शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण हंगामा का सच

अवधेश कुमार

बिहार में विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण या इंटेंसिव रिवीजन का इलेक्टरल रोल जिस तरह विरोध और हंगामा का विषय बना है वह अनपेक्षित कतई नहीं है। कांग्रेस पार्टी और अनेक भाजपा विरोधी दल ,एक्टिविस्ट , पत्रकार एनजीओ आदि काफी समय से चुनाव आयोग विरोधी तीखा अभियान चला रहे हैं। राहुल गांधी तो पुनरीक्षण आरंभ होने के पहले से ही आरोप लगा रहे हैं कि हेर-फेर कर भाजपा को जीताने का काम चुनाव आयोग करेगा।  विरोधी बार-बार आयोग के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय जाते और निराश वापस आते हैं । उच्चतम न्यायालय ने इस बार भी पुनरीक्षण प्रक्रिया रोकने की उनकी अपील खारिज कर दिया। हालांकि आगे वह सुनवाई के लिए सहमत हुआ है। सुनवाई के एक दिन पहले आईएनडीआईए की ओर से राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में बिहार की राजधानी पटना में चुनाव आयोग के कार्यालय तक मार्च किया गया।

वैसे इन पंक्तियों के लिखे जाने तक चुनाव आयोग के आंकड़े के अनुसार लगभग 85 प्रतिशत पुनरीक्षण फॉर्म मतदाताओं ने जमा कर दिए । चुनाव आयोग का विज्ञापन कहता है कि गणना प्रपत्र भरने की अवधि 25 जून से 26 जुलाई है और मतदाता सूची का प्रारूप प्रकाशन 1 अगस्त , 2025 को होगा। दावे और आपत्तियों की अवधि 1 अगस्त से 1 सितंबर, 2025 है और अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन 30 सितंबर, 2025 को किया जाएगा। इसका अर्थ हुआ कि किसी का नाम छूट गया तो  दावा करने के लिए एक महीने का समय है। तो बिना देखे कि किसका नाम जुड़ा ,नहीं जुड़ा इस तरह के विरोध का औचित्य क्या है? आयोग पर पहला आरोप  है कि वह इतनी जल्दी बड़े प्रदेश के मतदाताओं की सूची कैसे बना लेगा? जब 2002 में मतदाता सूची का बिहार में पुनरीक्षण हुआ था तब 15 जुलाई से 14 अगस्त यानी वर्तमान के अनुसार ही 31 दिन का समय था। क्या 22- 23 वर्ष के बाद मतदाता सूची की गहनता से जांच परख नहीं होनी चाहिए? अगर चुनाव आयोग ने इसके लिए आवश्यक जनसंपर्क और आधार कार्य नहीं किया तो आलोचना होगी। मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा है कि पिछले 4 महीने में प्रत्येक विधानसभा, जिला में सर्व दलीय बैठक की गई और लगभग 5 हजार ऐसी बैठकों में 28 हजार लोगों ने भाग लिया।‌ आयोग ने लगभग 80 हजार बीएलओ या बूथ लेवल ऑफिसर नियुक्त किए हैं जो मतदाताओं के घर पहुंच रहे है। राजनीतिक दलों ने भी 1.54 लाख बूथ लेवल एजेंट बीएलए बनाए हैं।‌ भारी संख्या में स्वयंसेवक भी सक्रिय हैं। कुल 16 करोड़ इन्यूमरेशन फॉर्म प्रकाशित किए गए। एक फॉर्म रिसिप्ट के रुप में मतदाता के पास रहेगा और दूसरा बीएलओ रखेंगे।  ऑनलाइन पोर्टल पर भी फॉर्म जमा करने की व्यवस्था है । इसलिए यह नहीं कह सकते कि ड्राइव बिल्कुल अव्यावहारिक है।

