गुरुवार, 10 सितंबर 2015

संघ समन्वय बैठक का सच क्या हो सकता है

अवधेश कुमार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार की तीन दिवसीय समन्वय बैठक में जिस तरह सरकार के मंत्री एक एक कर या साथ-साथ नई दिल्ली के मध्यांचल भवन में जाते रहे उनसे मीडिया और देश का आकर्षण स्वाभाविक था। समापन के कुछ समय पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक पहुंचे। वहां भाषण भी दिया और वायदा किया कि उनकी सरकार व्यापक बदलाव के लिए काम कर रही है इसके परिणाम शीघ्र ही आएंगे। जब प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, विता मंत्री, मानव संसाधन मंत्री......यानी सारे प्रमुख मंत्री ऐसे बैठक में पहुंच रहे हों जिसका आयोजन न सरकार ने किया हो न ही भाजपा तो कई प्रकार के कौतूहल भरे प्रश्न भी उठेंगे। कुछ अनजान लोग जानने की कोशिश करेंगे कि यह क्या हो रहा है। किंतु जो परंपरागत विरोधी हैं उनके लिए इससे बड़ा विरोध का प्रसंग आखिर क्या हो सकता है। इसलिए बैठक आरंभ होने से अंत तक यह प्रश्न उठता रहा कि यह सरकार किसी गैर संवैधानिक संगठन के सामने जाकर अपनी रिपोर्ट कार्ड कैसे प्रस्तुत कर सकती है। यह सरकार रिमोट कंट्रोल से ही चलती है। संघ अपने को सामाजिक सांस्कृतिक संगठन कहता है, लेकिन असल में है तो यह छद्म राजनीतिक संगठन ही, जो कि सामाजिक सांस्कृतिक कार्य भी करती है या उसका मुलम्मा लगाती है....आदि आदि। बैठक समाप्त होने के बाद ये प्रश्न उठने बंद हो जाएंगे यह संभव नहीं है।

हालांकि बैठक के समापन से कुछ घंटे पूर्व सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने पत्रकार वार्ता कर उसका पूरा ब्यौरा दिया एवं पत्रकारों के प्रश्नों के उत्तर भी, जिससे काफी कुछ स्पष्ट हुआ, लेकिन हम अगर यह मान लें कि नहीं जो कुछ कहा गया वह सच हो ही नही सकता, यह बैठक तो सरकार से हिंसाब किताब लेने के लिए बुलाई गई थी, संघ अपना एजेंडा थोपने के लिए मंत्रियों की कतारें लगवा रहा था तो फिर यह हमारा निष्कर्ष हो सकता है और इस देश में हर व्यक्ति, संगठन, संस्था को निष्कर्ष निकालने, उसे अभिव्यक्त करने की आजादी है। प्रश्न है कि इस बैठक को क्या माना जाए? यह क्यों आयाजित हुआ? इसमें क्या-क्या बातें हुईं होंगी? क्या यह वाकई सरकार का रिपोर्ट कार्ड समझने के लिए था या कुछ और भी मकसद था इसका? क्या प्रधानमंत्री के वहां अंतिम समय में कुछ समय के लिए जाने को यह मान लें कि पूरी सरकार वहां अपना पक्ष प्रस्तुत करने गई थी? इसका सही उत्तर हम तभी तलाश पाएंगे जब संघ के विपक्ष एवं पक्ष में बनी बनाई धारणा से बाहर निकलकर समझने की कोशिश करेंगे। अगर दत्तात्रेय होसबोले की बातों को देखें तो उन्होंने स्वीकार किया कि सरकार के मंत्री आए उनसे उनके संबंधित मुद्दों पर चर्चा हुई, जो कुछ कहना था कहा गया। उन्होंने सरकार के प्रदर्शन के बारे में कहा कि दिशा सही है प्रतिबद्धता दिखती है तो अभी 15 महीने हुए हैं काम करने का समय है आशा है कि अपेक्षानुरुप करेंगे। हालांकि उन्होंने यह भी कह दिया कि 100 प्रतिशत तो कोई कर नहीं सकता। खैर, इसे आप संघ की ओर से नरेन्द्र मोदी सरकार को दिया गया प्रमाणपत्र कहिए या कुछ और लेकिन सरकार के मंत्री अवश्य प्रसन्न होंगे। इससे हम आप सहमत असहमत हो सकते हैं, लेकिन उन्होने यह तो साफ कर दिया कि सरकार के कामकाज पर वहां चर्चा हुई।

