- लाॅक डाउन में रवीना ने दिल्ली में बच्चा खोया और आजमगढ़ में पति
- रातभर बेटे को खोजा नहीं मिला सुबह मिली उसकी लाश
- आजमगढ़ में दलित प्रवासी मजदूर की नींबू के पेड़ पर लटकती लाश पर रिहाई मंच ने उठाए सवाल
- परिवार ने कहा आत्महत्या नहीं हत्या दर्ज हो मुकदमा
लखनऊ/आजमगढ़ 10 जून 2020। रिहाई मंच ने आजमगढ़ के धड़नी ताजनपुर गांव में दलित प्रवासी मजदूर की आत्महत्या की सूचना के बाद मृतक के परिजनों से मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल में रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव, बांकेलाल, विनोद यादव, अवधेश यादव और धरमेन्द्र शामिल थे। मंच ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय, मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय, इलाहाबाद, राज्यपाल उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग, राज्य अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, गृह मंत्रालय, उत्तर प्रदेश, राज्य मानवाधिकार आयोग, उत्तर प्रदेश, आयुक्त आजमगढ़ मंडल आजमगढ़, उप पुलिस महानिरीक्षिक आजमगढ़ परिक्षेत्र आजमगढ़, जिलाधिकारी आजमगढ़, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक आजमगढ़, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, नई दिल्ली, श्रम एवं सेवायोजन मंत्रालय, उत्तर प्रदेश को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि दिल्ली से आजमगढ़ लौटे दलित प्रवासी मजदूर अंगद राम की मौत के कारणों की उच्च स्तरीय जांच करवाई जाए। यह मानवाधिकार का गंभीर मसला है क्योंकि कोरोना महामारी के दौर में प्रवासी मजदूर बहुत मुश्किल से अपने घरों को पहुंचे हैं और वहां पर अगर उनकी हत्या कर आत्महत्या कहा जा रहा है तो ऐसे में यह आने वाले दिनों में यह गंभीर संकट खड़ा कर देगा। इस मामले में अब तक न परिजनों से किसी प्रकार का पुलिस ने बयान लिया और न ही उनके आरोपों के आधार पर शिकायत दर्ज की। ऐसे में गावों के दबंगों का मनोबल बढ़ेगा जिससे प्रवासी मजदूर के परिवारों को डर-भय के साए में जीना होगा। क्योंकि प्रवासी मजदूर का गांवों में वो सामाजिक आधार नहीं जो इस प्रकार के दबंगों का है।
प्रतिनिधिमंडल के बांकेलाल, विनोद यादव, अवधेश यादव और धरमेन्द्र शामिल को मृतक पच्चीस वर्षीय अंगद राम की पत्नी रवीना ने बताया कि उनके पति नई दिल्ली में जीटीबी अस्पताल की कैंटीन में नौकरी करते थे। पहले वे ताहिरपुर गांव दिल्ली में रहते थे पर कमरे का किराया काफी ज्यादा था तो वे गाजियाबाद के डिस्टेंस कालोनी भोपरा में रहने लगे और अंगद वहां से नौकरी पर जाने लगे। लाॅक डाउन में काम बंद हो गया था। रवीना गर्भवती थी 10 अप्रैल को बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ। वहां न खाने के कोई व्यवस्था थी न चिकित्सा की। अल्ट्रासाउंड में ग्यारह-ग्यारह सौ रुपए लग जाते थे। पैसे खत्म होने के बाद रवीना अपनी मां के यहां से पैसे मंगाए और दिल्ली से आजमगढ़ ट्रेन द्वारा पति के साथ आईं।रात आठ बजे के करीब उनकी माता विमलौता पता करने प्रधान के घर गईं तो प्रधान घर पर नहीं थे। अंधेरा होने के बाद भी जब वह नहीं लौटकर आए तो घर वाले चिंतित होकर ढूंढने निकले। अगले दिन 6 जून की सुबह घर के लोग खेते में काम कर रहे थे कि सुबह के तकरीबन नौ बजे गांव के एक लड़के ने सूचना दी कि अंगद की लाश नीबू के पेड़ पर लटक रही है। जिसके बाद पूरा परिवार दौड़ते हुए वहां पहुंचा तो पहले से मौजूद प्रधान ने उन्हें घटना स्थल तक जाने नहीं दिया।
आखिर प्रधान ने उनको यह सूचना क्यों नहीं दी जबकि मैं रात में उनके घर गई थी। उनका बेटा प्रधान के बुलावे पर गया था और उसके बाद गायब हो गया और जब मिला तो उसकी लाश मिली। साथ ही वो कहती हैं कि प्रधान कह रहे हैं कि उनके बेटे ने सुबह के आठ बजे फांसी लगाई यह उन्हें कैसे मालूम है। क्या वो घटना स्थल पर मौजूद थे। अगर उन्हें मालूम था तो बचाया क्यों नहीं। हमको उसकी मौत की खबर नौ बजे के करीब मिली जबकि घटना स्थल से उनके घर की दूरी पांच मिनट की भी नहीं है।

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