पहचान सुनिश्चित करने पर चुनाव आयोग के जोर का सबसे  तीखा विरोध हो रहा है । जिन 11 दस्तावेजों की सूची आयोग ने रखी है उसे पढ़ने पर कठिनाई का आभास होता है। पहले कुछ तथ्य पर बात करें। 1 जनवरी, 2003 की सूची में मतदाताओं की संख्या 4 करोड़ 96 लाख थी। वर्तमान में यह संख्या 7 करोड़ 89 लाख है। तो लगभग 2 करोड़ 93 लाख मतदाताओं को ही पहचान सुनिश्चित करनी होगी। जिन मतदाताओं के नाम 2003 में है उसके अलावा जिनका नाम आया उनको ही जन्मतिथि, जन्म स्थान आदि साबित करने वाले दस्तावेज देने होंगे। उनमें भी माता-पिता का नाम 2003 मतदाता सूची में है तो माता-पिता की पहचान साबित करने के लिए दस्तावेज देने की आवश्यकता नहीं। केवल 2003 वाली मतदाता सूची के उस हिस्से की कॉपी बीएलओ को देनी होगी जिसमें उनके माता-पिता का नाम लिखा है। जिनके नाम 2003 में है उन्हें केवल उसकी फोटो कॉपी बीएलओ को फॉर्म जमा करते समय देनी है जिसमें उनका नाम है।

क्या 2003 की मतदाता सूची में नाम न होने वाले के पास अगर जन्मतिथि तथा जन्म स्थान साबित करने के प्रमाण नहीं हो तो नाम मतदाता सूची में शामिल नहीं होगा? इसकी आशंका है। पर आयोग का कहना है कि दस्तावेजविहीन  व्यक्ति की भारतीय पहचान को सुनिश्चित करने का काम क्षेत्र के एसडीम करेंगे और उनके कागजात का पता लगाने के लिए वालंटियर नियुक्त किए गए हैं। किसी की पहचान साबित करने का बिल्कुल दस्तावेज नहीं मिलता या उसे गली - मोहल्ले में भी कोई पहचानता नहीं है तो ऐसे लोगों का नाम काट दिया जाएगा। आयोग ने कहा है कि यदि आवश्यक दस्तावेज तथा फोटो उपलब्ध नहीं है तो प्रपत्र भरकर बीएलओ को जमा कर दें। निर्वाचक निबंधन पदाधिकारी द्वारा स्थानीय जांच या अन्य दस्तावेज के साक्ष्य के आधार पर निर्णय लिया जा सकेगा।

सामान्य तौर पर विचार करें तो मतदान की दृष्टि से बहुत ज्यादा कागजातों की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। एक समय कोई पहचान पत्र लेकर जाने की आवश्यकता नहीं थी और मतदान केंद्र पर केवल राजनीतिक दलों के पोलिंग एजेंट  बताते थे कि ये अमुक व्यक्ति हैं या नहीं। यह अत्यंत सरल व्यवस्था थी। लोकतंत्र मतदाताओं, राजनीतिक दलों और अधिकारियों सबकी नैतिकता, ईमानदारी और व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है। बूथ लूट से लेकर  फर्जी मतदाताओं की घटनाओं ने धीरे-धीरे पहचान सुनिश्चित करने की प्रक्रिया को जटिल बना दिया है। यह किसी के हित में नहीं किंतु वर्तमान ढांचे में इसके विकल्प की कल्पना ज्यादा चिंताजनक दिखने लगती है। बिहार में चुनाव आयोग ने यह डरावनी जानकारी दी है की पुनरीक्षण में ऐसे विदेशी नागरिक मिले जो मतदाता बन चुके हैं। उनकी जानकारी गृह मंत्रालय को दी जा रही है और नागरिकता सुनिश्चित होने के बाद ही तय होगा कि वे मतदाता रहेंगे या नहीं। राजनीतिक दलों ने इस पर भी तूफान खड़ा कर दिया । क्या यह उचित है? निस्संदेह,आधार कार्ड या राशन कार्ड बनवाना आसान नहीं होता। इसलिए चिंता का विषय है कि यह हमारी नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं है।आधार को सबसे सुरक्षित माना गया। देश भर में फर्जी आधार कार्ड पकड़ में आ रहे हैं। अवैध अप्रवासियों घुसपैठियों तक के आधार कार्ड बने हुए हैं। बिहार के भारी मुसलमान जनसंख्या वाले चार सीमांचल जिलों में आधार कार्ड के आंकड़े हैरत में डालते हैं । बिहार में औसत आधार कार्ड आबादी के 94% है ।  किशनगंज में 68 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है और आधार सैचुरेशन 126 प्रतिशत है,  कटिहार (44%) में 123%, अररिया (43%) में 123%, और पूर्णिया (38%) में 121% आधार सैचुरेशन है। आबादी से अधिक आधार कार्ड कैसे बने हुए हैं? पिछले वर्ष अररिया में एक बंगलादेशी घुसपैठियों पकड़ा गया जिसके पास पश्चिम बंगाल के 24 परगना से बना आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र था। बांग्लादेशी घुसपैठियों की लड़ाई केवल असम और बंगाल में नहीं बिहार के इन सीमांचल जिलों में भी रही है

