गुरुवार, 2 नवंबर 2023

आखिर एक आधुनिक भारत की स्थापना हम क्यों नहीं कर पा रहे हैं

बसंत कुमार

जीवन की आखिरी संध्या पर व्यक्ति जीवन मे हानि लाभ का गुणा भाग करने के बजाय अपना ब्लड प्रेशर ठीक करने के लिए ऐसा वातावरण चाहते है जहा घंटे दो घंटे खुश रहे और हमने चार पांच दोस्तो ने शाम को टहलने  के बहने अपने बैठने का बंदोबस्त कर लिया जहा गप्पे मारना खुश रहना और टेंशन को दूर रखना ही हमारा ध्येय होता और यकीन मानिये शाम को घर जाते समय सबका बी पी समान्य होता जबकि एकाध अपवाद को छोड़कर सबकी उम्र 65 से 80 के बीच होती,कुछ दिन बाद एक मेम्बर और जुड़ गए अच्छा लगा की हमारी संख्या बढ़ी पर पता लगा कि वो गाव इसलिए नही जाना चाहते क्योकि वे अम्बेडकर के लोगो का व्यवहार बर्दाश्त नही कर पाते कभी उन्हे यह दर्द सताता कि दलित उनके यहा बरही/तेराही मे भोज मे बुलाने पर इसलिए नही आते कि खाने के बाद उन्हे पत्तल् फेकना पड़ेगा हमारे क्लब के नये सदस्य की इन शंकाओ ने यह सोचने को मजबूर कर दिया कि क्या कारण है हम एक आधुनिक भारत का निर्माण नही कर पा रहे है।
संविधान निर्माता डा अम्बेडकर जीवन पर्यंत एक अखंड भारत का निर्माण करना चाहते थे, इसी कारण जब वर्ष 1927 मे ब्रिटिश हुकूमत ने मुसलमानो के साथ दलितो के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की बात की और डा अम्बेडकर मुस्लिम लीग की तरह अछूतो के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की बात मान लेते तो पाकिस्तान की तर्ज पर देश का एक और विभाजन होता तो देश की स्थिति और विकट हो जाती! भारत की एकता हेतु उन्होंने गाँधी के साथ 1932 मे पूना पैक्ट किया और बटवारे के बाद भी अछूत भारत का हिस्सा बने रहे और उनके विकाश के लिए संविधान मे अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियो के लिए आरक्षण का प्रविधान किया गया! परन्तु कुछ रुढिवादी लोग देश मे आरक्षण के लिए डा अम्बेडकर को दोषी मानते है जबकि वस्तविकता यह है कि डा अम्बेडकर ने देश को एक और विभाजन से बचा लिया था! यदि विभाजन की सूरत मे धार्मिक आधार पूर्ण जनसंख्या की अदला बदली की उनकी बात मान ली गयी होती तो देश मे आज इस तरह के साम्प्रदायिक तनाव नही होता।
किसी भी देश और समाज मे समता, समानता, स्वतंत्रता और न्याय जैसे मानवीय मूल्य काफी महत्व रखते है , बाबा साहब अम्बेडकर ऐसे ही मानवीय मुल्यो का भारत देखना चाहते थे- जहा समता हो, बराबरी, सभी नागरिको को, सभी नागरिको को स्वतंत्रता हो और सभी मे बंधुत्व की भावना हो! क्षेत्र भाषा जाति लिंग् आदि के आधार पर कोई भेद भाव न हो, जहा महिलाओ का सम्मान हो, विविधता मे एकता हो! ऐसे वातावरण मे देश निश्चित रूप मे चहुंमुखी विकाश कर सकता है, परंतु भारतीय समाज मे हर क्षेत्र मे असमानता दिखाई देती है, हमारा समाज धर्मो और जातियों मे बटा है, यहाँ लोग पहले हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन समझते है और उसके बाद भारतीय है, भले ही