शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

खोया तो चीन ने है हमने नहीं

अवधेश कुमार

चीनी सैनिकों का पूर्वी लद्दाख के इलाके में अपने पूर्व निर्धारित एवं मान्य स्थानों की ओर लौटने की सूचना निस्संदेह, तत्काल राहत देने वाली है। पिछले साल जून में गलवान घाटी में भारत के 20 जवानों की शहादत को कौन भारतीय भूल सकता है? उसके बाद पूरे देश में चीन के विरुद्ध आक्रोश का बना माहौल पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। यह ऐसी टीस है जो लंबे समय तक सालेगी और इसके गंभीर मायने हैं। हालांकि धोखे से किए गए बर्बर हमलों का भारतीय जवानों ने भी  मुंहतोड़ जवाब दिया था और सूचना यही है कि उनकी क्षति ज्यादा हुई। यह बात अलग है कि चीन जैसे बंद देश से वहां के मरने वालों जवानों के बारे में कोई खबर बाहर नहीं आ पाई। तनाव इतना बढ़ गया था कि अगस्त-सितंबर में 45 साल बाद भारत-चीन सीमा पर गोलियां चलीं। हालांकि इसकी पहली सूचना 10 फरबरी को चीन की ओर से ही आई। वहां के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव खत्म होने तथा सेना वापसी की औपचारिक जानकारी दी। किंतु भारत के लोगों के लिए इस पर विश्वास करना कठिन था क्योंकि इसके पहले कई बार सहमति होने के बावजूद चीन ने उसका पालन नहीं किया था। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में सेनाओं के झड़प से पूर्व की स्थिति में जाने के समझौता होने की पुष्टि कर दी। 

बहरहाल, रक्षा मंत्री का यह कहना सही है कि इस समझौते से भारत ने कुछ नहीं खोया है। हालांकि भारत में अब रक्षा-सीमा सुरक्षा सहित विदेश नीति को लेकर भी राजनीतिक दल अपने बयानों और प्रतिक्रियाओं में संयम नहीं बरतते। यही कारण है कि रक्षा मंत्री द्वारा संसद में यह कहने के बावजूद कि हम किसी भी देश को अपनी एक इंच जमीन नहीं लेने देंगे सरकार के इरादे पर प्रश्न उठाया जा रहा है। समझौता के बाद दोनों देशों की जो टुकड़ियां एक-दूसरे के एकदम करीब तैनात थीं वहां से पीछे हटते हुए पूर्व स्थिति में जाएंगी। पैंगोग झील इलाके में चीन अपनी सेना की टुकड़ियों को उत्तरी किनारे में फिंगर 8 के पूरब की दिशा की तरफ रखेगा। मई के पूर्व वर्षों से यही स्थिति थी। भारतीय सेना फिंगर 3 के पास स्थित स्थायी धन सिंह थापा पोस्ट पर आ जाएगी। पेंगोंग झील के दक्षिण किनारे से भी दोनों सेनाएं इसी तरह की कार्रवाई करेंगी। हां, इसके समय का खुलासा अभी नहीं हुआ है। इसी तरह चीन ने 2020 में दक्षिण किनारे पर जो भी निर्माण किए हैं उन्हें हटाया जाएगा और पुरानी स्थिति कायम की जाएगी। दोनों देश पेंगोंग के उत्तरी इलाके पर पेट्रोलिंग को फिलहाल रोक देंगे। पेट्रोलिंग जैसी सैन्य गतिविधियां तभी शुरू होंगी जब राजनीतिक स्तर समझौता हो जाएगा। सीमा की गहरी समझ तथा चीन एवं भारत की सेनाओं की तैनात स्थिति को समझने वाले जानते हैं कि तत्काल इससे बेहरत समझौता नहीं हो सकता। 