स्थानीय पुराने लोग उनके बारे में कुछ जानते हैं लेकिन ज्यादातर की कई पीढ़ी हो चुकी है और उनके अलग बस्तियों में होने के कारण पहचान मुश्किल रहती है। क्या विरोधियों के दबाव में उन सबकी जांच नहीं होनी चाहिए? संविधान की धारा 326 चुनाव आयोग को भारतीय नागरिकों को मतदाता के रूप में अंकित करने का अधिकार देता है। हालांकि नागरिकता की पहचान चुनाव आयोग की जिम्मेवारी नहीं है। इसीलिए उसने गृह मंत्रालय को मामला स्थानांतरित किया है। विरोधी चाहे इसे एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को परोक्ष रूप से लागू करना माने या कुछ और किंतु भारतीय नागरिकों तक ही मतदान की व्यवस्था और पूरी मतदान प्रणाली की शुचिता तथा भारतीय सुरक्षा व्यवस्था की दृष्टि से सतर्कता आवश्यक है। बावजूद मेरा मानना है कि पहचान सुनिश्चित करने के कागजात के संदर्भ में स्पष्ट राष्ट्रीय नीति हो जो विदेशियों घुसपैठियों को तो सामने ले परंतु किसी पात्र भारतीय के लिए तनाव और परेशानी का कारण न बने। आधार और राशन कार्ड पर उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग को विचार करने का सुझाव दिया है। इन्हें सुरक्षित बनाया जाना अति आवश्यक है। आधार के पीछे कल्पना यही थी कि इससे अनेक कार्डों की आवश्यकता खत्म हो जाएगी। दूसरे, स्थानीय लोग  किसी के भारतीय होने की पुष्टि करते हैं तो पंचायत, प्रखंड ,अनुमंडल सबको पहचान सुनिश्चित करने के लिए दस्तावेज उपलब्ध कराने का दायित्व लेना चाहिए। 

एक बार मतदाता सूची का प्रारूप आ जाने दीजिए और देखिए कि कितने लोग पात्र लोग इससे वंचित होते हैं। अगर संख्या बहुत ज्यादा होती है तो उसके लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए। जहां एक भी पात्र नागरिक सूची में स्थान पाने से वंचित नहीं हो वही एक भी अपात्र उसमें शामिल नहीं हो यह भी आयोग, राजनीतिक दलों, प्रशासन और हम सबका दायित्व है।


गुरुवार, 17 जुलाई 2025

इस्लामीकरण के भयानक छांगुर तंत्र को कैसे देखें

अवधेश कुमार 

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में हिंदुओं को मुसलमान बनाने का जैसा तंत्र सामने है वह देश के प्रत्येक व्यक्ति के लिए चेतावनी है। यह स्वतंत्र भारत का अब तक का एक व्यक्ति केंद्रित हिंदुओं को मुसलमान बनाने का ऐसा सबसे बड़ा तंत्र सामने आया है जो कंपनी की तरह व्यवस्थित है, जिसकी अनेक परतें हैं , जिसमें हिंदुओं को फंसाने ,बरगलाने के लिए युवक - युवतियों की तैयार फौज सक्रिय है, उनकी संख्या बढ़ाई जा रही है और तंत्र के स्थायी देशव्यापी ठोस ढांचे के रूप में विस्तृत होने की प्रक्रिया भी जारी है। छांगुर उर्फ जिंदा पीर ऊर्फ जलालुद्दीन को जिन्होंने कपड़ों की फेरी लगाते, अंगूठी, नग, माला देते देखा होगा उन्होंने सपने में भी उसके वर्तमान रूप की कल्पना नहीं की होगी। ऐसा व्यक्ति, जिसका अपने समाज में भी महत्व नहीं हो, 500 करोड़ से ज्यादा का साम्राज्य खड़ा कर ले , विदेशों में भी उसका नेटवर्क हो जाए,  हिंदू लड़कियों - महिलाओं को मुसलमान बनाता रहे और उसके विरुद्ध शिकायत करने वाले की ही शामत आ जाए तो इसके विश्लेषण के लिए शब्द ढूंढने पड़ेंगे। देश - विदेश में मोटा-मोटी तीन दर्जन बैंक खाते, जिनमें लगातार धन आ और निकल रहे होंं किसी बड़ी कंपनी की गतिविधियों जैसी है। बलरामपुर का मधुपुर गांव उत्तर प्रदेश एटीएस यानी आतंक विरोधी दस्ता, पुलिस, प्रशासनिक अधिकारियों , आयकर विभाग, ईडी से लेकर मीडिया की गतिविधियों का केंद्र बना है। प्राथमिक सूचना थी कि वह लगभग 1500 हिंदुओं को इस्लाम मजहब में ला चुका है किंतु अब कई गुना ज्यादा संख्या सामने आ सकती है। इस घटना के अभी अनेक पहलू रहस्य में हैं। यह ऐसे काफी प्रश्न उठाता है जिन पर विचार करना आवश्यक है?

