शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

धर्म बदलाव पर बावेला

अवधेश कुमार

आगरा ने संसद से लेकर मीडिया तक भूचाल ला दिया है। इसमें अस्वाभाविक कुछ नहीं है। हमारे नेताओं को तो अपनी संकीर्ण राजनीति के लिए मुद्दा चाहिए। यह हमारी राजनीति की विडम्बना है और त्रासदी भी कि वे किसी समस्या की तह तक जाने, उसमें विवेक और संतुलन से विचार कर प्रतिक्रिया देने, अपनी भूमिका निभाने की बजाय संकुचित राष्ट्रीय हित से विचार करते हैं। जिन नेताओं ने आगरा के 57 परिवारों के करीब 387 मुसलमानों के हिन्दू बनाए जाने या बन जाने को लेकर संसद से बाहर तक बावेला खड़ा किया हुआ है, बहिर्गमन कर रहे हैं उनमें से किसी एक ने भी वहां जाकर सच्चाई जानने और वहां यदि इस कारण सांप्रदायिक तनाव बढ़ा है तो उसे रोकने की जहमत नहीं उठाई। यही नहीं कुशीनगर में और भागलपूर में कई हिन्दू परिवारों के ईसाई बनने की खबर सुर्खियों में है पर उसे लेकर कोई बावेला नहीं। आगरा धर्म परिवर्तन, परावर्तन या घर वापसी जो भी कहिए, उसके प्रमुख आरोपी पुलिस गिरफ्त में है। बावजूद हंगामा नहीं रुक रहा। आज की राजनीति में सबसे बड़ा कर्म मीडिया में बयान दे देना है और उपग्रह की कृपा से चैनल उसे 24 घंटे दिखाते हैं। लेकिन सच तो यही है कि इनकी आक्रामक शब्दावलियों से मामला सुलझने के बजाय उलझता है, जटिल होता है। ऐसा ही इस मामले में हुआ है।

भारत विविधताओं से भरा देश है और इसमें हमारे पूर्वजों ने एकता के तंतु तलाशकर इसको एक राष्ट्र के रुप में कायम रखने का सूत्र दिया। किसी भी स्थिति में यदि विविधता के एकता का वह सूत्र टूटता है तो उससे देश की आंतरिक शांति और स्थिरता को खतरा पहुंचेगा। यहां हर मजहब, पंथ को अपने अनुसार उपासना पद्धत्ति अपनाने, उसके अनुसार जीने का अधिकार है और उस पर किसी प्रकार का अतिक्रमण या उसके निषेध की कोशिश हमारी एकता के तंतु को तोड़ना आरंभ कर देगा। लेकिन इस समय जिस ढंग का बावेला मचा है उसमें सच तक पहुंचना आसान नहीं है। अगर हमें सच को समझना है, सही निष्कर्ष तक जाना है, झूठ और सच के अंतर को अलग करना है तो फिर जरा इस शोर से बाहर निकलकर विचार करना होगा। 

वास्तव में इसके कुछ दूसरे पक्ष हैं उन्हें भी देखना होगा। मसलन, संविधान के मौलिक अधिकार के अनुच्छेद 25 में हर व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, उसके प्रचार करने का अधिकार है। इसलिए यदि कोई अपने धर्म का बिना सांप्रदायिक भावना फैलाये प्रचार करता है तो वह संविधान का पालन करता है। उसे आप रोक नहीं सकते। उसी तरह यदि कोई व्यक्ति अपना मजहब, पंथ कुछ भी बदलता है तो उसे उसका अधिकार है। अगर कोई ऐसा करता है तो उसके पीछे कुछ प्रेरणा हो सकती है, वह प्रेरणा कोई व्यक्ति भी दे सकता है। इसलिए किसी को अपना मजहब बदलने के लिए प्रेरित करना भी अपराध नहीं हो सकता। यहां तक यदि हमारे राजनेता और मीडिया के पुरोधा समझने की कोशिश नहीं करेंगे तो फिर समस्या और जटिल होगी। समस्या तब आएगी, संविधान और कानून विरुद्ध तब होगा जब आप किसी को प्रेरणा देने में लालच लोभ का उपयोग करते हैं, उसे बरगलाते हैं, या भयभीत करते हैं। यदि व्यक्ति भय से, लालच से या गलत बात बताने से अपना मजहब बदलने को प्रेरित होता है तो वह संविधान एवं कानून दोनों की दृष्टि से अमान्य है। कई राज्यों ने अपने-अपने यहां धर्म परिवर्तन पर कानून बनाया हुआ है और उसके अनुसार वह कार्रवाई करती है।

