शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

कश्मीरी हिंदुओं की हत्या आतंकवादियों की रणनीति

 अवधेश कुमार

स्वतंत्रता दिवस के ठीक अगले दिन दक्षिण कश्मीर के शोपियां में आतंकवादियों द्वारा दो कश्मीरी हिंदू भाइयों पर अंधाधुंध गोलीबारी ने फिर वहां गैर मुस्लिमों के वर्तमान और भविष्य को लेकर कई प्रश्नों को खड़ा किया है। दोनों भाई अपने बाग में काम कर रहे थे कि आतंकवादियों ने उन पर हमला कर दिया जिसमें सुनील कुमार चल बसे और पितांबर नाथ का शोपियां के जिला अस्पताल में इलाज चल रहा है। ऐसा नहीं है कि इस बात की आशंका पहले नहीं थी। ध्यान रखने की बात है कि 1990 के दशक में पलायन की पूरी परिस्थिति होते हुए भी इन हिंदू परिवारों ने वहीं रहने का निर्णय किया था। चोटीगाम गांव के वे आज तक वहीं रह रहे हैं। उनकी संख्या भी ज्यादा नहीं है। केवल तीन परिवार हैं । यानी वे पलायन करने के बाद वापस आकर बसे नहीं है। जाहिर है, इन तीन दशकों से ज्यादा समय में इन परिवारों ने वहां बहुत कुछ झेला होगा। सबको झेलते हुए वहां रहना सामान्य जिजीविषा  की बात नहीं है। लेकिन जब कश्मीर धीरे-धीरे गैर कश्मीरियों के भी रहने के अनुकूल बन रहा है तो वहां के निवासी होने के नाते गैर मुस्लिमों या कश्मीरी हिंदुओं की हत्या उद्वेलित करती है। जिस कश्मीरी फ्रीडम फाइटर्स नामक आतंकवादी संगठन ने बयान जारी कर हमले की जिम्मेदारी ली है उसके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं है।  माना जा रहा है कि यह अन्य कई संगठनों के ही छद्म नाम हैं जिनका उद्देश्य कश्मीर का संपूर्ण इस्लामीकरण तथा भारत से अलगाव है।

जिस तरह कश्मीर में घर-घर तिरंगा अभियान गांव -गांव तक पहुंचा जगह-जगह तिरंगा यात्रा निकली उनको अलगाववादी आतंकवादी सहित सीमा पार के उनके प्रायोजकों के लिए सहन करना संभव नहीं है। तिरंगे का अर्थ भारत के प्रति लगाव और राष्ट्रवाद की भावना का संचार है। जम्मू कश्मीर को हर हाल में भारत से अलग करने के लिए षड्यंत्रों में लगी शक्तियों के लिए पहला सबसे बड़ा आघात 5 अगस्त, 2019 को लगा था जब जम्मू कश्मीर से धारा 370 को निष्प्रभावी कर दिया गया। तब आतंकवादी संगठनों और पाकिस्तान की बौखलाहट स्पष्ट रूप से सामने आई थी। ऐसा लगा था जैसे पाकिस्तान के सामने अपने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है। अंदर से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के लिए लंबे समय तक धारा 370 और कश्मीर सबसे बड़ा मुद्दा बना रहा। किंतु वे कुछ कर न सके। धीरे-धीरे जिस तरह वहां पुराने हिंदू धर्म स्थलों का उद्धार हो रहा है, लोग विधिपूर्वक अनुष्ठान कर रहे हैं ,उनकी लाइव तस्वीरें सामने आ रही हैं तथा लाल चौक से लेकर एक समय आतंकवादियों और अलगाववादियों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस सहित तिरंगे संबंधी उत्सवों तथा इसके नाम पर होने वाले अन्य आयोजनों में लोगों के उमड़ते समूह ने पाकिस्तानपरस्तों सहित सभी अलगाववादी- आतंकवादियों को अंदर से हिला दिया है। जाहिर है ,उन्हें इसका विरोध करना ही था।