उसके बारे में नियमित हैरत में डालने वाली नई जानकारियां सामने आ रहीं हैं जो धरातल पर थीं। गांव में तीन बिघे में बना हुआ 70 कमरे का आलीशान मकान जिसमें सारी आधुनिक सुख - सुविधायें और निर्माण ऐसी कि लोगों को बंद कर कुछ भी कर दिया जाए तो बाहर पता न चले। आठ बुलडोजर को 40 कमरे वाले हिस्से को तोड़ने में तीन दिन लगे। उसकी कहानी पर सहसा विश्वास नहीं होता। उसकी ताबीज़ या नगों से कुछ लोगों को कठिनाइयों से थोड़ी बहुत मुक्ति मिली तो उन्होंने छांगुर को पीर मनाना शुरू किया और उसकी ख्याति बढ़ी। पत्नी को प्रधानी का चुनाव लड़वाया , वह दो बार जीती और क्षेत्र में उसका कद बढ़ा। इसके पीछे भी कितने लोगों का दिमाग था इसकी परतें खुलनी अभी बाकी है। नीतू और नवीन के मुसलमान बनने के दस्तावेज दुबई के हैं। यह कैसे संभव हुआ? वे अनेक बार विदेश गए। दोनों के 19 बार दुबई जाने के रिकॉर्ड हैं जिनमें केवल एक बार साथ गये! अजीब रहस्य है। ईसाई मिशनरियां दलितों व जनजातियों को लक्ष्य बनाकर धर्मांतरण करतीं हैं। उनके पास हर क्षेत्र का जनांकिकीय डाटा है। उसने वहां से डाटा हासिल किया और उत्तर प्रदेश के अलावा 550 से ज्यादा जिलों की पहचान की थी जहां हिंदू युवतियों- महिलाओं को मुस्लिम बनाने का योजनाबद्ध अभियान चलना था। कुछ हजार को उतारा भी था।  सोचिए, कितनी बारीकी से वह भारत के इस्लामीकरण पर काम कर रहा था और हिंदू या गैर मुस्लिम बहुसंख्य समाज में उसका बाल तक बांका नहीं हुआ। उसके अकेले के दिमाग की बात नहीं हो सकती। क्या यह आपको नए सिरे से ऐसे तत्वों के मुकाबले के लिए  भूमिका तैयार करने की चेतावनी नहीं है?

हिंदू जाति व्यवस्था का ताना देने वाले ध्यान रखें कि बड़ी संख्या में ब्राह्मण और राजपूतों की लड़कियों ने छांगुर तंत्र के प्रभाव- दबाव में इस्लाम कबूल किया है। नीतू वोरा और नवीन वोरा ही नसरीन और जमालुद्दीन कैसे बन गए? इनके मामले में जाति पहलू नहीं है। मुंबई में व्यापार करने वाले दोनों पति-पत्नी कठिनाई में संपर्क में आए। वह मुंबई जाने पर उन्हीं के यहां ठहरने लगा। इन दोनों ने तय कर लिया कि गांव में उसके साथ ही रहना है और इसलिए संपत्ति बेची। छांगुर की हिंदुओं के इस्लामीकरण की कल्पना को साकार करने के लिए जिंदगी लगा दी। घर के साथ शहर की जमीन, दूकानें भी नीतू के नाम है। इनके खातों में ही ज्यादा धन आए और निकले। कोई अपने विचार से मजहब बदले यह उसका अधिकार है। किंतु धन ,बाहुबल और हर तरीके से जाल में लाकर , विवश कर इस्लामीकरण का यह तंत्र अपराधियों माफियाओं का गिरोह जैसा था।आम लोगों का उसमें फंसकर विवश हो जाना आश्चर्य का विषय नहीं है। शायद छांगुर का भयानक तंत्र कायम रहता यदि चंगुल में फंसी कुछ लड़कियां, महिलायें बाहर नहीं आती। एक घटना में अनाम से संगठन विश्व हिंदू रक्षा परिषद ने जब लखनऊ में कुछ की हिंदू धर्म में वापसी का हवन किया और मीडिया में बातें आई तब देश के संज्ञान में आया कि छांगुर इन सबके पीछे है।

