शुक्रवार, 12 जून 2015

तोमर की गिरफ्तारी को कैसे देखें

 

अवधेश कुमार

फर्जी डिग्री मामले में दिल्ली सरकार के कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की गिरफ्तारी ने दिल्ली की राजनीति के पहले से बढ़े तापमान को और बढ़ा दिया है। तोमर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 467, 468, 471, 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। ये जालसाजी, धोखाधड़ी और आपराधिक षड्यंत्र से जुड़ीं धाराएं हैं। दिल्ली सरकार ने केन्द्र सरकार तथा उप राज्यपाल के खिलाफ एक साथ कई मोर्चा पहले से खोल रखा है उसमें एक मोर्चा और जुड़ गया है। आम आदमी पार्टी ने सड़क पर उतरकर इसका विरोध किया है। उनके सारे नेताओं का स्वर एक ही है कि अगर मामला न्यायालय में है तो फिर गिरफ्तारी की आवश्यकता क्या थी? वैसे उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने तो इसे सरकार द्वारा सीएनजी घोटाले को लेकर मुकदमा दर्ज करने के फैसले से भी जोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल की भूमिका फिटनेस घोटाले में जाहिर हो रही है। सिसौदिया ने कहा कि यह बदले की कार्रवाई है। तोमर को झूठ बोलकर पुलिस ने घर से उठाया।

यह उस पार्टी के स्वभाव के अनरुप है। वह किसी मामले को सीधे तौर पर देखने की बजाय ऐसे हर फैसले और कदम को जो उसकी चाहत के विरुद्ध होतीं हैं, अपने किसी तथाकथित भ्रष्टाचार विरोधी कदम की प्रतिक्रिया में उठाया गया साबित करती है। इससे पूरा मामला गलत दिशा में जुड़ जाता है। ऐसा ही इस मामले में हुआ है। तोमर की गिरफ्तारी का विरोध आम आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार के मंत्रियों का अधिकार है और उन्हें करना चाहिए। किंतु उसे दूसरे मामले के साथ जोड़ने का अर्थ स्वयं को सरकार में होते हुए भी उत्पीड़ित साबित करना है। वास्तव में दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी पूरे मामले को इस तरह पेश कर रही है मानो केन्द्र सरकार दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग एवं अपने अधीन काम करने वाली दिल्ली पुलिस के द्वारा उसे परेशान कर रही है। कुमार विश्वास ने कहा भी कि 32 से 3 होने को प्रधानमंत्री पचा नहीं पा रहे हैं। दिल्ली के पुलिस आयुक्त बी. एस. बस्सी का कहना है जो भी हो रहा है वह कानून के अनुसार हो रहा है।

इस मामले के तीन पहलू हैं। पहला, तोमर की डिग्री फर्जी होने का आरोप, दूसरा, उनके खिलाफ मामले का कानूनी पहलू तथा तीसरा,  इसका राजनीतिक फलक। राजनीतिक फलक की चर्चा हम पहले कर चुके हैं। इसलिए पहले एवं दूसरे पहलू पर ही विचार किया जाए। जितेंद्र तोमर पर आरोप है कि उनकी ग्रैजुएशन और एलएलबी की डिग्री फर्जी है। बिहार की भागलपुर स्थित तिलका मांझी विश्वविद्यालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि जितेंद्र सिंह तोमर का अंतरिम प्रमाणपत्र जाली है और इसका संस्थान के रिकॉर्ड में अस्तित्व नहीं है। आज जो दिल्ली पुलिस ने बताया उसके अनुसार बार काउंसिल ने शिकायत थी कि जीतेन्द्र सिंह तोमर ने अधिवक्ता के रुप में निबंधन के लिए जो डिग्रियां और दस्तावेज पेश किया था वो फर्जी लगती हैं। इसके अनुसार ऐसी जो भी शिकायत आती है उसकी पहले प्रारंभिक जांच करते हैं और फिर उसके आधार पर कार्रवाई करते हैं। सबसे पहले अवध विश्वविद्यालय से बीएससी करने का इनका दावा गलत निकला। इसमे जों रॉल नंबर दिया गया है वह इनके नाम पर नहीं थी। वहां से इनके बीएससी करने का कोई प्रमाण नहीं है। दूसरे, एलएलएबी की डिग्री के बारे में तिलका मांझी विश्वविद्यालय से पता किया गया। वहां जो रोल नंबर अंकित है वह किसी दूसरे छात्र संजय कुमार चौधरी के नाम था। तीसरे, जो अस्थायी पमाण पत्र इनने दिया है उसे भी फर्जी पाया गया। कोई अस्थायी प्रमाण पत्र इनके नाम पर उस विश्वविद्यालय से निर्गत ही नहीं हुआ। तीसरे, इनके कागजात में एक माइग्रेशन प्रमाण पत्र लगा था बुंदेलखंड विश्वविद्यालय का। वहां पता चला कि इनके नाम से कोई माइग्रेशन प्रमाण पत्र नहीं निर्गत किया था। जो रॉल नंबर दिया गया था वह 2001 का था इनने 1999 में कानून की डिग्री ले ली थी। तो इस तरह पुलिस की मानें तो बीए से लेकर कानून की सारी डिग्री ही नकली है। इसके बाद पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर उनको गिरफ्तार किया है।

