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निर्मल रानी |
भारतवर्ष में आयोजित होने वाले सबसे विशाल एवं विराट धार्मिक समागम को 'कुंभ मेला' के नाम से जाना जाता है। यह आयोजन प्रयाग व हरिद्वार में पवित्र गंगा नदी के तट पर, उज्जैन में शिप्रा नदी तथा नासिक में गोदावरी नदी के किनारे किया जाता है। देश दुनिया से आने वाले लाखों श्रद्धालु इन पवित्र नदियों में पौष पूर्णिमा व मकर संक्रान्ति जैसे पावन अवसरों पर स्नान करते हैं। यदि हम आयोजन स्थल की बात करें तो वार्षिक माघ मेला हो या 6 वर्षों के अंतराल में पड़ने वाले अर्ध कुंभ या फिर 12 वर्षों के अंतराल में आयोजित होने वाले पूर्ण कुंभ,सभी आयोजनों के लिये सबसे उपयुक्त, खुला व विशाल स्थान प्रयागराज ही है। यहाँ गंगा-यमुना तथा संगम के दोनों किनारों पर कई किलोमीटर लंबे खुले स्थान हैं जहाँ लाखों श्रद्धालु एक ही समय में सुगमता पूर्वक रुक सकते हैं स्नान कर सकते हैं। परन्तु इस बार सरकार द्वारा इस आयोजन को 'महाकुंभ' के रूप में प्रचारित किया गया तथा यह भी बताया गया कि यह 144 वर्षों बाद आयोजित होने वाला 'महाकुंभ ' है। हालांकि इस दावे पर उँगलियाँ उठ रही हैं। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जैसे संत 144 वर्ष बाद के दावे पर यह कहते हुये सवाल उठा रहे हैं कि इससे पहले 2013 व 2001 के कुंभ को भी 144 वर्ष बाद पड़ने वाला महाकुंभ बताया गया था।
इसके अतिरिक्त इस बार का आयोजन जहाँ श्रद्धालुओं का करोड़ों की संख्या में मेले में आवागमन, विदेशी श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में शिरकत , विशिष्ट व्यक्तियों की उपस्थिति,आधुनिकता,उच्चस्तरीय हाई टेक ठहरने की व्यवस्था जैसी अनेक बातों को लेकर चर्चा में रहा वहीं पहली बार यह देखा गया कि स्वयं मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी द्वारा राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री सहित देश के तमाम विशिष्ट जनों को महाकुंभ में आने का न्योता दिया गया। हालाँकि मुख्यमंत्री द्वारा व्यक्तिगत तौर पर लोगों को निमंत्रण देने की कई जगह आलोचना भी हुई। कुछ लोगों का कहना था कि यह धार्मिक आयोजन है इस पर सभी का अधिकार है इसलिये आयोजक के रूप में न्योता देने का कोई अर्थ नहीं है। परन्तु राजनीति के वर्तमान दौर में जबकि बिना कुछ किये ही राजनेता श्रेय लेने को आतुर रहते हैं ऐसे में इतने बड़े आयोजन की भव्यता दिव्यता व सफलता का श्रेय डबल इंजन की सरकारें न लें यह आख़िर कैसे हो सकता है।
परन्तु दुर्भाग्यवश इतना विशाल आयोजन प्रयागराज से लेकर दिल्ली तक कुप्रबंधन का शिकार रहा। मेला क्षेत्र में 30 दिन के अंदर अलग अलग क्षेत्रों में पांच बार तो आगज़नी की घटनायें घटीं। जबकि पूरे मेला क्षेत्र में 350 से ज़्यादा फ़ायर ब्रिगेड, 2000 से अधिक प्रशिक्षित अग्निशामक , 50 अग्निशमन केंद्र और 20 फ़ायर पोस्ट बनाए गए थे साथ ही अखाड़ों और टेंट में अग्नि सुरक्षा उपकरण भी लगाए गए थे। उसके बावजूद यह हादसे पेश आये ? इसी तरह कुंभ मेला क्षेत्र में अनेक बार भगदड़ मची। जिसमें दर्जनों लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे। अभी भी कई लोगों को अपने खोये परिजनों की तलाश है।
ऐसे में यह सवाल उठना तो लाज़िमी है कि जब राज्य से लेकर केंद्र सरकार के मुखिया तक महाकुंभ के आयोजन की चर्चा कर रहे हों,लोगों को स्वयं व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित कर रहे हों। '144 वर्ष बाद हो रहे आयोजन का' अप्रमाणित हौव्वा खड़ा किया गया हो,अतिथियों के लिये प्रोटोकाल के अनुसार मंत्री स्तर के लोग उन्हें स्नान कराने के लिये तैनात हों,टी वी अख़बार महाकुंभ के गुणगान व प्रचार से पटे पड़े हों, ऐसे में भारत जैसे विशाल एवं धर्म प्रधान देश में करोड़ों लोगों का पहुंचना तो स्वभाविक ही था। इसमें भी कोई शक नहीं कि इसबार का आयोजन पिछले कुंभ आयोजन की तुलना में अधिक भव्य रहा। परन्तु सवाल यह भी है कि कि चाहे वह सरकार हो या राजनेता,जो भी इस महाआयोजन का श्रेय लेगा निश्चित रूप से इस मेले में हुये कुप्रबंधन तथा असामयिक मौतों की ज़िम्मेदारी भी उसी को लेनी पड़ेगी।
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