शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

उच्चतम न्यायालय द्वारा 2 जी मामले से रंजीत सिन्हा को हटाना

अवधेश कुमार

आजाद भारत में इसके पूर्व ऐसा कभी नहीं हुआ जब उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई के निदेशक को कहा हो कि आपको किसी भ्रष्टाचार के जांच से अपने को अलग करना होगा। इसलिए यह असाधारण आदेश है। जरा सोचिए, 2 जी स्पेक्ट्रम मामले की जांच सीबीआई ने की और उच्चतम न्यायालय में वही आरोपियों के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रही है। अगर उच्चतम न्यायालय ने कह दिया है कि सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा 2जी केस की जांच से खुद को अलग कर लें, इस मामले में दखल न दें तो यह केवल रंजीत सिन्हा नहीं समूचे संगठन की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह है। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने संगठन के ही किसी वरिष्ठ अधिकारी की नियुक्ति इस मामले में करने का आदेश दिया है जो सीबीआई निदेशक की भूमिका का निर्वहन कर सके। इसका अर्थ यह है कि उसने सीबीआई संस्था में अभी उस तरह अविश्वास व्यक्त नहीं किया है जिस तरह संप्रग सरकार के कार्यकाल में यह कहते हुए व्यक्त किया था कि यह सरकार का तोता बन गया है। यह गुलाम है और इसे मुक्त कराना होगा। बावजूद इसके यह हमें कई पहलुओं पर विचार करने को मजबूर करता है।
वैसे यह मानना उचित नहीं होगा कि केवल वकील प्रशांत भूषण द्वारा उच्चतम न्यायालय में उनकी विजिटिंग डायरी की प्रतिलिपि प्रस्तुत करने के कारण ऐसा हुआ है। निस्संदेह, आधार वही बना जिसमें रंजीत सिन्हा से मिलने वालों की सूची में 2 जी के आरोपियों के नाम और हस्ताक्षर मौजूद हैं। पूरा मामला वहीं से आरंभ हुआ और उच्चतम न्यायालय के सामने प्रश्न यह आया कि 2 जी मामले की जांच मेें रंजीत सिन्हा को रखा जाए या इससे उन्हें अलग कर दिया जाए। लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह है कि उच्चतम न्यायालय ने सिन्हा को जांच से अलग करने के आदेश के पीछे की वजह नहीं बताई है। उसनेे कहा है कि इस बारे में विस्तृत फैसला नहीं दिया जा रहा क्योंकि उससे एजेंसी की छवि प्रभावित होगी। ध्यान रखने की बात यह भी है कि सरकारी वकील आनंद ग्रोवर ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा 2जी मामले में जिस तरह हस्तक्षेप कर रहे हैं उसेे मान लिया जाता है तो 2जी मामला खत्म हो सकता है। यानी सरकार भी निदेशक के रवैये के विरुद्ध गई है।  
सरकार ने ऐसा क्यों कहा इसके कई उत्तर हो सकते हैं। मसलन, 2 जी के आरोपी यदि सीबीआई निदेशक के घर पर मिलने जाते रहे तो इससे संदेह की जो स्थिति बनती है सरकार ने उससे स्वयं को अलग रखने की नीति अपनाई है। सरकार यदि उनके बचाव में आ जाती तो उस पर विपक्षी टूट पड़ता कि देखों ये भी 2 जी के आरोपियों को बचाना चाहते हैं। आखिर भाजपा ने 2 जी को संसद से लेकर बाहर तक जितना बड़ा मुद्दा बनाया था यह आचरण उसके विपरीत होता। उसके दबाव में ही संयुक्त संसदीय समिति बनी और इसके लिए संसद का दां सत्र गतिरोध की भेंट चढ़ गया था।  इसलिए नरेन्द्र मोदी सरकार पर यह दायित्व भी है कि उससे संबंधित जांच और कानूनी प्रक्रिया पूरी तरह निष्पक्ष और पारदर्शी दिखे। भले उसके परिणाम जो आएं, पर उसकी ओर से ढिलाई का संकेत नहीं जाना चाहिए। सरकार ने केवल उनके साथ खड़े होने से ही अपने को अलग नहीं किया, उसने उनकी निष्पक्षता पर भी संदेह व्यक्त किया है। यह भी पहली बार है जब सरकार ने अपने सीबीआई निदेशक पर औपचारिक रुप से न्यायालय में संदेह व्यक्त किया है। तो क्या सरकार वाकई मानती है कि सीबीआई निदेशक 2 जी मामले को खत्म करने की दिशा में काम कर रहे थे? जब रणजीत सिन्हा की सीबीआई निदेशक के तौर पर नियुक्ति हुई थी तब भी भाजपा ने काफी विरोध किया था। संप्रग सरकार ने कलेजियम प्रणाली के अमल में आने के पूर्व ही केन्द्रीय सतर्कता आयोग की अनुशंसा को दरकिनार कर रंजीत सिन्हा को नियुक्त कर दिया था। उसका कहना था कि सीबीआई को इतने दिनों तक बिना निदेशक के नहीं रखा जा सकता है।
