अवधेश कुमार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से घृणा और आत्यंतिक विरोध रखने वालों की हमारे देश में अब भी कमी नहीं है। वे उनके काम को निष्पक्ष नजरिये से देख नहीं सकते, अन्यथा विदेश की धरती से भारत गर्जना का जो कूटनीति में उन्होंने प्रखर अभियान चलाया है उससे भारतवंशी चाहे वह देश में हो या विदेश में उत्साहित और रोमांचित अनुभव कर रहा है। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सिडनी के ऑलफोंस अरीना में लोगों से यह पूछा कि क्या आपको विश्वास है कि भारत फिर से उठकर खड़ा होगा? मैं आपसे पूछ रहा हूं कि क्या यह देश फिर से उठेगा? क्या यह विश्व की सेवा कर पायेगा? क्या यह विश्व को संकटों से मुक्त कर पाएगा? और अंदर उपस्थित 16 हजार तथा स्टेडियम के बाहर कम से कम 10 हजार भारतवंशियों ने जब हां में आवाज लगाई तो ऐसा लगा मानो भारत का नये सिरे से पुनर्जागरण हो रहा है। इसके बाद उन्होंने कहा कि सामान्य मानवी की बात ईश्वर की बात होती है तो होगा। उन्होंने यह कहा कि कोई कारण नहीं लगता कि हमारा देश पीछे रह जाएगा, नियति ने उसका आगे जाना तय कर लिया है तो उसमें जो आत्मविश्वास था वही सबसे ज्यादा प्रभाव डालने वाला है। इसके पहले किस प्रधानमंत्री ने विदेश की भूमि से इस प्रकार भारत को विश्व का रास्ता दिखाने वाले देश के रुप में खड़ा करने का संकल्प व्यक्त किया था?
28 सितंबर को मोदी ने अमेरिका के मेडिसन स्क्वायर से ऐसे ही कहा कि आप सबके परिश्रम और योगदान की बदौलत भारत को विश्व गुरु बनना निश्चित है। 125 करोड़ भारतवासियों के कर्मों से अब भारत विश्व को रास्ता दिखाने वाला देश बनने की ओर बढ़ गया है और कोई ताकत इसे रोक नहीं सकती। कुछ लोग इसे भावुकता के प्रकटीकरण तक सीमित कर सकते हैं। कारण, उनकी नजर में भारत की वह कल्पना नहीं जो हमारे मनीषियों ने आजादी के पूर्व की थी या जैसा गुलामी के पूर्व इस राष्ट्र की सोच और शैली थी। आखिर प्रधानमंत्री ने विवेकानंद की ही बातों का तो उल्लेख किया। पहलेे उन्होेेंने स्वामी विवेकानंद को आजादी के 50 वर्ष पूर्व की आजाद होने की भविष्यवाणी का उल्लेख किया फिर उनके दूसरे सपने की चर्चा की। उनने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने दूसरा सपना देखा था। वह था कि मैं मेरे आंख के सामने भारत मां का वह रुप देख रहा हूं। फिर मेरी भारत माता विश्व गुरु के स्थान पर विराजमान होगी, वह विश्व की आशा आकांक्षा को पूरा करने वाला समक्ष देश बनेगा। मोदी ने अगर कहा कि जिस तरह उनकी 50 वर्ष पहले की भविष्यवाणी सही साबित हुई उसी तरह उनका यह सपना भी पूरा होगा तो यह विश्वास पैदा करने के लिए। उनके अनुसार मेरा स्वामी विवेकानंद के विश्वास पर महान आस्था है। असीम उर्जा से भरा हुआ मेर देश है। इसे कोई रोक नहीं सकता।’ यानी अगर विवेकानंद जी की एक भविष्यवाणी सही हुई तो दूसरी भी होगी। यह थीम उनका था। आप गांधी जी सहित जितने मनीषिेयों कीे आजादी के पूर्व या आजादी के तुरत बाद के वक्तव्यों को देख लीजिए, चाहे महर्षि अरविन्द हों, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद हो, यहां तक कि सुभाषचन्द्र बोस भी .....भारत की कल्पना एक ऐसे ही राष्ट्र के रुप में किया था जो अंततः पूरे विश्व के लिए आदर्श और प्रेरक देश बनेगा। आज मोदी वही बात दुनिया के प्रमुख देशों में जाकर कह रहे हैं, तो समूची दुनिया में भारतवासी उससे रोमांचित क्यों नहीं होंगे? और विश्व शक्तियों के अंदर भी इस कूटनीति की प्रतिध्वनि अपने तरीके से गंूजित हो रही है।