ध्यान रखिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वहां होसबोले की पत्रकार वार्ता खत्म होने के बाद गए। यानी बेठक में क्या हुआ इसकी अधिकृत सूचना देश को दी जा चुकी थी। वे समापन बैठक में गए थे जिसके बाद कोई पत्रकार वार्ता नहीं होनी थी। वस्तुतः प्रधानमंत्री और मंत्रियों के जाने से यह मान लेना उचित नहीं होगा कि यह संघ द्वारा सरकार के मूल्यांकन का बैठक था। हमारे पास जो जानकारी है उसके अनुसार संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों की समन्वय बैठक हर वर्ष जनवरी और सितंबर में तीन दिनों की होती है। उसमेें अनेक संगठनों के प्रतिनिधि आते हैं और भाजपा के भी आते हैं। चूंकि इस समय भाजपा सरकार में है इसलिए मंत्री आए थे, सरकार में नहीं होती तो अध्यक्ष, संगठन मंत्री और जिनका नाम तय होता वे आते। पहले भी आते रहे हैं। जैसा नाम से ही स्पष्ट है कि यह समन्वय बैठक है। यानी सभी संगठनों के बीच तालमेल कैसे कायम रहे, उनके बीच संवाद बनी रहे, एक दूसरे का सहयोग भी करते रहें....यही इस बैठक का उद्देश्य हो सकता है। इतने संगठन है जिनका समाज में काम है तो उनकी सरकार से भी कुछ अपेक्षाएं होंगी, कुछ नीतियों के बारे में जानने की, कुछ नीतियां बनवाने या बदलवाने की चाहत होंगी...कोई काम अवश्य होना चाहिए यह भी सोच होगी। तो यह सब आपस में बैठकर रखने, उस पर बातचीत करने से किसी भी संगठन को ताकत ही मिलती है। इस नाते ऐसे बैठक में कोई समस्या नहीं है। वैसे रामजन्मू भूमि विवाद पर भी होसबोले ने स्पष्ट कहा कि मामला न्यायालय में है और संघ मंदिर निर्माण तो चाहता है, पर इसका निर्णय धर्माचार्य करेंगे और सरकार अपनी समय सारिणी के हिंसाब से काम करेगी।

जैसा होसबोले ने कहा यह बैठक सिर्फ विचारों का आदान-प्रदान था, यह न समीक्षा बैठक था, न निर्णय लेने वाला। जाहिर है, यहां कोई निर्णय नहीं हुआ होग। लेकिन ऐसी बैठकों से निर्णय का आधार अवश्य बनता है। रिमोट कंट्रोल के जवाब में जो कुछ होसबोले ने कहा उससे अवश्य विरोधी पार्टी खासकर कांग्रेस के अंदर तिलमिलाहट बढ़ी है। उन्होने कहा कि जो पार्टी स्वयं रिमोट से चलती हो, वे हमें न सिखाए। हालांकि इसके पहले उन्होंने कहा कि हम कोई एजेण्डा सरकार पर नहीं थोपते, पर रिमोट वाली पंक्ति कांग्रेस पर सीधा हमला था। इस एक पंक्ति को छोड़ दे ंतो जो कुछ उन्होंने कहा उसमें ऐसा कुछ नहीं है जिस पर ज्यादा मीन-मेख निकालने की गुंजाइश हो। मसलन, यदि संघ या वहां उपस्थित दूसरे संगठन जैसे मजदूर संघ, किसान संघ आदि कहता है कि पश्चिम का जो आर्थिक मॉडल है वह विफल हो रहा है और सरकार को अपनी आर्थिक नीतियों में इसका ध्यान रखना आवश्यक है तो इसमें कोई समस्या नहीं है। औद्योगिक विकास का लाभ समाज के निचले स्तर के लोगों तक को मिलना चाहिए यह स्वर वहां से निकला है तो इसका स्वागत होना चाहिए। इसमें यदि कृषि आधारित उद्योगो, लघु एवं मंझोले उद्योगों को ज्यादा प्रोत्साहन की बात होती है तो फिर उसमें भी समस्या नहीं होनी चाहिए। होसबोले ने कहा कि देश में गांवों से शहर की ओर पलायन हो रहा है जो ठीक नहीं है और उस पर सरकार और संगठन में चर्चा हुई है। उन्होंने कहा कि आज गांवों में कमाई, पढ़ाई और दवाई की जरूरत है। ये सारी बातें ऐसी हैं जो होनी ही चाहिए।

