गुरुवार, 1 फ़रवरी 2024

चुनावी बजट मे आर्थिक चुनौतियां

बसंत कुमार

वर्ष 2024 मे देश मे आम चुनाव होने वाले है और इसी माह देश का अंतरिम बजट पेश हो रहा है और लोगो के मन मे इस चुनावी बजट से बहुत अधिक अपेक्षाएं है वही इस बजट को पेश करते समय सरकार के समक्ष अनेक चुनौतिया भी है। बजट से पहले सरकार की ओर से जारी रिव्यू " इंडियन इकोनॉमिक रिव्यू " मे यह उम्मीद जताई गई देश आने वाले कुछ वर्षों में 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बन जायेगा। रिव्यू मे इस मुमकिन लक्ष्य को साकार करने वाली चीजो का जिक्र करते हुए सरकार के सकारात्मक दृष्टिकोण की सराहना की गयी। परन्तु कुछ क्षेत्र ऐसे भी है जहाँ देश को दुनिया की सबसे तेज इकोनामी का दर्जा हासिल होने के बावजूद, ध्यान देने की आवश्यकता है।

 पिछले 9 वर्षो मे संतोष जनक विकाश दर के बावजूद रोजगार के क्षेत्र मे विशेष प्रगति नही हुई है, आज भी देश में बेरोजगारी का स्तर 40% तक बताया जाता है और इतने ऊँचे दर की बेरोजगारी जहाँ युवाओ मे  निराशा व्याप्त करती है वही यह तेज विकाश दर को भी प्रभावित करती हैं। इससे यह स्पष्ट है कि उच्च विकास दर को जारी रखने या तेज करने के लिए युवाओ के रोजगार की ओर ध्यान देने की  आवश्यकता है, बेरोजगारी के साथ साथ सरकार को निजी पूजी निवेश मे बढ़ोत्तरी न होना भी चिंता का विषय है। कोविद्-19 के बाद सरकार के प्रयास से विकास दर मे जो बढ़ोत्तरी देखने को मिली वह सराहनीय है पर निजी निवेश मे कोई बढ़ोत्तरी के बगैर विकास दर को स्थायी बनाये रखना मुश्किल होगा। इसीलिए तेज विकास दर सुनिश्चित करने के लिए निजी निवेश की ओर सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिये।

संतोष जनक विकास दर के बावजूद उत्पादों के खपत के मोर्चे पर  चुनौती एक बड़ी समस्या है, मौजूदा वर्ष मे प्रा इवेट कंजम्पशन एक्सपेंडीचर5. 2 रहने का अनुमान है जबकि पिछले वित्तीय वर्ष मे 7.5% थी। यह इसलिए चिंताजनक भारत की अर्थ व्यवस्था मे खपत का योगदान लगभग 60% होता है। लेकिन देश की आवादी के निचले 50% के हाथ मे इतना पैसा नहीं बच पा रहा है कि कि लोग खुल कर खर्च करे। जब तक यह वर्ग अपना खर्च बढ़ाने की स्थिति में नही होगा तब तक उत्पादन और खपत मे बढ़ोत्तरी नही होगी और जब उत्पादन और खपत बढ़ जायेगा तो देश मे नये रोजगार पैदा होंगे तो देश में विकास का चक्र पूरा होगा, अर्थात जब समाज से बेरोजगारी समाप्त होगी तो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग खपत की स्थिति मे होगा तो हम तेज विकास दर प्राप्त करने की स्थिति मे होंगे।

