गुरुवार, 7 जनवरी 2021

यह अमेरिका में भविष्य के दृश्यों का ट्रेलर है

 

अवधेश कुमार

अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में जो कुछ हुआ उसकी निंदा के साथ विरोध भी होना चाहिए और हे रहा है। वास्तव में इसकी बुरे सपनों में भी किसी ने कल्पना नहीं की होगी। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चुनाव परिणाम को नहीं मान रहे हैं, उनके समर्थक इसे लेकर आक्रामक हैं यह पूरी दुनिया को पता है। बावजूद वे इस तरह संसद पर हमला करेंगे, हिंसा और तोड़फोड़ करेंगे, उसे घेर लेने की कोशिश करेंगे यह सब कल्पना से परे है। अमेरिका को दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र कहा जाता है। वहां घोषित चुनाव परिणामों को कोई राष्ट्रपति खारिज कर दे, अंतिम समय तक सत्ता छोड़ने के लिए तैयार नहीं हो तो मानना पड़ेगा कि अमेरिका के लोकतांत्रिक ढांचे के अंदर बहुत कुछ ऐसा उत्पन्न हो गया है जिसे समझने में हममें से ज्यादातर नाकामयाब हैं। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि इतिहास राजधानी में हुए आज के हिंसक वारदात को याद रखेगा जो हमारे देश के लिए महान अपमान और शर्म की बात है। यहां के चुनाव परिणाम के बारे में निराधार रूप से झूठ बोला जाता रहा है। उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने भी इसे देश के लोकतांत्रिक इतिहास का काला दिन कह दिया। वास्तव में ट्रंप समर्थकों के रवैए पर डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों ओर से नाराजगी प्रकट की जा रही है। 

अमेरिका के चरित्र को देखते हुए इस तरह की प्रतिक्रियाएं स्वाभाविक हैं। हालांकि अब ट्रंप ने कह दिया है कि जो बिडेन को सत्ता हस्तांतरित हो जाएगा। किंतु इससे यह नहीं मानना चाहिए कि ट्रंप और उनके समर्थकों ने गलती मान ली है। ट्रंप ने स्पष्ट कहा है कि हालांकि मैं चुनाव के नतीजों से पूरी तरह असहमत हूं, इसके बावजूद 20 जनवरी को व्यवस्थित तरीके से सत्ता का हस्तांतरण होगा। उन्होंने हार नहीं स्वीकार की है। चुनाव में धांधली के बारे में अपने दावों को दोहराते हुए ट्रंप ने कहा कि अमेरिका को फिर से महान बनाने के लिए यह हमारे संघर्ष की शुरुआत है। तो क्यो? आप दूसरे पक्ष को नजरअंदाज नहीं कर सकते। ट्रंप समर्थकों में रिपब्लिकन पार्टी के सदस्यों की ही बड़ी संख्या है। रिपब्लिकन नताओं में भी ऐसे हैं जो मानते हैं कि बिडेन की विजय धांधली के द्वारा हुई है। कैपिटल हील में नीले कुर्ते और लाल टोपी लगाए इतने बड़े समूह को देखने के बावजूद अगर हम नहीं समझ रहे तो मान लीजिए आपने ट्रंप के आविर्भाव के साथ वहां की राजनीति तथा स्वयं रिपब्लिकन पार्टी की वैचारिकता, व्यवहार तथा सदस्यों में आए बदलाव का गहराई से विश्लेषण नहीं किया है। नीला और लाल रिपब्लिकन पार्टी के झंडे का रंग है। यह सामान्य बात नहीं है कि लोग चुनाव में पराजित घोषित किए गए एक राष्ट्रपति को बनाए रखने के लिए इस सीमा तक जा रहे हैं। चुनाव परिणाम के बाद एक समाचार पत्र पॉलीटिको मॉर्निंग कंसल के सर्वे में बताया गया था कि निष्पक्ष चुनाव पर विश्वास न करने वाले रिपब्लिकन समर्थकों की संख्या चुनाव के दिन 35 प्रतिशत थी जो परिणाम के बाद 70 प्रतिशत हो गई। यह एक असाधारण स्थिति है। ध्यान रखिए कि हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव एवं सीनेट में रिपब्लिकन सांसदों ने ही कुछ राज्यों में बिडेन  की जीत के खिलाफ आपत्ति दर्ज कराई थी जिन्हें खारिज कर दिया गया। जिन राज्यों में मामले न्यायालय में ले जाए गए या उच्चतम न्यायालय में भी दो मामले गए वह सब अकेले ट्रंप के कारण नहीं हुआ। रिपब्लिकन पार्टी के लोग उसमें शामिल रहे हैं। यह सब कल्पना से परे था। 