तो यह पुलिस का पक्ष है। जहां तक कानूनी प्रक्रिया का प्रश्न है तो पुलिस का कहना है कि उसके पास 11 मई को बार काउंसिल ने शिकायत की। हमने पूरा समय लेकर इसकी जांच की और 8 जून को मुकदमा दर्ज कर 9 जून को गिरफ्तार किया है।  यानी गिरफ्तार करने से पहले शिकायत की पूरी छानबीन की गई है। किसी भी विधायक की गिरफतारी के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष को पूरे मामले की जानकारी दी जाती है। पुलिस का कहना है इस मामले में सारी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया है। मामले की पूरी जानकारी विधानसभा अध्यक्ष और गृह मंत्रालय दे दी गई है। विधानसभा अध्यक्ष कार्यालय द्वारा जारी बयान में गिरफ्तारी को गैरकानूनी बताते हुए कहा गया है कि दिल्ली पुलिस को बिना सदन की अनुमति के किसी सदस्य को हिरासत में लेने का भी अधिकार नहीं है। इसमंे यह नहीं कहा गया है कि उन्हें सूचना नहीं दी गई। पुलिस कह रही है कि विधानसभा अध्यक्ष को इसकी बाजाब्ता जानकारी दी गई है।  इस मत पर सहमति नहीं है कि किसी सदस्य की गिरफ्तारी के लिए सदन की अनुमति चाहिए। विधानसभा सदस्यों के विशेषाधिकार हैं, पर वे इस सीमा तक जाते हैं कि पुलिस जांच में मामला साबित हो जाने पर भी उनकी गिरफ्तारी का आदेश सदन से लेनी हो ऐसा नहीं है। ऐसे मामलों में उच्चतम न्यायालय के कई फैसले आ गए हैं।

दिल्ली सरकार कानूनी प्रक्रिया को लेकर न्यायालय मेें जा सकती है। लेकिन कानूनी प्रक्रिया से ज्यादा महत्व यहां मामले का है। सवाल है कि अगर कोई ईमानदार है तो कानूनी प्रक्रिया का पालन करके भी उसे गिरफ्तार करना गलत होगा। इसके विपरीत यदि वह दोषी है, अपराध किया है तो कानूनी प्रक्रिया का पालन न होने के आधार पर उसे दोषमुक्त नहीं किया जा सकता। इसलिए हमारे लिए मामला महत्वपूर्ण है। सामान्यतः यह विश्वास करना कठिन है कि कोई पूरी तरह फर्जी डिग्रियांे के आधार पर जीवन की इतनी लंबी यात्रा कर सकता है। कहां फैजाबाद का महाविद्यालय, फिर बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, फिर बिहार का तिलका मांझी विश्वविद्यालय.......। इतनी लंबी यात्रा केवल ग्रेज्युएशन एवं कानून की डिग्री के लिए असामान्य सा लगता है। हम न्यायालय के फैसले के पहले कोई निष्कर्ष नहीं दे सकते। वैसे अगर तीनों विश्वविद्यालय से रिकॉर्ड न होने की रिपोर्ट है तो फिर पहली नजर में आप उसे गलत कैसै करार दे सकते है। किंतु यह भी तो संभव है कि कुछ लोगों ने तोमर के खिलाफ साजिश की हो। हालांकि ऐसा साजिश जिसमें तीनों विश्वविद्यालयों से रिकॉर्ड बदलवा दिए जाएं अविश्सनीय है। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा था कि मामला सामने आते ही उनने तोमर से पूछा। उनके अनुसार भाजपा के जिस व्यक्ति ने आरटीआई दाखिल की उसकी कॉपी और जवाब तोमर ने मुझे दिखाए। आरटीआई में सवाल किया गया कि क्या इस रोल नंबर पर तोमर को डिग्री मिली है? जब जवाब ना में मिला, तो मीडिया ने तोमर की डिग्री को फर्जी करार दिया। उन्होंने कहा कि तोमर का कहना है कि उनका रोल नंबर दूसरा था। कुछ ही दिन में सच्चाई सबके सामने आ जाएगी।

आज की स्थिति यह है कि दिल्ली बार काउंसिल ने तोमर का लाइसेंस सस्पेंड कर रखा है। तो हमें आम आदमी पार्टी एवं तोमर के दावों तथा पुलिस की छानबीन के बावजूद न्यायालय के फैसले की प्रतीक्षा करनी चाहिए। वैसे एक मामला तोमर के खिलाफ न्यायालय में चल रहा है। वहां तोमर ने अपना शपथ पत्र दिया था। वह मामला अलग है और पुलिस का वर्तमन मामला अलग। यह मामला बार काउंसिल द्वारा की गई शिकायत के आधार पर दायर हुआ है। समस्या दोनों मामलोें को मिलाने से हो रही है।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

 

 

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