सोमवार, 30 जनवरी 2023

31-01-2023 To 06-02-2023(15.38)









 

डेसू मजदूर संघ की पहाड़गंज डिवीजन ने स्वागत सम्मान समारोह आयोजित किया

मो. रियाज

नई दिल्ली। बीवाईपीएल व बीआरपीएल बिजली कम्पनी में कई हजार बिजली कर्मचारी हैं जो किसी न किसी रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं। डेसू मजदूर संघ बीवाईपीएल व बीआरपीएल में कार्य करने वाले मजदूरों के हक की आवाज उठाने के लिए कार्य करती है चाहे वह कर्मचारी आउटसोर्स पर ही काम क्यों नहीं करता हो। आऊटसोर्स कर्मचारियों को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो उसके लिए डेसू मजदूर संघ ने आऊटसोर्स के कर्मचारियों में से ही योग्य व्यक्तियों की एक टीम प्रत्येक डिवीजन में बनाई है। प्रत्येक डिवीजन में चुने हुए पदाधिकारी आउटसोर्सिंग स्टाफ की परेशानी को दूर करने में हरसंभव मदद करते हैं।
गणतंत्र दिवस के अवसर पर डेसू मजदूर संघ की पहाड़ गंज डिवीजन में भव्य स्वागत सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इस भव्य स्वागत सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव थे। इस अवसर पर पहाड़गंज डिवीजन की ओर से डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव का फूल मालाओं से जोरदार स्वागत किया गया। इनके अलावा आउटसोर्स अध्यक्ष, अशोक कुमार, आउटसोर्स महामंत्री ऋषिपाल, आउटसोर्स संगठन मंत्री सैनतुल त्यागी, आउटसोर्स सर्कल चेयरमैन दिनेश कुमार, आउटसोर्स ज्वाइंट सेक्रेट्री अब्दुल रज्जाक खान, वीर सिंह राणा, युवराज, शोएब खान इत्यादि का भी फूलमालाओं से स्वागत किया गया।
इस अवसर पर डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि हम सभी को एक दूसरे की मदद के लिए हमेशा खड़ा रहना चाहिए ताकि किसी भी साथी को ऐसा न लगे कि वह अकेला है। हम सभी एक-दूसरे की परेशानी में साथ हैं और जिन लोगों को यहां जिम्मेदारी मिली हुई वह अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आप लोग ऐसे ही काम करते रहेंगे।
यह स्वागत समारोह डेसू मजदूर संघ पहाड़गंज डिवीजन के बाबू लाल (सर्किल चेयरमैन), पप्पू झा (डिस्ट्रिक सेकेट्री, पहाड़गंज), शास्त्री यादव (चेयरमैन, पहाड़गंज), अरूण झा (जोनल सेकेट्री, पहाड़गंज), देवेन्द्र कुमार (जोनल सेकेट्री, पहाड़गंज), बिश्मबर झा (जोनल सेकेट्री, पहाड़गंज), श्याम कुमार (जोनल सेकेट्री, पहाड़गंज), दुर्वेश शर्मा (जोनल सेकेट्री, पहाड़गंज), डिस्ट्रीक यूनियन मेम्बर- श्रवण मंडल, लखन साह, सुधीर कुमार, शिन्टू कुमार,  संतोष कुमार, धर्मेन्द्र झा, मनीष झा आदि की देखरेख में किया गया।























 

