अशोक मधुप |
भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र संघ में अपने लिए विटो पावर देने की
मांग करता आ रहा है। वह मानता है कि विटो पावर धारक पांच राष्ट्र संयुक्त
राष्ट्र संघ को अपनी बपौती समझे बैठे हैं। वह अपनी मर्जी के हिसाब से इसे
चला रहे हैं। चाहे आतंकवाद का मसला हो, या रूस और यूक्रेन युद्ध का। सूडान
के आंतरिक विद्रोह और म्यामार के मामले में भी तमाशबीन के अलावा संयुक्त
राष्ट्र संघ कोई महत्वपूर्ण भूमिका नही निभा पा रहा। मनमर्जी का
प्रस्ताव न होने पर विटो पावर धारक कोई भी देश अपनी विटो पावर का इस्तमाल
कर प्रस्ताव को रोक देता है। भारत इस सब हालात को लेकर वह चिंतित है। वह
इस व्यवस्था में सुधार की मांग कर रहा है। उसकी लंबे समय ये मांग है कि
भारत को विटो पावर दी जाए। किंतु संयुक्त राष्ट्र संघ में यदि भारत को विटो
की पावर न मिली तो हाे सकता है कि आगे चलकर भारत इससे अलग हो जाए। ये बात
विटो पावर देश भी धीरे–धीरे समझने लगे हैं।
हिरोशिमा में बीते
रविवार को जी-7 के सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने
संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद में सुधार की जरूरत पर जोर देते हुए कहा
कि पिछली सदी में बनाई गईं वैश्विक संस्थाएं 21वीं सदी की व्यवस्था के
अनुरूप नहीं हैं। जब तक इसमें मौजूदा विश्व की वास्तविकता प्रतिबिंबित नहीं
होती, तब तक यह मंच महज चर्चा की एक जगह (टॉक शॉप) बना रहेगा। उन्होंने
सवाल उठाया, शांति बहाली के विचार के साथ शुरू हुआ संयुक्त राष्ट्र (यूएन)
आज संघर्षों को रोकने में सफल क्यों नहीं हो रहा? संयुक्त राष्ट्र में
आतंकवाद की परिभाषा तक क्यों नहीं स्वीकार की गई है?
मोदी ने
आश्चर्य जताया कि जब शांति और स्थिरता से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए
बना संयुक्त राष्ट्र अस्तित्व में है, तो इन पर चर्चा के लिए अलग-अलग
मंचों की जरूरत क्यों पड़ती है। इसका विश्लेषण किया जाना चाहिए। यह जरूरी
है कि संयुक्त राष्ट्र में सुधारों को लागू किया जाए। इस मंच को कमजोर
देशों की आवाज भी बनना होगा।
पीएम मोदी ने चीन का नाम लिए बिना
कहा, सभी देश यूएन चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानून और सभी देशों की संप्रभुता
और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करें। यथास्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिशों
के खिलाफ मिलकर आवाज उठाएं। भारत का हमेशा यह मत रहा है कि किसी भी तनाव,
किसी भी विवाद का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से, बातचीत के जरिये किया जाना
चाहिए।
इस कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस
ने संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मोदी की मांग से सहमति जताई। उन्होंने
हिरोशिमा में पत्रकारों से कहा, यह मौजूदा विश्व के अनुरूप सुरक्षा परिषद
तथा व्यापार संगठन में बदलाव का वक्त है। दोनों ही संगठन 1945 के शक्ति
संबंधों को प्रतिबिंबित करते हैं। वैश्विक वित्तीय संगठन पुराना, निष्क्रिय
व अनुपयोगी हो चुका है। यह कोविड व यूक्रेन हमले के बीच वैश्विक सुरक्षा
की अपनी मूल जिम्मेदारी को निभाने में विफल रहा है।
विदेश मंत्री
एस. जयशंकर 29 दिसंबर से तीन जनवरी तक साइप्रस और ऑस्ट्रिया के दो देशों
की यात्रा पर थे। उनकी ऑस्ट्रिया की यात्रा तीन जनवरी को खत्म हुई। जयशंकर
ने सोमवार को ऑस्ट्रिया के राष्ट्रीय प्रसारक ओआरएफ को एक इंटरव्यू दिया।
इस इंटरव्यू में विदेश मंत्री से पूछा गया कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा
परिषद के इस सुधार में कितना समय लगेगा। इसके जवाब में उन्होंने कहा,
"...जो लोग आज स्थायी सदस्यता के लाभों का आनंद ले रहे हैं, वे स्पष्ट रूप
से सुधार देखने की जल्दी में नहीं हैं। मुझे लगता है कि यह एक बहुत ही
अदूरदर्शी दृष्टिकोण है... क्योंकि अंततः संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता
और उनके अपने हित और प्रभावशीलता दांव पर हैं।" उन्होंने आगे कहा, “मेरी
समझ में, इसमें कुछ समय लगेगा, उम्मीद है कि बहुत अधिक समय नहीं होगा। मैं
संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के बीच बढ़ती राय देख सकता हूं जो मानते हैं कि
इसमें बदलाव होना चाहिए। यह सिर्फ हमारी बात नहीं हैं।" साइप्रस आदि देशों
की यात्रा के बाद उनका ये अभियान और विदेशों के दौरे जारी हैं।
दरअस्ल
भारत पिछले काफी समय से अपने लिए विटोपावर की मांग तो कर ही रहा है। साथ
ही विश्व के अन्य देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ की सच्चाई बताने में लगा
है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर काफी समय से दूसरे देशों की यात्रा कर
संयुक्त राष्ट्र संघ की सच्चाई बताने में लगे हैं। वह बता रहे है कि
संयुक्त राष्ट्र संघ की आज कोई उपयोगिता नही रह गई है। यह कोई निर्णय करने
में भी सक्षम नही हैं।अकेले भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ही नही बल्कि
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत कुमार डोभाल भी लंबे समय से
विदेशी दौरों पर हैं। ये दोनों घूम−घूमकर भारत के पक्ष में माहौल बनाने में
लगे हैं। अन्य देशों को सुरक्षा परिषद की सच्चाई भी बता रहे हैं। यह भी
समझाने में लगे हैं कि कैसे पांच विटो पावर देश गैर विटो पावर देशों के
हितों को नुकसान पंहुचा रहे हैं।
भारत अभी तक संयुक्त राष्ट्र के मंच पर अपनी बात कहता आया था। अब दूसरे मंच पर संयुक्त राष्ट्र संघ की गलती निकालना इस बात की और संकेत करता है कि अब वह दिन दूर नहीं जब भारत खुलकर इसका विरोध करेगा। भारत के इरादे संयुक्त राष्ट्र संघ के विटो पावर धारक देश भी समझने लगे हैं। आगे भी ऐसा ही रहा और सुधार न हुआ तो हो सकता है कि भारत संयुक्त राष्ट्र संघ से अलग हो जाए। ये भी हो सकता है कि भारत के साथ कुछ अन्य देश भी इससे नाता तोड़ लें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें