बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

डेसू मजदूर संघ ने श्रम कानून में बदलाव के विरोध में भारतीय मजदूर संघ का समर्थन किया

संवाददाता
नई दिल्ली। नए श्रम कानूनों को मजदूर विरोधी बताते हुए भारतीय मजदूर संघ(बीएमएस) ने बुधवार को राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन किया और सरकार से कानूनों में उचित बदलाव की मांग की। इस विरोध प्रदर्शन में भारतीय मजदूर संघ का डेसू मजदूर संघ ने समर्थन किया। भारतीय मजदूर संघ का आरोप है की सभी लेबर कोड बिल में बदलाव की जो मांग उन्होंने संसद की स्थाई समिति के सामने रखी थी, उसे सरकार ने नजरअंदाज कर दिया। इन विरोध प्रदर्शनों के जरिए उन्होंने सरकार को यह संदेश दिया है कि उसने श्रम सुधारों के जरिए मजदूरों के साथ अन्याय किया है। सरकार ने मजदूरों को दिए गए वायदों को तोड़ा है। 

डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव का कहना है कि यह श्रमिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है और इस नए संशोधन द्वारा श्रमिक कानून को कमजोर बना दिया गया है।
उन्होंने कहा है कि कोरोना संकट के बीच जहां मजदूरों के लिए सरकार को काम करना चाहिए था तो वहीं नया श्रमिक कानून बना कर मजदूरों की जिंदगी को खतरे में डाला जा रहा है। लॉकडाउन के बाद वैसे ही मजदूरों की दशा पहले ही दयनीय है उसे और दुखद बनाया जा रहा है।भारतीय मजदूर संघ के दिल्ली प्रांत के महामंत्री अनीश मिश्रा ने बताया कि नए श्रम कानून में कई प्रावधान श्रमिक विरोधी हैं। पहले सौ श्रमिकों के होने के बाद किसी कंपनी को उनकी छंटनी करने के लिए सरकार से अनुमति लेनी होती थी, लेकिन अब यह संख्या बढ़ाकर 300 तक कर दी गई है। इसका असर ये हुआ है कि लगभग सत्तर फीसदी कंपनियां अब इस दायरे से बाहर हो गई हैं और अब वे श्रमिकों के साथ मनमानी कर सकती हैं। आपको बता दें कि मानसून सत्र के आखिरी दिन संसद ने श्रम सुधार से जुड़े तीन बिलों को मंजूरी दे दी। इसके तहत कंपनियों को बंद करने के नियम में ढील दी गई है। विधेयक के प्रस्ताव के मुताबिक अधिकतम 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को बिना सरकार की इजाजत के लोगों को नौकरी से हटाने के अधिकार दिए गए हैं। वहीं 23 सितंबर को राज्यसभा ने कोड ऑफ ऑक्यूपेश्नल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन और इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड एंड सोशल सिक्योरिटी कोड को ध्वनिमत से पारित कर दिया। जबकि लोकसभा पहले ही मंगलवार (22 सितंबर) को इसे पारित कर चुका था। इस कानून का डेसू मजदूर संघ के अध्यक्ष किशन यादव, महामंत्री सुभाष चंद्र, अब्दुल रज्जाक, ऋषि पाल, सुभाष, शक्ति, सभाजीत पाल आदि मजदूरों ने इस कानून का विरोध किया। 





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