शनिवार, 9 जनवरी 2016

आतंकवाद विरोधी तैयारी और रणनीति की आमूल समीक्षा की जरुरत

 

अवधेश कुमार

तो पठानकोट ऑपरेशन मुंबई हमले से भी लंबा हो गया। जाहिर है, हमें अपनी कमजोरियों और विफलताओं पर ध्यान देने की जरुरत है। जरा स्थिति की समीक्षा करिए। किसी को कल्पना नहीं थी कि पठानकोट वायुसेना स्टेशन पर आतंकवादी हमले से निपटने में इतना समय लग जाएगा। समय उससे ज्यादा लग गया जितना 26 नवंबर 2008 के मुंबई हमले में लगा था। तब 81 धंटे ऑपरेशन चला था। मुंबई हमला बड़ा था एवं उसमें मानवीय और संसधानों के क्षति बहुत ज्यादा थी। हालांकि उस समय एनएसजी को भेजने के फैसले और उसके वहां पहुंचने में ही 18 घंटे लग गए थे। पठानकोट में आतंकवादियों की घुसपैठ की सूचना मिलने के बाद तुरत एनएसजी का दस्ता पहुंच गया था। इस मायने में कह सकते हैं कि सरकार की प्रतिक्रिया त्वरित एवं समयपूर्व थी। बावजूद इसके वे इतने सुरक्षित क्षेत्र में हमला करने तथा इतने अधिक समय तक संघर्ष करने में सफल रहे। लेफ्टीनेंट कर्नल निरंजन तो मृतक आतंकवादी के शरीद में बंधे विस्फोटक से शहीद हो गए। इतने प्रशिक्षित अधिकारी का शहीद होना हमारे लिए बड़ी क्षति है, पर इसमें आवश्यक सतर्कता और आतंकवाद से निपटने में कुशलता की कमी भी दिखती है।

जी हां, यह ऐसा पहलू है जिस पर भारत को आत्मसमीक्षा की आवश्यकता है। ऐसे कई प्रश्न हैं जिनका उत्तर तलाशने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में फिर ऐसी चूकें न हों। आखिर हमारे इतने बड़े अधिकारी यह क्यों नहीं सोच सके कि मृतक के शरीर में विस्फोटक हो सकता है? हमारी कमजोरियांे पर विचार करना इसलिए जरुरी है, क्योंकि भारत के लिए खतरा यहीं तक नहीं है। इस समय ही जो सूचना है अगर आठ आतंकवादी दरिया अज्ज की ओर से घुसे थे तो दो कहां गए? खुफिया इनपुट तो यही है कि वो दिल्ली की ओर प्रस्थान करने में सफल रहे हैं। यानी पंजाब से लेकर दिल्ली तक कहीं भी हमले की आशंका बनी हुई है। इसके अनुरुप सुरक्षा व्यवस्था एवं अतिसतर्कता की स्थिति कब तक बनाए रखी जा सकती है। किंतु हमारे पास चारा क्या है? पता नहीं ये कहां दूसरा पठानकोट दुहरा दें।

हम चाहे जितना दावा करें लेकिन आतंकवाद का सामना करने की हमारी तैयारी में भारी कमजोरियां हैं। आखिर आतंकवादी एके 47, 55 मोर्टार रायफल, ग्रेनेट लांचर सहित गोला आदि लेकर दो दिनों तक घूमते रहे और हमारी सुरक्षा एजेंसियां उनको पकड़ने या उनका पता करने तक में विफल रही। पूर्व पुलिस अधीक्षक की नीली बत्ती वाली गाड़ी लेकर करीब 35-36 कि. मी. घूमते रहे और उन्हें कोई रोकने वाला नहीं मिला। अगर वे फौजी वर्दी पहने थे तब भी किसी ने क्यों नहीं सोचा कि पुलिस की गाड़ी में फौजी क्यों घूम रहे हैं? हम महाशक्ति की ओर प्रयाण करने की उद्घोषणा कर रहे हैं। कल्पना करिए, क्या अमेरिका में या पश्चिम यूरोप के देशों में इतनी सूचना के बाद यह संभव होता? वैसे अगस्त 2014 में जासूसी के आरोप में एक जवान की गिरफ्तारी के बाद से पठानकोट वायुसेना अड्डे पर पर हमले का अलर्ट था। ताजा खुफिया इनपुट्स के बाद आईएसआई से जुड़े होने के शक में पिछले दो महीने में 14 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। जानकारी के अनुसार पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले की साजिश एक साल से चल रही थी। पुलिस ने बेस कैंप की जानकारी पाकिस्तान तक पहुंचाने के आरोप में 30 अगस्त, 2014 को सेना के जवान सुनील कुमार को गिरफ्तार किया था।  वह राजस्थान के जोधपुर जिला के गांव गुटेटी का रहने वाला था। विडम्बना देखिए कि पुलिस वक्त पर चालान भी न्यायालय में पेश नहीं कर सकी और सुनील को जमानत तक मिल गई। यह कैसी सुरक्षित व्यवस्था है! जो जानकारी हमारे पास आई सुनील फेसबुक के जरिए आईएसआई की एक कथित एजेंट मीना रैणा के संपर्क में आया था। उसने मीना को वायुसेना के सीक्रेट्स बताए थे। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि आतंकवादियों ने इसी जानकारी के आधार पर हमले की साजिश रची।

पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने भारत की रक्षा गोपनीयता जानने के लिए अपना तरीर्का बदल दिया है। पिछले दो महीने में दिल्ली और पंजाब से बीएसएफ के अब्दुल राशिद, राइफलमैन फरीद खान, हैंडलर कैफियतउल्लाह, वायुसेन के रंजीत और अश्विनी कुमार को, उत्तर प्रदेश से मोहम्मद एजाज और राजस्थान से दीना खान, इमामुद्दीन, पूर्व सर्विसमैन गोरधन सिंह राठौड़ और बीरबल खान की गिरफ्तारी हुई। दो महीने में गिरफ्तार 14 आरोपियों से पूछताछ में खुलासा हुआ कि इन लोगों ने सेना के ग्वालियर अड्डे और वायुसेना के बठिंडा और जैसलमेर अड्डे के बारे में जानकारी लीक की थी।  इनसे कुछ नक्शे और एयर स्ट्रिप्स के बारे में भी जानकारी मिली थी। इन आरोपियों ने भारत ब्रिटेन के संयुक्त अभ्यास इंद्रधनुष की भी जानकारी लीक की थी। क्या यह हमारी सुरक्षा व्यवस्था की विफलता नहीं है? इतनी जानकारियां ये आईएसआई को दे रहे थे और हमें भनक तक नहीं लगी। पता नहीं आने वाले समय में और कितने ऐसे घर के भेदिया पकड़ में आएं। जब घर में ऐसे भेदिए देशद्रोही हों तो दुश्मन को हमला करने के स्थान तक पहुंचने में हमेशा आसानी होगी। इसे कैसे रोका जाए यह पूरे सुरक्षा महकमे के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न है।

अब आइए और कुछ ऐसे प्रश्नों पर विचार करें जिनसे आतंकवाद के विरुद्ध हमारी तैयारियां एवं व्यवस्थाएं कठघरे में खड़ा होतीं हैं। सबसे पहला प्रश्न। आखिर क्यों लगा ऑपरेशन में इतना समय? यह सवाल हम सबको मथ रहा है। वायुसेना अड्डे की सुरक्षा समन्वय कमी नजर आई है। जब सेना बुलाई गई तो उसे जगह समझने में ही समय लगा। वायुसेना के पास ड्रोन और हेलिकॉप्टर हैं, पर उनको आतंकवाद के विरुद्व जितना सक्षम होना चाहिए नहीं हैं। उनने कुछ काम किया, पर अल्पकाल में उतना सटिक नहीं जितना वे कर सकते हैं। हम मानते हैं कि 18 वर्ग किमी का इलाका और वो भी सरकंडे से भरा हुआ होने के कारण सर्च ऑपरेशन मंें समय लगता है। किंतु यह भी साफ है कि इसका पहले से अभ्यास नहीं किया गया था। जब वो आतंकवादियों के रडार पर था तो सेना, एनएसजी आदि के एक समूह को पहले से उस क्षेत्र की पूरी जानकारी होनी चाहिए थी। यह आतंकवादी हमले के मॉक ड्रिल से हो सकता था जो नहीं किया गया। दूसरे, हमले की खुफिया सूचना थी कि पठानकोट में हमला होगा। तो उसे रोका क्यों नहीं गया। पठानकोट वायुसेना अड्डा हो सकता है इसे समझा जाना चाहिए था। वे इस जगह को चुनते इसे समझने के कई कारण थे। यह सीमा से केवल 25 किमी दूर है। यानी पहुंचना आसान है। यहां वायुसेना के 18 विंग हैं। मिग-21, मिग-29 और अटैक चॉपर तैनात हैं। यहां से चीन तक निगरानी होती है। आतंकवादियों को मालूम था कि यहां हमला करने से बड़ा नुकसान होता। दुनियाभर में इसका संदेश जाता। तो आकलन में हमसे बड़ी चूक हुई है। अगर उनको घुसपैठ करने से ही रोक दिया गया होता तो यह नौबत ही नहीं आती। पंजाब सीमा पर सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ है। पहले गुरुदासपुर हमले में और पठानकोट के लिएए घुसपैठ एक ही जगह से हुई है। तो यहां बीएसएफ विफल दिखती है। 5 या 6 लोग घुसकर हमारे इतने जवानों की जानें ले लें यह भी तो हमारी सुरक्षा पर प्रश्न उठाता ही है। मुठभेड़ में अब तक सात जवान शहीद हुए हैं। इनमें एनएसजी के एक लेफ्टिनेंट कर्नल, एक गरुड़ कमांडो व पांच डिफेंस सिक्योरिटी कोर (डीएससी) के जवान शामिल हैं। गृह सचिव राजीव महर्षि के अनुसार वायुसेना के आठ और एनएसजी के 12 जवान घायल हुए हैं। ध्यान रखिए अभी तक किसी आतंकी हमले में एनएसजी के एक साथ इतने सारे कमांडों घायल नहीं हुए हैं।

