रविवार, 28 सितंबर 2025
समर्पण से समरसता तक: संघ की सौ साल की यात्रा
शनिवार, 27 सितंबर 2025
सत्यपाल मलिक जी का जीवन राजनीति में सच्चाई और ईमानदारी का प्रतीक था: बलविंदर सिंह
पंजाब बाढ़ पीड़ितों की सहायता करने पर इकबाल सिंह लालपुरा संस्था द्वारा प्रशस्ति पत्र से सम्मानित
गुरुवार, 25 सितंबर 2025
दिल्ली में पानी की समस्या को लेकर एनसीपी(एसपी) की दिल्ली इकाई ने जल मंत्री प्रवेश वर्मा को ज्ञापन सौंपा
बुधवार, 24 सितंबर 2025
बसंत कुमार द्वारा लिखित पुस्तक "मुसहर समाज का इतिहास" नामक पुस्तक का लोकार्पण भाजपा संसदीय बोर्ड के सदस्य डॉ. सत्य नारायन जटिया ने किया
नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में बसन्त कुमार द्वारा लिखित प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक "मुसहर समाज का इतिहास" नामक पुस्तक का लोकार्पण भाजपा संसदीय बोर्ड के सदस्य डॉ. सत्य नारायन जटिया द्वारा किया गया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में भारतीय बौद्ध संघ के अध्यक्ष डा. संघप्रिय राहुल भंते जी उपस्थित रहे। आवश्यक कार्य के कारण एमएसएमई मंत्री जतीन राम मांझी नहीं आ सके। उनका संदेश उनके निजी सचिव एसपी पंत ने पढ़ा। कार्यक्रम में अनेक बुद्धिजीवियों और मीडिया के लोगो ने भाग लिया और मुसहर समाज की आर्थिक सामाजिक और शैक्षिक पिछड़े होने के कारणों और उनके उत्थान पर सार्थक चर्चा हुई।
आरक्षण सुधार: तीन पीढ़ियों के बाद नई नीति की आवश्यकता
ओंकार त्रिपाठी
रविवार, 21 सितंबर 2025
‘स्वार्थ प्रथम’ के सिद्धान्त पर दस्तक देता राष्ट्रद्रोह का दावानल
भविष्य की आहट
डा. रवीन्द्र अरजरिया
परिवर्तन एवं महिला शक्ति संगठन ने बाढ़ पीड़ितों की सहायता करने वाले सहयोगियों को किया सम्मानित
नई दिल्ली। दिल्ली में हाल ही में आई बाढ़ से प्रभावित परिवारों की मदद करने वाले सहयोगियों का सम्मान परिवर्तन एवं महिला शक्ति संगठन (रजि.) ने एक विशेष कार्यक्रम में किया। समाजसेवियों को उनके योगदान के लिए प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि बलविंदर सिंह, उपाध्यक्ष दिल्ली प्रदेश, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई और कहा कि आपदा के समय मदद करने वाले साथी ही असली समाजसेवी हैं। यह सम्मान केवल एक काग़ज़ का टुकड़ा नहीं, बल्कि उनके सेवा भाव की पहचान है। मानवता से बढ़कर कोई धर्म नहीं और समाज की असली ताक़त भाईचारा है।बलविंदर सिंह ने आगे कहा कि आज देश गंभीर चुनौतियों से गुजर रहा है— महँगाई ने आम जनता की कमर तोड़ दी है, नौजवान बेरोज़गारी से जूझ रहे हैं, किसान अपनी फसल का उचित मूल्य पाने के लिए सड़क पर उतरने को मजबूर हैं, शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था लगातार कमजोर होती जा रही है।
उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी नफरत की नहीं, बल्कि विकास और न्याय की राजनीति करती है। हम संविधान की रक्षा, लोकतंत्र की मजबूती और हर नागरिक को समान अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। यही कारण है कि आज देश को हमारी पार्टी की सख़्त ज़रूरत है।”