यह स्थिति डराने के साथ खीझ भी पैदा करती है कि एक व्यक्ति सरेआम हिन्दुओं को मुस्लिम बनाने की इस्लामी कॉर्पोरेट शैली में कंपनी खड़ी कर उत्तर प्रदेश से विदेश तक विस्तारित कर लेता है और पुलिस, प्रशासन, संगठनों, जनप्रतिनिधियों को इतने वर्षों तक पता नहीं चलता। उसने मुख्य मार्ग से अपने किले तक 500 मीटर सड़क बना लिया। 50 कमांडो तैयार किए जो खुलेआम चलते थे। ऐसा संभव नहीं कि लोग पुलिस, प्रशासन, जनप्रतिनिधियों तक शिकायत लेकर नहीं गये हों। पुलिस प्रशासन में हैसियत ऐसी कि छांगुर का सहयोगी भागकर  पुलिस में शिकायत किया, पर  उसके विरुद्ध ही धारा 307 के तहत मुकदमा दर्ज हो गया। एक स्थानीय मुस्लिम उसके बारे में पत्र लिखते रहे लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई। उसके खातों में विदेश से पैसे आते रहे,  उसके लोग असामान्य रूप से विदेश जाते- आते रहे और केंद्रीय एजेंसियों के कान खड़े नहीं हुए। तो इसके अर्थ क्या हैं?  प्रदेश के जितने पुलिस प्रशासन के लोगों का नाम आ रहा है वे सब हिंदू हैं। राजस्थान के उदयपुर के स्वर्गीय कन्हैयालाल की शिकायत भी पुलिस ने दर्ज नहीं की और गला काट कर उनकी हत्या हो गई। बिहार में 3 वर्ष पहले पीएफआई के 2047 तक भारत को गजवा ए हिंद बनाने के तंत्र मामले में भी फुलवारी शरीफ के मुस्लिम पुलिस अधिकारी के मोबाइल पर खतरनाक मैसेज आया, पर  उसकी शिकायत को फाइलों में बंद कर दिया गया। ऐसा अनेक मामलों में होता है। यह सच है कि केंद्र और अनेक प्रदेशों में भाजपा की सरकारें आने के बाद स्थिति बदली है और आज केंद्र तथा प्रदेश की भाजपा सरकार के कारण ही  कार्रवाई संभव हो सकी। दूसरी सरकारों में छांगुर और उसके मजहबी उन्मादी सहयोगी इस्लामीकरण का पूरा माफिया तंत्र कायम कर चुके होते। बावजूद स्वीकारना होगा कि अभी भी मजहबी मतांतरण, लव जेहाद, मजार, मदरसों के नाम जमीन कब्जा करने आदि अनेक मामलों की आरंभिक शिकायत पुलिस प्रशासन गंभीरता से नहीं लेती, प्रायः संगठनों, राजनीति का रवैया भी उत्साहजनक नहीं रहता तथा उनके विरुद्ध काम करने वालों के जीवन में ही संकट पैदा हो जाते हैं।