बुधवार, 25 जनवरी 2023

पराक्रम और पुरुषार्थ भाव की चेतना

अवधेश कुमार 


हमारे देश में किसी स्थान, द्वीप आदि का नामकरण वैचारिक स्तर पर विवादित बना दिया जाता है। लेकिन नामकरण का अपना महत्व है और इसके संदेश उस स्थान, देश और विश्व के लिए व्यापक और दीर्घकालिक होते हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की स्मृति में मनाए जाने वाले पराक्रम दिवस के अवसर पर अंडमान निकोबार के 21 अनाम द्वीपों का नाम 21 परमवीर चक्र से सम्मानित वीरों के नाम पर किए जाने की घटना का गहराई से विश्लेषण किए जाने की आवश्यकता है । हमारे देश में इस समय राजनीतिक विचारधारा को लेकर इतना तीखा विभाजन है कि नरेंद्र मोदी सरकार के ऐतिहासिक और राष्ट्र की मानसिकता को व्यापक रूप से सकारात्मक बदलाव के लिए उठाए गए कदमों पर भी सामान्यतः नकारात्मक टिप्पणियां होती हैं। हालांकी नेताजी का नाम और परमवीर चक्र विजेताओं के प्रति देश में सम्मान का इतना गहरा भाव है कि इसका कहीं से मुखर विरोध और वह भी सार्वजनिक तौर पर नहीं दिखा। बावजूद ऐसे लोगों की कमी नहीं जो मानते हैं कि मोदी सरकार इस तरह की प्रवृत्तियों से देश में सैनिकवादी मानसिकता को बढ़ावा दे रही है । सैन्यवाद भारतीय संस्कारों से निकला शब्द नहीं है। यह पश्चिम से निकला है जिसका अर्थ वहां के संदर्भ में और जिस रूप में पश्चिमी देशों के सैन्यवाद ने भूमिका निभाई उसी रूप में है। सेना को केवल हथियार चलाने और युद्ध लड़ने तक हम सीमित नहीं रख सकते। भारतीय संदर्भ में सैन्य भाव व्यक्ति के अंदर अनुशासन के साथ अपने राष्ट्र को लेकर प्रखर चेतना के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ा है। नरेंद्र मोदी सरकार के इस कदम को अगर इस दृष्टि से देखेंगे तो इसका महत्व समझ में आएगा।

23 जनवरी नेता जी के जन्मदिवस को मोदी सरकार ने पराक्रम दिवस के नाम पर मनाने का फैसला किया।  पराक्रम शब्द से ही अपने अंदर वीरता का बोध पैदा होता है। उसमें नेताजी का नाम जुड़ जाए तो ऐसा रोमांच पैदा होता है जिसकी कल्पना आसानी से नहीं की जा सकती। भारत का दुर्भाग्य रहा कि हमने पराक्रम, पुरुषार्थ और वीरता को आम पाठ्यक्रम से लेकर समाज की सामूहिक चेतना में विकसित करने की कोशिश नहीं की। उल्टे इस विषय में बात करने वाले को की आलोचना की जाती रही है । सच कहा जाए तो सत्य और शिक्षा की भूमिका पराक्रम पुरुषार्थ से बड़े राष्ट्र अभाव को कुंद करने की ही रही है। पराक्रम और सैन्यवाद दोनों में किसी तरह का साम्य नहीं है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस पश्चिमी अवधारणा के सैन्यवाद के प्रतीक नहीं थे। वह उस पराक्रम और पुरुषार्थ के प्रतीक थे जो अपने कर्मों से यह साबित करना चाहता था कि अंग्रेज जैसे दुष्ट उपनिवेशवादी शक्तियों के साथ युद्ध करके भारत को उनकी गुलामी से मुक्त किया जा सकता है। यानी अंग्रेजों को पराजित कर हमें स्वाधीनता अर्जित करनी है। जिन परमवीरों के नाम पर अन्य नाम द्वीपों का नामकरण हुआ उन्होंने भी अकारण हथियार नहीं उठाए थे, बल्कि हमलावरों ,आतंकवादियों से अपनी मातृभूमि व आम लोगों की रक्षा के लिए शुद्ध कर पुरुषार्थ का परिचय दिया था। अंडमान और निकोबार के सबसे बड़े अनाम द्वीप को प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा का नाम दिया गया है। जैसा हम जानते हैं स्वतंत्रता के तुरंत बाद पाकिस्तान की ओर से हथियारबंद घुसपैठ हुए। देश की रक्षा करते हुए 3 नवंबर, 1947 को बड़गांव हवाई अड्डे के पास एक हमले में मेजर सोमनाथ शर्मा बलिदान हो गए थे। अब ऐसे व्यक्ति के नाम पर सबसे बड़े द्वीप रखा जाना ही हमारे अंदर पुरुषार्थ और पराक्रम चेतना पैदा करती है। इन नामकरण में कारगिल युद्ध में केवल 25 साल की उम्र में बलिदान होने वाले परमवीर चक्र विजेता मेजर विक्रम बत्रा का नाम भी शामिल है। कायदे से इस दिशा में देश का ध्यान पहले जाना चाहिए था।

