गुरुवार, 28 अगस्त 2025

उपराष्ट्रपति चुनाव में सी पी राधाकृष्णन बनाम न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी

अवधेश कुमार

भाजपा नेतृत्व वाले राजग के सीपी राधाकृष्णन के विरुद्ध आईएनडीआईए  उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाने पर कांग्रेस का तर्क है भाजपा ने संघ पृष्ठभूमि वाले को उम्मीदवार बनाया जबकि हमने ऐसे न्यायमूर्ति को सामने लाया है जिनकी संविधान के प्रति प्रतिबद्धता है। इस तरह कांग्रेस इसे विचारधारा से जोड़ने की राजनीति की है । आईएनडीआईए में साफ था कि किसी राजनीतिक दल या वैसे चेहरे के पक्ष में पूरे समूह का वोट सुनिश्चित मानना कठिन होगा। बी सुदर्शन रेड्डी भी दक्षिण के हैं और संयुक्त आंध्र के होने के कारण विपक्ष की सोच है कि भाजपा के सहयोगियों तेलुगूदेशम, जन सेना के साथ तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति के सामने दुविधा पैदा होगी। दोनों सदनों के अंकगणित को देखें लोकसभा की प्रभावी सदस्य संख्या 542 और राज्यसभा की 240 है। तो उपराष्ट्रपति चुनाव में कुल मतदाताओं की संख्या हुई, 782। राजग की 422 संख्या के अनुसार सीपी राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति बनना प्राय: निश्चित है।

आइए अब उम्मीदवारों के पीछे की रणनीति , उनकी योग्यताएं और  संदेशों को समझें। चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन के व्यक्तित्व में विवादों का स्थान नहीं रहा है। इसलिए उनके विरोध के लिए कोई तथ्य नहीं मिल सकता। वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल के पूर्व झारखंड के भी राज्यपाल रहे तथा इसी बीच कुछ समय के लिए तेलंगाना और पुडुचेरी का भी अतिरिक्त प्रभार उनके पास रहा। लगातार जनता के बीच जाने के लिए झारखंड एवं महाराष्ट्र में यात्राएं करने के बावजूद राजनीतिक विवाद न होना या राजनीतिक दलों द्वारा प्रश्न खड़ा न किया जाना उनकी व्यवहारिक विवेकशीलता का प्रमाण है। वह 1998 और 1999 में दो बार तमिलनाडु के कोयंबटूर से लोकसभा सांसद रह चुके हैं। इसलिए कोई उन्हें संसदीय प्रणाली से भी अनभिज्ञ नहीं कह सकता। उनका राजनीतिक कैरियर लगभग पांच दशक का है। वे‌ तमिलनाडु में भाजपा के सचिव और अध्यक्ष रह चुके हैं। वैसे तमिलनाडु से ही सर्वपल्ली राधाकृष्णन पहले उपराष्ट्रपति और बाद में राष्ट्रपति बने जो न कभी किसी सदन के सदस्य रहे और न किसी दल से जुड़े थे। हां तमिलनाडु से दूसरे उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति बीबी गिरी अवश्य गवर्नर का पद संभाल चुके थे। इसलिए विपक्ष के पास इस आधार पर भी आलोचना का कोई कारण नहीं है।

सुदर्शन रेड्डी आंध्रप्रदेश और गुवाहाटी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे और 2007 से 2011 तक उच्चतम न्यायालय में। नवर्तमान तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने जब सामाजिक ,आर्थिक, शैक्षणिक, जातीय सर्वेक्षण का फैसला किया तो उसके रिपोर्ट के लिए सुदर्शन रेड्डी की अध्यक्षता में ही एक समिति बनाई थी। इस तरह कांग्रेस के साथ उनका संपर्क था। हालांकि जब वे गोवा के लोकायुक्त थे तब कांग्रेस ने विरोध  किया था। उस समय उनकी नियुक्ति भाजपा सरकार की ओर से हुई थी और इसलिए कांग्रेस में उन्हें पक्षपाती माना था। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उन्हें सिविल लिबर्टीज यानी नागरिक स्वतंत्रता का झंडा उठाने वाला न्यायाधीश कहां है। छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा के विरुद्ध जनता के सलवा जुडूम संघर्ष को उन्होंने असंवैधानिक करार देकर प्रतिबंधित किया था। इस फैसले की तब से आज तक आलोचना हो रही है क्योंकि इसे जनता की अपने जीवन और संपत्ति की रक्षा तथा हिंसा के द्वारा इन्हें नष्ट करने वालों के विरुद्ध संघर्ष का अधिकार छीना गया था। तो इसका संदेश क्या हो सकता है? शीर्ष स्तर पर न्यायाधीश की योग्यता छोड़ दें तो राजनीतिक दृष्टि से कांग्रेस या किसी पार्टी के समर्थकों, नेताओं , कार्यकर्ताओं आदि के बीच इसका कोई विशेष संदेश नहीं गया होगा। कांग्रेस इसे विचारधारा का विषय भले बनाए उसके या आईएनडीआईए दलों के लिए इसमें जनता के बीच आकर्षक राजनीतिक संदेश देने का पहलू नहीं है। कांग्रेस ने पिछली बार जगदीप धनखड़ के विरुद्ध अपनी नेत्री मारग्रेट अल्वा को खड़ा किया था। सो यह दावा नहीं कर सकते कि ऐसे पद के लिए राजनीति से परे हटकर विचार करते हैं। ऐसा लगता है कि विपक्षी दलों  के मत दूसरी ओर जाने से रोकने के लिए सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाया गया है।

दूसरी ओर साफ दिखता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा ने उम्मीदवार पर गहराई से मंथन किया है।  प्रधानमंत्री मोदी अपनी नीतियों और व्यवहारों से तमिल बनाम अन्य, उत्तर बनाम दक्षिण के भेद को समाप्त करने के लिए सतत कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री संपूर्ण भारत के साथ तमिल संस्कृति और वहां के आस्था स्थलों के जुड़ाव को अलग-अलग तरीकों से रेखांकित करते रहे हैं। काशी तमिल संगम तथा महत्वपूर्ण तमिल ग्रंथों का अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद आदि से तमिल राजनीति के उत्तर दक्षिण, आर्य द्रविड़ ,तमिल गैर तमिल जैसी विभाजनकारी राजनीति का उत्तर देने की भी प्रभावी कोशिश कर कर रहे हैं। भाजपा तमिलनाडु में अपना प्रभावी अस्तित्व बनाने के लिए सक्रिय है। इस दृष्टि से राधाकृष्णन का तमिल और पिछड़ा होने का राजनीतिक अर्थ समझ में आता है। एक राजनेता होते हुए भी राज्यपाल के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन कर  राजनीति को नहीं आने देना उनका ऐसा गुण है जिसकी प्रशंसा दोनों राज्यों के भाजपा विरोधी पार्टियां करतीं हैं। दिन रात भाजपा के विरुद्ध बयान देने वाले शिवसेना उद्धव के नेता संजय राउत ने कहा कि उनका एक अविवादित व्यक्तित्व है। झारखंड से भी उनके बारे में यही आवाज है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक आंध्र की पार्टियों से सुदर्शन रेड्डी को समर्थन देने की घोषणा नहीं है जबकि जगनमोहन रेड्डी राधाकृष्णन के समर्थन का बयान दे चुके हैं।