 ट्रेजेडी देखिए, अभी तक भाजपा विरोधी पार्टियों , नेताओं, एक्टिविस्टों मीडिया के पुरोधाओं में से किसी ने इस पर समान्य विरोधी प्रतिक्रिया भी व्यक्त नहीं की है। क्या निर्दोष, निरपराध हिंदू लड़कियों महिलाओं की इज्जत, गरिमा , उनके मानवाधिकार का महत्व नहीं? इसका उत्तर उनसे मांगा जाना चाहिए। ऐसे मामलों में एकमात्र भाजपा ही हिंदुओं के साथ खड़ी दिखती है। बावजूद उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के अंदर ऐसा होना बताता है कि पूरे एप्रोच में आमूल बदलाव की आवश्यकता है। भारत में इस्लामिक कट्टरता का मुख्य आधार उत्तर प्रदेश है। पुलिस प्रशासन का भ्रष्टाचार, अनेक नेताओं की दिशाहीनता तथा कायरता ही इसके पीछे मूल कारण है। मदरसों के सर्वेक्षणों में भी भ्रष्टाचार ने कालिख पोत दिया। मदरसों गैर निबंधित होना सबसे छोटा पहलू था। मुख्य पहलू यह है कि छोटे-छोटे मदरसा चलाने वाले मौलवी भी इतनी विदेश यात्राएं क्यों और कैसे करते हैं, उनके पास सुख -सुविधा कहां से आई? कुछ वर्षों के उनके पासपोर्ट वीजा तथा नामी बेनामी संपत्तियों पर नजर डालने की आवश्यकता थी है।  भारत के हिंदुओं या सनातनियों को समझ में आना चाहिए कि चारों तरफ उनके विरुद्ध अलग-अलग तंत्र के रूप में घात लगाए हर अस्तर से शक्तिशाली शिकारियों का झुंड बैठा है। आप चौकन्ने रहकर उनके मुकाबले के लिए तैयार नहीं है तो फिर कोई सरकार या व्यवस्था आपको हिंदू या सनातनी के रूप में बचा नहीं सकती। 

अवधेश कुमार, ई-30, गणेश नगर, पांडव नगर कंपलेक्स ,दिल्ली -110092, मोबाइल -9811027208

बुधवार, 2 जुलाई 2025

इटावा की घटना भयभीत करने वाली

अवधेश कुमार 

उत्तर प्रदेश के इटावा का कथावाचक कांड सामाजिक और राष्ट्रीय एकता की कामना करने वाले हर व्यक्ति को डराने वाली है। जिस तरह पूरा प्रकरण यादव बनाम ब्राह्मण और उससे आगे बढ़कर पिछड़े ,दलित बनाम अगड़े में बदला जा रहा है वह बताता है कि हमारी राजनीतिक, सामाजिक चेतना सीमा से अधिक विकृत अवस्था में पहुंची हुई है। किसी भी ऐसे कांड पर नेताओं और प्रबुद्ध वर्ग की भूमिका सच्चाई तक जाकर दोनों पक्षों के बीच तथ्यों और भावनाओं के आधार पर मेलजोल कराना तथा मामले को शांत करना होना चाहिए। उत्तर प्रदेश में सक्रिय प्रबुद्ध वर्गों के एक समूह ने आग में घी तो डाला और समाजवादी पार्टी ने अपनी भूमिका से इसमें पेट्रोल डालकर राज्यव्यापी ताप फैलाने की राजनीति की है। यह दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई है कि हमारे समाज में आज भी ऊंचा -  नीच के आधार पर एक बड़े वर्ग की जातीय सोच और व्यवहार निर्धारित होती है। यह केवल कुछ सवर्ण कहे जाने वाले जातियों में ही नहीं है। स्वयं को पिछड़ा और दलित मानने वाले जातियों के अंदर भी एक दूसरे को लेकर यही व्यवहार और सोच है। नेताओं,  समाज विरोधियों तथा अज्ञानी समाजकर्मियों ने इसे और हवा दी।

