शुक्रवार, 3 मार्च 2017

उप्र में अफसर ‘जुगाड़’ लगाने में जुटे

श्याम कुमार

उत्तर प्रदेश की नौकरशाही इस समय अपने को बिलकुल निस्पृह दिखाने की कोशिश कर रही है, लेकिन हकीकत कुछ और है। नौकरशाही चिंता में डूबी हुई है। वह बहुत टोह लेने की कोशिश कर रही है कि विधानसभा के चुनाव में क्या होने वाला है? अपनी सूंघने की शक्ति का वह भरपूर इस्तेमाल कर रही है। अनेक नौकरशाहों की सूंघने की शक्ति कुत्ते से भी तेज होती है और इसी के बल पर वे अपनी निष्ठाएं बदलकर हर राज में चांदी काटते रहते हैं। लेकिन यह पहला चुनाव है, जिसमें जनता पूरी तरह मौन है। उसकी चाल-ढाल या भाव-भंगिमा, किसी से कुछ झलक ही नहीं रहा है कि उसकी दिशा क्या है? तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। भांति-भांति के विवेचन किए जा रहे हैं। उन्होंने आईएएस की परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए भी जितना परिश्रम नहीं किया होगा, उतना परिश्रम वे चुनाव की रुझान जानने के लिए गहरे पानी में पैठ लगाकर कर रहे हैं। तमाम ‘गधों’ को ‘बाप’ बना रहे हैं कि शायद उनसे ही कुछ संकेत मिल जाय, लेकिन ‘गधे’ भी काम नहीं आ रहे हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी ने ज्योतिषियों के चुनाव-परिणामों को जो पटकनी दी थी, उसके बाद ज्योतिषियों को मौन रहने में ही अपनी इज्जत सुरक्षित लग रही है। अब कहीं से किसी भी ज्योतिशी की कोई भविष्यवाणी नहीं सुनाई देती है। 

सबसे ज्यादा खलबली उन अफसरों में है, जो मलाई काटने के आदी रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक भाषण में ऐसे ही अफसरों की चर्चा करते हुए कहा था-‘कुछ अफसर अपार क्षमता से परिपूर्ण होते हैं। महाभ्रष्ट होने के बावजूद उनमें यह योग्यता होती है कि वे हाकिम की इच्छा पूरी करने में पटु होते हैं और इसलिए जो भी सत्ता में आता है, ये उसके नजदीकी हो जाते हैं।’ उत्तर प्रदेश में कुछ दशकों से यही हो रहा है तथा महाभ्रष्ट अफसर चांदी काट रहे हैं। यहां हजारों-करोड़ की कमाई कर चुकने वाले अफसरों की ही नहीं, ऐसे लिपिकों आदि की भी लम्बी जमात है। कायदे से उन्हें जेल में होना चाहिए, लेकिन वे अपनी ‘कलाबाजी’ का इस्तेमाल कर सारे सुख-वैभव का उपभोग कर रहे हैं। वे किसी एक हाकिम की आंखों के तारे होते हैं तो अपनी पटाने की कला के बल पर उस हाकिम के कट्टर विरोधी के सत्ता में आ जाने पर उसकी आंख की पुतली बन जाने में सफल होते हैं। जनता को भी जिज्ञासा है कि अब यदि कहीं वर्तमान सत्ता की धुरविरोधी सत्ता आ गई तो वर्तमान समय में सोना-चांदी काट रहे अफसरों की बड़ी फौज का क्या होगा?