वैसे राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाने का भाजपा की दृष्टि से महत्वपूर्ण संदेश दूसरे हैं। पहले सत्यपाल मलिक और बाद में जगदीप धनखड़ के अनुभव से सीख लेते हुए ऐसा लगता है कि भाजपा पूरी तरह परीक्षित नेता को ही महत्वपूर्ण स्थानों पर लाने की नीति की ओर अग्रसर हो रही है। ऐसा होता है तो यह नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल का महत्वपूर्ण पड़ाव होगा। पिछले लोकसभा चुनाव में कार्यकर्ताओं और समर्थकों के असंतोष के पीछे यह एक प्रमुख कारण था जिसके क्षति भाजपा को उठानी पड़ी । राधाकृष्णन की पूरे राजनीतिक जीवन में वैचारिक प्रतिबद्धता स्पष्ट रही है। तमिलनाडु में तमिल और सनातन विभाजन के विरुद्ध तथा सनातन संस्कृति के पक्ष में वे प्रखर रहे हैं। कोयंबटूर में 1997 के दंगों के बीच उनकी भूमिका को हिंदू संगठनों ने काफी सराहा। जिन लोगों को पिछली सदी के अंतिम दशक में तमिलनाडु के अंदर बढ़ते मुस्लिम कट्टरवाद , दंगों और आतंकवाद की जानकारी है वे उनके कार्य को भली-भांति समझते हैं। 18 फरवरी 1998 को लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान लालकृष्ण आडवाणी की सभा के कुछ समय पूर्व सभा स्थल से लेकर जहां-जहां से सभा में लोग आने थे श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों ने पूरे प्रदेश को हिला दिया। राधाकृष्णन तब वहां से भाजपा के उम्मीदवार थे। तत्काल 58 लोग मारे गए एवं 200 के आसपास घायल हुए थे। राधाकृष्णन ने घायलों से लेकर मृतकों के परिवारों की सहायता तथा आतंकवादियों एवं उनके समर्थकों के विरुद्ध जिस तरह निर्भीक होकर काम किया उससे उनका व्यापक जन समर्थन बढ़ा । वह करीब डेढ़ लाख मतों से विजित हुए। उनका आत्मविश्वास इतना बढ़ गया था कि 1999 के मध्यावधि चुनाव में उन्होंने घोषणा ही कर दिया कि यहां से भाजपा को वोट मांगने की आवश्यकता नहीं।    भाजपा के शुद्ध वैचारिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति के पक्ष में संपूर्ण राजग का एकजुट होना साबित करता है कि नरेंद्र मोदी द्वारा सत्ता संभालने के बाद राजनीति भाजपा के संदर्भ में कहां से कहां पहुंच गई है। यह राजग के भीतर वैचारिक द्वंद्व की संभावनाओं को तत्काल खारिज करने वाला संदेश है।  वैसे भी बिहार चुनाव के वक्त कोई पार्टी इस आधार पर दगा करेगी यह कल्पना ही बेमानी है। महाराष्ट्र में भी शिवसेना शिंदेऔर राकांपा अजीत पवार द्वारा किसी तरह के विचलन की  संभावना नहीं दिखती। चंद्रबाबू नायडू ने 2019 में भूल कर दिया था जिसका परिणाम उनको भुगतना पड़ा। काफी संघर्ष के बाद वे सत्ता में लौटे है। इस स्थिति में वे विपक्ष का साथ दे देंगे ऐसी कल्पना कठिन है। इसके उल्ट क्या महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की मुलाकात का असर हो सकता है? प्रियंका चतुर्वेदी ने प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात की अपनी एक तस्वीर स्वयं सार्वजनिक किया। कांग्रेस द्वारा इस विचारधारा की लड़ाई बताने के बाद अगर भाजपा की वैचारिक प्रतिबद्धता वाले उम्मीदवार के पक्ष में दूसरी ओर का कुछ वोट भी आता है तो यह भाजपा नेतृत्व के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। वस्तुत: यह भारत की भावी राजनीति के लिए दिशा संकेतक होगा।

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स, दिल्ली- 110092, मोबाइल-9811027208

गुरुवार, 21 अगस्त 2025

इस अशोभनीय स्थिति का अंत हो तो कैसे

अवधेश कुमार

यह अभूतपूर्व अशोभनीय और अनेक अर्थों में अस्वीकार्य व  आपत्तिजनक स्थिति है। देश के कुछ नेता और राजनीतिक दल चुनाव आयोग के विरुद्ध संसद से सड़क तक अभियान चलाएं इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। अगर आईएनडीआईए सांसदों की बैठक में चुनाव आयोग के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव जैसा प्रस्ताव लाने की बात उठी तो एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में इससे डरावनी स्थिति कुछ हो ही नहीं सकती। हालांकि इस सत्र का अवसान हो रहा है और इसमें प्रस्ताव आ नहीं सकता। दूसरे, प्रस्ताव आया भी तो सदस्य संख्या के हिसाब से यह गिर जाएगा। किंतु इस पर विचार होना ही अंदर से हिला देने वाला है। चुनाव आयोग ने पत्रकार वार्ता में स्पष्ट बोला है कि या तो  जो आरोप लगा रहे हैं उसका प्रमाण दें नहीं तो क्षमा मांगे। दूसरी ओर बिहार में वोट अधिकार यात्रा के नाम से यात्रा कर रहे राहुल गांधी ने सासाराम में यात्रा आरंभ करते हुए कहा कि न हम चुनाव आयोग से डरने वाले हैं और न तेजस्वी यादव। राहुल गांधी और उनके रणनीतिकारों - सलाहकारों तथा इनके पिछले लंबे समय से चुनाव आयोग और संपूर्ण चुनाव प्रणाली की साख पर चोट करने के लगातार अभियानों पर दृष्टि रखने वाले जानते हैं कि उनकी ऐसी ही प्रतिक्रिया आती रहेगी। चुनाव आयोग द्वारा पहले अपने आरोपों पर शपथ पत्र मांगने के विरुद्ध उनकी प्रतिक्रिया थी कि मुझे शपथ पत्र देने की आवश्यकता नहीं। उन्होंने यह तर्क दे  दिया कि मैंने संविधान की शपथ लिया है तो उससे बड़ा शपथ क्या हो सकता है। साफ है कि जब वह बार-बार चुनाव आयोग को भाजपा का एजेंट बता रहे हो और आईएनडीआईए के घटकों से उन्हें समर्थन भी मिल रहा हो तो वे क्यों पीछे हटेंगे? भारतीय राजनीति में संवैधानिक संस्थाओं के प्रति गरिमा और मर्यादा का भाव होता तो चुनाव आयोग के विरुद्ध इस तरह की भाषा प्रयोग नहीं की जाती।

राहुल गांधी  ने  चुनाव आयोग पर सबसे बडा हमला करते हुए अपने 1 घंटे 11 मिनट के वक्तव्य में 21 पृष्ठों के पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन से साबित करने की कोशिश की कि चुनाव आयोग भाजपा की मदद करने के लिए मतदाता सूची में जबरदस्त गड़बड़ी करता है और जहां भाजपा को चुनाव में पराजित होना चाहिए वहां मतदाताओं की फर्जी संख्या के आधार पर जीत दिला देता है। चुनाव आयोग के विरुद्ध नई लड़ाई का आरंभ उन्होंने बिहार में 17 अगस्त से 2 सितंबर तक की वोट अधिकार यात्रा से कर दिया। इसका फोकस ही चुनाव आयोग और उसके द्वारा आरंभ एसाईआर यानी विशेष मतदाता पुनरीक्षण अभियान है। राहुल गांधी का पूरा अभियान सुनियोजित है। कांग्रेस पार्टी द्वारा एक वेब पोर्टल बनाकर लोगों से कहा गया है कि कि चोरी के वीरुद्ध जवाब दें  तथा डिजिटल मतदाता सूची के मांग का समर्थन करें। कहने का तात्पर्य कि लंबी तैयारी से कांग्रेस पार्टी ने इसे आरंभ किया है। चूंकि इस तरह कभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को चुनाव आयोग के विरुद्ध आरोप लगाते और अभियान छेड़ते नहीं देखा गया इसलिए यह निष्कर्ष निकालना कठिन है कि आखिर इसका परिणाम क्या आएगा? इसका अंत कैसे होगा? इसका अंत होगा या नहीं?