अंडमान निकोबार के बारे में हमारे देश में आम धारणा यही है कि यहां के सेल्यूलर जेल में अंग्रेजों के विरुद्ध लोहा लेने वाले हमारी जान की नींव को काला पानी की सजा के लिए भेजा जाता था। यह सच है। दूसरी ओर यह भी सच है कि 30 दिसंबर, 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने यहीं पहली बार तिरंगा फहरा कर अंग्रेजों से स्वतंत्रता स्वतंत्र होने की घोषणा की थी। यद्यपि उन्होंने इसके पूर्व 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर में स्वतंत्र भारत का झंडा फहराया था किंतु भारतीय भूमि पर वह 30 दिसंबर को ही आए थे। ध्यान रखिए ,नेता जी ने ही अंडमान और निकोबार के दो द्वीपों को शहीद और स्वराज द्वीप नाम दिए थे। मोदी सरकार ने इसका विस्तार करते हुए 2018 में अंडमान के रास आईलैंड का नाम सुभाष चंद्र बोस के नाम पर किया।

इन सबको एक साथ मिलाकर देखिए तो अंडमान निकोबार का चरित्र आमूल रूप से बदल गया है। सेल्यूलर जेल देखने जाएं तो वह स्पष्ट रूप से हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा झेले गए कष्टों और उनके अदम्य साहस की गाथा सुनाता दिखाई देगा। उन सारे सेनानियों के नाम वहां अंकित है। स्वातंत्र्य वीर सावरकर के नाम पर हवाई अड्डा तो सुभाष चंद्र बोस के नाम पर रास द्वीप तथा शहीद और स्वदेश द्वीपों के साथ परम चक्र विजेताओं के नाम पर 21 द्वीप। कल्पना करिए, वहां जाने पर किसी के अंदर अब किस तरह की ऊर्जा और चेतना पैदा होगी? वास्तव में समग्र रूप में अंडमान निकोबार अब राष्ट्र का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन गया है। किसी तीर्थ स्थल में हम ईश्वर की आराधना करते हुए अपने परिवार या समाज के लिए मंगल कामना करते हैं तथा पवित्र व शांत भाव से वापस लौटते हैं। इसी तरह अंडमान निकोबार दीप समूह राष्ट्र भाव का तीर्थ स्थल हो गया है जहां हर भारतीय के अंदर अपनी मातृभूमि के लिए जीने और कुछ करने का संकल्प पैदा होगा। इस संकल्प में राष्ट्रहित व समाजहित के लिए पराक्रम और पुरुषार्थ से बड़े लक्ष्य की प्राप्ति का भाव भी सम्मिलित होगा। वीर सावरकर और सुभाष चंद्र बोस का नाम ही हमारे अंदर स्फुलिंग पैदा करता है।

 नरेंद्र मोदी सरकार से आपका नीतियों और विचारों के स्तर पर मतभेद हो सकता है। किंतु देश के अंदर पराक्रम और पुरुषार्थ भाव पैदा करने संबंधी विचार योजनाओं और उठाए गए कदमों का सम्मान करना ही होगा । नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में देश में इतनी विस्तृत जानकारी किसी सरकार के कार्यकाल में सामने नहीं आई। किसी ने उनके जन्मदिवस को देश के अंदर नई स्फूर्ति पैदा करने के रूप में मनाने की कोशिश नहीं की। हम माने न माने पिछले 5-6 वर्षों में सत्ता राजनीति ही नहीं संपूर्ण राष्ट्र का स्वर बदला है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस आज एक प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में जनमानस में स्थापित हुए हैं।  ऐसा पहली बार हुआ कि 23 जनवरी को संसद के सेंट्रल हॉल में देश के 80 युवाओं ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को न केवल श्रद्धा सुमन अर्पित किया बल्कि उनमें से कुछ ने वहां भाषण भी दिए। इन युवाओं के चयन की लंबी प्रक्रिया अपनाई गई थी। इस प्रक्रिया में देश के हजारों युवकों ने भाग लिया। प्रतियोगिता में सफल होने के लिए उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन से लेकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भारतीय राष्ट्र की अवधारणा आदि पर व्यापक अध्ययन किया। ऐसे ही कदमों से देश की सोच और दिशा सही परिप्रेक्ष्य और पटरी पर वापस आती है। यह सामूहिक चेतना अनेक अवसरों पर आने वाले समय में कठिन से कठिन परिस्थितियों के बीच लोगों के साहस और पराक्रम की ऐसी तस्वीरें पैदा करेगा जिसकी हम आप कल्पना नहीं करते होंगे। यह बताता है कि अगर आपकी विचारधारा स्पष्ट है और आपमें संकल्पबद्धता है तो विचारधाराओं में  बंटी और खंडित मानसिकता वाले देश के अंदर भी सकारात्मक भाव, ऊर्जा और स्फूर्ति पैदा करने की ठोस नींव डाल सकते हैं। अंडमान निकोबार द्वीप समूह का रूपांतरण इसका साक्षात प्रमाण है।

