गुरुवार, 25 मई 2023

सिविल सेवा में चयनित युवाओं को जाति और धर्म में मत बांटिए

अशोक मधुप
संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा का कल रिजल्ट आया। भारतीय विदेश  सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय प्रशासनिक सेवा  और केंद्रीय सेवा समूह ‘ए’ और समूह ‘बी’ में नियुक्ति के लिए कुल 933 उम्मीदवारों की अनुशंसा की गई है। अनुशंसित 933 उम्मीदवारों में से 345 सामान्य, 99 ईडब्ल्यूएस, 263 ओबीसी के हैं, 154 एससी, 72 एसटी के हैं। 178 उम्मीदवारों को वेटिंग लिस्ट में रखा गया है। परीक्षा में इशिता किशोर ने एयर एक रैंक हासिल की है। उसके बाद गरिमा लोहिया, उमा हरथी एन और स्मृति मिश्रा रहीं। इस बार खास बात यह की लड़कियों ने परीक्षा में दबदबा कायम किया है।
रिजल्ट आते के साथ ही जाति और धर्म के लंबरदारों ने विजयी होने अपनी जाति और धर्म के युवाओं को खोजकर उन्हें बधाई देना शुरू कर दिया। कोई विजयी को ब्राह्मण बता रहा है कोई जाट। कोई चयनित को ठाकुर बताकर बधाई दे रहा है तो कोई सैनी बताकर। प्रदेश के और जनपद के चयनित युवाओं को भी बधाई दी जा रही है। कोई गांव के लोगों को अपने गांव का बताकर बधाई दे रहा है, तो कोई जिले का बताकर। कहीं अपनी जाति वे विजयी आईएएस को समाज की ओर से सम्मानित करने की बात की जा रही है तो कहीं गांव और जनपद की ओर से। कोई ब्राह्मण समाज की और से बिरादरी के चयनित को सम्मानित करने की बात कर रहा है। तो कोई जाट युवाओं का जाट बिरादरी की ओर से सम्मानित करने के दावे कर रहा है। जाति में भी गोत्र तक की खोज होने लगी। इन चयनित युवाओं में सब अपनी-अपनी बिरादरी के युवा खोजने में लगे हैं। सब अपनी ढपली लिए हैं, अपनी जाति, धर्म और संप्रदाय की माला जपने में लगे हैं। कहीं किसी को बिहार का बताया जा रहा है तो कहीं झारखंड का।
देश के विकास की गाथा लिखने निकले इन युवाओं का जाति और धर्म में बांटा जा रहा है। इन युवाओं को जातियों, धर्म और संप्रदाय में बांटने का जाने.अनजाने किया जा रहा प्रयास बहुत गलत गलत कार्य है। ये समाज को जाति, वर्ग और धर्म में बांटने के षड्यंत्र का एक भाग है। हम पहले ही बहुत विभाजित हैं। इस सामज के पहले से ही चले आ रहे विखंडन को ही एकत्र करने के प्रयास के बाद भी ज्यादा कामयाबी नहीं मिल रही। अब ये नई खिंच रही विभाजन की रेखा समाज में और बड़ी खाई पैदा करेगी। इससे बचने और दूर रहने की जरूरत है। ऐसे लोगों को समझाने की जरूरत है।
संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा के चयनित युवा देश के विकास की गाथा लिखने के लिए आए हैं। सिविल सेवा में वे सभी मैरिट से चुने गए। इनका कार्य देशवासियों को समान रूप से सामाजिक योजनाओं का लाभ दिलाना, बिना भेदभाव के लिए न्याय करना है। नागरिकों के लिए न्याय कर समान रूप से सामाजिक सुविधाएं उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी भी इन्ही पर आती है। गरीबों को आगे लाकर उन्हें विकास की धारा में शामिल कराने का दायित्व भी इनका ही बनता है। कोई कितना भी सम्मानित कर ले, बधाई दे ले, ये पद पर आकर वहीं करेंगे, जो इन्हें आदेश होंगे। जो कानून कहेगा, जो सरकार की गाईड लाइन बताएगी। ये न जाति के प्रभाव में आएंगे, न समुदाए के न धर्म की रेखा इनके निर्णय में बाधा बनेगी।ऐसे में इन्हें जाति, वर्ग और धर्म में बांटना गलत है।ये देश और समाज के हैं। इन्हें उसी का रहने दीजिए। काफी समय से एक बात अैर तेजी से बढ़ी है। दलित की लड़की से से बलात्कार। बलात्कार के बाद दलित युवती की हत्या। इस तरह की बात करने वाले, नारे लगाने वाले अैर खबर लिखने वालों के लिए बताते चलें कि बेटी गांव की होती है, समाज की होती है। वह न दलित की होती है, न सर्वण की। इस तरह की बात करना भी इसी विखंडन का हिस्सा है। इसे जितनी जल्दी समझ लिया जाए, उतना ही बेहतर है।
ऐसा ही पिछले कुछ समय से देश के शहीद और क्रांतिकारियों के साथ हो रहा है। महात्मा गांधी को बनिया, लाल बहादुर शास्त्री को कायस्थ, कांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को ब्राह्मण बताया जा रहा है तो महाराणा प्रताप को राजपूत। महापुरूष, शहीद और क्रांतिकारी देश और समाज के होते हैं। जाति और धर्म के नही। शहीद स्थनों पर सभी धर्म और जाति के लोग जाते तथा श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के नूरपुर में आजादी की लड़ाई में थाने पर ध्वजारोहण करने का प्रयास करते दो युवक प्रवीण सिंह और रिखी सिंह शहीद हुए। ये पूरे समाज के लिए पूज्य हैं, आदरणीय हैं। इन्के शहीद स्थल पर हर साल शहीद मेला लगता है। सभी जाति धर्म के स्त्री-पुरूष इस शहीद स्थल पर आते दीप जलाते और श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं , अब इन्हें ठाकुर और चौहान बताकर समाज से दूर किया जा रहा है। इन पर ठाकुर और चौहान अपना हक बताने लगे।ये गलत है। ऐसा करने वालों को समझाना चाहिए। बताया जाना चाहिए कि इससे दूर रहें।
हिंदू धर्म के मानने वाले सभी धर्म स्थलों पर जाते हैं, चाहे वह किसी भी समाज के हों। मंदिर की तरह उन्हें बौद्ध मठ, गुरूद्वारे चर्च और पीर. पैंगम्बर के स्थान भी पूजनीय हैं, सभी जगह जाते हैं।सभी को मानतें हैं और सजदा करते है। अगर इन स्थानों को अपने धर्म के लिए ही निर्धारित किया जाएगा, तो गलत ही होगा।
देश के युवाओं, प्रतिभाओं सैनिको , सैनानियों क्रांतिकारियों, शहीदों और समाज के महापुरूषों को जातियों और धर्म में बांटना समाज के विखंडन की प्रक्रिया का हिस्सा है,ऐसे में इसे रोकिए। समाज का जोड़ने आगे बढ़ाने के लिए आगे आईए। बांटने के लिए नहीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