ठीक है कि चीन ने समझौते में जो कहा वह करेगा ही यह निश्चयात्मकता के साथ कोई नहीं कह सकता। राजनाथ सिंह ने भी यही कहा कि उम्मीद है कि गतिरोध से पहले वाली स्थिति बहाल हो जाएगी। कोई नहीं कहता कि चीन के साथ सीमा तो छोड़िए वास्तविक नियंत्रण रेखा या एलएसी विवाद खत्म हो गया है। उस दिशा में यह पहला कदम है। रक्षा मंत्री ने भी अपने बयान में कहा कि एलएसी पर कुछ पुराने मसले बचे हुए हैं। आगे इस पर बात होगी। लेकिन अभी तो पूरा फोकस पूर्वी लद्दाख में चीन की धृष्टतापूर्ण कार्रवाइयों को खत्म कराने पर था और वही हुआ है। अगर चीनी सैनिक झील के उत्तरी तट पर फिंगर 8 के पूरब की तरफ लौट जाएंगे तथा अप्रैल 2020 के बाद झील के उत्तरी और दक्षिणी तटों पर बनाए गए किसी भी संरचना को नष्ट कर देगा तो फिर इसमें बचा क्या है? सच तो यह है कि चीन ने उत्तरी तट पर जो अग्रिम स्थिति यानी ऐडवांस पोजिशन हासिल किया था उसे छोड़ेगा। तो फिर खोया किसने इसका उत्तर आप आसानी से दे सकते हैं। वास्तव में गलवान की झड़प के बाद चीन ने बड़ी तादाद में इन इलाकों में जवानों को तैनात कर दिया था।  जवाब में हमने भी जबरदस्त तैनाती की और उसी का परिणाम है कि चीन को अपनी पूरी योजना बदलनी पड़ी है। सच तो यही है कि चीन कसमसाकर पीछे हटने को मजबूर हुआ है। सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इलाकों की पहचान कर हमारी सेनाएं तैनात हैं और इसी कारण भारत की बढ़त है।   

3,488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा अधिकतर जगह जमीन से गुजरती है, मगर पूर्वी लद्दाख में आने वाली करीब 826 किलोमीटर लंबी नियंत्रण रेखा के लगभग बीच में पैंगोंग झील पड़ती है। यह एक लंबी, गहरी और लैंडलॉक्ड (जमीन से घिरी हुई) झील है। 14 हजार 270 फीट की ऊंचाई पर स्थित 134 किलोमीटर पेंगोंग झील लद्दाख से लेकर तिब्बत तक फैला हुआ है। 604 किलोमीटर क्षेत्र में फैली यह झील कहीं-कहीं 6 किलोमीटर तक चौड़ी भी है। इसमें सम्पूर्ण रेखांकन संभव नहीं नहीं। झील के दो-तिहाई हिस्से पर चीन का नियंत्रण है और शेष भारत के हिस्से आता है।  यहां दोनों देश नावों से पेट्रोलिंग करते हैं। यह एक वीरान दुर्गम पहाड़ियों वाला इलाका है जिनके स्कंध निकले हुए हैं। इन्हें ही फिंगर एरिया कहा जाता है। ऐसे 8 फिंगर एरिया हैं, जहां भारत-चीन सेना की तैनाती है। भारत की नियंत्रण रेखा फिंगर 8 तक है लेकिन नियंत्रण फिंगर 4 तक ही रहा है। भारत की एक स्थायी चौकी फिंगर 3 के पास है। चीन की सीमा चौकी फिंगर 8 पर हैं लेकिन नियंत्रण रेखा के फिंगर 2 तक उनका दावा है। फिंगर 4 में एक समय उसने स्थायी सरंचना बनाने की कोशिश की थी जिसे जिसे भारत की कड़ी आपत्ति के बाद हटा लिया गया। भारत फिंगर 8 तक पैट्रोलिंग करता रहा है मगर यह पैट्रोलिंग पैदल होती है। पिछले साल मई में फिंगर 5 एरिया में दोनों सेनाएं आमने-सामने आ गई थीं। चीन ने अप्रैल-मई से ही फिंगर 4 तक अपनी सेना को तैनात कर रखा था। कहने की आवश्यकता नहीं कि चीन के जवाब में भारत ने भी चोटियों पर भारी संख्या में जवान तैनात कर दिए। 