भारत जैसे कृषि प्रधान देश मे जहा कृषि हमारी आर्थिक स्थिति का मुख्य आधार हुआ करती थी पर मौजूदा कुछ वर्षो मे कृषि क्षेत्र में आ रही गिरावट लगातार चिंता का विषय बनी हुई है, खराब मानसून की वजह से पिछली तिमाही में कृषि की विकाश दर 1.2% पर आ गयी उससे पहले की तिमाही ( अप्रैल- जून) मे यह दर 3.5% थी। ग्रामीण अर्थ व्यवस्था में खपत कमजोर होने के कारण कृषि क्षेत्र मे लगातार गिरावट आ रही है।  मोदी सरकार के कार्य काल में ग्रामीण उद्योग ने खादी ग्रामोद्योग निगम के माध्यम से काफी तरक्की की है पर टेक्सटाइल उद्योग उपेक्षा का शिकार हुआ है और बुनकरों की आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो गयी है, सरकार को इस क्षेत्र में ध्यान देने की आवश्यकता है। यहाँ तक की कपड़ा मंत्रालय के उपक्रम सेंट्रल काटेज इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन लि मे कर्मचारियो को कई माह से वेतन नही मिल पा रहा है, किसी देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का पता इस बात से लगता है कि वर्क फोर्स मे महिलाओ की कितनी भागी दारी है, पर इस समय भारत में वर्क फोर्स मे महिलाओ की भागीदारी आर्थिक ही नहीं सामाजिक दृष्टि कोण से चिंता की बात है। इस मामले मे हम पड़ोस के देश बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी पीछे है, जबकि विश्व बैंक के अनुसार महिलाओ की वर्क फोर्स मे भागीदारी की ग्रोथ रेट 15% होनी चाहिए जो की भारत मे नही है। जबकि देश की हर  राजनीतिक पार्टी महिलाओ की सत्ता में भागीदारी का स्वांग करती है ,पर कोई भी पार्टी अपने संगठन मे महिलाओ को 33% आरक्षण देने मे कृत संकल्प नही दिखाई देती। देश के प्रधानमन्त्री जी ने भी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान शुरु किया है पर देश की वर्क फोर्स मे महिलाओ की भागीदारी का ग्रोथ रेट विश्व बैंक के तय  मानको से भी कम होना निश्चय ही चिंता का विषय है।

चुनावी वर्ष मे हेल्थ सेक्टर मे वंछित सफलता न मिलना भी चिंता का विषय है, एन डी ए सरकार के नौ वर्ष के कार्यकाल के दौरान कई अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) खुले है कई अस्पताल खुले है पर क्या इनके अंदर एम्स के स्तर का इलाज हो रहा है इस पर संसय है। विश्व स्वास्थ संगठन के दिशा निर्देशों के अनुसार हेल्थ सेक्टर पर जी डी पी का 5% खर्च होना चाहिए पर हम इस पर बमुश्किल 2% खर्च कर रहे हैं और विभिन्न राज्यो मे सरकारी अस्पतालो और डिसपेंसरियो की हालत बहुत खराब है। देश मे शहरों के स्वास्थ पर स्वास्थ बजट का 75% खर्च किया जाता है और ग्रामीण क्षेत्र के स्वास्थ पर 25% खर्च किया जाता हैं जबकि शहरों और गावो मे मरीजो का अनुपात बिल्कुल उल्टा है इसलिए इस क्षेत्र मे भी और कदम उठाने की आवश्यकता है।

यह सही है कि अपने नौ वर्ष के कार्यकाल मे मोदी जी की सरकार ने बहुत सारी उपलब्धियां हासिल की है और देश की पहचान विश्व की पांचवी आर्थिक महाशक्ति के रूप मे स्थापित करने मे सफलता प्राप्त की है। पर युवाओ को रोजगार उपलब्ध कराने के मामले मे सरकार लोगो की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पायी है अत: सरकार से अपेक्षा की जाती हैं कि सरकार इन उपेक्षित क्षेत्रों पर ध्यान दे जिससे समस्त देश वासी सरकार के दो टर्म के कार्यकाल पर अपनी सकरात्मक राय दे सके। अनुकूल चुनावी संभावनाओ के चलते अंतरिम बजट में ऐसे कदम उठाये जाने आवश्यक है जिनसे देश की अर्थ व्यवस्था को बल मिले यद्यपि सभी देश वासी यह जानते है कि भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया मे सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है।

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