अवधेश कुमार,  ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली–110092, मोबाइल-9811027208

सोमवार, 23 जनवरी 2023

शनिवार, 21 जनवरी 2023

लोक कल्याण समिति द्वारा 100 से अधिक मीडिया कर्मियों के परिवार के स्वास्थ्य की जांच की।

नई दिल्ली । लोक कल्याण समिति द्वारा फ्री आंख ओर स्वास्थ्य की जांच शिविर  का आयोजन सुचेता भवन, विष्णु दिगम्बर मार्ग आईटीओ पर किया गया ।
मीडियाकर्मियों और उनके परिवार के लिए आयोजित इस शिविर में 100 से अधिक मीडियाकर्मियों और उनके परिजनों ने अपनी आंख ओर स्वास्थ्य की जांच कराई। शिविर में आए मीडियाकर्मियों ने लोक कल्याण समिति और इंडियन मीडिया वेलफेयर का आभार जताते हुए कहा कि मीडियाकर्मियों और उनके परिवार के लिए इस तरह के आयोजन समय-समय पर होते रहने चाहिए । लोक कल्याण समिति के कार्यकारी अधिकारी कर्नल राजेश लखनपाल ने कहा कि लोक कल्याण समिति निशुल्क आंखों के ऑपरेशन करती है और यह ऑपरेशन सप्ताह में दो बार ऑपरेशन किया जाता है अब तक 55000 से ज्यादा ऑपरेशन किए जा चुके हैं।
वहीं इम्वा के अध्यक्ष राजीव निशाना ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि हम अपनी एसोसिएशन की तरफ से समय-समय पर इस तरह के आयोजनों के साथ-साथ मीडियाकर्मियों पर काम के प्रेशर को कम करने के लिए मेडीटेशन कैम्प भी लगाते हैं तो उनको फिट रखने के लिए यमुना क्रिकेट ट्रॉफी का भी आयोजन करते हैं।
इम्वा अध्यक्ष राजीव निशाना ने लोक कल्याण समिति की महासचिव हरिता गुप्ता जी का आभार व्यक्त किया और कहा कि इतने कम समय में हमारा अनुरोध स्वीकार कर स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया उसके लिए तहे दिल से लोक कल्याण समिति का इंडियन मीडिया वेलफेयर एसोसिएशन धन्यवाद करती है और आशा है भविष्य में भी इसी तरह का सहयोग पत्रकारों को मिलता रहेगा।




मंगलवार, 17 जनवरी 2023

भागवत के वक्तव्य में असहमति में सहमति के सूत्र, कैसा भारत चाहता हैं संघ

अवधेश कुमार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत द्वारा पांचजन्य को दिए साक्षात्कार में केवल एक अंश बहस का विषय बना जिसमें उन्होंने कहा कि मुसलमानों को डरने की आवश्यकता नहीं है। उनका कहना था कि मुसलमानों में स्वयं को शासक मानने वाले उस मानसिकता से बाहर आकर सामान्य नागरिक के नाते मिलजुल कर रहने की सोच से भूमिका निभानी चाहिए। संघ भारत की सनातन सोच के अनुरूप एक जन, एक राष्ट्र की बात करता है और इसी अनुरूप अलग-अलग मज़हबों, पंथों के राय रखता है। भागवत के उत्तर का अर्थ इतना ही था कि मजहब, पंथ, संप्रदाय, उपासना पद्धति और स्वयं को विशिष्ट मानने की सोच से बाहर आकर सभी भारत के पुत्र के नाते विचार कर कार्य करें।

उनका साक्षात्कार विस्तृत है जिसमें संघ की कल्पना, अलग-अलग संगठनों, विचारधारा के लोगों के साथ व्यवहार, भारत का भविष्य आदि सभी बातें थी। उनके पूरे साक्षात्कार को साथ मिलाकर देखना होगा न कि कुछ पंक्तियों को।

• सबसे पहले हिंदुत्व । उन्होंने कहा कि 'हिन्दू हमारी पहचान है, राष्ट्रीयता है, प्रवृति है। लेकिन मेरा ही सही, तुम्हारा गलत, ऐसा नहीं है। तुम्हारे जगह, तुम्हारा ठीक, मेरी जगह मेरा ठीक। झगड़ा क्यों करें, मिलकर चलें। सबको अपना मानने की, साथ लेकर चलने की प्रवृति। यही हिन्दुत्व है।' असहमति के बीच सहमति और विविधता में एकता का इससे बेहतर व्यवहारिक सूत्र क्या हो सकता है? हिंदुत्व पर  प्रश्न उठाने वाले को भागवत की व्याख्या को समझना चाहिए।

