गुरुवार, 14 अगस्त 2025

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष - उर्दू शायरों ने भी कान्हा को लेकर बहुत खूब लिखा है.. हसरत की भी क़बूल हो मथुरा में हाज़िरी

तहसीन मुनव्वर

भारत की अभी हाल ही में ओवल में इंग्लैंड के खिलाफ़ जीत में सिराज और कृष्णा की जोड़ी ने इतिहास रचने का काम किया है. भारत की जीत को लेकर देश के सभी लीडरों ने सिराज के साथ साथ कृष्णा की भी प्रशंसा की. लेकिन सब से अधिक अगर किसी को भारत वासियों का प्यार मिला तो वो सिराज हैं. सिराज की जीत को लेकर एमआईएम प्रमुख सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने उन की भरपूर तारीफ की लेकिन ऐसा प्रतीत हुआ जैसे एक प्रकार से उन्हें हैदराबाद तक ही सीमित करने की कोशिश की. उन्हों ने अपने ट्वीट में लिखा “हमेशा ही विजेता, जैसे हम हैदराबाद में बोलते हैं कि, पूरा खोल दिए पाशा”. सिराज की प्रशंसा करने से आप को कोई नहीं रोकता है लेकिन न जाने क्यों इस ट्वीट से ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि आप एक राष्ट्रीय धरोहर को केवल अपनी गली तक सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं. अगर ऐसा है तो फिर सिराज की पूरी मेहनत पर पानी फिर जाता है. यही सोच हमें पूरी तरह से घुलने मिलने नहीं देती. ऐसा केवल एक ही तरफ़ की सोच हो ऐसा भी नहीं है.

भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने जिस प्रकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का गौरव बढ़ाया वह दर्शाता है कि जो भारत के सच्चे सपूत होते हैं उन्हें इस देश की आत्मा सर आंखों पर बिठाती है. लेकिन हमारी संकीर्ण सोच हमें चिंतन के स्तर पर ऊंचा उठने नहीं देती. मेरा हमेशा मानना रहा है कि हर देश की एक आत्मा होती है. भारत की आत्मा विविधता में एकता में बसी है. अध्यातम हमारी आत्मा का सार है. अभी पिछलों दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने नागपुर में इसी ओर ध्यान आकर्षित करवाते हुए कहा था कि दुनिया में कई अमीर देश हैं. हम 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन भी जाएं तो यह दुनिया में कोई नई बात नहीं होगी. कई ऐसे काम हैं जो दूसरे देशों ने किए हैं, हम भी कर लेंगे लेकिन दुनिया के पास अध्यात्म और धर्म नहीं है जो हमारे पास है.
उनका कहना सच है क्योंकि भारत की शक्ति आध्यात्मिक और उस धार्मिक चिंतन में है जो वसुधैव कुटुंबकम यानि पूरी पृथ्वी को एक परिवार के रूप में देखता है. जहां तक धर्म की बात है तो कोई भी धर्म आप को भटकाने के लिए नहीं आया है. धर्म का मर्म ही मानव सेवा और आपसी सामंजस्य है. धर्म जोड़ता है तोड़ता नहीं है. हमें केवल उन लोगों को और उनकी ही सुनना चाहिए जो धर्म को आपसी प्रेम, सौहार्द और एकता को बढ़ावा देने के लिए आगे बढ़ाते हों. इसी प्रकार धर्म से जुड़े जो देवी देवता या सम्मानित महान मज़हबी देवपुरुष आदि हैं वह किसी एक धर्म के लोगों को मार्ग दिखाने नहीं आए थे बल्कि वह तो पूरी मानवता का मार्गदर्शन करने वाले थे. यही कारण है कि जो सत्य को पहचानते हैं वह हर धर्म के महपुरुषों का सम्मान करते हैं. इस मामले में लेखकों और शायरों में यह अधिक देखने को मिलता है कि वह जहां अपने धर्म के महापुरुषों को लेकर लिखते हैं वहीं दूसरे धर्मों के महापुरुषों के लिए भी उनकी लेखनी से श्रद्धा के पुष्प अर्पण होते रहते हैं.
भारत में हिंदू देवी देवताओं की तारीफ़ में काव्य रचना करने वाले मुस्लिम शायरों में मौलाना हसरत मोहानी का नाम भी लिया जाता है. मौलाना हसरत मोहानी वही स्वतंत्रता सेनानी हैं जिन्हों ने इन्क़लाब ज़िन्दाबाद का नारा दिया था. मौलाना हसरत मोहानी श्री कृष्ण को हज़रत कृष्ण कहते थे. उन्हें बहुत मानते थे. उन्होंने श्री कृष्ण पर बहुत रचनाएं लिखी हैं;
हसरत की भी क़बूल हो मथुरा में हाज़िरी
सुनते हैं आशिक़ों पे तुम्हारा करम है खास