संस्था की भूमिका और पदाधिकारी - इस कार्यक्रम का संचालन संस्था की पूरी टीम ने मिलकर किया।
कार्यक्रम के अंत में बलविंदर सिंह ने सभी कार्यकर्ताओं और समाजसेवियों से आह्वान किया कि आइए, हम सब मिलकर देश में बदलाव की लड़ाई को मज़बूत करें। यही समय है एकजुट होकर गरीब, किसान, मज़दूर, नौजवान और महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करने का। हमारी ताक़त जनता है, और जनता के भरोसे ही देश को नई दिशा दी जा सकती है।
गुरुवार, 18 सितंबर 2025
ब्रह्म सत्यं जगत् सत्यं जगत् ब्रह्मौव नापर:
शिव शंकर द्विवेदी
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।बुधवार, 17 सितंबर 2025
जैन युवा क्लब के भव्य मेले का समापन
पूर्वी दिल्ली। कड़कड़डूमा स्थित सीबीडी ग्राउंड में जैन युवा क्लब की ओर से भव्य मेले का आयोजन 12 सितम्बर से 16 सितम्बर 2025 तक किया गया। इस मेले में बड़ी संख्या में स्थानीय निवासियों के साथ-साथ आसपास के इलाकों से भी लोग पहुंचे और उत्साह का माहौल बना रहा। मेले का शुभारंभ मुख्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया, जिसके बाद सांस्कृतिक प्रस्तुतियों और आकर्षक कार्यक्रमों की श्रृंखला ने दर्शकों का मन मोह लिया।
खानपान के स्टॉलों पर उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय और जैन व्यंजनों की विविधता देखने को मिली। स्वादिष्ट पकवानों का आनंद उठाने के लिए लोगों में खासा उत्साह देखा गया। बच्चों ने झूलों और खिलौनों का भरपूर लुत्फ उठाया तो वहीं बुजुर्ग पारंपरिक संगीत और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में खोए नजर आए।
मेले में सुरक्षा और व्यवस्था को लेकर विशेष इंतजाम किए गए थे। स्थानीय पुलिस और स्वयंसेवकों की टीम लगातार सक्रिय रही जिससे भीड़भाड़ के बावजूद पूरा कार्यक्रम शांतिपूर्ण और सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
आने वाले साल फिर से मेले का धमाल होगा : गौरव जैन
मैं विशेष रूप से उन साथियों का आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाया। चाहे वह स्टॉल सजाना हो, मेहमानों का स्वागत करना हो, सुरक्षा की व्यवस्था हो या मंच संचालन - हर जगह हमारी टीम की प्रतिबद्धता झलक रही थी।
इस मेले ने न केवल हमें समाज से जोड़ा बल्कि हमारी टीम भावना को भी मजबूत किया। मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में भी हम ऐसे और कार्यक्रम आयोजित करेंगे और समाज को सकारात्मक ऊर्जा देने का कार्य करते रहेंगे।
शनिवार, 13 सितंबर 2025
पाकिस्तान के साथ खेल, कला और व्यापार जैसी गतिविधियों को जारी रखना शहीदों के बलिदान का अपमान है: बलविंदर सिंह
संवाददाता
शुक्रवार, 5 सितंबर 2025
भागवत के शताब्दी संवाद से निकले संदेश