अब इन कसौटियों पर आगरा की घटना को देखें। वहां मुसलमान से हिन्दू बनने वाले अत्यंत ही गरीब तबके के हैं। वे पता नहीं बंगलादेशी हैं या पश्चिम बंगाल के हैं। कहा गया कि उनके पूर्वज कुछ ही दशक पूर्व हिन्दू से मुसलमान बने। यह सच है या झूठ इसकी जांच हो सकती है। लेकिन इससे कोई अंतर नहीं आता। मूल प्रश्न यह है कि क्या बजरंग दल या धर्म जागरण मंच ने उनको बरगलाकर, प्रलोभन देकर या डराकर ऐसा किया? पहली नजर में ही यह असंभव लगता है कि एक साथ इतने परिवारों को कोई भय, प्रलोभन या बरगलाकर मजहब छोड़ने को बाध्य कर देगा। यह भी साफ है कि जो हुआ वो खुले में हुआ। उस कार्यक्रम के समाचार स्थानीय समाचार पत्रों में घटना के पहले ही आ गये थे। दूसरे, जिस दिन परिवर्तन का कार्यक्रम था उस दिन भी मीडिया को बुलाया गया था। उसकी पूरी वीडियो फुटेज हमारे पास उपलब्ध है। बाजाब्ता बैनर लगा था बुद्धि शुद्धि कार्यक्रम, पुरखों की घर वापसी। यानी छिपकर गोपनीय तरीके से कुछ नहीं हुआ। वे सारे स्नान करके आए, पुरुषों ने जनेउ पहने, उनको कलेवा पहनाया गया, फिर गंगाजल का पान और सबने मिलकर हवन किया। उस हवन में सबने अपनी टोपी डाली। सारा कार्यक्रम आर्य समाज की परंपरागत पद्धति से हुआ, इसलिए शपथ पत्र पर उनके हस्ताक्षर कराए गए। 

इन सारे तथ्यों को देखने के बाद यह मानना मुश्किल है कि उनको यह पता ही नहीं हो कि वे मुसलमान से हिन्दू बन रहे हैं। यह हो सकता है कि उनने कहा हो कि हमारे पास राशन कार्ड नहीं हैं, मतदाता पहचान पत्र या आधार कार्ड नहीं है और ऐसा करने वालों ने सब बनवा देने का वचन दिया हो। यह समाचार भी मिला है कि आयोजकों में से कुछ बात कर रहे थे कि अब इनका हिन्दू नामकरण करके मतदाता बनवाना है और आघार कार्ड भी बनवा देना है। यहां तक तो सच लगता है। पर क्या यह प्रलोभन की श्रेणी में आएगा? क्या इतने के लिए कोई व्यक्ति या व्यक्ति समूह अपना मजहब बदल लेगा? जाहिर है, इसको गले उतारना संभव नहीं है। इसके अलावा कोई ऐसी बात सामने नहीं आई है जिससे यह जबरन, प्रलोभन वश या बरगालकर किया गया कार्यक्रम लगे। तब प्रश्न है कि उनमें से कुछ लोग क्यों कह रहे हैं कि उन्हें बताया ही नहीं गया उनको मुसलमान से हिन्दू बनाया जा रहा है? कुछ महिलाओं की आंखों से निकलते आंसू बता रहे हैं कि जो कुछ हुआ उससे उनके अंदर पीड़ा है। वो पीड़ा किन कारणों से है यह बात अलग है।

