जीशान खान
दिल्ली के चाँदनी महल में हुआ हादसा पर मेरी माँ ने एक ग़ज़ल कहने की कोशिश की है......
गिरता हो मकान मौत का सामान बन गया..
लोगों की सिसकियों का निगहेबान बन गया...
बच्चे किसी के गुज़रे तो कोई बड़ा हो गया...
लाशों का ढेर जैसा के शमशान बन गया...
निकले थे पढ़ने घर से 2 भाई जो एक साथ...
एक भाई अब बच्चा है और एक बेजान बन गया...
मलबे से जब निकला तो बस्ता था उसके साथ...
मार कर भी इल्म का वो कद्रदान बन गया...
टूटा है दिल ये किसकी आवाज तक नहीं...
तोड़ा है जिसने दिल को वो नादान बना दिया...
जिनके गए हैं जान से उनकी सुने कोई...
हर लम्हा उनका अब तो परेशान बन गया...
पैसा नहीं अगर तो क़दर कोई क्यों करे...
पैसा वह रिश्तेदारी की पहचान बन गया...
मिलते हैं जो भी अपने वो करते हैं ये करम....
रिश्तों को अब निभाना भी अहसान बन गया...
भुला है हर रफीक को जब से हुआ मशहूर...
पाकर दुआएं सबकी जो सुल्तान बन गया...
फिरदौस की दुआ है ना आए कभी भी पेश...
वो वाकया जो मौत का ऐलान बन गया...
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