अवधेश कुमार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से राजधानी दिल्ली में 100 वर्ष की संघ - यात्रा: नए क्षितिज पर तीन दिवसीय संवाद सत्र का आयोजन हो तो देश और विदेश में उस पर गंभीरता से चर्चा और विमर्श बिलकुल स्वाभाविक है। राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम के बवंडरों के बीच सार्थक और सकारात्मक संवाद को मीडिया में सर्वत्र स्थान मिलना बताता है कि धीरे-धीरे बौद्धिक और सक्रिय वर्ग के अंदर संघ के प्रति कायम मानसिकता में अनुकूल बदलाव आ रहा है। संघ के सरसंचालक डॉ मोहन भागवत ने शताब्दी वर्ष कार्यक्रम के औपचारिक शुरुआत के पूर्व ही विज्ञान भवन में दो दिनों तक बातें रखीं तथा तीसरे दिन प्रश्नों के उत्तर दिए तो निश्चय ही इसका अपना व्यापक उद्देश्य हो रहा होगा। तीन दिनों का ऐसा कार्यक्रम ,जिसमें उठने वाले अधिकतर प्रश्नों के उत्तर आ गए हों उनके एक-एक बिंदु का विस्तार से विवरण देना संभव नहीं हो सकता। बिल्कुल सरल , सहज , सामान्य भाषा और शब्दावलियों में संघ किन स्थितियों में और क्यों उत्पन्न हुआ, प्रयोजन क्या है, अभी तक यात्रा के अनुभव कैसे आए, संगठन के नाते उसका चरित्र कैसा है तथा आगे समाज, देश और विश्व की दृष्टि से किन लक्ष्यों और योजनाओं पर सक्रिय है एवं रहेगा आदि विषयों को समझा देना सामान्य बात नहीं है। आलोचक और विरोधी कुछ भी कहे, किंतु क्या हमारे देश में कोई संगठन है, जो अपने चिंतन या विचारधारा, संपूर्ण समाज, देश और विश्व की कल्पना तथा उन दृष्टियों से किए जाने वाले कार्यों को राजधानी दिल्ली और आसपास के बौद्धिक वर्ग, एक्टिविस्टों, एनजीओ, पत्रकारों, विदेशी राजनयिकों तथा समाज के इस हर क्षेत्र में सक्रिय प्रतिनिधियों को बुलाकर तीन दिनों तक संवाद कर सके?
आज के भारत और विश्व के परिप्रेक्ष्य में देखें तो इस संवाद का सबसे महत्वपूर्ण स्वरुप किसी के लिए भी एक शब्द विरोध या कटुता तथा निराशा भाव का लेश मात्रा भी उपस्थित नहीं होना। आरंभ में डॉ भागवत ने स्पष्ट किया कि संघ की उत्पत्ति का मूल तथा प्रयोजन एक ही है जो हम प्रतिदिन शाखा में प्रार्थना के बाद कहते हैं- भारत माता की जय।हमारा देश भारत विश्व गुरु बने पहले दिन भी यह हमारा ध्येय था और आगे भी रहेगा। विश्व गुरु का अर्थ किसी को सीख देना नहीं अपने व्यवहार से आदर्श उत्पन्न करना ताकि दूसरे हमसे सीखें। भारत इसलिए कि हर देश का अपना ध्येय होता है जिसे उसे प्राप्त करना पड़ता है। भारत का ध्येय संपूर्ण विश्व का कल्याण है। केवव भारतीयों ने ही अपने अंदर देखते - देखते संपूर्ण ब्रह्मांड से साक्षात्कार किया। तो स्वयं को ब्रह्मांड का अंग मानने वाला भारत कभी संकुचित स्वार्थ या दूसरों को कुचलने उन पर प्रभुत्व जमाने का चरित्र अपना ही नहीं सकता। इस देश ने दूसरों के कल्याण के लिए अपने स्वार्थ को तिलांजलि देने का उदाहरण प्रस्तुत किया है। संघ के आविर्भाव के पीछे डॉ केशव बलिराम हेडगेवार की स्वतंत्रता आंदोलन की सक्रिय भूमिका थी। उन्होंने क्रांतिकारी धारा, उसके बाद कांग्रेस,समाज सुधार और धर्म सुधार आंदोलनों की अपनी भूमिकाओं से समझा कि जिन कारणों से भारत लंबे समय तक गुलामी झेलता रहा उनको दूर करना तथा फिर वैसी स्थिति उत्पन्न न होने देना ही एकमात्र रास्ता है। इसीलिए उन्होंने हिंदू समाज के संगठन के रूप में संघ के शुरुआत की घोषणा 1925 में की। इसके साथ सुनिश्चित किया कि संघ केवल शाखा के माध्यम से उस रूप में मनुष्य का निर्माण करेगा, स्वयंसेवक बनाएगा। संघ इसके अलावा कुछ नहीं करेगा लेकिन स्वयंसेवक सब कुछ करेंगे।
