बुधवार, 19 फ़रवरी 2025

कश्मीरी पंडितों को उनके घर वापसी के बगैर हिंदू राष्ट्र की बात करना बेमानी

बसंत कुमार

आज कल पूरे भारत में प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ की चर्चा जोरों पर है कहा जाता है कि अब तक 50 करोड़ से अधिक लोग संगम में स्नान कर चुके है और मौनी अमावस्या के स्नान के दिन भारी भीड़ के बीच अफरा-तफरी के बीच सैकड़ों लोगों की मौत और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में 18 लोगों की मौत के बावजूद महाकुंभ में जाने वालों की भीड़ में कमी नहीं आ रही है। आम आदमी से लेकर नेता, अभिनेता, उद्योगपति सभी संगम में आस्था की डुबकी लगाना चाहते हैं पर इसी बीच में कुछ स्वयंभू सनातन के पोषक रह रहकर भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मंशा की घोषणा कर देते हैं। उनकी यह मांग अयोध्या में भगवान राम के भव्य मन्दिर के निर्माण के बाद से ही शुरू हो गई थी, यहां तक की प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान संतों की धार्मिक संसद में भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया था।

महाकुंभ प्रारंभ होने पर विभिन्न अखाड़ों की जिद पर कुंभ परिसर में अन्य धर्म (विशेष रूप से मुसलमानों) के लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी और रेहड़ी-पटरी सहित सभी दुकानों पर दुकानदारों को अपनी नाम की प्लेट लगाना अनिवार्य कर दिया था जिससे तीर्थ यात्री किसी मुसलमान या किसी छोटी जाति (अछूत) से खाने-पीने का सामान न खरीद सकें। इसी प्रकार के आदेश कुंभ से पूर्व हरिद्वार में कांवड़ यात्रा के समय दिए गए थे और यह आदेश हिंदू राष्ट्र का समर्थन करनी वाली सरकारों ने दिया था। ये लोग ये कैसे भूल गए कि बाबा बर्फानी प्रसिद्ध अमरनाथ गुफा एक मुसलमान चरवाहे ने देखी थी और आज भी वहां के मुसलमान अमरनाथ यात्रियों की सेवा व सहायता करते हैं और उसी प्रकार मां वैष्णो देवी की यात्रा पर गए यात्रियों को पिट्ठू और समान ढोने का काम मुसलमान करते हैं पर इन नए पाखंडियों के कारण हिंदुओं और मुसलमानों का एक दूसरे के त्योहारों में शामिल होना बंद हो गया है। मैंने अपने दो दशक के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में अनेक राजनेताओं और सामाजिक संगठन से जुड़े लोगों के यहां होली दिवाली और ईद मनाई है और सबसे अच्छी होली पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और सबसे अच्छी ईद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार जी के यहां मनाई जाती है। पर विगत कुछ वर्षो में ऐसी रुढिवादिता क्यों?

दो दिन पूर्व मुझे इंद्रेश कुमार जी के जन्मदिन के अवसर पर आयोजित किये जाने वाले कार्यक्रम में सम्मिलित होने का अवसर मिला, उस कार्यक्रम में हिंदू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध धर्म मानने वाले तिब्बती भी मिले और सब ने बड़े उत्साह से इंद्रेश कुमार जी का जन्मदिन मनाया, वहां मुझे यह अनुभव हुआ कि यहां आने वाले न हिंदू हैं, न मुसलमान हैं, न सिक्ख हैं, न सवर्ण हैं और न दलित हैं बल्कि ये वे लोग हैं जो भारत से बेइंतहा मुहब्बत करते हैं। इनका धर्म और ईमान हिंदुस्तान से मुहब्बत है फिर वो कौन लोग हैं जो हिंदू राष्ट्र के नाम पर देश और समाज की बांट रहे हैं।