आखिर चुनाव आयोग क्या करे? राहुल गांधी ने कर्नाटक के मध्य बेंगलुरु संसदीय क्षेत्र के महादेवपूरा विधानसभा का अपने दृष्टि से आंकड़ा दिया उस पर पहले ही कर्नाटक चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण आ चुका है। उन्होंने पांच विधानसभा में जीतने और एक में भाजपा के वोट बढ़ जाने से पराजय को चुनाव आयोग की चोरी बता दिया। उनके अनुसार  दोनों पार्टियों को मिले वोटों का अंतर 32,707 था लेकिन महादेवपुरा की गणना में अंतर 1,14,046 का रहा। तो 1 लाख से ज्यादा वोटों की चोरी हुई। उन्होंने महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों जगह भाजपा की बढ़त के लिए चुनाव आयोग को ही जिम्मेदार ठहरा दिया। पहले कर्नाटक चुनाव आयोग ने एक महिला मतदाता शकुन रानी द्वारा दो बार वोट डालने के आरोपों का खंडन करते हुए बताया कि आपने जो दस्तावेज दिए उसको मतदान अधिकारी के हस्ताक्षर वाले नहीं थे, आपको कहां से यह जानकारी मिली बताएं? अन्य मतदाता भी सामने आए तथा बताया कि वह उन्होंने एक ही जगह वोट डाला है। राहुल गांधी ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया। उनको उत्तर देना भी नहीं है। उनको पता है कि महाराष्ट्र के धुले लोकसभा सीट पर। भाजपा भी पांच विधानसभा में आगे थी लेकिन मालेगांव सेंट्रल में कांग्रेस को 1 लाख 94000 वोट आ गए और वह जीत गई।  राहुल गांधी इन तथ्यों से अप्रभावित होकर चुनाव आयोग के विरुद्ध अपने अभियान पर कायम हैं। उनके पहले के आरोपों पर भी चुनाव आयोग ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर उत्तर दिया। एक संवैधानिक संस्था की सीमाएं होती है और वह यही कर सकता था। चुनाव आयोग ने वक्तव्य जारी किया कि आप फर्जी मतदाताओं का आरोप लग रहे हैं तो नियम के अनुसार शपथ पत्र दीजिए ताकि निर्धारित प्रक्रिया से जांच की जाए। आयोग ने नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया तो राहुल गांधी सारे विपक्षी सांसदों को लेकर जाने लगे। यह क्या है?

चुनाव आयोग के पास कोई विकल्प बचा नहीं था तभी उसे पत्रकार वार्ता आयोजित कर उत्तर देना पड़ा। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने एक-एक प्रश्न का उत्तर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि किसी मतदाता का नाम दो जगह  होने का अर्थ नहीं है कि उसने दोनों जगह मतदान किया ही। इसका अर्थ था कि मतदाता सूची बनाने वालों से कई बार गलतियां हो सकती हैं। यह सच है। अपवादस्वरूप पूरे देश में ऐसे मतदाता होंगे जिनके नाम दो स्थानों पर हो सकते हैं। एक जगह पहले नाम रहा हो और उन्होंने वह जगह छोड़ने के बाद दूसरी जगह भी मतदाता के नाते पंजीकरण कराया हो और पहले वाले को रद्द नहीं कराया हो। कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जो अवसर मिलने पर दोनों जगह मतदान कर दें। किंतु चुनाव आयोग जानबूझकर योजनापूर्वक ऐसा कर रहा है और वह भी केवल भाजपा का वोट बढ़ाने के लिए यह आरोप भयानक है। अगर चुनाव आयोग किसी पार्टी के पक्ष में है तो हमारी पूरी चुनाव प्रणाली ही पतित है और इसका अंत होना चाहिए। बिना जन आधार के भाजपा चुनाव आयोग द्वारा भ्रष्ट प्रणाली से सत्ता प्राप्त कर रही है तो शासन पर उसकी नैतिक अधिकारही समाप्त हो जाता है। इस तरह यह जघन्य आरोप है। इससे हमारी पूरी लोकतांत्रिक प्रणाली है की साख ही प्रश्नों के घेरे में आ जाती है।

इस दृष्टि से देखें तो राहुल गांधी और उनके सुर में ताल मिलाते विपक्ष के इस अभियान की भयानक गंभीरता समझ में आती है। कहा जा रहा है कि आरोप चुनाव आयोग पर है और जवाब भाजपा दे रही है। चुनाव आयोग भी जवाब दे रहा है। गहराई से देखें तो केंद्रीय सत्ता में होने के कारण आरोप भाजपा पर ही है। आखिर चुनाव आयोग ऐसा कर रहा है तो उसके पीछे कुछ लालच या फिर सत्ता का दबाव ही हो सकता है। यानी भाजपा  सत्ता पर कब्जा करने के लिए चुनाव आयोग में शीर्ष से नीचे तक ऐसे लोगों की नियुक्तियां करता है जो उनके लिए ही काम करे और न करने वालों के विरुद्ध परोक्ष तरीके से कदम उठाता है। किसी पार्टी पर यह आरोप लगाए कि उसकी सत्ता तो केवल चुनाव आयोग द्वारा वोट चोरी करने या लूटने के कारण है तो  वह उत्तर देगा या नहीं? दूसरे , सरकार मानती है कि सारे आरोप आधारहीन एवं गलत इरादे से लगाए जा रहे हैं तो उसका स्वाभाविक दायित्व संवैधानिक संस्थाओं पर लगने वाले आरोपों के विरुद्ध खड़ा होना तथा इसका अंतिम सीमा तक खंडन करना है। सत्तासीन पार्टी या घटक द्वारा ऐसा न करने का अर्थ सारे आरोपों को मौन रहकर स्वीकार करना माना जाएगा। चुनाव चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट नहीं है कि वह अपनी ओर से संज्ञान लेकर मुकदमा शुरू कर दे और सजा भी दे दे। लेकिन आरोप लगाना और खंडन करना भी अंतहीन नहीं हो सकता। प्रश्न यही है कि आखिर इस अशोभनीय स्थिति का अंत कैसे हो? उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियां भी राहुल गांधी एवं विपक्ष को नहीं रोक पा रही। इसलिए स्थिति ज्यादा विकेट है।

शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

नियत कर्म करने वाले को कर्तृत्व भाव से युक्त होना होता है

जन्माष्टमी पर विशेष

शिव शंकर द्विवेदी
 
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।। श्रीमद्भगवद्गीता,अध्याय -4श्लोक-13।।
न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते।। श्रीमद्भगवद्गीता,अध्याय -4श्लोक-14।।
प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः।
अहंकारविमूढात्मा कर्ताऽहमिति मन्यते।। श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय -3, श्लोक- 27।।
यहां प्रश्न है कि वह अर्थात् परमात्मा अकर्ता हैं तो स्वयं को कर्ता भी कैसे समझा रहे हैं।वह स्वयं को गुण कर्म के विभाग से बनी वर्ण व्यवस्था के कर्ता घोषित भी कर रह रहे हैं - तस्य कर्तारमपि मां विद्धि ......।
उक्त श्लोक ही उक्त प्रश्न का समुचित उत्तर देने में सक्षम है। उक्त श्लोक यह समझाने में सक्षम है कि जो गुणों के आधीन हैं या जो लोग प्रकृति के आधीन हैं वे प्रकृति के निर्देश पर काम करते हैं अर्थात् उनके द्वारा जो कुछ किया जाता है उसे उनके स्वभाव या उनकी प्रकृति नियन्त्रित करती है इस कारण उनका अज्ञान है कि वे स्वयं को कर्ता समझते हैं क्योंकि उन्हें तो आदेश उनका स्वभाव दे रहा है। इसके विपरीत परमात्मा के वश में उनका स्वभाव या उनकी प्रकृति है। ऐसे में उनकी प्रकृति जो कुछ कर रही होती है वह परमात्मा के निर्देश में कर रही होती है।यही कारण है कि परमात्मा ने स्वयं को वर्ण व्यवस्था का कर्ता घोषित किया था क्योंकि वर्ण व्यवस्था उनके द्वारा सोची समझी गयी व्यवस्था है। वर्ण-व्यवस्था को उनके स्वभाव ने नहीं सोचा है अपितु परमात्मा ने सोचा है इस कारण उसे मूर्त रूप देने वाले परमात्मा ही इसके कर्ता हैं।
श्रीकृष्ण की संवीक्षा है कि व्यक्ति जब गुणों के आधीन होता है तब वही काम करता है अथवा उसी के विषय में सोचता है जिस गुण की प्रधानता के वशीभूत होता है। जैसे कि जब वह सत्वगुण की प्रधानता में रहता है तब उससे बुरे या समाज विरोधी कार्यों के करपाने की आशा नहीं व्यक्त करना चाहिए क्योंकि वह बुरे या समाज विरोधी कार्यों को कर ही नहीं सकता है। इसी तरह से तमोगुण प्रधान वाले व्यक्ति से अच्छे अथवा समाजोपयोगी कार्यों की अपेक्षा करनी ही नहीं चाहिए क्योंकि तमोगुण प्रधान वाले लोग अच्छे या समाजोपयोगी कार्यों को कर ही नहीं सकते हैं। इस प्रकार श्रीकृष्ण का अभिमत है कि गुणों के वशवर्ती लोग वही कर पाते हैं जिस गुण की प्रधानता में वे रहते हैं।ऐसे में जबकि वे गुणों के वशवर्ती होने के कारण स्वेच्छा से कोई काम कर ही नहीं पाते हैं तो इसके बाद भी वे स्वयं को कर्ता समझ रहे होते हैं तो इसका अर्थ है कि वे अहंकार के वशीभूत भी होते हैं।अहंकार उन्हें इस तथ्य से अवगत होने ही नहीं देता है कि वे गुणों के वशवर्ती हैं। अत एव वे वही कर रहे होते हैं या कर सकते हैं जो प्रधान गुण उनसे कराना चाहते हैं।गुण प्रकृति अर्थात् स्वभाव के द्योतक हैं। अत एव यह समझना ही तथ्य को समझना है कि जो लोग स्वभाव के वशवर्ती होते हैं वे वास्तविक रूप से कर्ता नहीं हैं क्योंकि वास्तविक कर्ता तो उनका स्वभाव है, उनकी प्रकृति है जिसके वशवर्ती वे लोग होते हैं। इसके बावजूद भी स्वयं को कर्ता समझना उनकी मूढ़ता है।यही है -अहंकार विमूढात्मा का अर्थ।
जब श्रीकृष्ण स्वयं को कर्ता समझाते हैं तो उसका अर्थ होता है कि,वह स्वभाव के वशवर्ती नहीं हैं अपितु स्वभाव ही उनके वशर्ती हैं। हमें इस त्रुटिपूर्ण सोच से बचना चाहिए कि परमात्मा स्वभाव शून्य हैं। वास्तविकता तो यह है कि परमात्मा स्वभाव शून्य नहीं हैं अपितु स्वभाव उनके वश में है।हम मानव, स्वभाव के वश में हैं और परमात्मा के वश में उनका स्वभाव है,उनकी प्रकृति है-
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया।। श्रीमद्भगवद्गीता,अध्याय -4श्लोक -6।
आगे वह संसार की रचना करते हुए की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए बताते हैं कि वह 
अपनी प्रकृति को अपने वश में करके संसार की रचना करते हैं -
प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः।
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्।।
श्रीमद्भगवद्गीता,अध्याय- 9,श्लोक-8।।
उक्त दोनों श्लोक यह समझने के लिए पर्याप्त हैं कि परमात्मा की प्रकृति या परमात्मा का स्वभाव उनके वश में है न कि वह अपने स्वभाव या अपनी प्रकृति के वश में हैं।
परमात्मा के वश में उनकी प्रकृति है इसी कारण उन्होंने स्वयं को कर्ता कहा है और मनीषी लोग भी उन्हें कर्ता ही समझते और समझाते हैं।
परमात्मा ने स्वयं को अकर्ता समझा है और यह भी कहा कि मनीषी लोग उन्हें अकर्ता समझते हैं क्योंकि वह स्वयं कुछ नहीं करते हैं वास्तविकता तो यह है कि वह अपनी प्रकृति या स्वभाव से कर्म करवाते हैं। वह लोगों से कर्म करवाते हैं।लोग उनके लिए निमित्त बनकर उनके निर्देशों का पालन करते हैं। यही कारण रहा है कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन से सम्मुख उपस्थित युद्ध में निमित्त कर्ता बनने का अनुरोध किया था-
तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लाभस्व
जित्वा शत्रुन् भुङ्क्षव राज्यं समृद्धम्।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव
निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्।।
श्रीमद्भगवद्गीता,अध्याय- 11, श्लोक-33।
उक्त से सुस्पष्ट है कि जब श्रीकृष्ण अकर्ता होते हुए भी स्वयं को कर्ता भी घोषित करते हैं तो इसका कारण यह है कि वह लोगों के लिए कर्म नियत या निर्धारित करते हैं। व्यवस्था हेतु लोगों के लिए नियतकर्म निर्धारित करते समय वह कर्ता होते हैं।   
इसका अर्थ है कि वास्तविक कर्ता वह है जो त्रिगुतीत होकर अथवा अपनी प्रकृति को अपने वश में करके कर्तव्य बोध से युक्त होकर वह करे, जो उसके लिए नियत हो।  
व्यवस्था के लिए लोगों के गुण और कर्म के विभाग से आधार पर उनके करने योग्य कर्मों का निर्धारण करना परमात्मा ने अपने लिए कर्म नियत कर रखा है इतना ही नहीं, व्यवस्था पर संकट की स्थिति में व्यवस्था को सुचारू रूप संचालित करने के लिए बार-बार अवतरित होना भी परमात्मा ने अपने लिए नियत कर्म के रूप में निर्धारित कर रखा है-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ श्रीमद्भगवद्गीता,अध्याय -4, श्लोक-7॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसं स्थापनार्थाय संभावनामि युगे युगे ॥ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय -4, श्लोक-8॥
मद्भाव का अर्थ बोध 
जब श्रीकृष्ण कहते हैं कि,उनकी कृपा से लोग मद्भाव को प्राप्त करते हैं तो उसका यही अर्थ होता है कि उनकी कृपा से लोग अपने स्वभाव को अपने वश में उसी तरह करने में सक्षम होते हैं जिस तरह से परमात्मा अपने स्वभाव को अपने वश में करने में सक्षम हैं।
परमात्मा ही वह हैं जिनका स्वभाव उनके वश में हैं और वह नियतकर्म करने में सक्षम हैं। लोगों के लिए नियतकर्म निर्धारित करते समय भी परमात्मा निस्पृह होकर नियतकर्म निर्धारित करते हैं। अपने हित के आधार पर वह लोकहित को नहीं देखते हैं।ऐसे में लोकहित में व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने के उद्देश्य से लोगों के लिए नियतकर्म निर्धारित करते समय वह केवल और केवल लोकहित को ही ध्यान में रखते हैं। ऐसे में वास्तविक रूप में कर्ता वे हैं जिसके वश में उसके स्वभाव हैं। स्वभाव को अपने वश में रखने वाला ही ब्राह्मी स्थिति को प्राप्त हुआ होता है। ब्राह्मी स्थिति को प्राप्त हुआ व्यक्ति ही मद्भाव को प्राप्त हुआ व्यक्ति है।ब्राह्मी स्थिति को प्राप्त हुआ व्यक्ति ही नियतकर्म करता है क्योंकि इस स्थिति में पहुंचने वाले लोगों के पास काम्य कर्म बचता ही नहीं है।वे इस स्थिति में आने के उपरान्त निजी कामनाओं के वशीभूत होकर कुछ नहीं करते हैं इस दृष्टि से वे भी कर्ता होते हैं। इस प्रकार जो कर्ता होते हैं उन्हें उनके द्वारा किये गये कर्मों के परिणाम बाधित नहीं करते हैं क्योंकि वे किसी परिणाम की प्रत्याशा में कोई कर्म नहीं करते हैं अपितु इस लिए करते हैं कि वे उनके लिए निर्धारित हैं।
कर्ता और अकर्ता का अर्थ बोध 
उक्त से सुस्पष्ट है कि गुणों,प्रकृति या स्वभाव के वश में न रहने वाले परमात्मा स्वाभाविक रूप से अकर्ता हैं क्योंकि लोकहित में निर्धारित कर्मों को लोगों से करवाते हैं किन्तु जब वे लोकहित में नियतकर्म करते तब वे कर्ता होते हैं क्योंकि नियतकर्म वे किसी गुण के अधीन होकर नहीं करते हैं अपितु कर्तव्य बुद्धि से करते हैं।इस प्रकार समझ सकते हैं कि कर्तव्य बुद्धि से युक्त होकर कार्य करने वाले ही वास्तविक रूप से कर्ता हैं।इसी लिए परमात्मा ने स्वयं को कर्ता घोषित किया है। वह अकर्ता होते हुए भी नियतकर्म करते हैं इस कारण वह कर्ता भी हैं।
(लेखक अ-मोक्ष साधना केंद्र राजनिकेतन वृन्दावन योजना लखनऊ हैं।)

