अवधेश कुमार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबू धाबी में अक्षरधाम मंदिर का उद्घाटन निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक घटना है। किसी इस्लामिक देश में संपूर्ण सनातन रीति-रिवाज से मंदिर का निर्माण, पूजन, प्राण प्रतिष्ठा , उद्घाटन और बिना किसी बाधा के सारे कर्मकांडों का पालन होना सामान्य घटना नहीं है। इस मंदिर के निर्माण की कहानी पढ़ने के बाद लगता है कि असंभव संभव हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी को इस मामले में सौभाग्यशाली मानना होगा कि उनके कार्यकाल में ही इसके लिए जमीन मिली, शिलान्यास हुआ और उन्हें ही इसके उद्घाटन का भी अवसर मिला। उद्घाटन के दौरान अपने भाषण में उन्होंने कहा भी कि मैं सौभाग्यशाली हूं कि अयोध्या में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अबू धाबी में अक्षरधाम मंदिर के उद्घाटन का साक्षी बना हूं। 20 अप्रैल, 2019 को महंत स्वामी महाराज और प्रधानमंत्री मोदी ने इसका शिलान्यास किया था और लगभग 5 वर्ष बाद दोनों ने इसका उद्घाटन भी किया। 27 एकड़ में फैला यह मंदिर 108 फीट ऊंचा है जिसकी लंबाई 262 फिट एवं चौड़ाई 180 फिट है। इसमें 18 लाख पत्थर की ईंटें लगी है और 30 हजार मूर्तियां हैं। संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति और अबू धाबी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन जायद अल नह्यान की उदारता का अभिनंदन करना होगा जिन्होंने न केवल इसकी अनुमति दी बल्कि कुल 27 एकड़ जमीन दी तथा हर तरह का आवश्यक सहयोग भी किया। किंतु यह भी सच है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पहल नहीं की होती तो मंदिर का कितने भव्य रूप में सरकार होना संभव नहीं होता।
मंदिर का सपना 1997 में देखा गया था। सच यही है कि मोदी के आने के बाद ही काम आगे बढ़ा। अक्षरधाम मंदिर निर्माण समिति के लोग सरकार से संपर्क करते रहे किंतु ऐसी सफलता नहीं मिली। सन 2015 में प्रधानमंत्री के रूप में मोदी की पहली संयुक्त अरब अमीरात यात्रा के दौरान उन्होंने सही तरीके से इस विषय को रखा और फिर रास्ता निकलने लगा।
अक्षरधाम के दुनिया भर में 1200 मंदिर हैं और सबकी अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। किंतु अबू धाबी का मंदिर सबसे विशिष्ट और भविष्य की दृष्टि से विश्व में अलग-अलग संस्कृतियों , सभ्यताओं, मजहबों आदि के बीच संबंध तथा शांति की आशा पैदा करने वाला है। यदि संयुक्त अरब अमीरात जैसे पूर्ण इस्लामी शासन के अंदर वैदिक हिंदू रीति से मंदिर का निर्माण और कर्मकांड संभव है तो यह मानने का कोई कारण नहीं कि मजहबी कट्टरपंथ को समन्वयवादी परस्पर सहकार की दिशा में मोड़ा नहीं जा सकता। मुख्य बात है पहल करने और उसके अनुरूप भूमिका निभाने की। हिन्दू या सनातन संस्कृति की विशेषता ही समन्वयवादी है। इसी में वह क्षमता है जो सभी मजहबों, पंथों, संस्कृतियों-सभ्यताओं के अंदर एक ही भाव को महसूस कर सबके बीच समन्वय और सहयोग कायम करने का नेतृत्व कर सकता है। प्रधानमंत्री ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा भी कि एक ही ईश्वर को, एक ही सत्य को ज्ञानी अलग-अलग तरह से बताते हैं। यह भारत की मूल चेतना का हिस्सा है। हमें विविधता में बैर नहीं लगता, बल्कि विविधता ही विशेषता लगती है। जैसा प्रधानमंत्री ने बताया मंदिर में पग-पग पर विविधता में विश्वास की झलक दिखती है। दीवारों पर इजिप्ट के धर्म और बाइबिल की कहानियां उकेरी गई हैं तो वॉल ऑफ हारमनी को बोहरा समाज ने बनवाया है तथा लंगर की जिम्मेदारी सिख भाइयों ने ली है।
वास्तव में इस मंदिर में हर देवी देवता के मंदिर हैं और उनकी लीलाएं पत्थरों पर मूर्तियों से उतारी गई है। पर इसको इस तरह निर्मित किया गया है कि विश्व का कोई भी मजहब व पंथ इसे अपने से अलग न देखे। मंदिर के निर्माण में हर धर्म के व्यक्ति ने योगदान दिया है। इस मंदिर का निर्माणकर्ता बीएपीएस यानी बचासन वासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामी नारायण संस्था हिंदू संस्था है, जमीन इस्लामी सरकार ने दिया, मुख्य आर्किटेक्ट ईसाई, निदेशक जैन , प्रोजेक्ट मैनेजर सिख ,स्ट्रक्चर इंजीनियर बौद्ध तथा कंस्ट्रक्शन कांट्रैक्टर पारसी रहे। मंदिर की सात मीनारें संयुक्त अरब अमीरात की सात अमीरातों का प्रतीक हैं। प्रधानमंत्री ने संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति का उल्लेख करते हुए कहा कि सबके सम्मान का यही भाव हिज हाइनेस शेख जायेद के जीवन में दिखता है। उनका विजन है- वी आर ऑल ब्रदर्स।
