गुरुवार, 6 मार्च 2014

यह राजनीतिक आचरण भयभीत करता है

अवधेश कुमार

जरा स्थिति देखिए। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल गुजरात के अहमदाबाद हवाई अड्डे पर उतरते हैं, वहां से मेहसाणा होते पाटन और भुज जाते हैं, फिर आगे की यात्रा करते हैं, लगातार पत्रकारों से बातचीत करते हैं, लेकिन उनकी पार्टी दिल्ली से लेकर कई स्थानों पर इस तरह उत्तेजना में प्रदर्शन करने लगती है मानो उनके साथ कुछ अनहोनी हो गई। यह क्या है? जिस तरह से आम आदमी पार्टी ने भाजपा कार्यालयों के सामने हिंसक और उग्र प्रदर्शन किया वह हर दृष्टि से अस्वीकार्य है। हां, भाजपा के लोगों को भी जितना संयम और धैर्य दिखाना चाहिए नहीं दिखा पाए। उनकी ओर से भी आप के लोगांे पर हमला किया जाना असभ्य आचरण ही है। किंतु आप के नेताओं कार्यकर्ताओं ने जो कुछ किया और जिस तरह किया वह वाकई भयभीत करने वाला अचारण है। यह अराजनीतिक रवैया है जिसके लिए लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं। विरोध में नारा लगाना और प्रदर्शन करना, धरना देना.....सामान्य बात है। हालांकि उसमें भी मान्य राजनीतिक आचरण यही है कि यदि आपको पुलिस रोकती है तो रुक जाएं। इसके विपरीत आम आदमी पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं के उग्र काफिले ने जिस तरह वहां बैनर फाड़े, गेट तोड़कर घुसने की कोशिश की उसे हम मान्य विरोध प्रदर्शनों की श्रेणी में नहीं रख सकते। 

दिल्ली पुलिस मामले की छानबीन कर रही है, लखनऊ में भी प्राथमिकी दर्ज हुई। पुलिस अपने तरीके से कार्रवाई करती है, करेगी। दिल्ली पुलिस का कहना है कि आप के लोगों ने पुलिस की पूर्व सूचना दिए बिना जिस तरह से भाजपा कार्यालय के बाहर बैनर फाड़े, दरवाजे के नुकसान पहुंचाने की कोशिश की, 

पत्थरबाजी की वह सब आपराधिक कृत्य है और उसके अनुसार कार्रवाई होगी। लेकिन इस पूरे प्रकरण मंे मुख्य बात कानूनी प्रक्रिया या कानून का उल्लंघन नहीं, राजनीतिक आचरण है। जिनने भी वो दृश्य देखा होगा उनके अंदर अवश्य ही सिहरन पैदा हो जाएगी कि आखिर हमारे देश में कैसी राजनीतिक संस्कृति विकसित हो रही है। आप के नेता कह रहे हैंं कि वे शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने गए थे। वह किसी भी दृष्टि से शांतिपूर्ण प्रदर्शन नहीं था। दूसरे, आप क्यों गए थे? किसी पार्टी के कार्यालय पर उस तरह का विरोध होने का ठोस कारण भी तो चाहिए। केवल यह कहने से कि विरोध हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है, इसका औचित्य साबित नहीं हो जाता। वहां स्थिति नियंत्रण से बाहर इन्हीं के कारण हुई और पुलिस को पानी की बौछार करनी पड़ी। आप के कार्यकर्ता को उस गाड़ी पर चढ़कर पानी की दिशा को भाजपा कार्यालय के अंदर मोड़ते देखा जा सकता है। अरविन्द केजरीवाल कहते हैं कि वे क्षमा मांगते हैं क्योंकि उनके कुछ कार्यकर्ता ने एक दो पत्थर चाल दिया। जहां पूरी भीड़ंत की स्थिति है वहां आप एक दो पत्थर की बात कर रहे हैं! वहा!  

जाहिर है, क्षमा मांगना आप की राजनीतिक रणनीति का ही हिस्सा है। आम आदमी पार्टी का आरोप था कि उनके संयोजक अरविन्द केजरीवाल को गुजरात के पाटन के राधनपुर में गिरफ्तार किया गया। अरविन्द केजरीवाल चार दिनों के दौरे पर गुजरात पहुंचे। संयोग से उनके पहुंचने के साथ चुनाव आयोग ने चुनाव की तिथि घोषित कर दी और आचार संहिता लागू हो गया है। आचार संहिता लागू होने के बाद प्रशासन चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुसार काम करता है। आयोग ने आचार संहिता के तहत राजनीतिक दलों के रोड शो, जुलूस, सभाओं आदि के बारे में कुछ नियम बनाएं हैं और सभी दलों की उसमें सहमति रही है। एक साथ गाड़ियों का उतने लंबे काफिले के बाद पुलिस प्रशासन पूछताछ करेगी। अरविन्द को यह कहते सुना जा सकता है कि आप हमें कोड ऑफ कन्डक्ट मत समझाइए। वे राधनपुर थाने से आधे घंटे में बाहर आ गए थे। पुलिस ने केजरीवाल को हिरासत में लेने तक से इनकार किया है, गिरफ्तारी तो दूर की बात है। स्वयं अरविन्द थाना से निकलते समय यह कहते सुने जा रहे हैं कि मैंने पुलिस को समझा दिया है कि आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है। उसके बाद इतने बावेला का क्या औचित्य था? किंतु उन्होंने अपनी ओर से यह जोड़ दिया कि नरेन्द्र मोदी जी के इशारे पर ऐसा किया गया वंे घबरा गए हैं। 

