जब
भी हम वफ़ादार जानवरों की बात करते हैं तो प्रायः दो ही नाम ज़ेहन में आते
हैं। पहला कुत्ता और दूसरा घोड़ा। पौराणिक कथाओं से लेकर प्राचीन व
मध्ययुगीन इतिहास तक तमाम ऐसे क़िस्से सुनाई देते हैं जो कुत्तों और घोड़ों
की वफ़ादारी से जुड़े हैं। इतिहास की कई घटनाएं तो ऐसी भी हैं जिनसे पता चलता
है कि कुत्ते व घोड़े ने अपने मालिकों के लिये अपनी जान तक दे डाली। अपने
मालिक की रक्षा के लिये दुश्मनों पर टूट पड़ने की तो इनकी अनेक कहानियां
हैं। अपनी वफ़ादारी की वजह से ही यह दोनों ही जानवर राजा महाराजाओं से लेकर
संतों फ़क़ीरों तक के दरबारों की रौनक़ बढ़ाते रहे हैं।
क्या आप जानते हैं कि इन दोनों
वफ़ादार जानवरों के स्वभाव के अनुरूप इन की 'वफ़ादारी ' में क्या अंतर है ?
आइये आपको गहन अध्ययन व अनुभव के आधार पर बताते हैं कि घोड़े और कुत्ते
दोनों के वफ़ादार होने के बावजूद अपने स्वामी के प्रति इनकी वफ़ादारी में
आख़िर अंतर क्या है। मशहूर सूफ़ी संत बुल्लेशाह कुत्ते की वफ़ादारी और उसकी
महत्ता का बयान करते हुये फ़रमाते हैं कि -रातीं जागां ते शेख़ सदा वें, पर
रात नु जागां कुत्ते, ते तो उत्ते। रातीं भोंकों बस न करदे, फेर जा लारा
विच सुत्ते, ते तो उत्ते।। यार दा बुहा मूल न छडदे, पावें मारो सौ सौ जूते,
ते तो उत्ते। बुल्ले शाह उठ यार मना ले, नईं ते बाज़ी ले गए कुत्ते, ते तो
उत्ते।। अर्थात धर्म उपदेशक सारी रात जागते हैं, और कुत्ते भी सारी रात
जागते हैं, पर कुत्तों का जागना, धर्म उपदेशक के जागने से ऊपर है। कुत्ते
रात में सारी रात भोंकते हैं और उसके बाद अपने बाड़े में जाकर सो जाते हैं,
और अपने कर्तव्य का पालन करने में भी
धर्म उपदेशक से ऊपर हैं। कुत्ते अपने मालिक का दर नहीं छोड़ते हैं चाहे
उन्हें कितने भी जूते क्यों ना मारे जाएँ। और इस तरह से अपने मालिक के
प्रति प्रेम और वफ़ादारी में भी वे किसी धर्म उपदेशक से ऊपर ही हैं। और
अंत में बुल्ले शाह फ़रमाते हैं कि ए बंदे अपने मालिक को पाने के लिए उठ
खड़ा हो और सत्कर्मों की पूँजी कमा, अन्यथा कुत्ते इस मामले में भी तुझसे
बाज़ी मार ले जाएँगे। बुल्ले शाह के इस कथन में स्पष्ट है कि कुत्ते अपने
मालिक के प्रति इतने वफ़ादार होते हैं कि वे सारी सारी रात जाग कर अपने जिस
मालिक की चौकीदारी करते हैं यदि वही मालिक उन्हें प्रताड़ित भी करे तो भी
कुत्ते की वफ़ादारी में कोई कमी नहीं आती और वह अपने स्वामी का दर हरगिज़
नहीं छोड़ते ।
परन्तु घोड़े के साथ ऐसा नहीं है। घोड़ा अपने स्वामी के प्रति वफ़ादार तो
ज़रूर होता है परन्तु वह अपने स्वामी या प्रशिक्षक किसी की भी प्रताड़ना सहन
नहीं करता। घोड़े इंसानों के साथ संबंध बनाने में अच्छे होते हैं। वे
सहिष्णु और प्यार करने वाले होते हैं। परन्तु यदि उनके साथ बुरा व्यवहार
किया जाता है, तो वे इसे क़तई पसंद नहीं करते । अक्सर यह सुनने को मिलता है
कि घोड़े ने अपने स्वामी या प्रशिक्षक से नाराज़ होकर उसे दांत काट लिया या
लात मार दी। अर्थात घोड़ा राशन पानी के साथ साथ प्यार और सम्मान का भी
आकांक्षी रहता है। वह अपने मालिक का ग़ुस्सा और अपना अपमान सहन नहीं करता।
संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि कुत्ता यदि समर्पित वफ़ादार जानवर है तो
घोड़ा स्वाभिमानी वफ़ादार। और कुत्ते व घोड़े की वफ़ादारी में यही अंतर है।
निर्मल रानी
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