गुरुवार, 14 अगस्त 2025

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष - उर्दू शायरों ने भी कान्हा को लेकर बहुत खूब लिखा है.. हसरत की भी क़बूल हो मथुरा में हाज़िरी

तहसीन मुनव्वर

भारत की अभी हाल ही में ओवल में इंग्लैंड के खिलाफ़ जीत में सिराज और कृष्णा की जोड़ी ने इतिहास रचने का काम किया है. भारत की जीत को लेकर देश के सभी लीडरों ने सिराज के साथ साथ कृष्णा की भी प्रशंसा की. लेकिन सब से अधिक अगर किसी को भारत वासियों का प्यार मिला तो वो सिराज हैं. सिराज की जीत को लेकर एमआईएम प्रमुख सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने उन की भरपूर तारीफ की लेकिन ऐसा प्रतीत हुआ जैसे एक प्रकार से उन्हें हैदराबाद तक ही सीमित करने की कोशिश की. उन्हों ने अपने ट्वीट में लिखा “हमेशा ही विजेता, जैसे हम हैदराबाद में बोलते हैं कि, पूरा खोल दिए पाशा”. सिराज की प्रशंसा करने से आप को कोई नहीं रोकता है लेकिन न जाने क्यों इस ट्वीट से ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि आप एक राष्ट्रीय धरोहर को केवल अपनी गली तक सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं. अगर ऐसा है तो फिर सिराज की पूरी मेहनत पर पानी फिर जाता है. यही सोच हमें पूरी तरह से घुलने मिलने नहीं देती. ऐसा केवल एक ही तरफ़ की सोच हो ऐसा भी नहीं है.

भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने जिस प्रकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का गौरव बढ़ाया वह दर्शाता है कि जो भारत के सच्चे सपूत होते हैं उन्हें इस देश की आत्मा सर आंखों पर बिठाती है. लेकिन हमारी संकीर्ण सोच हमें चिंतन के स्तर पर ऊंचा उठने नहीं देती. मेरा हमेशा मानना रहा है कि हर देश की एक आत्मा होती है. भारत की आत्मा विविधता में एकता में बसी है. अध्यातम हमारी आत्मा का सार है. अभी पिछलों दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने नागपुर में इसी ओर ध्यान आकर्षित करवाते हुए कहा था कि दुनिया में कई अमीर देश हैं. हम 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन भी जाएं तो यह दुनिया में कोई नई बात नहीं होगी. कई ऐसे काम हैं जो दूसरे देशों ने किए हैं, हम भी कर लेंगे लेकिन दुनिया के पास अध्यात्म और धर्म नहीं है जो हमारे पास है.
उनका कहना सच है क्योंकि भारत की शक्ति आध्यात्मिक और उस धार्मिक चिंतन में है जो वसुधैव कुटुंबकम यानि पूरी पृथ्वी को एक परिवार के रूप में देखता है. जहां तक धर्म की बात है तो कोई भी धर्म आप को भटकाने के लिए नहीं आया है. धर्म का मर्म ही मानव सेवा और आपसी सामंजस्य है. धर्म जोड़ता है तोड़ता नहीं है. हमें केवल उन लोगों को और उनकी ही सुनना चाहिए जो धर्म को आपसी प्रेम, सौहार्द और एकता को बढ़ावा देने के लिए आगे बढ़ाते हों. इसी प्रकार धर्म से जुड़े जो देवी देवता या सम्मानित महान मज़हबी देवपुरुष आदि हैं वह किसी एक धर्म के लोगों को मार्ग दिखाने नहीं आए थे बल्कि वह तो पूरी मानवता का मार्गदर्शन करने वाले थे. यही कारण है कि जो सत्य को पहचानते हैं वह हर धर्म के महपुरुषों का सम्मान करते हैं. इस मामले में लेखकों और शायरों में यह अधिक देखने को मिलता है कि वह जहां अपने धर्म के महापुरुषों को लेकर लिखते हैं वहीं दूसरे धर्मों के महापुरुषों के लिए भी उनकी लेखनी से श्रद्धा के पुष्प अर्पण होते रहते हैं.
भारत में हिंदू देवी देवताओं की तारीफ़ में काव्य रचना करने वाले मुस्लिम शायरों में मौलाना हसरत मोहानी का नाम भी लिया जाता है. मौलाना हसरत मोहानी वही स्वतंत्रता सेनानी हैं जिन्हों ने इन्क़लाब ज़िन्दाबाद का नारा दिया था. मौलाना हसरत मोहानी श्री कृष्ण को हज़रत कृष्ण कहते थे. उन्हें बहुत मानते थे. उन्होंने श्री कृष्ण पर बहुत रचनाएं लिखी हैं;
हसरत की भी क़बूल हो मथुरा में हाज़िरी
सुनते हैं आशिक़ों पे तुम्हारा करम है खास

मौलाना हसरत मोहानी की श्री कृष्ण पर एक कविता है जिस में कहते हैं;