हालांकि निदेशक रंजीत सिन्हा के पक्ष में यह बात जाती है कि अगर उन्हें कुछ छिपाना होता तो मिलने वालों का नाम रजिस्टर में अंकित किए बगैर घर बुला सकते थे। वे गोपनीय तरीके से कहीं मिल सकते थे। वास्तव में किसी से मिलने मात्र से उसे दोषी या संदिग्ध नहीं माना जा सकता। पर न्यायालय में उन्होंने अपना पक्ष रखा था। जाहिर है, न्यायालय ने उसे स्वीकार नहीं किया है। यह उच्चतम न्यायालय के मख्य न्यायाधीश की पीठ का फैसला और मंतव्य है। बिना गहराई में गए ऐसा फैसला उच्चतम न्यायालय की पीठ वैसे भी नहीं दे सकती। उसे पता है कि इससे एक व्यक्ति के पूरे जीवन भर का कार्य कालिमा से भर जाएगा।
वैसे रंजीत सिन्हा का कार्यकाल 2 दिसंबर तक ही शेष है। इसलिए वे छुट्टी पर जायें या त्यागपत्र दें इससे बड़ा मुद्दा स्वयं सीबीआई संस्था का है। इतना साफ है कि सीबीआई के अंदर भयंकर गुटबंदी चल रही है। यह व्यक्तियों को लेकर भी है और मामलों को लेकर भी। रंजीत सिन्हा के वकील विकास सिंह ने न्यायालय में कहा था कि जांच एजेंसी के डीआईजी स्तर के अधिकारी संतोष रस्तोगी ने प्रशांत भूषण को दस्तावेज मुहैया कराए थे और  सीबीआई में वही भेदिया हैं। इस पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोई सबूत हो तभी सिन्हा आरोप लगाएं, अन्यथा नहीं। जरा उच्चतम न्यायलय की इस टिप्पणी पर गौर कीजिए, ‘आपको सीबीआई अधिकारी का नाम घर के भेदी के तौर पर नहीं लेना चाहिए था। उस अधिकारी की सेवा पर कोई दाग लगाने की अनुमति नहीं होगी और हम इस मामले पर विचार करेंगे।’ न्यायालय ने आगे टिप्पणी की कि ऐसा लगता है कि सब ठीक नहीं है और इसे अलग से देखना होगा।
इससे साफ है कि सीबीआई के अंदर गुटबंदी अब उच्चतम न्यायालय के सज्ञान मेें है। इस पर वह आगे क्या कार्रवाई करती है देखना होगा। हालांकि सीबीआई के अंदर रंजीत सिन्हा के समर्थकों की संख्या भी बहुत बड़ी है। तभी तो सुनवाई के दिन काफी संख्या में सीबीआई के अधिकारी न्यायालय मेें मौजूद थे। उच्चतम न्यायालय ने उनको फटकार लगाते हुए कहा कि आप यहां से जाएं व कार्यालय में अपना काम करें। यह उच्चतम न्यायालय ही है जिसकी तीखी टिप्पणियों और निर्देशों के बाद पिछली सरकार ने सीबीआई निदेशक की नियुक्ति से लेकर उसके वित्तीय अधिकार यानी स्वायत्तता की दिशा में बड़े कदम उठाए थे। शायद इसके बाद सीबीआई के अंदर की गुटबाजी पर भी वह कोई निर्देश दे। यह सोचने वाली बात है कि अगर देश की शीर्ष जांच एजेंसी में ही इस तरह की स्थिति है तो इसका असर निश्चय ही मामलों की जांच पर पड़ता होगा। यह तो साफ है कि वर्तमान निदेशक के रवैये से नाखुश लोगों ने उनके खिलाफ काम किया है। बिना अंदर के किसी व्यक्ति के विजिटिंग रजिस्टर की कॉपी मिल ही नहीं सकती। पर अगर निदेशक महोदय उन आरोपियों से घर पर मिलते ही नही तो फिर यह तथ्य किसी के हाथ आता तो कैसे?
तो कुल मिलाकर निष्कर्ष चिंताजनक है। भले रंजीत सिन्हा अब काम पर वापस न आएं लेकिन इस संस्था की जो स्थिति है उसे दुरुस्त किये जाने की आवश्यकता है। पिछले तीन वर्षों में सीबीआई के अधिकारियों के भ्रष्टाचार में संलिप्त होने के प्रमाण देखे हैं। आईबी और सीबीआई के बीच आतंकवादी की सूचना पर द्वंद्व देखा है। अब इसके अंदर भयानक गुटबंदी की बात भी साबित हो चुकी है। इस स्थिति का हर हाल में अंत करना होगा। यह केवल न्यायालय की नहीं, सरकार की भी जिम्मेवारी है कि एक बार इसका विरेचन कर सम्पूर्ण रुप से स्वच्छ बनाए। इसमें प्रतिनियुक्ति वैसे ही अधिकारियों की हो, जिनका चरित्र और कार्य शत-प्रतिशत संदेहों से परे रहा है। ऐसा करने के पहले यह जानना भी आवश्यक हो गया है कि आखिर प्रशांत भूषण को विजिटिंग रजिस्टर मुहैया किसने कराया? न्यायालय चाहे तो इसे गुप्त रख सकती है, पर उस व्यक्ति से और भी कई जानकारियां सामने आ सकतीं है। उसका इरादा पता चल सकता है। यह भी संभव है कि 2 जी मामले के ही किसी दूसरे गुट ने उस पर नजर रखी और यह काम करा दिया हो। इसकी सम्पूर्ण सफाई करनी है तो फिर यह जानकारी भी चाहिए।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

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