शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

500 एवं 1000 के नोट हटाने का फैसला जोखिम भरा साहसिक कदम

 

अवधेश कुमार

जब यह खबर आई कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कुछ मिनट में देश को संबोधित करेंगे तो किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि वे 500 एवं 1000 की करेंसी वापस लेंगे। दिन में उनकी सेना के तीनों प्रमुखों से मुलाकात हुई थी और कुछ लोग कयास यह लगा रहे थे कि शायद वे पाकिस्तान के साथ किसी कदम पर देश का साथ लेने की कोशिश करेंगे। यह कयास विफल हो गया। प्रधानमंत्री ने आरंभ से ही भ्रष्टाचार, कालाधन, नकली नोट तथा आतंकवाद के वित्त पोषण की चर्चा करते हुए निर्णायक कदम उठाने की बात की और फिर यह साफ कर दिया कि 500 और 1000 रुपए की पुरानी करेंसी का वैधानिक मूल्य समाप्त हो गया है। जाहिर है, यह ऐसी घोषणा थी जिसकी प्रतिक्रिया तूफानी होनी थी। प्रधानमंत्री के यह कहने के बावजूद कि तीन दिनों तक अनिवार्य आवश्यकताओं के स्थानों पर ये नोट चल जाएंगे लोगों की भीड़ एटीएम पर उमर पड़ी। निश्चय ही तत्काल इससे हमारे आम दैनिक जीवन में कई प्रकार की कठिनाइयां आएंगी। जैसे हमारे पास यदि 500 या 1000 के नीचे के नोट नहीं हैं तो हम सब्जी, फल, अनाज आदि कुछ नहीं खरीद पाएंगे। दो दिनों बाद जब बैंक खुलेंगे तो वहां भी धन निकालने की सीमा होगी, क्योंकि छोटी करेंसी की उपलब्धता में समय लगेगा। तो समस्याएं हमारे लिए काफी समय तक रहने वाली है।

वास्तव में प्रधानमंत्री का यह कदम साहसी एवं जोखिम भरा है। जोखिम इसलिए कि आम आदमी को कुछ दिनों तक कठिनाई झेलनी पड़ेगी और उसका गुस्सा सरकार के खिलाफ होगा। उदाहरण के लिए किसी के घर में शादी है तो वे खरीदारी कैसे करेंगे? वो तो बैंक से एक साथ मोटी रकम भी नहीं निकाल सकते हैं। ऐसे लोग भी टीवी पर आए जिनके पास 500 के नोट थे और रेस्तरां में उनको खाना नहीं मिला। ऐसी अनेक परेशानियां गिनाईं जा सकती हैं। लेकिन दूरगामी दृष्टि से भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा। हम जानते हैं कि बड़े नोट होने से भ्रष्टाचारियों को नकद लेने में सुविधा होती है और वो इसे आराम से छिपा सकते हैं। तो जिनने मोटी राशि छिपाई होगी उनकी जमा पूंजी खत्म। रखिए छिपाकर। इस तरह भ्रष्टाचार और कालाधन पर इससे एक बड़ा प्रहार होगा। मोदी ने कहा कि करोड़ों भारतवासियों की रग-रग में ईमानदारी दौड़ती है। वे चाहते हैं कि भ्रष्टाचार, कालेधन, जाली नोट व आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई हो। अफसरों के बिस्तरों के नीचे मिलने वाले करोड़ों रुपए से किसे पीड़ा नहीं होगी। वस्तुतः कालेधन में 500 और उससे बड़े नोटों का हिस्सा 80 से 90 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इसका सीधा असर गरीब व मध्यम वर्ग पर पड़ता है। भ्रष्टाचार से जमा धन या कालाधन दोनों बेनामी हवाला कारोबार को भी बल देते हैं। आतंकवादियों ने इसका उपयोग हथियारों की खरीद में किया है। तो इस एक कदम से आप एक साथ कई लक्ष्य पा सकते हैं। काला धन के कारण देश में जिस तरह जमीनों और मकानों के दाम आसमान चढ़ गए थे उनके धरातल पर आने की कल्पना की जा सकती है। यह माना जा सकता है कि अब ईमानदार लोगों के लिए शहरों में घर खरीदने का समय आ जाएगा।

बड़े नोटों को बंद करने की मांग एक वर्ग की ओर से लंबे समय से की जाती रही है। इसके पीछे तर्क कई थे। एक बड़ा तर्क यह था कि अगर 500 और 1000 के नोट नहीं होंगे तो बड़े घूसखोर 100-50 के नोट किस तरह लेंगे और कहां रखेंगे। 10 लाख का घूस भी बड़े थैलों में भरकर ले जाना पड़ेगा। नौकरशाहों के घरों में पिछले कुछ सालों में मारे गए छापों में घरों से करोड़ों की राशि 1000 और 500 की करेंसी के मिले हैं। तो सारा खेल बड़े करेंसियों का था। यूपीए सरकार ने 2011 में इन नोटों को बंद करने से इन्कार कर दिया था। इसके पीछे वित्त मंत्रालय ने तीन तर्क दिए थे। एक, बड़े नोटों को बंद करने पर मांग पूरी करने के लिए भारी संख्या में बाजार में छोटे मूल्यों के नोट लाने होंगे और सरकारी छापेखानों की क्षमता इतनी नहीं है कि नोटों की मांग पूरी की जा सके। दूसरे, देश के अधिकतर नागरिकों के पास यदि बैंक खाता हो तभी ऐसा किया जा सकता है, क्योंकि बैंकों से लेनदेन होने पर भारी संख्या में करेंसी की आवश्यकता नहीं रहती है। जिनके पास खाते हैं वे भी बैंकिंग सुविधाओं का उतना उपयोग नहीं करते और नकदी का ही प्रयोग करते हैं। तीन, नोट के लिए करेंसी कागज विदेशों से आते हैं। 1000 एवं 500 के नोट बंद करने के बाद छोटे नोट छापने के लिए करेंसी कागज का आयात भी कई गुना ज्यादा करना होगा। इस पर खर्च काफी आएगा।