पैग़ाम-ए-हयात-ए-जावेदाँ था
हर नग़्मा कृष्ण बाँसुरी का
भारत सूफ़ी संतों की धरती है. यहाँ सूफ़ी संतों ने आपसी प्रेम को बढ़ावा दिया और सभी धर्मों को अपनी दिव्य दृष्टि से देखा. उन्हें संकीर्ण सोच के दायरे में नहीं आने दिया. इसी लिए हम देखते हैं कि हर धर्म में दूसरे धर्म के प्रति आदर भाव दिखाई देता है.अगर हम पैग़ंबर साहब पर 450 से अधिक हिन्दू शायरों की रचना ‘’हमारे रसूल” नामक पुस्तक में देखते हैं तो हिन्दू देवी देवताओं पर मुस्लिम कवियों को भी लिखता पाते हैं. अल्लामा इक़बाल की शायरी के बारे में तो कहा जाता है कि वह भरतरी हरी तथा श्री कृष्ण के जीवन दर्शन से अधिक प्रभावित है;
फूल की पत्ती से कट सकता है हीरे का जिगर
मरद-ए-नादाँ पर कलाम-ए-नरम-ओ-नाज़ुक बेअसर
इक़बाल के बहुत से शेरों में हमें गीता के उपदेश सांस लेते महसूस होते हैं;
यक़ीं मोहकम, अमल पैहम, मुहब्बत फ़ातिह-ए-आलम
जिहाद-ए-ज़िंदगानी में हैं ये मर्दों की शमशीरें
जैसा कि पहले भी कहा गया है कि भारत सूफ़ीयों संतों की धरती है. रेखता ने अपनी साइट पर कई ऐसे सूफ़ी शायरों का कलाम रखा है जिन्हों ने श्री कृष्ण पर शेर कहे हैं. उन में कुछ शेर देखिए;

‘औघट’ रहो प्रेम के भगती जब तक घट में प्राण
पूजा करो कृष्ण का और जमुना में अश्नान
(औघट शाह वारसी)
गोकुल की सी नागरी मथुरा का सा गाँव
तुम हो मालिक बृज के कृष्ण तुम्हारा नाँव
(मुज़्तर ख़ैराबादी)

बलदेव जसोदा नंद कहूँ
तैनूँ किशन कनहैया कान कहूँ
(ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद)
तुम चतुराई कोऊ जान न पाई
कोऊ छल बल संसार लुभाई
मथुरा छाँड बिरहा जग बोयो
कूबर कुल बिंदराबन छाई
(अमीनुद्दीन वारसी)

ऐसा नहीं है कि भगवान श्री कृष्ण को लेकर मुस्लिम कवियों ने हाल ही में लिखा हो. कई शताब्दी पहले से ही श्री कृष्ण पर लोग लिखते रहे हैं. केवल रसखान या रहीमन को ही नहीं देखें तो बहुत से और भी कवि रहे हैं जिन्हों ने कृष्ण भक्ति की शायरी की है. इंटरनेट पर उर्दू में ऐसे बहुत से लेख मिल जाते हैं जिन से पता चलता है कि सोलहवीं शताब्दी में शाह बदर उद्दीन जानम, अठारवीं शताब्दी में शाह तय्यब चिशती, वली दक्कनी और बाद में आलम शेख़ की शायरी में भी श्री कृष्ण पर शायरी मोजूद है. हफ़ीज़ जालंधरी की ‘कृष्ण कनहिया’ तथा वाजिद अली शाह की ‘रास लीला’ भी श्री कृष्ण के प्रेम में रची बसी है.
एक नाम तो हम छोड़ ही नहीं सकते वो है नज़ीर अकबराबादी का जिन की पूरी शायरी भारत के सभी रंगों में रंगी हुई है. ‘जन्म कनहिया जी’, ‘कनहिया जी की शादी’ और ‘कनहिया जी का रास’ जैसी उनकी कविताएं आज भी पढ़ी जाती हैं;
मोहन मदन गोपाल हरी बंस मन हरण
बलिहारी उनके नाम ये मेरा तन बदन
गिरधारी नंद लाल हरी नाथ गोवर्धन
लाखों किए बनाओ हज़ारों किए जतन

एक और नाम मोहसिन काकोरवी का भी है जिन्हों ने पैग़म्बर साहब पर लिखी नात शरीफ में जिस प्रकार मथुरा की चर्चा की है उर्दू वाले इसे सदा उपयोग करते रहते हैं;
देखिए होगा सिरी किशन का क्यों कर दर्शन
सीना-ए-तंग में दिल गोपियों का है बेकल
सिम्ते काशी से चला जानिबे मथुरा बादल
तैरता है कभी गंगा कभी जमुना बादल

मोहसिन काकोरवी के ही रास्ते पर चलते हुए काकोरी के ही एक शायर शाह क़ाज़िम अब्बासी काकोरवी ने भी श्री कृष्ण के इश्क़ में डूब कर शेर कहे हैं;
कहाँ गए बृज लाल बसइया
मन मोहिनी बंसी के बजइया
कहाँ छुपी जाये मोहिनी मूरतिया
सगरे नगर के मन के छलइया

श्री कृष्ण और गीता उर्दू शायरी को हमेशा से ही अपनी ओर खींचते रहे हैं. मुझे इंटरनेट पर घूमते हुए पाकिस्तान की बड़ी कवीयत्री परवीन शाकिर का श्री कृष्ण पर केंद्रित कलाम भी मिला है. परवीन शाकिर भारतीय उपमहाद्वीप की नारी की संवेदनाओं को अपनी शायरी में ढालती रहीं हैं. लेकिन उनका श्री कृष्ण पर यह कलाम देख कर आप चौंक जाएंगे;
तू है राधा अपने कृष्ण की
तेरा कोई भी होता नाम
मुरली तेरे भीतर बाजती
किसी बन करती बिसराम
या कोई सिंघासन बिराजती
तुझे खोज ही लेते श्याम

श्री कृष्ण पर कुछ और शायरों का भी कलाम देखिए;
दिलों में रंग मुहब्बत का उस्तावर किया
सवादे हिंद को गीता से नग़मा बार किया
(सीमाब अकबराबादी)

एक प्रेम पुजारी आया है चरणों में ध्यान लगाने को
भगवान तुम्हारी मूरत पर श्रधा के फूल चढ़ाने को
(आफ़ताब रईस पानीपती)
कृष्ण‌ कनहिया आन बिराजे मोरे मन के मंदिर में
भगवन मोरे साथ हैं अब तो द्वार खुले हैं दर्पण के
(अब्दुल्लाह हादी काविश)

मेरा काबा मेरा शिवाला देवकी नंदन आप ही हैं
मेरा तो हर एक हवाला देवकी नंदन आप ही हैं
वृंदावन से चंबल तक जो गाय चराने आता था
नंद का वो गिरधर गोपाला देवकी नंदन आप ही हैं
(शाहिद अंजुम)
अंत में उन सभी के आभार के साथ कि जिन के लेख से इस लेख की राह आसान हुई अपने दो शेर भी प्रस्तुत करता चलूँ.