अगर हम 3 नवंबर को हुए चुनाव के बाद से अब तक ट्रंप और उनके समर्थकों की गतिविधियों, उनके बयानों का सतही तौर पर भी विश्लेषण करें तो निष्कर्ष एक ही आएगा कि जो बिडेन के शपथ लेने के बावजूद वे हार नहीं मानेंगे। अमेरिका में मतदाता इलेक्टर्स का चुनाव करते हैं और इलेक्टर्स राष्ट्रपति का। इलेक्टर्स के मतों की संख्या 538 है। विजय के लिए 270 मत चाहिए। जो बिडेन को 306 और ट्रंप को 232 वोट मिलना घोषित किया गया। संसद का घेराव या हमले का मुख्य कारण यह था कि अमेरिकी संसद द्वारा जो बिडेन की जीत पर अंतिम संवैधानिक मुहर लगनी थी। ट्रंप नहीं चाहते थे कि ऐसा हो पाए। हालांकि उनके समर्थकों के हिंसक विरोध के बावजूद संसद ने अपना काम किया और जो बिडेन निर्वाचित घोषित कर दिए गए। उसके बाद वे क्या करते? तत्काल उनके पास यही रास्ता था कि शपथ लेने दो। अमेरिका की संवैधानिक परंपरा के अनुसार 20 जनवरी के पहले ट्रंप को व्हाइट हाउस छोड़ना पड़ेगा। अगर वह नहीं छोड़ते तो अमेरिका में पहली बार सुरक्षाबल एक निर्वतमान राष्ट्रपति को बाहर करते। अगर ऐसी नौबत आती  तो उनके समर्थक अमेरिका में क्या करते इसकी कल्पना से भी भय पैदा हो रहा था। चुनाव नतीजे आने के बाद से ही ट्रंप समर्थक जगह-जगह भारी संख्या में उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं। हर जगह रैलियों में भारी भीड़ देखी गई। कई जगह भीड़ हिसंक हुई। उसका विरोधियों से टकराव भी हुआ। पुलिस को जगह-जगह हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। यह क्रम जारी है। चूंकि ऐसा अमेरिका में पहले कभी हुआ नहीं इसलिए तटस्थ लोग इसे हैरत भरी दृष्टि से देख रहे हैं। ट्रंप के बयानों को देखिए, उनके अब तक सामने आए चरित्र का विश्लेषण करिए तथा उनके कारण अमेरिका में आए वैचारिक बदलाव को पढ़िए तो आपको यह सब अजूबा नहीं लगेगा। 