भविष्य का परिदृश्य साफ न होने के कारण ये ‘कलाबाज’ अफसर विभिन्न माध्यमों से अलग-अलग पार्टियों के खास लोगों तक पहुंचने की कोशिश में जुट गए हैं। वे बड़ी पार्टियों के ही नहीं, छोटी पार्टियों के भी प्रभावशाली लोगों को साध रहे हैं, ताकि यदि गठबंधन की सरकार बने तो वे उन छोटे दलों के माध्यम से ‘माखन वाली हांडी’ तक पहुंच सकें। कांग्रेस का दर्द ही यह हो गया था कि वह सत्ता के अभाव में ऐसी दयनीय स्थिति में पहुंच गई कि उसके पास चाटुकारी के लिए अफसर झांकने भी नहीं आते और ‘तबादला-पोस्टिंग’ के सुख से वह वंचित है। इसीलिए वह गठबंधन हेतु लालायित थी तथा उसके सौभाग्य से अखिलेश यादव के रूप में उसे उद्धारकर्ता मिल गया। अखिलेश यादव यदि उसे एक भी सीट नहीं देते तो भी वह सपा से गठबंधन के लिए तैयार हो जाती। यही कारण है कि उसके कई विधायक विपक्ष की भूमिका में होने के बावजूद मुख्यमंत्री की चाटुकारी की भूमिका निभाते थे। मायावती तक पहुंचना लगभग असम्भव होता है तथा उनके पास अपने चहेते अफसरों की बड़ी सूची है। वे अफसर अभी किनारे पड़े माला जप रहे हैं। सुना जा रहा है कि मायावती सत्ता में आईं तो शशांक शेखर के अभाव में वह कुंवर फतेह बहादुर को कैबिनेट सचिव बनाएंगी। एक अफसर, जो कभी उनका सबसे खास हुआ करता था और सपा के सत्तारूढ़ होने पर अखिलेश यादव का निकटवर्ती हो गया, उसके बारे में सुना जा रहा है कि वह फिर मायावती के निकट जाने की जुगाड़ में है तथा वह सफल हो गया तो वह मुख्यमंत्री बनने पर मायावती का प्रमुख सचिव बनेगा।

जुगाड़ू अफसर भारतीय जनता पार्टी को साधने में भी अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं। मुझे आश्चर्य हुआ कि जब भारतीय जनता पार्टी के एक खास व्यक्ति ने ऐसे जुगाड़ू अफसरों का पक्ष लेते हुए कहा कि उन अफसरों की कुछ भी पृष्टभूमि रही हो, नई सरकार यदि उनकी योग्यता का इस्तेमाल करती है तो हर्ज क्या है? हमेशा चांदी काटने वाले ऐसे जुगाड़ू अफसर भारतीय जनता पार्टी की कमजोर कडि़यों को टटोल रहे हैं। भाजपा के एक कद्दावर नेता को भी उन कमजोर कडि़यों में माना जा रहा है। जुगाड़ू अफसर पटाने की क्रिया में धन-बल का तो इस्तेमाल करते ही हैं, जाति-बल का भी पूरा उपयोग करते हैं। हमारे यहां पैसे के बाद जाति ऐसा चुम्बक है, जो बड़ी आसानी से किसी को अपने साथ चिपकाने में सफल हो जाता है। लखनऊ में मेरे एक मित्र रामेश्वर प्रसाद सिंह थे, जो यहां पूर्वाेत्तर एवं उत्तर रेलवे में मंडल रेल प्रबंधक रह चुके थे। चूंकि मैं जातिवाद का कट्टर विरोधी हूं और उसे हिन्दू समाज का सबसे बड़ा षत्रु मानता हूं, इसलिए मुझे किसी की जाति जानने में कभी कोई रुचि नहीं होती। अटल-सरकार में जब नीतीश कुमार रेलमंत्री बने थे तो मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ था कि रामेश्वर प्रसाद सिंह कुर्मी हैं और इसी वजह से वह कुर्मी नीतीश कुमार के निकट हो गए। उस समय वे रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष बनने में भी सफल हो गए थे। बहरहाल, उत्तर प्रदेश की नौकरशाही पूरी शिद्दत से यह जानने में जुटी हुई है कि उत्तर प्रदेश में ऊंट किस करवट बैठने वाला है?    

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