किशन मुरारी, कुंज बिहारी, गोवर्धन, गोपाला रे
बंसी बजइया, रास रचइया, सांवरिया, नन्द लाला रे
ज़ालिम थर थर काँप रहे हैं ऐसी शुभ घड़ी आई है
मथुरा गोकुल झूम रहे हैं लाज रखइया आला रे
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शायर हैं। यह लेखक के अपने विचार हैं।)

गुरुवार, 7 अगस्त 2025

मालेगांव मामले में हिंदू आतंकवाद भगवा आतंकवाद की कहानी बनाई गई

अवधेश कुमार

एनआईए विशेष न्यायालय द्वारा मालेगांव द्वितीय विस्फोट पर दिए गए फैसले के बाद तत्काल टिप्पणी के लिए शब्द तलाशना कठिन है। विश्व में कोई देश नहीं होगा जहां स्थानीय पुलिस को आतंकवादी हमले के पीछे की साजिशें के सच की गंध होने के बावजूद राजनीति के लिए नई कहानी गढ़े जाएं ,निर्दोष लोगों को गिरफ्तार कर व्यापक दुष्प्रचार हो तथा उन्हें सजा दिलाने के लिए नकली गवाह,  फर्जी सबूत यहां तक कि जांच अधिकारी तक  पैदा कर दिया जाए। आतंकवादी हमला देश पर हमला माना जाता है और उनसे संघर्ष के लिए सभी राजनीतिक दलों अधिकारियों और आम लोगों को एकजुट होकर दोषियों के विरुद्ध टूट पड़ने की आवश्यकता होती है। न्यायालय ने सातों आरोपियों के विरुद्ध किसी तरह के सबूत न मिलने पर बरी कर दिया। जिन निर्दोष लोगों की जिंदगी नष्ट हो गई तथा संगठनों की छवि पर कालिख पोती गई उनके साथ न्याय कैसे हैगा। जमीयत उलेमा ए हिंद  इसके विरुद्ध उच्च न्यायालय जाएगा। हालांकि जिन लोगों ने पूरे मामले पर दृष्टि रखी थी उनके लिए यही फैसला अपेक्षित था। उन्हें पता था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ , भाजपा तथा कुछ हिंदू संगठनों को आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त साबित करने के लिए हिंदू आतंकवाद, भगवा आतंकवाद जैसे शब्द कहे गए और निर्दोष लोग आरोपी बनाए गए। जरा सोचिए, 2008 से 2025 तक इन आरोपियों को किन-किन अवस्थाओं से गुजरना पड़ा होगा। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को तो भाजपा ने 2019 में भगवा आतंकवाद ,हिंदू आतंकवाद , संघी आतंकवाद के विरुद्ध स्वयं को देश का सबसे बड़ा झंडाबरदार साबित करने वाले दिग्विजय सिंह के विरुद्ध लोकसभा चुनाव लड़ाकर संसद बना दिया था। अन्य ऐसे सौभाग्यशाली साबित नहीं हुए। लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को 2008 से ही निलंबन में जीवन गुजारना पड़ा। इन सबको आरंभ में महाराष्ट्र आतंक निरोधी दस्ता या एटीएस और फिर एनआईएनए  ने जैसी यंत्रणाएं दी, नदी थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया उसकी उसके विवरण से ही कलेजा कहां पर जाता है।

न्यायालय ने कहा है कि इन लोगों पर लगे आरोपों की पुष्टि के सबूत नहीं है। 29 सितंबर, 2008 को मालेगांव के भिखू चौक पर हुए विस्फोट में जिस मोटरसाइकिल के प्रज्ञा ठाकुर के होने की बात की गई  उसके  नंबर नकली थे तो चेचिस और इंजन तक के नंबर गायब कर दिए गए थे। कर्नल प्रसाद पुरोहित ने विस्फोट के लिए कश्मीर से आरडीएक्स लाकर अपने घर में बम बनाया इसके कोई चिन्ह नहीं थे। हां, न्यायालय ने आदेश दिया है कि सुधाकर चतुर्वेदी के घर में विस्फोटक किसने रखा इसकी जांच की जाए।  भोपाल और एक अन्य बैठक में सबके शामिल होने और विस्फोट करने की योजना का इसमें जिक्र है किंतु वहां ऐसी बातचीत के भी प्रमाण नहीं है। अगर मेजर रमेश उपाध्याय या किसी ने हिंदू राष्ट्र बनाने की बात की तो इसके आधार पर वे आतंकवादी नहीं माने जा सकते। न्यायालय में एक समय मेजर रमेश उपाध्याय ने चीखकर कहा कि मैं फौजी हूं, आतंकवादी नहीं हो सकता। उनकी कोई सुनने वाला नहीं था। फॉरेंसिक जांच की सामग्री में जालसाजी हुई। उपयुक्त पंचनामा नहीं, कोई फिंगर प्रिंट नहीं। 323 गवाह आए जो केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद 34 गवाहों ने स्वीकार किया कि उनसे झूठी गवाही दिलवा कर दस्तखत करवाए गए। कल्पना करिए जिस राजनीतिक नेतृत्व और सुरक्षा अधिकारियों के जिम्मे देश की सुरक्षा का दायित्व हो षड्यंत्र कर आतंकवाद के मामले में लोगों को फसाने में सत्ता का दुरुपयोग करने लगें तो उन्हें क्या कहा जाएग?

तत्कालीन महाराष्ट्र एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे अब दिवंगत हो चुके हैं। जब साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने उनको राक्षस कहकर टॉर्चर कि आप बीती सुनाई तो नेताओं, पत्रकारों, एक्टिविस्टों आदि के प्रभावी वर्ग ने विरोध किया। स्वर्गीय करकरे की  दिग्विजय सिंह के साथ बातचीत का लंबा ऑडियो वायरल हो गया। तत्काल महाराष्ट्र पुलिस के एक अधिकारी महबूब मोहव्वर ने कहा है कि उन्हें संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत को पकड़ने के लिए कहा गया और इससे इनकार करने पर उनके साथ बुरा बर्ताव किया। उन्होंने तत्कालीन एटीएस प्रमुख परमवीर सिंह पर आरोप लगाया कि जब उन्हें पता चला कि मुझे पूरे षडयंत्र की जानकारी है तो आरोप लगाकर फंसाया और निलंबित करवा दिया। निलंबन में उनकी सेवा निवृत्ति हो गई और उन्हें केवल 10 हजार  पेंशन मिलता है। उनका बयान न्यायालय की रिकॉर्ड में अंकित है। हालांकि पहले के उनके कुछ आप जांच पर सच साबित नहीं हुए। ऐसे कई बयान हैं जिनसे पता चला है कि संघ,  उससे जुड़े संगठनों और भाजपा नेताओं तक के नाम लेने के लिएआरोपियों और गवाहों पर दबाव डाले गए। ऐसी धमकियां दी गई ताकि उनके सामने कोई चारा न बचे। पुलिस के अंदर जिनने भी  साथ नहीं दिया वे परेशान किए गए। सोचिए केंद्र में सरकार नहीं बदलती तो क्या होता?