यह सच है कि अपने देश में भी राष्ट्रीय नेताओं से देशभक्ति से ओतप्रोत आलोड़ित करने वाले विचारों के लिए हमारे कान तरस गए थे। उसमें भी इतना आत्मविश्वास कि हम विश्व को रास्ता दिखाने वाले, विश्व की सेवा करने वाले बनेंगे ऐसा आज के हमारे नेता सोचते भी नही ंतो बोलेंगे कहां से। मोदी के इस बात का भी समर्थन करना होगा कि ये जो नजारा सिडनी में दिख रहा है ये पूरे हिन्दुस्तान को आंदोलित कर रहा है। छः महीने में अभी बहुत ठोस काम धरातल पर भले न दिखे पर माहौल, सोच, बदल रहा है। कह सकते हैं कि उनके भाषण के सारतत्व वही थे जो हमने न्यूयॉर्क के मेडिसन स्क्वायर मंें सुना। तो इसमें समस्या क्या है? भारत के पुनर्जागरण के लिए, उसका आत्मविश्वास जगाने के लिए, इस अभियान को विदेश नीति का अभिन्न अंग बनाकर दुनिया भर में फैले भारतवंशियों को देश के साथ भावनात्मक व व्यवहारिक रुप से योगदान करने की तैयारी के रुप में जोड़ने का ही तो लक्ष्य है। वह जिस भाषण, जिस तथ्य और जिस तरीके से हासिल होगा वह अपनाया जाना चाहिए।
मोदी से कई बिन्दुओं पर, या उनकी राजनीतिक शैली से हमारा मतभेद हो सकता है, पर यह दायित्व वे बखूबी निभा रहे हैं। सिडनी और मेडिसन स्क्वायर दोनों जगह उन्होंने वहां रहने वाले भारतवंशियों के कर्म की, वहां भारत का और अपना सम्म्मान बढ़ाने की प्रशंसा की, अभिनंदन किया ...... इसके बाद उनसे अपनी जन्मभूमि भारत माता के लिए भी कुछ करने की अपील की। जब माहौल चुम्बकीय हो, संवेग को उफान पर पहुंचा दिया गया हो तो उसका असर भी होता है। सिडनी में जब उन्होंने स्वच्छता और शौचालय योजना की बात की तो वहां उपस्थित सबसे अपील किया कि आप जिस स्थिति में हैं, जहां से जिस गांव से आये हैं वहां आकर इस काम में हमारी मदद करिए मैं आपको निमंत्रण देता हूं तो उसका असर हुआ। लोग चैनलों पर कह रहे थे कि हम अपने गांव में करेंगे।
मोदी इन सबके लिए बड़े ही व्यवस्थित और सुचिंतित शब्दों और विचारों को क्रमबद्ध तरीके से पेश कर रहे हैं। मसलन, वे कहते हैं कि हम आजादी के लिए संघर्ष न कर सके, क्योंकि बाद में पैदा हुए तो हमको अपने जिम्मेवारी का अहसास तो होता है। जरा उनके कथन देखिए,‘ हमें आजादी के संघर्ष में, हमें मां भारती के सम्मान और गौरव के लिए जेल की सलाखों के पीछे अपनी जवानी को खपाने का सौभाग्य नहीं मिला है। इसके लिए हमें कसक होनी चाहिए कि हम आजादी के जंग में नहीं थे। लेकिन हम आजादी के लिए बलिदान न दे सके तो आजादी देश के लिए जी तो सकते हैं। यानी जो करेंगेे करेंगे देश के लिए। यदि यह भाव सवा सौ करोड़ भारतवासियों के दिल में पैदा हो गया तो फिर देश में क्या होगा!’ फिर वे भारत मंें विश्वास पैदा करते हैं। मसलन, विश्व लोकतांत्रिक शक्तियों को आज गौरव के भाव से देख्ता हैं और भारत के दिव्यद्रष्टाओं ने लोकतंत्र की मजबूत नींव डाली.......लोकतंत्र की ताकत देखिए..... अगर लोकतंत्र की उंचाई न होती तो क्या मैं यहां होता? भारत के लोकतंत्र की इस ताकत को हम पहचाने जहां सामान्य से सामान्य इन्सान भी अगर सच्ची निष्ठा के साथ देश के लिए जीना तय करता है तो देश भी उसके लिए जीना तय करता है। .....
