शुक्रवार, 3 मार्च 2017

उन्हें ‘गुजरात’ दिखता है, ‘गोधरा’ नहीं

श्याम कुमार

26 एवं 27 फरवरी की तिथियां देश के दो महान क्रांतिकारियों के महाप्रयाण की तिथियां हैं। 26 फरवरी को महाविभूति वीर सावरकर का निधन हुआ था तो 27 फरवरी को महाविभूति चंद्रषेखर आजाद देश के लिए बलिदान हो गए थे। देश का दुर्भाग्य है कि जो नेहरू वंष सत्ता के सारे सुख भोगते हुए सिर्फ अपने नाम को आगे बढ़ाता रहा तथा देश की वास्तविक महाविभूतियों के नाम को दबाने का भरपूर कुचक्र रचा, उस वंष के लोगों की जन्म एवं मरण की तिथियों पर हमारे देश के राष्ट्रपति श्रद्धासुमन अर्पित करने जाते हैं। लेकिन देश के लिए जीवन निछावर कर देने वाली वास्तविक महाविभूतियों की जयंतियों व पुण्यतिथियों पर वह श्रद्धांजलि के दो शब्द बोलने का कर्तव्य-निर्वाह भी नहीं करते। 27 फरवरी की तिथि में एक और बड़ा बलिदान हुआ था। वर्ष 2002 की 27 फरवरी को गुजरात के गोधरा रेल स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन की दो बोगियां फूंक दी गई थीं, जिनमें सवार सारे कारसेवक नृषंसतापूर्वक जिंदा जला डाले गए थे। वे कारसेवक अपने परिवारों के साथ, जिनमें छोटे-छोटे बच्चे भी षामिल थे, अयोध्या में रामलला के दर्षन कर ट्रेन की दो आरक्षित बोगियों में सवार होकर गुजरात अपने घर लौट रहे थे। गोधरा के मुस्लिम आतंकियों को इस बात की जानकारी थी और उन्होंने उनकी हत्या करने का कुचक्र रच लिया था। ट्रेन जब गोधरा स्टेशन से प्रस्थान कर आगे मुसलिम आबादी वाले क्षेत्र में आउटर पर पहुंची तो उसे रोक लिया गया और दोनों बोगियों पर जबरदस्त पथराव कर फूंक दिया गया। इस प्रकार कारसेवकों को उनके बाल-बच्चों सहित निर्ममतापूर्वक जिंदा जला डाला गया। जब यह दिल दहला देने वाली खबर फैली तो उसकी प्रतिक्रिया में गुजरात में दंगे भड़क उठे थे।

गोधरा का कांड इतना जघन्य काण्ड था कि वैसी अमानवीय घटनाएं कम हुआ करती हैं। उस कुकृत्य की देशभर में निंदा होनी चाहिए थी तथा दोशियों को कठोरतम दण्ड दिया जाना चाहिए था। लेकिन वैसा बिलकुल नहीं किया गया तथा देश की फर्जी सेकुलर जमात ने उस पर पूरी तरह चुप्पी साध ली। ऐसा प्रदर्षित किया गया, जैसे वह घटना हुई ही नहीं तथा हुई भी तो बहुत मामूली घटना थी। यहां तक कहा गया कि कारसेवकों ने स्वयं आग लगा ली थी। इसके विपरीत गोधरा काण्ड की प्रतिक्रिया में जो दंगे भड़के, उन पर भयंकर शोर मचाया गया और वह शोर अभी भी जारी है।  