अमेरिकी धार्मिक रिपोर्ट भारत के लिए अस्वीकार्य

अवधेश कुमार

अमेरिका ने फिर अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी वार्षिक रिपोर्ट में भारत को अल्पसंख्यक विरोधी देश साबित करने की कोशिश की है। अमेरिका इसे विश्व भर के देशों में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति का तथ्यात्मक एवं प्रामाणिक दस्तावेज घोषित करता है। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता कार्यालय के विशेष राजदूत राशद हुसैन ने कहा कि रिपोर्ट विश्व भर के लगभग 200 देशों और क्षेत्रों में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति के बारे में एक तथ्य आधारित व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने इसे जारी करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य उन क्षेत्रों को उजागर करना है जहां धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता का दमन किया जा रहा है और अंततः प्रगति को ऐसे विश्व की ओर ले जाना है जहां धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता हर जगह हर किसी के लिए एक वास्तविकता हो। ब्लिंकन ने भारत का उल्लेख नहीं किया, पर रिपोर्ट में भारत का संदर्भ भयानक तस्वीरों से भरी है। राशद हुसैन के बयान में भारत का जिक्र है। उन्होंने कहा कि कई सरकारों ने अपनी सीमाओं के भीतर धार्मिक समुदाय के सदस्यों को खुले तौर पर निशाना बनाना जारी रखा है। इन सरकारों के संदर्भ में रिपोर्ट के महत्वपूर्ण निष्कर्षों का उल्लेख करते हुए उन्होंने भारत का नाम स्पष्ट तौर पर लिया। उसके बाद चीन और अफगानिस्तान समेत कई देशों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में विविध धार्मिक समुदाय से जुड़े कानून के हिमायती और धार्मिक नेताओं ने हरिद्वार शहर में मुस्लिमों के खिलाफ घोर नफरत भाषा का इस्तेमाल किया जो निंदनीय है। 