बनी बनाई धारणाओं से बाहर निकाल कर देखें तो संघ का यही चरित्र आपको प्रत्यक्ष दिखाई पड़ेगा। जिन्हें संघ का अनुषांगिक क्षेत्र कहा जाता है वे सारे संगठन स्वयंसेवकों द्वारा आरंभ किए गए। वे संघ के स्वयंसेवक हैं, इसलिए उनके साथ प्रत्यक्ष जुड़ाव रहता है। लेकिन जैसा भागवत ने कहा हम नियंत्रित नहीं करते सभी स्वायत्त हैं। नए क्षितिज के व्याख्यान में भागवत ने पांच परिवर्तनों की बात की। पिछले 1 वर्ष से संघ की ओर से पांचो विषय अर्थात कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, स्वदेशी और आत्मनिर्भरता ,पर्यावरण तथा नागरिक कर्तव्य बोध देश के सामने रखे जा रहे हैं। समाज संबंधहीनता की ओर बढ़ रहा है तथा परिवार परंपरा कमजोर होने, टूटने से ऐसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं जिनका कोई समाधान नहीं। इसलिए शताब्दी वर्ष में सबसे ज्यादा जोर इसी पर है। सामाजिक समरसता यानी समाज में कोई ऊंच-नीच नहीं, छुआछूत नहीं।
डॉ. भागवत ने कहा कि आज जाति की भूमिका है नहीं ,लेकिन हमारे अंदर यह है कि हम फलां जाति के वह फलां जाति के और इससे ऊंच- नीच का भाव पैदा होता है। तो श्मशान , पानी और देवस्थान सभी के लिए ये समान रूप से उपलब्ध हों, हमारे एक दूसरे के घर जाने- आने का संबंध विकसित हो। स्वदेशी- जो कुछ देश में उपलब्ध है पहले उसे लें उसके बाद विदेशी की ओर। विकास के वर्तमान ढांचे ने पूरे विश्व के समक्ष पर्यावरण का ऐसा संकट पैदा किया जिससे हमारा अस्तित्व खतरे में है। रास्ता प्रकृति को केंद्र में रखकर जीवन प्रणाली अपनाना है। चाहा है वहां से एकाएक नहीं मुड़ सके थे लेकिन धीरे-धीरे टर्न होना पड़ेगा। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर अपने देश व समाज के प्रति दायित्व पालन का चरित्र पैदा हो। संविधान, कानून और व्यक्तिगत सामाजिक गरिमा के स्पालन करने का सामूहिक चरित्र ही भारत को विश्व गुरु बनाएगा। स्वयंसेवक पूरे वर्ष लोगों के बीच यही बिंदु लेकर जाएंगे।
इनमें वे विषय भी आए जिन पर सबसे ज्यादा विवाद खड़े होते हैं। अर्थात हिंदू ही क्यों ? भागवत ने कहा कि आप हिंदवी कहिए भारतीय कहिए हमें आपत्ति नहीं है। हिंदू का कंटेंट यानी विषय वस्तु हमारे लिए महत्वपूर्ण है। हिंदू यानि व्यापक व उधर सोच तथा व्यवहार। हम अपने विचार ,संस्कृति पर गर्व करें लेकिन दूसरे का जो है उसे सम्मान दें, उनसे नफरत न करें। मुसलमानों और ईसाइयों से विरोध और नफरत क्यों? भागवत ने कहां कि रामकृष्ण परमहंस ने तीनों पद्धतियों से साधना कर बताया कि सब एक ही जगह पहुंचते हैं। यहीं पर उन्होंने कहा कि 40 हजार वर्षों से हमारा डीएनए