• विरोधियों के बारे में भी उनका मत इसी विचार को आगे बढ़ाता है। वे कहते हैं कि 'विरोध का हम सामना करके बाहर निकले लेकिन हमें इसमें किसी का विरोधी नहीं बनना है। कैसी भी परिस्थिति हो हम किसी के विरोधी नहीं हो इसी दिशा का ध्यान रखते हुए रास्ता ढूंढना पड़ेगा। ' चूंकि संघ का लगातार विरोध होता है तो स्वयंसेवक और समर्थक भी तीखी प्रतिक्रिया देकर मोर्चाबंदी की स्थिति बनाते हैं। उन्होंने इसी भाव को दूर करने के लिए दिशा दिया है । इसमें कहां नफरत और अपने विरोधियों को नष्ट करने का भाव है?

• संघ को अलग संगठन मानने वाले के बारे में वे कहते हैं कि हिन्दुओं के बारे में काम करने वाले अनेक लोग हैं। एक और अलग धड़ा बनाने का विचार नहीं है। हम उनको ही मजबूत करेंगे।

• इसको विस्तारित करते हुए उन्होंने संघ और समाज के संबंधों पर भी चर्चा की।  'संघ और समाज में एक अच्छा,पक्का, मधुर संबंध है। हिन्दू समाज में जिस प्रकार का परिवर्तन चाहिए,तालमेल चाहिए, समाज की एक संगठित अवस्था लाने के लिए आगे काम होगा। संघ के स्वयंसेवक भी करें, समाज के सज्जन भी करें। सब मिलकर अपने समाज को ऐसा खड़ा करते हुए देश को परम वैभव के शिखर पर पहुंचाने का काम आगे बढ़ाएं। ' संघ का कार्य सर्वव्यापी हो यानी समाज और संघ एकाकार दिखे। जो लोग भी भारत के अभ्युदय के लिए काम कर रहे हैं उन सबको शक्ति देते हुए मिलकर लक्ष्य को पाना है।

• हां ,विरोधियों के बारे में उन्होंने कहा है कि हिंदुओं के जागरण से जिनके लिए समस्याएं पैदा हुई है वो हो हल्ला कर रहे हैं। पर उसमें उलझने की बजाय सब मिलकर काम करें।' जागृत हिंदू समाज इसे भी देख लेगा और जो रास्ता निकालेगा उसमें सब साथ मिलकर ही चलेंगे।'

सरसंघचालक की बातें स्वयंसेवकों और अनुषांगिक संगठनों के लिए मार्ग निर्देश की तरह होती है। यह नहीं होगा कि वो निर्देश दे रहे हों मिलकर काम करने की और शिक्षा चल रही हो विरोधियों को खत्म करने की। संघ 98 वर्ष में प्रवेश कर चुका है और सतत उसका स्वयं और अलग-अलग संगठनों के रूप में विस्तार होता गया है तो इसका कारण इसी में निहित है कि कथनी और करनी में समानता है।

अब भारत के भविष्य की ओर आते हैं। उनका मानना है कि भारत का भविष्य उज्जवल है किंतु हमारी स्वयं की जिम्मेदारियां ज्यादा बड़ी है।  हिंदुओं के जगह-जगह से पलायन करने का भी डर पैदा किया जाता है।  सदियों के कालखंड में भारत के अनेक भागों से हिंदुओं को पलायन करना पड़ा।

इस संदर्भ में उन्होंने कई बातें कहीं।

•एक, अब वह परिस्थिति नहीं कि हमारी राजनीतिक स्वतंत्रता कोई छीन ले। यह हकीकत है कि भारत को गुलाम बनाने कि सोचने की कोई हिमाकत नहीं कर सकता।

•दो,इस देश में हिन्दू रहेगा, हिंदू जाएगा नहीं, यह अब निश्चित हो गया है।

•तीन,हिंदुओं में व्यापक जागृति आई है। भागवत की बात सच है। पाठ्य पुस्तकों एवं वातावरण के कारण धर्म , संस्कृति और  भारत के इतिहास को लेकर हम हीन मानसिकता से ग्रस्त है। जैसे-जैसे सच आया है लोगों का आत्मविश्वास बढ़ा है।