इसमें 20 से अधिक ऐसी घटनाओं का जिक्र है जिससे आभास होता है कि भारत की वर्तमान सरकार के अंदर बहुसंख्यक समुदाय यानी हिंदू अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले कर रहा है, उनके भवनों को तोड़ रहा है , जला रहा है , उनके धार्मिक अधिकारों के पालन में बाधाएं खड़ी कर रहा है। उदाहरण के लिए कहा गया है कि इस वर्ष कई राज्यों में धार्मिक अल्पसंख्यक सदस्यों के खिलाफ कानूनी एजेंसी अधिकारियों द्वारा हिंसा की रिपोर्ट सामने आई। गुजरात में सादी वर्दी में पुलिस द्वारा अक्टूबर में एक त्यौहार के दौरान हिंदुओं को घायल करने के आरोपी चार मुस्लिम पुरुषों को सार्वजनिक रूप से पीटने और मध्यप्रदेश सरकार द्वारा अप्रैल में खरगोन में सांप्रदायिक हिंसा के बाद मुस्लिमों के घरों और दुकानों पर बुलडोजर चलाने की बात कही गई है। इसे मुस्लिमों पर अत्याचार के रूप में पेश किया गया है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा बुलडोजर से घर और संपत्तियां ध्वस्त करने का भी इसी रूप में उल्लेख है। कोई निष्पक्ष और विवेकशील व्यक्ति इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं कर सकता। भारत जैसे विविधताओं के देश में समुदायों के बीच कभी-कभार विवाद, टकराव आदि होते हैं, किंतु यह कहना कि केंद्र व राज्य सरकारों की भूमिका से इसे प्रोत्साहन या संरक्षण मिलता है गलत है। न्यायपालिका के हाथों ही ऐसे मामलों में अंतिम कानूनी फैसले का अधिकार है। अमेरिकी रिपोर्ट में भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका की भूमिका को नजरअंदाज किया गया है। इसमें तथ्यात्मक गलतियां भी हैं। उदाहरण के लिए हरिद्वार की जिस सभा का जिक्र है उसके कई लोगों पर न केवल मुकदमे हुए बल्कि उन्हें जेलों में भी डाला गया। भारत को पाकिस्तान, चीन,अफगानिस्तान आदि की श्रेणी में रखना साफ करता है कि रिपोर्ट तैयार करने वालों का उद्देश्य क्या हो सकता है।

हालांकि इसमें हैरत की कोई बात नहीं है। अमेरिका की धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी रिपोर्ट में न जाने कितने वर्ष ऐसी बातें अलग - अलग तरीके से कही गई हैं। पिछले 2 मई को ही अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग यानी यूएससीआईआरएफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत को उन देशों की सूची में शामिल किया जाए जो धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर चिंताजनक माने जाते हैं। यह अमेरिका की काली सूची यानी ब्लैक लिस्ट  है। इसमें चीन, रूस, सऊदी अरब, ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान आदि शामिल है। इस वर्ष निकारागुआ, वियतनाम और भारत को शामिल करने की सिफारिश की गई है। यह आयोग पिछले 4 वर्षों से ऐसी सिफारिश कर रहा है। हां,अमेरिकी विदेश विभाग इसे स्वीकार नहीं करता। कल्पना कर सकते हैं कि रिपोर्ट बनाने वालों की मानसिकता कैसी होगी? भारत को निकारागुआ ,अफगानिस्तान ,पाकिस्तान की श्रेणी में रखने वाले लोगों की सोच पर तरस आना चाहिए। किंतु दूसरी ओर यह बताता है कि भारत और यहां के हिंदू समाज को लेकर विश्व भर में कैसी मानसिकता बनाई गई है खासकर मोदी सरकार आने के बाद। 

 वर्तमान धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी रिपोर्ट मीडिया एडवोकेसी रिसर्च ग्रुप्स के द्वारा तैयार किया गया है। इस समूह में कौन-कौन संस्थाएं और लोग शामिल हैं इनकी जानकारी सामने आनी चाहिए । राशद हुसैन पाकिस्तानी मूल के हैं। रिपोर्ट जारी होने के बाद वैश्विक स्तर पर एएफपी न्यूज़ एजेंसी द्वारा एक शीर्ष अमेरिकी अधिकारी से बातचीत प्रकाशित हुई जिनका नाम नहीं लिया गया। उसने कहा कि हम भारत में सिविल सोसायटी और संगठनों तथा अपने समर्थक पत्रकारों के साथ इसके लिए काम करना जारी रखेंगे जो हर दिन इनमें से कुछ दुर्व्यवहारों का दस्तावेजीकरण करने के लिए काम कर रहे हैं। इसका अर्थ क्या है? 