ध्यान रखिए, मालेगांव ऐसा अकेला मामला नहीं था। इसमें भगवा या हिंदू आतंकवाद का आरोप लगने के साथ  इसके पूर्व के दो विस्फोटो और मालेगांव प्रथम को भी हिंदू संगठनों की साजिश मानकर जांच शुरू की गई। 19 फरवरी, 2007 को 4001 अप अटारी समझौता एक्सप्रेस में हरियाणा के पानीपत जिले के चांदनी बाग पुलिस थाना में आने वाले शिव गांव के नजदीक विस्फोट हुआ था जिसमें तत्काल 68 लोगों की मृत्यु हुई तथा डेढ़ सौ से ज्यादा घायल हुए। 18 मई, 2007 को हैदराबाद के मक्का मस्जिद में विस्फोट हुआ जिसमें तत्काल नौ लोगों की मृत्यु हुई और 58 घायल हो गए थे। इन दोनों में भी हिंदू आतंकवाद के नाम से गिरफ्तार आरोपियों को न्यायालय ससम्मान आरोपों से मुक्त कर चुका है।  समझौता एवं मक्का मस्जिद दोनों में इस्लामी आतंकवादियों का नाम आया, मक्का मामले में  आंध्र एटीएस ने दो को गिरफ्तार किया और डीजीपी ने बयान दिया कि लश्कर ए तैयबा के कहने पर सिमी ने विस्फोट कराए हैं। सार्वजनिक रूप से कुछ तथ्य भी पेश किये। समझौता मामले में भी अमेरिकी एफबीआई ने लश्कर ए तैयबा के हाथ होने की ऑन रिकॉर्ड बात कही। मालेगांव प्रथम में भी पांच आरोपी गिरफ्तार हुए। तत्कालीन कर्नाटक के एसएफएल  प्रमुख पी ए मोहन ने  कई इंटरव्यू दिए जिसमें कहा कि आरोपियों ने न केवल नारको, बल्कि लाई डिटेक्टर, पोलीग्राफी सभी टेस्ट में बताया था कि हमने कैसे विस्फोट किए। तब महाराष्ट्र एटीएस द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत आरोप पत्र में सारी बातें हैं। हिंदू आतंकवाद कहानी गढ़ने के बाद उन सबको रिहा कर दिया गया। आखिर इन हमलों में मारे गए निर्दोष लोगों के अपराधियों को सजा न दिलाने का दोषी किस मानेंगे?

तब आधे दशक के आतंकवाद पर हुए विमर्श को याद करिए। पत्र पत्रिकाओं में आलेखों, रिपोर्टों, टीवी डिबेटों, एनजीओ, अन्य संगठनों की विचार गोष्ठियों यहां तक कि संसद के अंदर भी आतंकवाद पर हिंदू संगठनों को लांछित करने का लगातार अभियान चला। इसी अभियान की एक परिणति 26 नवंबर, 2008 के भयानक मुंबई विस्फोटों को भी हिंदुओं का षड्यंत्र साबित करने की शर्मनाक कोशिश हुई।  मुंबई हमला आरएसएस की साजिश नामक पुस्तक के मुंबई विमोचन में  दिग्विजय सिंह भी थे और उनके भाषण के वीडियो देख लीजिए। तत्कालीन महाराष्ट्र पुलिस प्रमुख राकेश मारिया ने अपने संस्मरण में लिखा है कि अगर अजमल कसाब जिंदा नहीं पकड़ा जाता तो जिस तरह सभी आतंकवादियों ने हाथों में कलावा बांध रखे थे उसे भी हिंदू आतंकवादियों का ही षड्यंत्र साबित कर दिया जाता। जिन पापियों ने षड्यंत्र रचा उन्होंने वास्तव में सीमा पर आतंक के षडयंत्र रचने वालों को भी साहस दे दिया कि हमला कर हिंदू संगठनों पर इसके आरोप मढ़वा सकते हैं। पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र संघ तक में हिंदू आतंकवाद विषय को उठाया। अगर यह साबित हो जाता तो भारत का आतंकवाद विरोधी संघर्ष वैश्विक स्तर पर विफल रहता। आज देश की क्या स्थिति होती इसकी कल्पना से भय पैदा होता है। जिस साहस के साथ भारत पश्चिमी देशों को आईना दिखाता है कि आतंकवाद पर दोहरा रवैया नहीं चलेगा पाकिस्तान को घेर पता है वह संभव ही नहीं रहता। भारत का सिर्फ शर्म से झुका रहता है। इसके साथ इसका लाभ भी में देश में आतंकवाद के विरुद्ध सुरक्षा एजेंसियों ने कैसी भूमिका अपनी होगी? सच कह तो केंद्र से लेकर अनेक राज्यों तक के आतंकवादी विरोधी ढांचे की विचारधारा बदल गई।

 इन तथ्यों को देखिए और निष्कर्ष निकालिए। इन चारों विस्फोटों के अपराधी आज तक बाहर हैं और पता नहीं वे क्या-क्या कर रहे होंगे। स्वाभाविक ही किसी भारतीय की पहली प्रतिक्रिया यही होगी कि जो इन षडयंत्रों के पीछे थे उन सबको कानून के तहत कठोर सजा दिलवाई जानी चाहिए। नेताओं से लेकर सुरक्षा व प्रशासनिक अधिकारियों तथा एक्टिविस्टों तक को न्याय के दायरे में खड़ा किया जाना आवश्यक है ताकि भविष्य में कोई देश की सुरक्षा के साथ ऐसा घृणित षड्यंत्र नहीं कर सके।

अवधेश कुमार, ई-30,  गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स , दिल्ली - 110092 , मोबाइल- 9811027208

शनिवार, 2 अगस्त 2025

बलविंदर सिंह ने एनसीपी (एसपी) की मुंडका विधानसभा की जिम्मेदारी गुरप्रीत सिंह को सौंपी


संवाददाता

नई दिल्ली। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचन्द्र पवार) दिल्ली प्रदेश में सिख समाज की भागीदारी को मजबूत करते हुए मुंडका विधानसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी गुरप्रीत सिंह जी को सौंपी गई है।

यह जिम्मेदारी आज पार्टी के दिल्ली प्रदेश उपाध्यक्ष माननीय सरदार बलविंदर सिंह जी द्वारा सौंपी गई। इस अवसर पर दिल्ली प्रदेश संयोजक माननीय डी.सी. कपिल जी एवं प्रदेश महासचिव राजेश घाघट जी भी विशेष रूप से उपस्थित रहे।

इस अवसर पर सरदार बलविंदर सिंह जी ने कहा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचन्द्र पवार) सिख समाज को राजनीतिक, सामाजिक और संगठनात्मक स्तर पर बराबर का प्रतिनिधित्व देने के लिए संकल्पित है। दिल्ली में सिख समाज जिन समस्याओं का सामना कर रहा है—चाहे वह शिक्षा, रोजगार हो या सामाजिक न्याय—पार्टी उन मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर उठाएगी और हर मंच पर सिख समाज की आवाज़ को मजबूती से रखेगी।"

वहीं दिल्ली प्रदेश संयोजक माननीय डी.सी. कपिल जी ने कहा कि "राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचन्द्र पवार) हमेशा से आम जनता, पिछड़े वर्गों, किसानों, मजदूरों, युवाओं और वंचित समुदायों की आवाज़ को आगे बढ़ाने का कार्य करती रही है। पार्टी की विचारधारा समावेशी और जनकल्याणकारी है, जो समाज के हर तबके को न्याय और सम्मान देने में विश्वास रखती है। हमारा लक्ष्य है कि इस विचारधारा को हर गली, मोहल्ले और गांव-शहर तक पहुंचाया जाए, ताकि देश की राजनीति में एक सकारात्मक बदलाव लाया जा सके।"

राजेश घाघट जी, दिल्ली प्रदेश महासचिव, ने कहा कि गुरप्रीत सिंह जैसे समर्पित कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंपकर पार्टी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह मेहनतकश और जमीनी कार्यकर्ताओं को महत्व देती है।

गुरप्रीत सिंह पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता हैं और सामाजिक व सिख समुदाय के मुद्दों पर सक्रिय भूमिका निभाते आए हैं। पार्टी को विश्वास है कि उनके नेतृत्व में मुंडका विधानसभा में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचन्द्र पवार) और अधिक मज़बूती से आगे बढ़ेगी।

इस नियुक्ति से दिल्ली प्रदेश में सिख समाज के बीच पार्टी का आधार और व्यापक होगा और सबको साथ लेकर चलने की नीति को मजबूती मिलेगी।
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