जिस तरह के प्रश्न भारत में उठ रहे हैं वैसा चीन में नहीं उठ सकता। मूल बात है अपने देश की क्षमता को पहचानना और विश्वास करना। प्रमुख देशों ने भी पूर्वी लद्दाख से लगी नियंत्रण रेखा पर चीन से निपटने में भारत की दृढ़ता का लोहा माना है। चीन ने भी कल्पना नहीं की थी कि काफी विचार-विमर्श, योजना और सैन्य तैयारी से दिए गए धोखे के खिलाफ  भारत इस तरह डटकर मरने-मारने की अंतिम सीमा तक चला जाएगा। भारत ने जिस तरह सेना के सभी अंगों को सक्रिय किया, आकाश से लेकर धरती और पानी में जैसी जबरदस्त मोर्चाबंदी की उसकी उम्मीद दुनिया में किसी देश को नहीं थी। आज चीन की पूरी योजना जिसे हम साजिश मानते हैं, विफल हो चुकी है। भारत तो जवाब देने के लिए मजबूर था। उनको सबक देने के लिए जवाबी कार्रवाई में अपनी तैनाती की। वे हट जाएं तो हमें वापस पूर्व स्थिति में जाना ही है। वे बात चाहते थे लेकिन भारत ने स्पष्ट किया कि पूर्व स्थिति बहाल होने के 48 घंटे के अंदर फिर बातचीत शुरु होगी और उन्हें मानना पड़ा। बतचीत में भी भारत ने स्पष्ट किया कि समस्याओं का समाधान तीन आधारों पर हो सकता है।  एक, दोनों देश नियंत्रण रेखा को मानें और उसका आदर करें। यानी गलवान का अपराध और विश्वासघात दोबारा न हो। दो, कोई भी देश वर्तमान स्थिति बदलने की एकतरफा कोशिश न करे। तथा तीन, दोनों देश सभी समझौतों को पूरी तरह मानें और पालन करें। 

वास्तव में भारत ने चीन के साथ सीमा व्यवहार में डोकलाम के समय से गलवान तक जिस तरह का कूटनीतिक, सैन्य और राजनीतिक आत्मविश्वासपूर्ण व्यवहार किया है उसने विश्व के बड़े-बड़े रक्षा विश्लेषकों को हैरत में डाल दिया। चीन को भी भारत के साथ सीमा और सैन्य व्यवहार पर अपनी पूरी रणनीति नए सिरे से बनाने को विवश होना पड़ रहा है। वर्तमान समझौता उसी की परिणति है। इसमें खोने के लिए केवल चीन के पास ही कुछ था। चीन के साथ सीमा विवाद इतिहास की भूलों की देन है। चीन जैसा दुष्ट राष्ट्र कभी इसे सुलझाना नहीं चाहता, क्योंकि वह लाभ की स्थिति में है। 1962 के युद्ध का एकतरफा अंत उसने अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद कर दी। उसका राष्ट्रीय लक्ष्य हर मायने में विश्व का सर्वशक्तिमान और सर्वाधिक प्रभाव विस्तार वाला देश बनना है। वह जो कुछ कर रहा है उसी लक्ष्य के अनुरुप। भारत के लिए आवश्यक है कि हम राजनीतिक मतभेद को परे रखकर उसके लक्ष्य को समझते हुए अपनी रक्षानीति के साथ कूटनीति की जवाबी तैयारियों और कार्रवाइयों के प्रति एकजुटता दिखाएं। 

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, मोबाइल-9811027208, 8178547992


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