हम यह कह सकते हैं कि हिंदुओं के संस्कार, चरित्र और  हिंदू धर्म को अपने रीलीजन के अनुसार देखने के कारण भी पश्चिमी एवं अन्य देशों में समस्याएं पैदा होती हैं। किंतु इस बयान से साफ है कि भारत के ही संगठन और पत्रकार इस तरह की रिपोर्ट देते हैं। तो जब हमारे यहां ही आपकसरकार और उससे जुड़े संगठनों को अल्पसंख्यकों का खलनायक साबित करेंगे और उसके अनुसार रिपोर्ट देंगे तो दुनिया की संस्थाएं उन्हें हाथों-हाथ लेंगी। कई बार भारत में इस सच को स्वीकार करने में बहुत लोग बचते हैं कि यहां के बारे में दुष्प्रचार में अपने ही लोगों की भूमिका सबसे ज्यादा होती है। इसके पहले भी अनेक घटनाएं आईं हैं। कोई छोटी सामान्य घटना देखते देखते-देखते दुनिया भर में सोशल मीडिया से लेकर  मुख्य मीडिया तक बड़ी घटना के रूप में प्रचारित हो जाती है और उसका उत्तर देना या खंडन करना कठिन हो जाता है। रिपोर्ट में जिन घटनाओं का उल्लेख है वह हमारे यहां के लोगों और संगठनों ने ही तैयार किया और बनाया है। विडंबना देखिए कि इसमें संघ प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत के कई बयानों को अल्पसंख्यकों पर जुल्म के प्रमाण के रूप में पेश किया गया है। संघ प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत के कई बयानों को प्रमाण के रूप में पेश किया गया है। एक उदाहरण देखिए– 2021 में भागवत ने कहा था कि देश में हिंदुओं और मुसलमानों के साथ धर्म के आधार पर अलग-अलग व्यवहार नहीं करना चाहिए और गोकशी के लिए गैर हिंदुओं की हत्या हिंदुत्व के विरुद्ध है। जरा सोचिए, जो संगठन वर्तमान शासन वाली पार्टी का भी उद्गम है ,उसके प्रमुख अगर ऐसी बातें कर रहे हैं तो सरकार और संगठन को किस तरह हिंसा को प्रोत्साहित प्रायोजित और संरक्षित करने वाला माना जाए? डॉक्टर भागवत ने भी यह नहीं कहा कि भारत में ऐसी घटनाएं आम हैं। भारत में ऐसी रिपोर्ट का समर्थन करने वाले इस बात का ध्यान रखें कि जब आप भाजपा, संघ और उससे जुड़े संगठनों पर अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा करने के आरोप को प्रचारित करते हैं तो चूंकि ये हिंदुओं के संगठन हैं इसलिए इससे विश्व भर में हिंदुओं की छवि विकृत होती है। इस कारण अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा ऑस्ट्रेलिया सहित कई यूरोपीय देशों में हिंदू नफरती अपराध तथा हिंसा के शिकार हो रहे हैं। अपनी उत्साहित प्रतिक्रिया देने से पहले इस पहलू पर अवश्य विचार करना चाहिए। दूसरे, अमेरिका के यहां अन्य धार्मिक समुदायों तथा अमेरिकी समाज के क्षेत्रों के साथ क्या कुछ हुआ हो रहा है इसे भी उजागर करना चाहिए। अनेक देशों के मुसलमानों को अमेरीकी भूमि पर उतरने के साथ हवाई अड्डों पर जिस तरह की सुरक्षा जांच का सामना करना पड़ता है उससे बड़ा भेदभाव कुछ हो नहीं सकता।  दूसरे धर्म के लोगों पर वहां नफरत से भरी हिंसा हो रही है। हिंदुओं के बारे में एक रिपोर्ट कहता है कि पिछले कुछ समय से उनके विरुद्ध घृणा, दुष्प्रचार और हिंसा में 1000 गुना की वृद्धि हुई है। भारत सदियों से अनेक पंथो, संप्रदायों का देश है। विविधता और सहिष्णुता इसकी संस्कृति थी है और रहेगी। इसके लिए हमें किसी बाहरी से सीख लेने की आवश्यकता नहीं है। जो समस्याएं उभरतीं हैं उनको निपटाने में भारत के लोग और संस्थाएं सक्षम हैं। ये बातें मुखरता से अमेरिकी कानों तक पहुंचाना आवश्यक हो गया है।

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