एक व्यक्ति इस्माइल, जिसका नाम राजकुमार रखा गया था उसके द्वारा थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई गई। कोई भी देख सकता है कि यह भी दबाव में हुआ। जिस ढंग से मुसलमान समुदाय के लोग सड़कों पर उतरे, वे लोग पहले उस बस्ती में गए, वहां बातचीत की और फिर आम तौर पर जैसा हमारे समाज में होता है जैसे पहले उनको मुसलमान से हिन्दू बनने के लिए समझाया बुझाया गया उसी तरह उनको इसे अस्वीकारने के लिए समझाया बुझाया गया। इस समय मुस्लिम नेताओं, उलेमाओं, की गतिविधियां उस मुहल्ले में तेज हो चुकी है, उन्हें अक्षर ज्ञान और कुरान शरीफ पढ़ाये जा रहे हैं। ऐसा नहीं किया जाता तो वो गरीब लोग, जिनके पास अपनी पहचान साबित करने के लिए कोई एक दस्तावेज तक नहीं, वो कहां से प्राथमिकी की हिम्मत करते। लेकिन अब प्राथमिकी दर्ज हो गई है तो फिर जांच निष्पक्ष और दबावरहित हो। ऐसे अधिकारी जिसका रिकॉर्ड बेदाग हो उसे जांच का जिम्मा दिया जाए। जांच और कानूनी कार्रवाई पूरी तरह राज्य का मामला है। राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार है। तो फिर उस जांच की प्रतीक्षा क्यों नहीं की जानी चाहिए।  

वैसे यह सच है कि कई हिन्दू संगठन लंबे समय से घर वापसी के नाम पर इस प्रकार का आयोजन कर रहे हैं। आर्य समाज, हिन्दू महासभा, शंकराचार्यों के संस्थान.......लेकिन वो इतनी शांति और सहमति से होती है कि उसे लेकर शायद ही हंगामा होेता है। संघ परिवार के घटक भी करते हैं, पर हर बार ऐसा नहीं होता। संघ का संगठन धर्म जागरण मंच यह कार्य करता है। जो सब आर्य समाज के तरीके से होता है। वैसे ईसाई या मुसलमान बनना जितना आसान है उतना हिन्दू बनना नहीं। यहां जाति है। हिन्दू एक जातिविहीन समाज नहीं कि बस आप हिन्दू बन गए। इसलिए इस प्रश्न का निदान कठिन है कि किसी को हिन्दू बनना है तो वह किस जाति का होगा। अगर किसी को धर्म जागरण मंच, या बजरंग दल हिन्दू बना दे और घोषित कर दे कि ये अमुक जाति के हो गए तो वो जाति उसे स्वीकार कर ही ले यह आवश्यक नहीं। जहां तक मैंने इसे समझने की कोशिश की है इन लोगों ने जगह-जगह उनके पूर्वजों के इतिहास को खंगाला है और उससे जानने की कोशिश की है कि परिवर्तन के पहले ये किस जाति के थे। कई जगह ये उस जाति का सम्मेलन बुलाते हैं, उनमें उन मुसलमानों को भी बुलाते हैं जिनको हम धर्म परिवर्तन कहते हैं और ये परावर्तन या घर वापसी। उन्हें बताया जाता है कि आप इस जाति के थे और यदि आप वापस आते हैं तो आपकी रोटी बेटी का संबंध इस जाति के लोग करने को तैयार हैं। इस तरह कोशिश तो योजना पूर्वक हो रही है। किंतु, भारत में जाति की जटिलता को देखते हुए यह आसान नहीं है। इसलिए कई घटनायें ऐसी भी हुईं कि वे समझाने पर तैयार तो हुए लेकिन उनकी परेशानी बढ़ गई। इसलिए हिन्दू संगठनों के लिए सबसे ज्यादा जरुरी है हिन्दू समाज के अंदर जाति की खाई, उंच नीच छूताछूत....के अंत के लिए अभियान चलाना। अगर कोई हिन्दू से धर्म बदला तो उसका सबसे बड़ा कारण यह जातिभेद ही रहा है। लेकिन जो नेता चीत्कार कर रहे हैं उनको इन सबसे कोई लेना देना होगा ऐसा लगता नहीं।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408

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