क्या इससे देश की अंतःशक्ति में विश्वास पैदा नहीं होता? यकीनन हमारी व्यवस्था में दोष हैं, हम उसकी आलोचना करते हैं, करेंगे, उसे बदलने के लिए भी काम करेंगे, पर जहां तक मोदी का प्रश्न है इस व्यवस्था के तहत वे भारत को महिमामंडित करने की कल्पना करते हैं और इसे एक आंदोलन की तरह भारत और बाहर के भारतवंशियों के बीच ले जा रहे हैं तो इससे देश को लाभ ही होगा। हमारे देश की समस्या यह रही है कि हम अपने राष्ट्र लक्ष्य को भूल चुके हैं, और इस कारण हम सामूहिक तौर पर एक भटके हुए भ्रमित राष्ट्र हैं। इसलिए जो इस देश को करना चाहिए वह नहीं कर पा रहा है। जब इसे अपना लक्ष्य ही नहीं मालूम, दुनिया भर के भारतवंशियों को यही नहीं बताया गया कि आप क्या हैं और आपको भारतीय होने के नाते कैसी भूमिका निभानी है तो फिर सब दिशाहीन होकर अपने तरीके से जी रहे हैं। इसलिए जब वे कहते हैं कि भारत मां के पास 250 करोड़ भुजायें हैं और उसमें भी 200 करोड़ भुजाये ंतो 35 साल से कम आयु की है... हिन्दुस्तान नवजवान है... दुनिया में तेजी से दौड़ने वाले देश बुढ़े हैं और हमारी युवा आबादी एक मजबूत शक्ति है तो युवाओं को भी लगता है कि वाकई हम तो दुनिया से ज्यादा शक्तिशाली हैं। फिर क्यों न कुछ करा जाए। इसका वे यह कहकर विश्वास भी दिला देते हैं कि छः महीने में जो अनुभव मेरा आया है उसके आधार पर कह सकता हूं कि देश के सामान्य मानवी ने जो सपने देखे हैं उसका आशीर्वाद भारत मां दे रही है। वे जन धन योजना की सफलता का उदाहरण देकर समझाते देते हैं कि इन्हीं लोगों ने, इसी व्यवस्था के अंतर्गत यह करके दिखा दिया। यानी जो हम सोचते हैं वह संभव है। हम इसके गुण दोष में यहां नहीं जायें। आखिर यही तो एक नेता को करना है। नेता स्वयं सारा काम नहीं कर सकता, वह दिशा दे सकता है, प्रेरणा दे सकता है, विश्वास जगा सकता है, अपने तंत्र से काम कराकर उसे पुष्ट कर सकता है.....मोदी अपने तरीके से तमाम कमियों के बावजूद यही कर रहे हैं।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः11009, दूर.ः01122483408, 09811027208
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