पुलिस के आम व्यवहार में परिवर्तन होना चाहिए इसकी आवाज लंबे समय से उठ रही है। पुलिस वहां दूसरा रास्ता भी अपना सकती थी। यह पहली बार नहीं है जब किसी नेता को रोका गया है। पिछले लोकसभा चुनाव में ही पटना गांधी मैदान में लालकृष्ण आडवाणी के भाषण को वहां के जिलाधिकारी, जो कि चुनाव अधिकारी भी था, दो मिनट से ज्यादा नहीं चलने दिया, क्योंकि आचार संहिता के अनुसार किसी सभा के लिए रात की समय सीमा खत्म हो चुकी थी। आडवाणी ने उसका पालन किया। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। वस्तुतः राजनीतिक जीवन में यह आम घटना है। आचार संहिता लागू हो जाने के बाद तो बड़े-बड़े नेताओं के जुलूसों, सभाओं को रोक दिया जाता है। कई बार नेताओं के जुलूस को रोककर उन्हें थाने ले जाया जाता है। आम आदमी पार्टी का व्यवहार सबसे अलग है। उसे लगता है कि केवल उसके नेता के साथ ही ऐसा हुआ है तो इसका कोई जवाब नहीं दिया जा सकता है। दूसरी पार्टियों के नेताओं को रोके जाने पर कार्यकर्ता उसका विरोध भी करते हैं, पर इस तरह नहीं कि आप किसी पार्टी के कार्यालय पर हमले की स्थिति पैदा कर दें। गुजरात पुलिस का कहना है कि वे बिना इजाजत रोड शो कर रहे थे। टीवी चैनलों में यह दिख रहा था कि उनके जुलूस से यातायात पूरी तरह जाम हो गया था। यह बहस का विषय हो सकता है कि आचार संहिता का उल्लंघन है कि नहीं? केजरीवाल का तर्क है कि उनकी गाड़ियों पर कहीं झंडा और पोस्टर नहीं था, अंदर भी एक स्टिकर तक नहीं था। उनके अनुसार वे चुनाव प्रचार में नहीं, बल्कि मोदी का विकास ढूंढने आए हैं। 

इस तर्क से कौन सहमत हो सकता है। संभव है चुनाव तिथियों की घोषणा होने के बाद अचार संहिता के उल्लंघन से बचने के लिए ऐसा किया गया हो। केजरीवाल की पूरी गतिविधि अपनी पार्टी के प्रचार और मोदी को कठघरे में खड़ा करने वाली है। यह चुनाव प्रचार नही ंतो और क्या है? भले आप नाम जो भी दे दीजिए। कहने का तात्पर्य यह है कि केजरीवाल या उनकी पार्टी नैतिकता, पारदर्शिता की भले जितनी बातें करें, उनके ये सारे आचरण पाखंडपूर्ण हैं। यह तो संभव नहीं कि गुजरात सरकार जानबूझकर केजरीवाल को रोकने की कोशिश करेगी। वह क्यों चाहेगी कि आम आदमी पार्टी को अनावश्यक प्रचार मिले। यही आप की कार्यशैली है। किसी न किसी बहाने कुछ ऐसा घटित कराने की कोशिश करो जिससे स्वयं को उत्पीड़ित एवं उसके विरुद्ध क्रांतिकारी होने की छवि प्राप्त हो। उस घटना पर ऐसी प्रतिक्रिया दो कि फिर कई दिनों तक सुर्खियां मिलतीं रहे। यही उनने किया है। 

किंतु इस रणनीति में आप जिस तरह की उग्र और आक्रामक राजनीतिक संस्कृति पैदा कर रही है वह डरावनी है। शेष पार्टियों का क्षरण एक बात है, लेकिन सबको दुश्मन मानकर व्यवहार करने से घृणा और हिंसा बढ़ती है। आम आदमी पार्टी अब सत्ता की दलीय राजनीति में आ गई है तो उसे आम राजनीतिक व्यवहार भी सीखनी होगी। वो गांधी और जेपी का नाम लेती है। न गांधी ने कभी किसी के कार्यालय पर हमला करवाया, न जेपी ने। उनके अंादोलन में सात्विक अहिंसा का भाव था। आप में सात्विकता का रंच मात्र भी नहीं है। वह बिना लाठी गोली चलाए ही हिसंक दिखती है। इससे पूरा राजनीतिक वातावरण दूषित और विकृत होगा। निस्संदेह, भाजपा का रवैया भी अनुचित था, उसे पुलिस पर निर्भर रहना चाहिए था। अगर इस तरह हमले का जवाब प्रतिहमला से दिया जाएगा तो फिर राजनीति का दृश्य कैसा होगा! इसलिए यह घटना सभी पार्टियों के लिए सबक बनना चाहिए और कभी ऐसे प्रदर्शन या हमलें हों तो उसका जवाब हिंसा से नहीं दिया जाए।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208


http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/