बुधवार, 25 जनवरी 2023

पराक्रम और पुरुषार्थ भाव की चेतना

अवधेश कुमार 


हमारे देश में किसी स्थान, द्वीप आदि का नामकरण वैचारिक स्तर पर विवादित बना दिया जाता है। लेकिन नामकरण का अपना महत्व है और इसके संदेश उस स्थान, देश और विश्व के लिए व्यापक और दीर्घकालिक होते हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की स्मृति में मनाए जाने वाले पराक्रम दिवस के अवसर पर अंडमान निकोबार के 21 अनाम द्वीपों का नाम 21 परमवीर चक्र से सम्मानित वीरों के नाम पर किए जाने की घटना का गहराई से विश्लेषण किए जाने की आवश्यकता है । हमारे देश में इस समय राजनीतिक विचारधारा को लेकर इतना तीखा विभाजन है कि नरेंद्र मोदी सरकार के ऐतिहासिक और राष्ट्र की मानसिकता को व्यापक रूप से सकारात्मक बदलाव के लिए उठाए गए कदमों पर भी सामान्यतः नकारात्मक टिप्पणियां होती हैं। हालांकी नेताजी का नाम और परमवीर चक्र विजेताओं के प्रति देश में सम्मान का इतना गहरा भाव है कि इसका कहीं से मुखर विरोध और वह भी सार्वजनिक तौर पर नहीं दिखा। बावजूद ऐसे लोगों की कमी नहीं जो मानते हैं कि मोदी सरकार इस तरह की प्रवृत्तियों से देश में सैनिकवादी मानसिकता को बढ़ावा दे रही है । सैन्यवाद भारतीय संस्कारों से निकला शब्द नहीं है। यह पश्चिम से निकला है जिसका अर्थ वहां के संदर्भ में और जिस रूप में पश्चिमी देशों के सैन्यवाद ने भूमिका निभाई उसी रूप में है। सेना को केवल हथियार चलाने और युद्ध लड़ने तक हम सीमित नहीं रख सकते। भारतीय संदर्भ में सैन्य भाव व्यक्ति के अंदर अनुशासन के साथ अपने राष्ट्र को लेकर प्रखर चेतना के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ा है। नरेंद्र मोदी सरकार के इस कदम को अगर इस दृष्टि से देखेंगे तो इसका महत्व समझ में आएगा।

23 जनवरी नेता जी के जन्मदिवस को मोदी सरकार ने पराक्रम दिवस के नाम पर मनाने का फैसला किया।  पराक्रम शब्द से ही अपने अंदर वीरता का बोध पैदा होता है। उसमें नेताजी का नाम जुड़ जाए तो ऐसा रोमांच पैदा होता है जिसकी कल्पना आसानी से नहीं की जा सकती। भारत का दुर्भाग्य रहा कि हमने पराक्रम, पुरुषार्थ और वीरता को आम पाठ्यक्रम से लेकर समाज की सामूहिक चेतना में विकसित करने की कोशिश नहीं की। उल्टे इस विषय में बात करने वाले को की आलोचना की जाती रही है । सच कहा जाए तो सत्य और शिक्षा की भूमिका पराक्रम पुरुषार्थ से बड़े राष्ट्र अभाव को कुंद करने की ही रही है। पराक्रम और सैन्यवाद दोनों में किसी तरह का साम्य नहीं है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस पश्चिमी अवधारणा के सैन्यवाद के प्रतीक नहीं थे। वह उस पराक्रम और पुरुषार्थ के प्रतीक थे जो अपने कर्मों से यह साबित करना चाहता था कि अंग्रेज जैसे दुष्ट उपनिवेशवादी शक्तियों के साथ युद्ध करके भारत को उनकी गुलामी से मुक्त किया जा सकता है। यानी अंग्रेजों को पराजित कर हमें स्वाधीनता अर्जित करनी है। जिन परमवीरों के नाम पर अन्य नाम द्वीपों का नामकरण हुआ उन्होंने भी अकारण हथियार नहीं उठाए थे, बल्कि हमलावरों ,आतंकवादियों से अपनी मातृभूमि व आम लोगों की रक्षा के लिए शुद्ध कर पुरुषार्थ का परिचय दिया था। अंडमान और निकोबार के सबसे बड़े अनाम द्वीप को प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा का नाम दिया गया है। जैसा हम जानते हैं स्वतंत्रता के तुरंत बाद पाकिस्तान की ओर से हथियारबंद घुसपैठ हुए। देश की रक्षा करते हुए 3 नवंबर, 1947 को बड़गांव हवाई अड्डे के पास एक हमले में मेजर सोमनाथ शर्मा बलिदान हो गए थे। अब ऐसे व्यक्ति के नाम पर सबसे बड़े द्वीप रखा जाना ही हमारे अंदर पुरुषार्थ और पराक्रम चेतना पैदा करती है। इन नामकरण में कारगिल युद्ध में केवल 25 साल की उम्र में बलिदान होने वाले परमवीर चक्र विजेता मेजर विक्रम बत्रा का नाम भी शामिल है। कायदे से इस दिशा में देश का ध्यान पहले जाना चाहिए था।