ऐसी किसी घटना में हमारा समाज पुलिस प्रशासन और नेताओं की दृष्टि से ही विचार करने लगता है। इसलिए कौन गलत कौन सही के आधार पर हम अपना निष्कर्ष निकालते हैं। इस घटना में भी यही हो रहा है। अभी तक की जानकारी के अनुसार कथावाचक मुकुटमणि सिंह यादव और उनके सहयोगी आचार्य संत सिंह यादव इटावा के एक गांव दांदरपुर में श्रीमद्भागवत की कथा कह रहे थे। ब्राह्मण बहुल गांव में उनके व्यास पीठ को सभी प्रणाम करते थे। कथा वाचक के प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त की जाती है वही स्थिति थी। फिर अचानक ऐसा क्या हो गया? दूसरी तरफ की प्राथमिकी के अनुसार गांव के जयप्रकाश तिवारी और उनकी पत्नी रेणु तिवारी ने दोनों को खाने पर बुलाया। इनके अनुसार उन्होंने कहा कि पत्नी अपने हाथों से खाना खिलाएगी। रेणु तिवारी का कहना है कि एक ने मेरा अंगुली पकड़ लिया। उसके बाद इनका विरोध शुरू हुआ। बाहर से कथा वाचन करने गए लोगों की गांव में क्या स्थिति हुई होगी इसकी कल्पना की जा सकती है। उसमें यदि उनको महिला का पैर छूकर क्षमा मांगनी पड़ी हो तो  आश्चार्य नहीं। कहा गया है कि उस दौरान उनके पास से दो आधार कार्ड गिरे जिसमें अलग-अलग नाम थे। गलत नाम से आधार कार्ड धोखाधड़ी का मामला बनता है। किंतु यह कानूनी विषय है। मूल बात यह है कि गांव के लोगों ने इन्हें झूठा या चरित्रहीन मानकर दुर्व्यवहार किया या फिर यादव होने के कारण? मुकुटमणि यादव के अनुसार वह 15 वर्षों से कथा कह रहे हैं और गुरु से उन्होंने इसकी शिक्षा ली है। संत यादव संस्कृत पढ़ाते थे और उनका विद्यालय बंद होने के बाद उनके साथ जुड़ गए। दोनों संस्कृत का श्लोक वांचते हैं।

ध्यान रखिए,  इस समय भी देश कई नामी कथा वाचकों में उन जातियों के लोग हैं जिन्हें पिछड़ी या दलित जाति कहा जाता है। यहां किसी के नाम का उल्लेख करना उचित नहीं। भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय और सम्मान प्राप्त योग गुरु ही अगड़ी जाति के नहीं है। तो यह स्थिति आज भी है। इसलिए यह निष्कर्ष निकाल लेना कि तथाकथित ऊंची जाति के लोग पिछड़े याद दलित की भक्ति या कथा वाचन को स्वीकार नहीं करते पूरी तरह सही नहीं हो सकता। हां, गर्व से कहो हिंदू हैं, सनातनी हैं का अभियान चलाने वालों के लिए भी यह स्थिति चिंता का विषय होना चाहिए कि जाति को केंद्र बनाकर पूरे मामले को इस सीमा तक पहुंचा दिया गया। वैसे हिंदू अपनी पहचान दिखाएं इसका तात्पर्य क्या हो सकता है ? प्राथमिक और सर्वसाधारण भाव यही है कि शिखा रखें , ललाट पर चंदन करें आदि आदि । फिर इसके आगे हिंदू या सनातन धर्म के अनुसार जीवन शैली और आचरण की बात आती है।‌ इस दृष्टि से भी देखें तो किसी परिस्थिति में कथा वाचकों का शिखा काटना केवल कानूनी अपराध नहीं धार्मिक दृष्टि से भी महाअपराध और महापाप है। वर्तमान राजव्यवस्था में सजा देने का कार्य न्यायालय का है और इसके लिए छानबीन और कार्रवाई पुलिस का दायित्व है। समाज में किसी से गलती हो जाने के बाद आज भी थाने जाने की आम मानसिकता नहीं है। विशेषकर अगर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ जैसे विषय हों तो परिवार और समाज भी पुलिस, कचहरी से आज भी बचता है। बाल मुंडन करना, शिखा उतार देना, थूक फेंक कर चटवाना जैसे दंड ही समाज की ओर से आता था। दंड देने वालों में  परिवार के लोग भी शामिल होते थे। वहां भी  कुछ लोगों ने पुलिस बुलाने या थाने ले जाने का सुझाव दिया होगा। यह स्वीकार नहीं हुआ तथा दोनों को अपने अनुसार सजा देकर मुक्त कर दिया गया। वर्तमान व्यवस्था में यह कानून हाथ में लेना है तो न्यायालय इसके लिए दंड दे सकता है। बावजूद स्वीकारने में समस्या नहीं है कि यह भारतीय समाज के परंपरागत व्यवहार का ही प्रकटीकरण है।