मौलाना हसरत मोहानी की श्री कृष्ण पर एक कविता है जिस में कहते हैं;

पैग़ाम-ए-हयात-ए-जावेदाँ था
हर नग़्मा कृष्ण बाँसुरी का
भारत सूफ़ी संतों की धरती है. यहाँ सूफ़ी संतों ने आपसी प्रेम को बढ़ावा दिया और सभी धर्मों को अपनी दिव्य दृष्टि से देखा. उन्हें संकीर्ण सोच के दायरे में नहीं आने दिया. इसी लिए हम देखते हैं कि हर धर्म में दूसरे धर्म के प्रति आदर भाव दिखाई देता है.अगर हम पैग़ंबर साहब पर 450 से अधिक हिन्दू शायरों की रचना ‘’हमारे रसूल” नामक पुस्तक में देखते हैं तो हिन्दू देवी देवताओं पर मुस्लिम कवियों को भी लिखता पाते हैं. अल्लामा इक़बाल की शायरी के बारे में तो कहा जाता है कि वह भरतरी हरी तथा श्री कृष्ण के जीवन दर्शन से अधिक प्रभावित है;
फूल की पत्ती से कट सकता है हीरे का जिगर
मरद-ए-नादाँ पर कलाम-ए-नरम-ओ-नाज़ुक बेअसर
इक़बाल के बहुत से शेरों में हमें गीता के उपदेश सांस लेते महसूस होते हैं;
यक़ीं मोहकम, अमल पैहम, मुहब्बत फ़ातिह-ए-आलम
जिहाद-ए-ज़िंदगानी में हैं ये मर्दों की शमशीरें
जैसा कि पहले भी कहा गया है कि भारत सूफ़ीयों संतों की धरती है. रेखता ने अपनी साइट पर कई ऐसे सूफ़ी शायरों का कलाम रखा है जिन्हों ने श्री कृष्ण पर शेर कहे हैं. उन में कुछ शेर देखिए;

‘औघट’ रहो प्रेम के भगती जब तक घट में प्राण
पूजा करो कृष्ण का और जमुना में अश्नान
(औघट शाह वारसी)
गोकुल की सी नागरी मथुरा का सा गाँव
तुम हो मालिक बृज के कृष्ण तुम्हारा नाँव
(मुज़्तर ख़ैराबादी)

बलदेव जसोदा नंद कहूँ
तैनूँ किशन कनहैया कान कहूँ
(ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद)
तुम चतुराई कोऊ जान न पाई
कोऊ छल बल संसार लुभाई
मथुरा छाँड बिरहा जग बोयो
कूबर कुल बिंदराबन छाई
(अमीनुद्दीन वारसी)

ऐसा नहीं है कि भगवान श्री कृष्ण को लेकर मुस्लिम कवियों ने हाल ही में लिखा हो. कई शताब्दी पहले से ही श्री कृष्ण पर लोग लिखते रहे हैं. केवल रसखान या रहीमन को ही नहीं देखें तो बहुत से और भी कवि रहे हैं जिन्हों ने कृष्ण भक्ति की शायरी की है. इंटरनेट पर उर्दू में ऐसे बहुत से लेख मिल जाते हैं जिन से पता चलता है कि सोलहवीं शताब्दी में शाह बदर उद्दीन जानम, अठारवीं शताब्दी में शाह तय्यब चिशती, वली दक्कनी और बाद में आलम शेख़ की शायरी में भी श्री कृष्ण पर शायरी मोजूद है. हफ़ीज़ जालंधरी की ‘कृष्ण कनहिया’ तथा वाजिद अली शाह की ‘रास लीला’ भी श्री कृष्ण के प्रेम में रची बसी है.
एक नाम तो हम छोड़ ही नहीं सकते वो है नज़ीर अकबराबादी का जिन की पूरी शायरी भारत के सभी रंगों में रंगी हुई है. ‘जन्म कनहिया जी’, ‘कनहिया जी की शादी’ और ‘कनहिया जी का रास’ जैसी उनकी कविताएं आज भी पढ़ी जाती हैं;
मोहन मदन गोपाल हरी बंस मन हरण
बलिहारी उनके नाम ये मेरा तन बदन
गिरधारी नंद लाल हरी नाथ गोवर्धन
लाखों किए बनाओ हज़ारों किए जतन