कश्मीर में आज यह स्थिति तो है नहीं कि पहले की तरह हुर्रियत नेता आह्वान करें और लोग सड़कों पर उतर जाएं या पत्थरबाजी हो। तो आतंकवादी इसके लिए आसान निशाना ढूंढते हैं। लंबे समय से वहां रहने वाले हिन्दू परिवार जीवन रक्षा को लेकर अवश्य ही थोड़ा निश्चिंत मानसिकता में जी रहे होंगे। उसमें उन पर गोलियां चलाना इनके लिए आसान था। वास्तव में आतंकवादियों ने रणनीति के तहत कश्मीर में बाहर से आकर काम करने वालों या फिर गैर मुस्लिमों को अपना लक्ष्य बनाया है। इसी वर्ष देखें तो यह गैर मुस्लिमों यानी कश्मीरी हिंदुओं पर सातवां हमला था। 13 अप्रैल को कुलगाम में सतीश कुमार सिंह नामक डोगरा राजपूत की हत्या कर दी गई थी। इसके करीब 1 महीने बाद यानी 12 मई को चाडूरा में तहसीलदार कार्यालय में कश्मीरी हिंदू कर्मी राहुल भट्ट की हत्या हुई थी। उसने पूरे देश को उद्वेलित किया था। कश्मीरी पंडित सड़कों पर उतर कर वहां से पलायन की आवाज उठाने लगे थे। कुछ  चले भी गए। 15 मई को बारामुला में शराब की दुकान पर काम करने वाले रंजीत सिंह की हत्या की गई। 31 मई को कुलगाम  के एक विद्यालय में दलित अध्यापिका रजनी बाला की हत्या ने फिर सनसनी पैदा की और यह भी पूरे देश में गुस्से का कारण बना था। ठीक इसके 2 दिन बाद यानी 2 जून को कुलगाम में ही राजस्थान निवासी एक बैंक मैनेजर विजय कुमार की हत्या कर दी गई। इस तरह देखेंगे तो आतंकवादियों ने लक्ष्य बनाकर कश्मीरी हिंदुओं या गैर मुसलमानों पर हमले और उनकी हत्या की रणनीति बनाई और उस पर काम कर रहे हैं। जब भी ऐसी हत्याएं होंगी तो कश्मीरी हिंदुओं विशेषकर पंडितों की सुरक्षा का मामला सतह पर आएगा। कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति केपीएसएस ने फिर पहले के जैसा ही बयान दिया है कि कश्मीर ऐसी जगह है जहां पर्यटक सुरक्षित है पर कश्मीरी हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं। इसलिए कश्मीरी हिंदुओं को यहां से पलायन करना चाहिए। यह बात सही है कि केपीएसएस उन कश्मीरी हिंदुओं का संगठन है जिन्होंने वहां आतंकवादी हिंसा के समय में भी पलायन नहीं किया था। तो क्या यही एकमात्र चारा है? क्या कश्मीरी हिंदुओं का पलायन उनकी सुरक्षा और कश्मीर सुरक्षा की गारंटी है? क्या कोई भारतीय चाहेगा कि वहां से दूसरे मजहब के सारे लोग चले जाएं एवं कश्मीर के इस्लामीकरण का एजेंडा पूरा करने में सहभागी बनें?

ध्यान रखिए, कि चोटीगाम मे पिछले 4 अप्रैल को दवा विक्रेता बालकृष्ण पर उसके घर के बाहर ही गोलियां बरसाई गई थी जिसमें गंभीर रूप से घायल हो गए थे। स्पष्ट है कि उसके बाद में सुरक्षा की व्यवस्था हुई होगी। यह परिवार अर्जुन नाथ और श्रीजी भट्ट भाइयों का है। मृतक सुनील श्रीजी भट्ट का बेटा है और अर्जुन नाथ का बेटा जख्मी है। कहने की आवश्यकता नहीं की आतंकवादियों ने इनको भी गांव से निकालने के लिए ही हमला किया है। तो वहां से भागने का मतलब इन आतंकवादियों के एजेंडे को ही पूरा करना होगा। यह बात ठीक है कि किसी के परिवार पर जब हमले होते हैं तो उसके लिए डट कर खड़ा रहना मुश्किल होता है। त्रासदी की पीड़ा वही समझता है जिसे भुगतना पड़ता है। किंतु सब जानते हैं कि समय बदल रहा है। आतंकवादियों के लिए अब पहले की तरह बड़ी वारदात करना संभव नहीं रहा। अलगाववादियों के लिए पहले की तरह भारत विरोधी जुलूस निकालना असंभव है। पत्थरबाजी लगभग खत्म है। 

आतंकी हमलों की संख्या घटी है। बड़े हथियार और बारूदी सुरंगों के बड़े जाल कश्मीर में नहीं दिखते। तो यह सब बहुत बड़े बदलाव हैं। यही नहीं एक समय के दुर्दांत आतंकवादियों और अलगाववादियों बिट्टा कराटे, यासीन मलिक,  मसर्रत आलम आदि को जेल  में डाला जा चुका है। उन्हें  अपने अपराधों की सजा मिलनी सुनिश्चित हो रही हैं। इस बदलाव को स्वीकार करते हैं कोई फैसला करना चाहिए।  निस्संदेह, ऐसे समय परिवारों को हिम्मत देने, उनकी यथासंभव आर्थिक मदद करने ,उनके साथ खड़े होने, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का समय है। यह धारणा आम होनी चाहिए कि किसी की हत्या हो या हमला हो तो न केवल जम्मू कश्मीर प्रशासन बल्कि पूरा देश उसके साथ खड़ा है। इससे ही वहां भय और निराशा का माहौल कमजोर होगा तथा लोगों के अंदर विपरीत परिस्थिति में भी रुके रहने का साहस पैदा होगा। 

वैसे भी सरकार ने कश्मीरी हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए काफी कदम उठाए हैं। वहां कार्यरत कर्मचारियों को जिला केंद्रों पर स्थानांतरित करने से लेकर उनके निवास आदि को भी एक जगह करने की व्यवस्थाएं की गई हैं, की जा रही हैं। इसमें कश्मीरी पंडितों या अन्य संगठनों का भी दायित्व बनता है कि सरकार पर दबाव बनाते हुए भी साथ दें एवं कश्मीर को आतंकवाद एवं अलगाववाद से मुक्ति का सहयोगी बने रहें। जो समूह आतंक के भय से पलायन करेगा उसे आतंकवादी हमेशा डर आएंगे। यह न भूलिए कि आतंकवादी जम्मू कश्मीर में मुसलमानों की भी हत्या कर रहे हैं लेकिन वे कभी वहां से बाहर पलायन करने की आवाज नहीं उठाते। सभी गैर मुस्लिमों की सुरक्षा जितना संभव है सुनिश्चित हो इसकी मांग जायज है किंतु आतंकवादी और सीमा पार उनके प्रायोजकों के हौसलों को पस्त करना है, उन्हें अंतिम रूप से पराजित करना है तो तो वहां से भागने या इसकी आवाज उठाने से बचना ही होगा।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स,  दिल्ली -1100 92, मोबाइल -98110 27208

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