ऐसा नहीं है कि वित्त मंत्रालय का तर्क गलत था। आज भी ये चुनौतियां हैं। इसीलिए कुछ दिनों तक सीमित मात्रा में बैंकों से नकदी निकालने की व्यवस्था की गई है। यानी जब तक छोटे करेंसी छप नहीं जाते, या 500 एवं 2000 के आने वाले नए नोट छापे नहीं जाते तब तक यह स्थिति रहेगी। ध्यान रखिए हर वर्ष औसत 12000,000000 (12 अरब) की संख्या में नोट छापा जाता है। आंकड़ें बताते हैं कि कुल प्रचलित नोटों की संख्या में 500 का अनुपात करीब 14 प्रतिशत प्रतिशत तथा 1000 का 5 प्रतिशत से ज्यादा है। लेकिन कुल मूल्य में करीब 48 प्रतिशत हिस्सा 500 के नोट का एवं करीब 35 प्रतिशत 1000 के नोट का था। इस समय यदि बाजार में करीब 14 लाख करोड़ रुपया 500 एवं 1000 के नोटों में उपलबध है। केवल 14 -15 प्रतिशत ही छोटे नोट हैं।

तो नोट छापने में समस्या है। इसलिए नए तरीके के 500 एवं 2000 के नोट निकालने की व्यवस्था की गई है। किंतु जैसा प्रधानमंत्री ने कहा रिजर्व बैंक इसका ध्यान रखे कि इसका अनुपात ज्यादा नहीं हो। 1, 2 और 5 रुपया के नोट को हटाने के पीछे तर्क यह दिया गया था कि प्रचलन में कुल नोट का 57 प्रतिशत अंश इनका था पर मूल्यों के अनुसार केवल 7 प्रतिशत। इतने कम मूल्य के नोट छापने का खर्च काफी बैठता है, इसलिए वापस ले लिया जाए। हालांकि 5 रुपए का नोट फिर से छापने का निर्णय किया गया। 1000, 5000 एवं 10000 तक के नोट अंग्रेजों के समय से प्रचलन में था, लेकिन जनता पार्टी की सरकार ने 1978 में इसे वापस ले लिया। 500 रुपए के नोट का प्रचलन तो 1946 में ही समाप्त हो गया था। इसे पुनः राजीव गांधी के शासनकाल में 1987 में तथा 1000 रुपए का भाजपा शासनकाल में सन् 2000 में आरंभ किया गया।

ध्यान रखिए 13 मई 2011 को इंगलैंड में 500 के यूरो नोट को प्रतिबंधित किया गया। सीरियस ऑर्गेनाइज्ड क्राईम एजेंसी (सोका) ने अपने आठ महीने के अध्ययन में पाया था कि इनका 90 प्रतिशत उपयोग अपराधी गैंेगों के लाभ को वैध बनाने के लिए हवाला कारोबारी यानी मनी लौंडरिग करने वाले करते हैं। तब सोका के उप निदेशक इआन क्रक्सटन ने बीबीसी से बातचीत में कहा था ,‘जब अपराधी ब्रिटेन या ब्रिटेन के बाहर भारी मात्रा में नकद ले जाना चाहते हैं तो उनके पास सबसे बढ़िया रास्ता उसका भार घटाना एवं बरामदी के जोखिम को कम करना होता है। 500 यूरो नोट वास्तव में अपराधियों की चाहत है।  तो जो निष्कर्ष इंगलैंड में आया है भारत में वह नहीं आएगा यह मानने का कोई कारण नहीं है। अमेरिका में भी 1969 से पहले 100 डॉलर के अलावा 500, 1000, 5000, 10000 एवं 1 लाख डॉलर तक के नोट थे। राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इन सारे नोटांे को प्रचलन से वापस ले लिया। निक्सन ने घोषणा किया कि इसका एकमात्र उद्देश्य माफियाओं का जीवन कठिन बनाना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के देश के नाम पूरे संदेश की ध्वनि भी लगभग यही है। यानी काला धन को कम करने के साथ भ्रष्टाचारियों, देश को लूटने वालों, हवाला कारोबारियों, भू-माफियाओं...का काम कठिन बनाने के लिए यह कदम जरुरी है। साथ ही आतंकवादियों और अंडरवर्ल्ड अपराधियों के वित्तपोषण पर भी इससे काफी हद तक रोक लगेगी। तो कुल मिलाकर मोदी सरकार का यह अत्यंत ही महत्वपूर्ण कदम है जिसका प्रभाव दूरगामी होगा। बावजूद इसके आम आदमी को महीनों होने वाली परेशानियों से बचाने के लिए आपातस्थिति में उपाय करने होंगे अन्यथा इससे सरकार के विरुद्ध असंतोष पैदा हो सकता है।   

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः011 22483408, 09811027208

 

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