गंगा सफाई, आदिवासी कल्याण, आंतरिक सुरक्षा, नक्सलवाद, कश्मीर, सीमा पर झड़प, पड़ोसी देशों से संबध आदि पर यदि चर्चा होती है तो इसमें बुराई क्या है? इस पर जब चर्चा होगी तो उसमें सरकार के मंत्रियों की उपस्थिति से अधिकृत सूचना सबको मिल सकेगी। आज भाजपा की सरकार है तो संघ एवं सहयोगी संगठनों को इसकी सुविधा प्राप्त है। सरकार नहीं होती तो फिर राजनीतिक दल के तौर पर अन्य संगठनों की तरह भाजपा अपना मत रखती। मंत्रियों ने क्या कहा इसकी विस्तृत सूचना नहीं है, लेकिन कश्मीर में संगठनों का मानना था कि आतंकवादियों एवं अलगावादियों के प्रति कठोरता तथा आम जनता के बीच प्रचार द्वारा उन्हें बताना कि आपका हित किसमे हैं। इसके द्वारा जनता से उन तत्वों को अलग-थलग करने पर लगभग सहमति थी। इसी तरह रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने सीमा पर युद्वविराम उल्लंघन का जवाब देने एवं उसके रोकने के प्रयासों के संदर्भ में अपने विचार प्रकट किए। हां, शिक्षा में भारतीयता और भारतीय गौरव का ध्यान रखने की बात पर जरुर एक वर्ग की भौंहे तनेंगी। इसे शिक्षा का भगवाकरण का नाम दिया जाएगा, जो पहले से दिया जाएगा। यदि समन्वय बैठक में यह चर्चा हुई कि स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक इस दृष्टि से परिवर्तन के प्रयास होंगे तो फिर मान लीजिए शिक्षा के भगवाकरण का विवाद खड़ा होगा और यहीं पर संघ द्वारा सरकार पर अपना एजेंडा लादने की बात कही जाती है।  यह पुराना विवाद है और इसका अंत भारत में कठिन है। इसमें हमेशा से दो राय रहे है और रहेंगे।

 संघ के आलोचक और विरोधी यह तथ्य न भूलें कि प्रधानमंत्री स्वयं को एक स्वयंसेवक बता चुके हैं और यह कोई रहस्य नहीं है कि वे संघ के प्रचारक और उसके कारण ही भाजपा में काम कर रहे थे। भाजपा के ज्यादातर मंत्री संघ के स्वयंवसेवक हैं तो उनका संबंध वहां से रहेगा। संघ की सोच से वे प्रभावित होंगे। उनकी बैठकांे में जहां इन्हें बुलाया जाएगा या इनकी आवश्यकता होगी वहां ये जाएंगे। एक ओर यदि ये मंत्री हैं, भाजपा के नेता हैं तो दूसरी ओर संघ के स्वयंसेवक भी हैं। ये ऐसे संबंध हैं जिसके बीच सीमा रेखा खींचना जरा कठिन है। हां, संघ सरकार में दैनंदिन हस्तक्षेप करे, जबरन वैसे एजेंडा लादने का प्रयास करे जो देश को स्वीकार न हो, प्रधानमंत्री को दबाव में लाएं तोे जरुर इस पर आपत्ति उठाई जानी चाहिए। जब तक ऐसा सामने नहीं आता हमें ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। हां, राजनीतिक प्रतिष्ठान के अंदर इस पर विवाद विरोध और विसम्मति की प्रक्रिया चलती रहेगी।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/