जवाहरलाल नेहरू ने देश में फर्जी सेकुलरवाद की जो नींव डाली, उसमें सिर्फ मुसलमानों की जान को कीमती समझा जाता है। हिन्दुओं की जान का कोई महत्व नहीं माना जाता है और न उनके हित की बात की जाती है। सारे नेता ‘हाय मुसलमान, हाय मुसलमान’ करते रहते हैं तथा घोर साम्प्रदायिक बातें करके भी अपने को सेकुलर घोशित करते हैं। इसके विपरीत यदि कोई हिन्दूहित का तनिक भी उल्लेख कर दे तो उसे साम्प्रदायिक घोषित कर दिया जाता है तथा उसकी कटु निंदा की जाती है। गत दिवस एक टीवी चैनल पर एक मौलाना ने कहा कि वह पहले मुसलमान हैं, जिसके बाद भारतीय हैं। पहले भी टीवी-चैनलों पर एवं भाशणों में मौलाना व अन्य बहुत पढ़े-लिखे लोग ऐसा ही कहते रहे हैं, किन्तु उस पर कभी कोई आपत्ति नहीं की जाती है। लेकिन यदि कोई हिन्दू कह दे कि वह पहले हिन्दू है, फिर भारतीय है तो उसकी चारों ओर घोर निंदा की जाने लगेगी। मनमोहन/सोनिया की कांग्रेस सरकार ने शड्यंत्र कर साध्वी प्रज्ञा एवं असीमानंद को झूठे देशविरोधी कृत्य में फंसा दिया, जिसके बाद उन्हें बदनाम करने की फर्जी सेकुलरियों में होड़ लग गई। मुशायरों में शायरों ने उन दोनों का उल्लेख करते हुए हिन्दुओं पर व्यंग्यात्मक रचनाएं पढ़ीं। लेकिन जब यह कहा जाए कि जितने गद्दार पकड़े जाते हैं, वे प्रायः सभी मुसलमान होते हैं तो तुरंत यह ‘टर्र-टर्र’ शुरू हो जाएगी कि ऐसा कहना साम्प्रदायिकता है। वे यह भी कहने लगते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।   

पिछले दिनों पाकिस्तान के जासूस के रूप में कुछ हिन्दू पकड़े गए, जिसके बाद हिन्दुओं पर तरह-तरह के लांछन लगाए जाने लगे हैं। इससे इनकार नहीं कि स्वार्थ के लिए हिन्दू भी देशद्रोह करते रहे हैं। जयचंद ने गद्दारी न की होती तो देश मुसलिम हमलावरों की गुलामी से बच जाता। कट्टर मजहबपरस्त मौलाना एवं राजनीतिक नेता हिन्दुओं के विरुद्ध जहर उगलते रहते हैं, फिर भी अपने को सेकुलर कहते हैं। जो हिन्दू नामधारी फर्जी सेकुलरिए हैं, वे उन कट्टरपंथी मुसलमानों से अधिक हमारे देश एवं हिन्दू धर्म को गंभीर क्षति पहुंचा रहे हैं। वे तो घर के भीतर रहकर वार कर रहे हैं। पिछले दिनों मुसलिम विद्वान एवं राष्ट्रवादी तारेक फतह पर कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा घातक हमला किया गया। उनका सिर काटने वाले के लिए 50 लाख रुपये के इनाम की घोशणा की गई है। लेकिन इसकी किसी भी सेकुलरिए ने निंदा नहीं की और न तारेक फतेह की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत की। बल्कि यह आरोप लगाया कि उनकी बातों से मुसलमानों की भावनाओं को चोट पहुंचती है। हकीकत यह है कि तारेक फतह जो बातें कहते हैं, वे मुसलमानों के वास्तविक हित की होती हैं। तसलीमा नसरीन ने बंगलादेश में मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों की सच्ची घटनाओं का अपनी पुस्तक में उल्लेख कर दिया तो कट्टरपंथी मुसलमानों ने आरोप लगा दिया कि उक्त उल्लेख से उनकी भावनाओं को चोट पहुंची है। केंद्र की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने फौरन उस पुस्तक एवं तसलीमा नसरीन पर प्रतिबंध थोप दिए। हिन्दुओं के विरुद्ध आपत्तिजनक बातों एवं हरकतों को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ कहकर बचाव किया जाता है, किन्तु मुसलिम कट्टरपंथियों या फर्जी सेकुलरियों की किसी हिन्दू-विरोधी बात का विरोध किया जाय तो वहां हिन्दुओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भूलकर निंदा-अभियान शुरू कर दिया जाता है। जवाहरलाल नेहरू द्वारा शुरू किए गए फर्जी सेकुलरवाद का आधार ही मुसलिम-तुष्टीकरण एवं हिन्दू-विरोध है। यही कारण है कि ऐसे लोगों को गोधरा का नृशंस हत्याकाण्ड नहीं दिखाई देता, केवल गुजरात का दंगा दिखाई देता है।  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/