यह प्रश्न भी स्वाभाविक है कि आतंकवादी फिर वायुसेना अड्डे के अंदर कैसे पहुंच गए? गृह सचिव राजीव महर्षि का कहना है कि एनएसजी कमांडो पठानकोट में आतंकवादियों के सही ठिकाने के पता चलने का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही उनके पठानकोट एयरबेस के पास होने का पता चला, कमांडो ने कार्रवाई शुरू कर दी। उनके अनुसार आतंकवादियों को तकनीकी परिसंपत्तियों के पास पहुंचने से रोक दिया गया। अगर ऐसा नहीं होता तो देश को काफी क्षति हो सकती थी। यह तो ठीक है लेकिन इतने से आगे ऐसा न होगा इसकी आश्वस्ति नहीं मिलती। हम न भूलें कि आतंकवादियों ने एक साल में पंजाब में दूसरा बड़ा हमला करके यह संदेश दिया है कि वो कश्मीर मसले को अब पंजाब तक लाना चाहता है। संभव है आईएसआई की नजर भारत की नदियों पर है। पाकिस्तान के जितने न्यूक्लियर प्लान्ट हैं, वो उन नदियों के किनारे हैं, जिनका नियंत्रण भारत के पास है। वे आगे और हमला करेंगे। इसलिए आवश्यक है कि हमारी जितनी भयावह कमजोरियां उजागर हुईं है। उनको दूर करने के युद्धस्तर पर प्रयास हों। हालांकि यह मानना उचित नहीं है कि मोदी और नवाज मिलन की प्रतिक्रिया में ही यह हमला हुआ। उससे जोड़ना आसान है। आतंकवादी उसका विरोध करते हैं और बातचीत एवं संबंधों के सामान्य होने को रोकने की कोशिश कर रहे हैं। पर ऐसे हमले की तैयारी के लिए ज्यादा समय चाहिए। आठ दिन के अंदर इस तरह का हमला संभव नहीं है। यह सुनियोजित हमला था एवं इसके लिए पहले से सारी तैयारियां की गईं थीं। उन्हें वायुसेना अड्डे में प्रवेश के लिए सबसे माकूल स्थान से लेकर अंदर के रास्तों का पता था। यह इतने कम दिन में संभव हो ही नहीं सकता। फिर भी हमें बातचीत में सतर्क तो रहना ही होगा। अच्छा है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बेंगलुरु दौरे से ही पूरे मामले का लगातार जायजा लिया और दिल्ली लौटते ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल और विदेश सचिव एस. जयशंकर सहित उच्चाधिकारियों की बैठक बुला ली। प्रधानमंत्री इन कमजोरियांे और विफलताओं पर गहराई से चर्चा करके उनको दूर करने का कदम उठाएं यही देश उनसे उम्मीद कर रहा है।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

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