निस्संदेह, लोकतंत्र में विश्वास करने वाले हम सब ट्रंप और उनके समर्थकों की निंदा करेंगे। निंदा और आलोचना करते हुए हमें यह भी विचार करना होगा कि आखिर ऐसी स्थिति क्यों पैदा हुई है? अगर ट्रंप पूरी तरह गलत हैं तो इतनी भारी संख्या में लोग उनके लिए मरने-मारने तक पर क्यों उतारु हैं? वे क्यों चाहते हैं कि चाहे जो करना पड़े ट्रंप ही राष्ट्रपति रहें? वास्तव में ट्रंप ने चुनाव प्रचार से लेकर राष्ट्रपति के पूरे कार्यकाल में अपनी भूमिका से अमेरिका के राजनीतिक-सामाजिक मनोविज्ञान को व्यापक पैमाने पर बदल दिया है। अमेरिका फर्स्ट का नारा देते हुए उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान ही यह भावना पैदा किया कि हमारे देश में नेताओं,पत्रकारों और बुद्धिजीवियों का बड़ा वर्ग ऐसा है जो दुनिया में अपने को शांति का मसीहा, मानवाधिकारवादी आदि साबित करने के लिए अमेरिका के राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाता है। उन्होंने जिस तरह मुखर होकर इस्लामिक आतंकवाद पर हमला बोला उसने अमेरिकी जनता को व्यापक पैमाने पर आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि कुछ देशों के नागरिकों के अमेरिका आने पर अनेक बंदीशें होंगी और व्यवहारिक रूप में कुछ लागू भी किया। इन सबसे रिपब्लिकन पार्टी ही नहीं, पूरी राजनीति और अमेरिकी समाज में जो आलोड़न हुआ, जिस तरह की सोच घनीभूत हुई उन्हीं की परिणति चुनाव परिणामों के बाद से संसद पर हमले तक दिख रही है। आप ट्रप को पसंद करें या नापसंद उन्होंने 4 साल के कार्यकाल में अमेरिका को आर्थिक रूप से संभाला है, विदेश नीति को अमेरिकी हितों के अनुरूप पटरी पर लाया है, रक्षा ढांचे और नीतियों को पहले के कई राष्ट्रपतियों से बेहतर किया है तथा आंतरिक सुरक्षा को पहले से ज्यादा सशक्त किया है। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश इजराइल के साथ संबंध विकसित करेंगे इसकी भी कल्पना नहीं की जा सकती थी। ट्रंप की कुशल विदेश नीति के कारण ही यह असंभव संभव हुआ। वे जिस ढंग से मुखर होकर अमेरिका विरोधी देशों पर हमला करते रहे, चीन को लगातार कटघरे में खड़ा किया, उस पर व्यापारिक प्रतिबंध लगाए.. उन सबका व्यापक समर्थन अमेरिका में है। अगर कोरोना अमेरिका में भयावह रूप नहीं लेता तो ट्रंप को कोई पराजित नहीं कर सकता था।  तो फिर?

तो अमेरिका की राजनीति में ट्रंपवाद के एक नए दौर की शुरुआत हो गई है। एक ऐसे दौर की जिसमें एक नेता आने वाले समय में ऐसी राजनीति को अंजाम देगा जिसका हम आप पहले से अनुमान नहीं लगा सकते। वह अमेरिकी शासन के उन कदमों का विरोध करेगा, अपने समर्थकों को उनके खिलाफ सड़क पर उतारेगा जो उसे स्वीकार नहीं होगा। इस तरह अमेरिकी संसद के घेराव या उस पर हमले को आप भविष्य की घटनाओं का ट्रेलर मान सकते हैं। इसके साथ अमेरिका में टकराव की राजनीति आगे बढ़ गई है जिसकी एक वैचारिकता है। ट्रपं निवर्तमान राष्ट्रपतियों के विपरीत राजनीति में सक्रिय रहेंगे और अगला चुनाव लड़ने की कोशिश करेंगे। अगर रिपब्लिकन पार्टी उनकी उम्मीदवारी नकारती है तो संभव है कि वे नई पार्टी बना कर स्वयं चुनाव मैदान में उतर जाएं। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रवाद पर आधारित अपने विचारों, कदमों तथा भविष्य की नीतियों की घोषणाओं से समर्थकों का जितना व्यापक, मुखर और आक्रामक समूह खड़ा कर दिया है वह आसानी से लुप्त नहीं हो सकता। लंबे समय तक ट्रंपवाद अमेरिकी राजनीति में गूंजित होगा। इससे निपटने के लिए वहां प्रशासन को तो नए सिरे से तैयारी ही होगी, राजनीति को भी कुछ नए तौर – तरीके विकसित करने होंगे।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइलः9811027208, 8178547992


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