• चार,भागवत कहते हैं कि  इसका उपयोग करके हमें अंदर की लड़ाई में विजय प्राप्त करना, और हमारे पास जो समाधान है, वह प्रस्तुत करना है।

सबसे पहले संघर्ष और विजय।

वह इस सच को मानते हैं कि हिन्दू समाज लगभग हजार वर्ष से विदेशी लोग, विदेशी प्रभाव और विदेशी षड्यंत्र से एक लड़ रहा है। इस बारे में संघ के साथ दूसरों के काम को स्वीकार करते हुए वे कहते हैं कि उसके चलते हिंदू समाज जाग्रत हुआ है। स्वाभाविक है कि लड़ना है तो दृढ़ होना ही पड़ता है। किंतु लड़ाई का लक्ष्य किसी को नष्ट करना और अपने लिए कुछ प्राप्ति नहीं। इसी में वे कहते हैं' निराशी: निर्मम: भूत्वा, युध्यस्व विगत-ज्वर: अर्थात् आशा-कामना को, मैं एवं मेरेपन के भाव को छोड़कर, अपने ममकार के ज्वर से मुक्त होकर युद्ध करो। वे मानते हैं कि सब लोग ऐसा नहीं कर सकते लेकिन इसके प्रति जागृत करते रहना होगा क्योंकि हमारे युद्ध का लक्ष सबका कल्याण है।

संघर्ष और निर्माण दोनों साथ साथ होना चाहिए। सिद्धांत के साथ व्यवहार की रूपरेखा भी चाहिए। वे कहते हैं

•आज हम ताकत की स्थिति में हैं, तो हमें वह बात करनी पड़ेगी अगर अभी नहीं, लेकिन पचास साल बाद हमें यह करना पड़ेगा। पचास साल बाद हम कर सकें, इसलिए अभी से कुछ बनाना पड़ेगा।

इसका अर्थ क्या है?

• यही कि हिंदुत्व के आधार पर हम व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व की जो कल्पना करते हैं उसका साकार रूप रखना और उसके अनुरूप काम कर लोगों के विश्वास को मजबूत करना है।

भारत का एक बड़ा लक्ष्य आत्मनिर्भरता है। आत्मनिर्भरता का अर्थ वही नहीं जो आमतौर पर समझा जाता है।

• ऐसा अलग रास्ता देना जो भौतिक सुख भी प्रदान करता हो, सुरक्षा, जीवन के भविष्य की गारंटी भी देता हो और संतोष भी पैदा करता हो, शांति भी पैदा करता हो।

•हमको अपनी आत्मा को समझकर उसके आधार पर एक नया रचित खड़ा करना पड़ेगा या नई रचनाएं खड़ी करनी पड़ेंगी। हमको अपना विचार पूरी तरह औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त होकर, अपने आधार पर करना पड़ेगा। यानी आत्मनिर्भरता की जो परिभाषा दी गई है उससे अलग मनुष्य के जीवन का परम लक्ष्य आत्मा की मुक्ति और शांति ,उसकी दृष्टि से संपूर्ण भौतिक व्यवस्था होनी चाहिए।

विज्ञान एवं तकनीक पर भागवत कहते हैं कि मशीनों की भूमिका जितनी होनी चाहिए उतनी ही रहनी चाहिए। मुख्य लक्ष्य का ध्यान रखते हुए ही  विज्ञान की प्रगति से जो लेना हो वह लिया जाए। अंधानुकरण नहीं।

सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि संघ का विचार अलग है। भागवत ने स्पष्ट किया है कि संघ का विचार अलग नहीं, वही  है जो हमारे मनीषियों ने पहले से रखा है। भागवत समय-समय पर पिछले कुछ सालों में ऐसे वक्तव्य देते रहे हैं जिनसे देश और विश्व भर में फैल रहे संघ के स्वयंसेवकों, अनुषांगिक संगठनों तथा आम हिंदू समाज की सचेतनता बनी रहे। हिंदुत्व के नाम पर  अतिवादी बयानों के विरुद्ध भी उन्होंने आवाज उठाई है। सन 2018 में दिल्ली के विज्ञान भवन में उन्होंने संघ के संपूर्ण विचार रखे और उससे संबंधित प्रश्नों के उत्तर दिए थे। उनका यह साक्षात्कार नए सिरे से भविष्य के संकेतक के रूप में देखा जाएगा। 

अवधेश कुमार,ई- 30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली -110092, मोबाइल -98110 27208

17-01-2023 To 23-01-2023(15.36)









 

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