अंडमान निकोबार के बारे में हमारे देश में आम धारणा यही है कि यहां के सेल्यूलर जेल में अंग्रेजों के विरुद्ध लोहा लेने वाले हमारी जान की नींव को काला पानी की सजा के लिए भेजा जाता था। यह सच है। दूसरी ओर यह भी सच है कि 30 दिसंबर, 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने यहीं पहली बार तिरंगा फहरा कर अंग्रेजों से स्वतंत्रता स्वतंत्र होने की घोषणा की थी। यद्यपि उन्होंने इसके पूर्व 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर में स्वतंत्र भारत का झंडा फहराया था किंतु भारतीय भूमि पर वह 30 दिसंबर को ही आए थे। ध्यान रखिए ,नेता जी ने ही अंडमान और निकोबार के दो द्वीपों को शहीद और स्वराज द्वीप नाम दिए थे। मोदी सरकार ने इसका विस्तार करते हुए 2018 में अंडमान के रास आईलैंड का नाम सुभाष चंद्र बोस के नाम पर किया।

इन सबको एक साथ मिलाकर देखिए तो अंडमान निकोबार का चरित्र आमूल रूप से बदल गया है। सेल्यूलर जेल देखने जाएं तो वह स्पष्ट रूप से हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा झेले गए कष्टों और उनके अदम्य साहस की गाथा सुनाता दिखाई देगा। उन सारे सेनानियों के नाम वहां अंकित है। स्वातंत्र्य वीर सावरकर के नाम पर हवाई अड्डा तो सुभाष चंद्र बोस के नाम पर रास द्वीप तथा शहीद और स्वदेश द्वीपों के साथ परम चक्र विजेताओं के नाम पर 21 द्वीप। कल्पना करिए, वहां जाने पर किसी के अंदर अब किस तरह की ऊर्जा और चेतना पैदा होगी? वास्तव में समग्र रूप में अंडमान निकोबार अब राष्ट्र का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन गया है। किसी तीर्थ स्थल में हम ईश्वर की आराधना करते हुए अपने परिवार या समाज के लिए मंगल कामना करते हैं तथा पवित्र व शांत भाव से वापस लौटते हैं। इसी तरह अंडमान निकोबार दीप समूह राष्ट्र भाव का तीर्थ स्थल हो गया है जहां हर भारतीय के अंदर अपनी मातृभूमि के लिए जीने और कुछ करने का संकल्प पैदा होगा। इस संकल्प में राष्ट्रहित व समाजहित के लिए पराक्रम और पुरुषार्थ से बड़े लक्ष्य की प्राप्ति का भाव भी सम्मिलित होगा। वीर सावरकर और सुभाष चंद्र बोस का नाम ही हमारे अंदर स्फुलिंग पैदा करता है।

 नरेंद्र मोदी सरकार से आपका नीतियों और विचारों के स्तर पर मतभेद हो सकता है। किंतु देश के अंदर पराक्रम और पुरुषार्थ भाव पैदा करने संबंधी विचार योजनाओं और उठाए गए कदमों का सम्मान करना ही होगा । नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में देश में इतनी विस्तृत जानकारी किसी सरकार के कार्यकाल में सामने नहीं आई। किसी ने उनके जन्मदिवस को देश के अंदर नई स्फूर्ति पैदा करने के रूप में मनाने की कोशिश नहीं की। हम माने न माने पिछले 5-6 वर्षों में सत्ता राजनीति ही नहीं संपूर्ण राष्ट्र का स्वर बदला है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस आज एक प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में जनमानस में स्थापित हुए हैं।  ऐसा पहली बार हुआ कि 23 जनवरी को संसद के सेंट्रल हॉल में देश के 80 युवाओं ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को न केवल श्रद्धा सुमन अर्पित किया बल्कि उनमें से कुछ ने वहां भाषण भी दिए। इन युवाओं के चयन की लंबी प्रक्रिया अपनाई गई थी। इस प्रक्रिया में देश के हजारों युवकों ने भाग लिया। प्रतियोगिता में सफल होने के लिए उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन से लेकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भारतीय राष्ट्र की अवधारणा आदि पर व्यापक अध्ययन किया। ऐसे ही कदमों से देश की सोच और दिशा सही परिप्रेक्ष्य और पटरी पर वापस आती है। यह सामूहिक चेतना अनेक अवसरों पर आने वाले समय में कठिन से कठिन परिस्थितियों के बीच लोगों के साहस और पराक्रम की ऐसी तस्वीरें पैदा करेगा जिसकी हम आप कल्पना नहीं करते होंगे। यह बताता है कि अगर आपकी विचारधारा स्पष्ट है और आपमें संकल्पबद्धता है तो विचारधाराओं में  बंटी और खंडित मानसिकता वाले देश के अंदर भी सकारात्मक भाव, ऊर्जा और स्फूर्ति पैदा करने की ठोस नींव डाल सकते हैं। अंडमान निकोबार द्वीप समूह का रूपांतरण इसका साक्षात प्रमाण है।

अवधेश कुमार,  ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली–110092, मोबाइल-9811027208

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/