कुछ वर्ष पूर्व मैंने प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खां का एक इंटरव्यू देखा था जिसमें उन्होंने बनारस की संस्कृति और गंगा की भूरि-भूरि प्रसंशा की थी। उनके पूरे इंटरव्यू में कहीं हिंदू या मुसलमान होने की झलक नहीं दिखी बस दिखी तो हिंदुस्तनियत ही दिखी। जैसा हम सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी की ओर से अजमेर शरीफ ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मुख्तार अब्बास नकवी चादर चढ़ाने जाया करते थे और संघ के वरिष्ठ प्रचारक कई बार हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर दिया जलाने जाया करते है और वे राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के संरक्षक भी हैं फिर ऐसा क्या है कि हिंदुओं के धार्मिक त्योहारों पर मुसलमानो का क्यों? भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति में सभी धर्मों व जातियों का समावेसित किया जाता रहा है पर आज हम हिंदू राष्ट्र की आड़ में हिंदू-मुसलमान करके लड़ रहे है।

हिंदू राष्ट्र का राग अलापने वाले सनातनी संस्कृति के झंडा बरदारों को हिंदुओं के धार्मिक त्योहारों विशेषकर महाकुंभ और कांवड़ के दौरान मुसलमानों का प्रवेश रोकने के बजाय तिरस्कृत हिंदुओं को सनातन की मुख्यधारा में लाने का प्रयास करना चाहिए और ये सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी को भी उसकी जाति के आधार पर मन्दिर में जाने से न रोका जाए और दलित दूल्हे को अपनी बारात में घोड़ी पर चढ़ने से न रोका जाए। इसके साथ ही हर सनातनी का कर्तव्य बनता है कि वर्ष 1990 में आतंकवादियों की धमकी से डर कर हजारों कश्मीरी पंडितों को घर छोड़कर भागना पड़ा था और आज भी विस्थापितों की तरह जिंदगी जी रहे हैं। वर्ष 2019 में संविधान में विवादित अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया गया और कश्मीर शेष भारत से जुड़ गया है पर आज भी इन कश्मीरी पंडितों को उनके घरों में नहीं बसाया जा सका और हिंदू राष्ट्र का राग अलापने वाले लोग इन कश्मीरी पंडितों को अपने घर वापस लाने के बजाय अन्य नकारात्मक कामों में लगे है।

जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ राजनेता व पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने यह बात स्वीकार की कि "भारत में मुसलमान नहीं थे, हिंदुओं के धर्म बदलकर मुसलमान बनाए गए। 600 साल पहले कश्मीर में मुसलमान नहीं थे यहां भी पंडितों का धर्म बदला गया" जब गुलाम नबी आजाद के स्तर का बड़ा नेता जो स्वयं मुसलमान है और यह स्वीकार करते हैं कि कश्मीर में मूल रूप से कश्मीरी पंडित और अन्य हिंदू रहते थे तो फिर यहां से पलायन करने के लिए मजबूर कश्मीरी पंडितों को वापस क्यों नहीं बसाया जा रहा जबकि पिछले एक दशक से केंद्र में राष्ट्रवादी विचारधारा वाली सरकार सत्ता में है। पर आज भी पाकिस्तानी कश्मीर के लोगों को आजाद कश्मीर का सपना नहीं दिखाते और इसी भय से कश्मीरी पंडित घर वापसी का साहस नहीं कर पा रहे हैं। इसके लिए केंद्र सरकार या राज्य सरकार को दोष दिया जाए पर असली नुकसान तो कश्मीरी पंडितों का है जो 35 वर्षों से निर्वासित जीवन जी रहे हैं।

यह सही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के दृढ़ संकल्प से आजादी के सात दशक बाद संविधान के विवादित अनुच्छेद 370 और 35 समाप्त कर दिया गया है फिर भी कश्मीरी पंडितों की घर वापसी नहीं हो पा रही है फिर हम कैसे हिंदू राष्ट्र का सपना देख सकते हैं। इसलिए कुछ कट्टर हिंदुओं का ऐसे हालत में हिंदू राष्ट्र का राग अलापना बेमानी होगी।

(लेखक एक पहल एनजीओ के राष्ट्रीय महासचिव और भारत सरकार के पूर्व उपसचिव है।)

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