संयुक्त अरब अमीरात सात अमीरातों के संग से बना है, इसलिए मंदिर के सात शिखर में सात भारतीय देवता विराजमान हैं, मंदिर में सात गर्भ गृह हैं। अगर भारतीय परंपरा के जानवर गाय, हाथी और मोर है तो अरब देश के ऊंट, रेगिस्तान के बकरी, बाज, फलों में अन्ननाश और खजूर को भी दीवारों में उकेरा गया है।
इस तरह यह मूल रूप से हिंदू मंदिर होने और हिंदुत्व व सनातन की विश्व कल्याणकारी विचार और भूमिका को पूरी तरह प्रभावी तरीके से रखते हुए भी सभी धर्म के प्रति सम्मान की भावना को स्वीकारने व बल देने का स्थल बन सकता है। आखिर संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति ने सब कुछ समझने के बाद ही इसके लिए स्वीकृति दी होगी। ध्यान रखिए, स्वयं अक्षरधाम संस्था ने दो प्रकार के मॉडल बनाए थे। एक संपूर्ण वैदिक हिंदू रिति का था और दूसरा एक समान भवन की तरह दिखने वाला था जिसमें अंदर देवी- देवताओं की मूर्तियां और अन्य चीजें। दूसरे मॉडल में बाहर हिंदू चिह्न नहीं थे। प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि जब यह प्रस्ताव शेख जायेद के पास गया तो उन्होंने कहा कि जो मंदिर बने वह सिर्फ मंदिर न बने, मंदिर जैसा दिखे भी। तो वह यूं ही नहीं हुआ होगा। जिस मजहब में बूतपरस्ती के विरुद्ध इतनी बातें हो वहां उन्हें समझा कर तैयार करना आसान नहीं रहा होगा। निश्चित रूप से हिंदुत्व की व्यापकता, जिसमें पूरे ब्रह्मांड के एक-एक कण के प्रति अपना दायित्व , सबमें एक ही तत्व देखने व सबको सम्मान देने के भाव को सही तरीके से समझाया गया होगा। एक बार अगर उन्हें समझ आ गया कि हिंदुत्व के अंदर किसी दूसरे से घृणा या किसी मजहब को छोटा करने का भाव नहीं है, बल्कि सम्मान का है तो फिर भविष्य में इसका असर केवल विपक्षीय नहीं वैश्विक भी हो सकता है। प्रधानमंत्री ने आशा प्रकट की किक् मंदिर मानवता के लिए बेहतर भविष्य के लिए बसंत का स्वागत करेगा। वास्तव में अगर हिंदू धर्म का यह मंदिर अपने उद्देश्य के अनुसार पूरी दुनिया के लिए सांप्रदायिक सौहार्द्य और वैश्विक एकता का प्रतीक बनने लगा तो सभ्यताओं और मजहबों के बीच टकराव और संघर्ष की तस्वीर बदलने लगेगी।
तो अबू धाबी में मंदिर के उद्घाटन के साथ इतिहास का वह अध्याय आगे बढ़ा है जो हिंदुत्व और भारत राष्ट्र का मूल लक्ष्य रहा है। यानी सभी धर्मों के अंदर एक ही भाव है और जीव-अजीव सबके अंदर एक ही तत्व, इसलिए हमें सबके कल्याण के रास्ते पर चलना है। अब तक संयुक्त अरब अमीरात अपने बुर्ज खलीफा, शेख जायेद मस्जिद और हाईटेक गगनचुंबी भवनों, मौल और मार्केट के लिए जाना जाता था। उसमें अब अबू धाबी का मंदिर भी जुड़ गया है। निश्चय ही न केवल संयुक्त अरब अमीरात और खाड़ी के अन्य देशों से बल्कि विश्व भर से लोग वहां आएंगे और हिंदू धर्म ,संस्कृति ,सभ्यता की व्यापकता को देखेंगे, समझेंगे। विश्व के दूसरे प्रमुख मजहबों के पूजा स्थलों में इस तरह का व्यापक समन्वयवादी साकार स्वरूप नहीं दिखाई पड़ता। इससे भारतीय संस्कृति-सभ्यता के प्रति उनके मन में सम्मान बढ़ेगा। इससे लंबे समय से हर स्तर के विद्रोहियों द्वारा सनातन और हिंदुत्व के साथ भारत एवं यहां की सभ्यता संस्कृति के बारे में फैलाए गए दुष्प्रचारों का खंडन होगा। यही नहीं इस तरह के स्थलों और विचारों के प्रसार के साथ भारत को विश्व कल्याण की दृष्टि से सभ्यताओं , संस्कृतियों और धर्मौ के बीच समन्वय, सौहार्द्र व बंधुत्व का संस्कार कायम करने के लिए नेतृत्वकारी भूमिका स्वयमेव प्राप्त होगी।
अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली- 110092, मोबाइल- 981027208
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