गुरुवार, 4 जुलाई 2024

संसद से लेकर उच्च न्यायालय तक हिंदू-मुसलमान की चर्चा


 बसंत कुमार

18वीं लोकसभा के पहले ही सत्र में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हिंदू सहिष्णु या हिंसक का विवाद थमा ही नहीं था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने देश में धार्मिक सभाओं में बड़े पैमाने पर दलित व आदिवासी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों का धर्मांतरण पर चिंता व्यक्त की और कहा कि इसे तुरंत रोका जाना चाहिए। अगर धर्मांतरण नहीं रुका तो देश की बहुसंख्यक आबादी एक दिन अल्पसंख्यक हो जायेगी। जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल एक धर्म परिवर्तन कराने वाले आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह बात सामने आई है कि धार्मिक समाग़मों के जरिये दलितों और गरीब लोगों को गुमराह करके ईसाई बनाया जा रहा है, कोर्ट ने कहा कि किसी धर्म के प्रचार शब्द का अर्थ बढ़ावा देना है लेकिन इसका अर्थ एक व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित करना नहीं है। ऐसे आयोजन से संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन होता है। यह अनुच्छेद किसी को भी धर्म मानने, पूजा करने और किसी को भी अपने धर्म का प्रचार करने की इजाजत देता है। पर यह धर्म किसी को डरा धमकाकर या प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन की इजाजत नहीं देता, अब प्रश्न यह उठता है कि देश के किसी नागरिक को अपनी पसंद का धर्म चुनने की आजादी नहीं होनी चाहिये या जो व्यक्ति जिस धर्म को मानने वाले परिवार में जन्म ले लिया है उसे जीवन पर्यन्त वहीं धर्म अपनाना होगा जैसा कि भारत में जन्मा कोई व्यक्ति जीते जी अपनी जाति नहीं बदल सकता।

आज के आधुनिक युग में अगर देश के किसी गांव में किसी से पूंछ लिया जाए कि गांव में किस धर्म के मानने वाले कितने लोग रहते हैं तो अमूमन जवाब मिलता है कि इस गांव में इतने घर हिंदू के है, इतने घर मुसलमानो के है और इतने घर हरिजनों (दलितो) के है अर्थात कुछ धर्मांध अभी भी दलितों को हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं मानते और दलित मुसलमानों की हिंसक प्रवृत्ति के कारण अपने आपको उनसे जोड़ नहीं पाते जैसा बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक पाकिस्तान एंड पार्टिशन ऑफ इंडिया में लिखा है और उन्होंने मुहम्मद अली जिन्ना और जोगिंदर नाथ मण्डल के दलित मुस्लिम अलायंस का परिणाम भी देखा है। इसी कारण अधिकांश दलित व आदिवासी स्वयंभू हिंदू ठेकेदारों के रवैये से दुखी होकर ईसाई धर्म की ओर उन्मुख हो रहे है। कुछ सनातन के पोषक तो मेरिट की आड़ में संविधान द्वारा दलितों और आदिवासियों को संविधान द्वारा दी गई सुविधाओं का भी विरोध करते है। इसके बावजूद कुछ दलित आदिवासी यह जानते हुए कि उनके ईसाई धर्म अपनाने पर उनको मिलने वाली आरक्षण की सुविधाएं समाप्त हो जायेगी फिर भी वे ईसाई धर्म अपना रहे है। इस विषय पर हिंदू धर्म गुरुओं और नेताओ को इस बात पर विचार करना होगा कि क्या कारण है कि बड़े पैमाने पर दलित और आदिवासी ईसाई धर्म क्यों अपना रहे है। माननीय उच्च न्यायालय को धर्मांतरण पर अपना विचार देते समय इस तथ्य की ओर अपने विचार भी रखने चाहिए थे।

लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेते हुए राहुल गांधी ने कहा-सभी सभी धर्मो और हमारे सभी महापुरुषों ने अहिंसा और निडरता की बात की है। शिव जी कहते हैं डरो मत डराओ मत, वह अहिंसा की बात करते है। लेकिन जो लोग अपने आप को हिंदू कहते है वो लोग 24 घंटे नफरत की बात, हिंसा की बात करते है। राहुल गांधी के दिये भाषा को लेकर भाजपा बेहद आक्रामक रही और उनसे माफी मांगने की बात कर रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा आज हिंदुओ पर झूठा आरोप लगाने की साजिश हो रही है, और कहा जा है कि हिंदू हिंसक होते है और देश इसे शताब्दियों तक नहीं भूलेगा। ये यही लोग है जिन्होंने हिंदू आतंकवाद जैसे शब्द गढ़ने की कोशिश की, यह देश इसे माफ नहीं करेगा। सदन में यह दृश्य देखकर अब हिंदू समाज को सोचना पड़ेगा कि क्या यह अपमानजनक बयान कोई संयोग है या बड़े प्रयोग की तैयारी है।

उन्होंने स्वामी विवेकानंद को उद्धरित करते हुए कहा "मै उस धर्म से आता हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और वैश्विक स्वीकृति सिखाई परंतु यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि उसी सहिष्णु और वैश्विक स्वीकृति वाले देश में प्रधानमंत्री और नेता प्रतिपक्ष हिंदू धर्म को हिंसक कहने और सहिष्णु कहने पर आमने सामने खड़े है।

लगभग दो वर्ष पूर्व जब दिल्ली के शाहीनबाग में सीएए के विरोध में मुसलमानों ने करीब 6 माह तक सड़क जम किए रखा तब किसी राजनीतिक दल के नेता ने मुसलमानों को हिंसक कहने का साहस नहीं दिखाया। यह सही है कि कुछ अंध भक्त हिंदू राम के नाम पर हिंसा फैला रहे है और अपने ही धर्म के दलितों और आदिवासियों को मन्दिर में प्रवेश की अनुमति नहीं देते क्योंकि वे उन्हें हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं मानते, पर क्या धर्म के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेकने वालों के कारण हिंदू धर्म की सहिष्णुता और स्वीकारिता पर प्रश्न खड़ा कर सकते है, कैसा दुर्भाग्य है कि जिन लोगों को हमारे देश की आर्थिक प्रगति, किसानो की समस्या, युवाओं की बेरोजगारी कि समस्या को सुलझाने के उपायों पर चर्चा करनी चाहिए वे आपस में नकली और असली हिंदू की बहस पर लड़ रहे है। पर इस देश की जनता सब समझती है और आगे आने वाले चुनावों में किसी भी दल को अब जाति और धर्म के नाम पर वोट नहीं मिलने वाले है अब लोग हिंदू मुस्लिम नहीं बल्कि रोजी, रोटी और विकास के नाम पर मिलेगा।

संभवत:पूरे विश्व में भारत ही ऐसा देश है जहां संसद से लेकर उच्च न्यायपालिका में गरीब, बेरोजगारी, दशकों से न्यायालयों में करोड़ों लंबित मुकदमे और विकास पर विचार करने और उनके सुलझाने हेतु आवश्यक कदम उठाने के बजाय सत्ता पक्ष और विपक्ष धर्म विशेष के सहिंष्णु या आक्रमक होने के मुद्दे पर बहस करते है और उच्च न्यायालय भी दसको से लंबित मुकदमो को निपटाने और करोड़ों परिवारों को न्याय दिलाने के बजाय धर्मांतरण जैसे सामाजिक मुद्दों पर अपना फैसला देते है जबकि यह प्रकृति का नियम है कि कोई भी व्यक्ति अपनी पसंद का धर्म अपना सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि देश के सभी लोग पर्याप्त रूप से शिक्षित हो जिससे स्वेच्छा से अपने धर्म का चयन कर सके हां जिस दिन देश में व्यक्ति को अपनी इक्षा से अपने कर्म और जाति चुनने की आजादी मिल जायेगी तब देश में सही लोकतंत्र होगा।

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