एक है केवल कर्मकांड बदला है। भागवत ने कहा कि मुसलमानों के अंदर भय पैदा किया कि आप उनके साथ मिलकर रहोगे तो मजहभ खत्म हो जाएगा और हमारे अंदरभाव है कि इन्होंने लड़ाइयां लड़ीं, धर्म परिवर्तन किया, देश बांटा, इसलिए इनको शंका से देखो। इन दोनों से बाहर निकल परस्पर संवाद और सहकार की आवश्यकता है। तो हिंदू, मुसलमान औल ईसाई आदि को लेकर यही है संघ की सोच। राष्ट्रभाषा? भारत की सभी भाषाएं राष्ट्रभाषा है। हां , व्यवहार के लिए कोई एक भाषा अखिल भारतीय होनी चाहिए। अंग्रेजी सीखने जानने में बुराई नहीं है क्योंकि उनमें भी हमारे लिए बहुत कुछ है किंतु अंग्रेजी या विदेशी भाषा हमारी राष्ट्रभाषा नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि हस्ताक्षर हम अपनी भाषा में शुरू करें और इसे लेकर गर्व करें। भारत को समझने के लिए संस्कृत जानना चाहिए लेकिन हम इसे अनिवार्य नहीं कर सकते। सरकार और नीतियों के संदर्भ में इतना ही कि हमारी विशेषज्ञता शाखा लगाने, मनुष्य निर्माण करने की और उनकी विशेषज्ञता राजनीति करने ,सरकार चलाने की है। वह अपना काम करते हैं हम अपना काम। हमें कुछ समझ में आता है तो सुझाव देते हैं। संघ भाजपा को नहीं चलाता और चला भी नहीं सकता है। सबसे बढ़कर मोहन भागवत ने यह कहा कि हम किसी को भी अपना विरोधी और शत्रु मानकर व्यवहार नहीं करते, इसीलिए कल के अनेक विरोधी आ साथ हैं और कल और भी आएंगे। विरोध करने वाले भी अपने ही हैं यह मानकर स्वयंसेवक व्यवहार करते हैं और यही बना रहेगा। सबके बावजूद उनका आग्रह था कि आप धारणाओं के आधार पर या हमारे कहे अनुसार संघ को मत मानिए अंदर आकर इसे देखिए समझिए।
भागवत के पूरे संवाद को निष्पक्ष होकर देखें तो निष्कर्ष आएगा कि 100 वर्षों की उम्र सीमा में पहुंचने के बाद विचारधारा तथा स्वयंसेवकों द्वारा विविध क्षेत्रों में किए गए कार्यों के अनुभव ने संगठन के अंदर अतुलनीय आत्मविश्वास उत्पन्न किया है, समाज, देश और विश्व के व्यवहारिक यथार्थ की समझ विकसित होने के साथ उनके समाधान के रास्तों की भी गहरी अनुभूति हुई है। यही कारण है कि शताब्दी वर्ष पर उपलब्धियां और उत्सव मनाने की जगह भागवत ने संवाद के दूसरे दिन उन रास्तों पर कार्य करने की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की। हालांकि वहां उपस्थित जनसमूह के अलावा सोशल मीडिया या मुख्य मीडिया के माध्यम से देखा, पढ़ा , जाना उनमें से हर कोई अपनी सोच के अनुसार कुछ बिंदु निकल सकता है। कुल मिलाकर कहा सकते हैं कि यह संवाद विरोधियों के अंदर संघ पर पुनर्विचार करने, समर्थकों के अंदर सोच को सही धरातल पर खड़ा करने एवं स्वयंसेवकों के भीतर दायित्व बोध के साथ अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करने वाला माना जाएगा।
गुरुवार, 4 सितंबर 2025
परिवर्तन एवं महिला शक्ति संगठन व एनसीपी (एसपी) दिल्ली इकाई ने बाढ़ पीड़ितों को दी खाद्य सामग्री, जनता से की अपील आगे आकर पीड़ितों की मदद करें
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