार कर इससे सफलतापूर्वक निपटने के लिए हर क्षण तैयार रहना होगा।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208

 

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