यहाँ सबको अपना धर्म अपनाने की आजादी है पर यहाँ मजहब के नाम पर दंगे होते रहते है और फासी वादी तiकतो को किसी दलित द्वारा जाति वाद से असंतुष्ट होकर अपना धर्म त्याग कर दूसरा धर्म अपना लेने पर बर्दास्त नही होता होता है, आज भी विद्यालयो मे जाति के नाम पर छात्रावiस बन रहे है और आये दिन जाति के नाम पर सम्मेलन आयोजित होते रहते है कहने का तात्पर्य है कि पूरा हिंदू समाज जातियों मे बटा हुआ है!
जहां तक आर्थिक स्थिति की बात है तो भारतीय समाज मे आर्थिक समानता अपने विकराल रूप मे है! वैश्विक असमानता रिपोर्ट के मुताबिक 10% भारतीय आवादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57% हिस्सा है,  इन 10% मे 1% के पास 22% हिस्सा है, वही निचली 50% आवादी के पास केवल 13% हिस्सा है!  नीति आयोग की गरीबी सूचकांक(एम पी आई) रिपोर्ट के अनुसार उ प, बिहार और मध्य प्रदेश के 10 संयुक्त जिलों मे अन्य राज्यो के मुकाबले बेहद गरीबी है!  यह पहली एम पी आई रिपोर्ट है जिसके अनुसार ये गरीबी अनुपात करीब 25.01% है। बिहार मे लगभग51. 91% आबादी बहु आयामी गरीब है, इसी प्रकार यू पी के तीन जिलों मे गरीबी 70% है, मध्य प्रदेश के तीन जिलों मे गरीबी अनुपात, 60% है।
डाॅ. अम्बेडकर भारतीय समाज को वैज्ञानिक चेतना से लैश देखना चाहते थे पर 21 वी शताब्दी मे भी भरतीय समाज मे अंध विश्वास व्याप्त है और अंध विश्वास के प्रति लोगो की आसथा और बढ़ती जा रही है कभी कभी तो आदिवासी और शैक्षिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों मे महिलाओ को डायन कह कर मार दिया जाता है मासूम बच्चो की बलि दे दी जाती है, धर्म के नाम पर लोग मरने को उतारू हो जाते है, इसलिए डा अम्बेडकर ने शिक्षा पर जोर दिया और वे चाहते थे कि लोग शिक्षित होकर चेतन शील बने, वैज्ञानिक चेतना को जगाये, अंधविश्वास को दूर भगाये और अपने जीवन को बेहतर बनाये।
आज की राजनीति मे जिस तरह से धर्म और पूजी का इस्तेमाल हो रहा है वह हमारे संविधान और लोक तंत्र के लिए खतरनाख है, यहाँ राजनीतिक दल बiकायदा से समीकरण बनाते है कि इतने फिसदी वोट हिंदुओ के होंगे, इतने दलितो के, इतने मुसलमानो, सिखों के आदि, यही कारण है कि यहाँ पर धर्म और जाति के आधार पर ध्रुवीकरण किया जाता है, नेताओ और पूजी पतियों के गठजोड़ के चलते आम नागरिको के हितो का दोहन होता है! जब राजनीति अपने साथ धर्म और पूजी दोनों को एक साथ ले लेती है तो लोकतंत्र के विरुद्ध एक सशक्त त्रिभुज बनता है और मीडिया इस त्रिभुज को चतुर्भुज बनाने मे इनके साथ होता है और देश की गरीब जनता चौतरफा मार झेलने को मजबूर होती है और इसके परिणाम स्वरूप अम्बेडकर और संविधान सभा के सदस्यों के सपनो का भारत ध्वस्त हो रहा है, संविधान का नुक्सान हो रहा है और लोकतंiत्रिक् मुल्यो का ह्रास हो रहा है! मसल पॉवर और मनी पॉवर के अपवित्र गठजोड़ के कारण देश का लोकतंत्र तानाशाही मे बदल रहा है।

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