एक और नाम मोहसिन काकोरवी का भी है जिन्हों ने पैग़म्बर साहब पर लिखी नात शरीफ में जिस प्रकार मथुरा की चर्चा की है उर्दू वाले इसे सदा उपयोग करते रहते हैं;
देखिए होगा सिरी किशन का क्यों कर दर्शन
सीना-ए-तंग में दिल गोपियों का है बेकल
सिम्ते काशी से चला जानिबे मथुरा बादल
तैरता है कभी गंगा कभी जमुना बादल

मोहसिन काकोरवी के ही रास्ते पर चलते हुए काकोरी के ही एक शायर शाह क़ाज़िम अब्बासी काकोरवी ने भी श्री कृष्ण के इश्क़ में डूब कर शेर कहे हैं;
कहाँ गए बृज लाल बसइया
मन मोहिनी बंसी के बजइया
कहाँ छुपी जाये मोहिनी मूरतिया
सगरे नगर के मन के छलइया

श्री कृष्ण और गीता उर्दू शायरी को हमेशा से ही अपनी ओर खींचते रहे हैं. मुझे इंटरनेट पर घूमते हुए पाकिस्तान की बड़ी कवीयत्री परवीन शाकिर का श्री कृष्ण पर केंद्रित कलाम भी मिला है. परवीन शाकिर भारतीय उपमहाद्वीप की नारी की संवेदनाओं को अपनी शायरी में ढालती रहीं हैं. लेकिन उनका श्री कृष्ण पर यह कलाम देख कर आप चौंक जाएंगे;
तू है राधा अपने कृष्ण की
तेरा कोई भी होता नाम
मुरली तेरे भीतर बाजती
किसी बन करती बिसराम
या कोई सिंघासन बिराजती
तुझे खोज ही लेते श्याम

श्री कृष्ण पर कुछ और शायरों का भी कलाम देखिए;
दिलों में रंग मुहब्बत का उस्तावर किया
सवादे हिंद को गीता से नग़मा बार किया
(सीमाब अकबराबादी)

एक प्रेम पुजारी आया है चरणों में ध्यान लगाने को
भगवान तुम्हारी मूरत पर श्रधा के फूल चढ़ाने को
(आफ़ताब रईस पानीपती)
कृष्ण‌ कनहिया आन बिराजे मोरे मन के मंदिर में
भगवन मोरे साथ हैं अब तो द्वार खुले हैं दर्पण के
(अब्दुल्लाह हादी काविश)

मेरा काबा मेरा शिवाला देवकी नंदन आप ही हैं
मेरा तो हर एक हवाला देवकी नंदन आप ही हैं
वृंदावन से चंबल तक जो गाय चराने आता था
नंद का वो गिरधर गोपाला देवकी नंदन आप ही हैं
(शाहिद अंजुम)
अंत में उन सभी के आभार के साथ कि जिन के लेख से इस लेख की राह आसान हुई अपने दो शेर भी प्रस्तुत करता चलूँ.

किशन मुरारी, कुंज बिहारी, गोवर्धन, गोपाला रे
बंसी बजइया, रास रचइया, सांवरिया, नन्द लाला रे
ज़ालिम थर थर काँप रहे हैं ऐसी शुभ घड़ी आई है
मथुरा गोकुल झूम रहे हैं लाज रखइया आला रे
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शायर हैं। यह लेखक के अपने विचार हैं।)

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