इससे बाहर निकाल कर व्यापक दृष्टि से विचार करें तो इसका मूल जाति व्यवस्था के संबंध में धारणा ही है। भारत में जाट के बारे में अंग्रेजों और बाद में उनकी सोच की तहत हमारे अपने समाज शास्त्रियों आदि ने काफी झूठ और विकृत धारणाएं पैदा की  और स्वतंत्र भारत में राजनीति ने वोट के लिए विभाजन को और तीखा तथा गहरा किया। वर्ण व्यवस्था के आगे जाति काम के आधार पर बनते गए और इसमें कोई ऊंचा - नीच या छोटा बड़ा नहीं था। सभी के कार्य या उत्तरदायित्व बंटे थे और यही हमारे भारत के स्वावलंबी होने और विश्व में आर्थिक - सामाजिक -आध्यात्मिक दृष्टि से शीर्ष राष्ट्र होने का एक मुख्य कारण था। कालांतर में काम को छोटा बड़ा , उसके आधार पर जाति को छोटा - बड़ा,  छुआछूत  भेदभाव जिन परिस्थितियों में उत्पन्न हुए वे दुर्भाग्यपूर्ण थे। वह सनातनी व्यवस्था नहीं रही है। इन में भी बहुत सारे झूठ जोड़े गए। उदाहरण के लिए आज पिछड़े और दलित कहलन वाली जातियों के भी राज थे। यादव, गुर्जर, प्रतिहार , जाट सबके राजवंशों के विवरण है और अनेक मुस्लिम आक्रमण के बावजूद कुछ अंग्रेज कल तक भी काम रहे। स्वतंत्रता के बाद जिन 539 रियासतों का विलय हुआ उनमें तब भी पिछड़ी माने जाने वाली जातियों के राजा थे। हमारे यहां अनेक ऐसे पूजा के विधान है जिनमें उन जातियों और उनके औजारों की पूजा के विधान हैं जिन्हें पिछड़े और दलित माना गया है। कुछ पूजा का विशेषाधिकार भी इन्हें ही दिया गया था। बाबा साहब अंबेदकर ने अपनी पुस्तक हु वाज शुद्राज के छठे अध्याय में बताया है कि वैदिक या महाभारत काल के शुद्र या दास आज के दलित नहीं थे। उनके अनुसार उस समय उन्हें अनेक अधिकार प्राप्त थे।

दुर्भाग्य से भारत की जाति व्यवस्था को न समझने वाले अंग्रेजों द्वारा अगड़े, पिछले, दलित, आदिवासी के बोए गए विष के वृक्ष को विस्तृत करते रहे तथा अकादमी, राजनीति और सत्ता में इनकी इतनी हैसियत कायम रही कि सच सामने लाकर भेद खत्म किए जाने का आधार तीरोहित हो गया। आखिर जहां 18 पुराणों और महाभारत के रचयिता शुद्र मां के पुत्र व्यास पूजनीय हों , वाल्मीकि के रामायण सबके लिए श्रद्धा तथा स्वयं ऋषि के रूप में उनकी मान्यता हो वहां इस तरह जाति-व्यवस्था में छूत - अछूत,  ऊंच-  नीच कैसे पैदा हुआ यह गहराई से विचार करने का विषय है।

जैसा पहले कहा गया आज भी कथा वाचकों में गैर ब्राह्मणों-क्षत्रियों की बड़ी संख्या है। किसी साधु -  संन्यासी या कथा शवाचक के साथ जाति के आधार पर हर जगह व्यवहार होता हो यह आम स्थिति नहीं है। इटावा वैसे भी अखिलेश यादव परिवार का घर है और वहां उनकी जाति के लोग संपन्न और प्रभावी हैं। जिस परिवार में कथा वाचक और उनके सहयोगी भोजन कर रहे थे वो दंपति  हरिद्वार में प्राइवेट नौकरी करते हैं और कथा के कारण ही गांव आए थे। पुलिस जांच कर रही है और सच्चाई सामने आएगी। इस समय जो कुछ बताया जा रहा है केवल उतना ही और वही सच होगा ऐसा मत मान लीजिए। बावजूद यह स्थिति भयभीत करने वाली है। ऐसी घटना और इसके राजनीतिक - सामाजिक दुरुपयोग और जातीय युद्ध पैदा करने की कोशिश है जो निस्संदेह भयभीत करने वाली है।  इसलिए सभी जातियों के प्रबुद्ध लोगों का दायित्व है कि सामने आकर इसका सकारात्मक, संतुलित सामना करें ताकि तत्काल किसी तरह का सामाजिक तनाव आगे न बढ़े व भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

http://mohdriyaz9540.blogspot.com/

http://nilimapalm.blogspot.com/

musarrat-times.blogspot.com

http://naipeedhi-naisoch.blogspot.com/

http://azadsochfoundationtrust.blogspot.com/