अवधेश कुमार
रुस ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने पर जिस तरह खुलकर भारत का समर्थन किया उससे बड़ा प्रमाण संबंधों की गहराई का तत्काल कुछ नहीं हो सकता। सुरक्षा परिषद की बंद कमरे की मंत्रणा में रुस का मुखर तेवर भारत की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला साबित हुआ था। ऐसे समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय रुस यात्रा का महत्व बढ़ जाता है। हालांकि पूरी यात्रा के परिणामों को देखते हुए यह कहना गलत होगा कि मोदी ने केवल कश्मीर पर रुस के समर्थन को भविष्य के लिए सुदृढ़ कर आश्वस्त हो जाने के लक्ष्य सेह यात्रा किया था। इस यात्रा के आयाम काफी व्यापक थे। सच कहा जाए तो इस यात्रा से दोनों देशों के संबंधों में ऐसे अध्यायों की शुरुआत हुई है जिनके बारे में शायद पहले विचार नहीं किया गया था। मूल रुप में यह भारत रुस का 20 वां शिखर सम्मेलन था। रुस ने मोदी को अपने देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल से सम्मानित करने का ऐलान पहले से किया हुआ था। पुतिन ने ईस्टर्न इकोनोमिक सम्मेलन में उन्हें विशेष अतिथि के रुप में आमंत्रित किया। यह रुस की नजर मंें प्रधानमंत्री मोदी और भारत के बढ़ते कद का परिचायक है। रुस ने मोदी की यात्रा को पर्याप्त महत्व दिया। व्लादिवोस्तोक पहुंचने पर मोदी ने कहा कि जहां 21वीं सदी में मानव विकास की नई गाथाएं लिखी जा रही हैं, ऐसे कर्मतीर्थ में आकर मुझे अपार खुशी हो रही है।
हालांकि 2014 से लेकर अब तक मोदी चार बार रूस की यात्रा कर चुके हैं। लेकिन इस यात्रा का महत्व सबसे अलग था। मोदी इस यात्रा में पूरी तैयारी से गए थे और रुस ने उसके समानांतर जवाबी तैयारी की थी। प्रधानमंत्री के साथ फिक्की का 50 सदस्यीय बड़ा प्रतिनिधिमंडल था। इसका सीधा अर्थ था कि सरकारी स्तरों से परे निजी स्तर पर व्यापार एवं निवेश को प्रोत्साहित किया जाएगा। साझा पत्रकार वार्ता मंे मोदी ने कहा भी कि हमने सहयोग को सरकारी दायरे से बाहर लाकर उसमें लोगों और निजी उद्योग की असीम ऊर्जा को जोड़ा है। हमारे रिश्तों को हम राजधानियों के बार भारत के राज्यों और रूस के अन्य क्षेत्रों तक ले जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी रूस के सुदूर पूर्व क्षेत्र (फार ईस्ट रीजन) की यात्रा करने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने मोदी को अपने देश के सुदूर पूर्व हिस्सों में विकास कार्यों की जानकारी दी। प्रधानमंत्री को कई मॉडल्स और प्रजेंटेशन के जरिए विभिन्न परियोजनाओं की जानकारी दी गई। दरअसल, रुस इस क्षेत्र का विकास चाहता है और उसमें वह भारतीय कंपनियों का ही नहीं कुशल भारतीय कामगारों का भी स्वागत करने को तैयार बैठा है। भारत के लिए भी यह अवसर उस क्षेत्र में निवेश कर लाभ उठाने तथा अपने मानव श्रम तक के निर्यात करने का है। व्लादिवोस्तोक में खनिज और ऊर्जा के बड़े भंडार मौजूद हैं। विदेश सचिव विजय गोखले ने प्रेस कॉन्फ्रेंस मंें जो जानकारी दी उसके अनुसार दुनिया में जहां कहीं भी मैनपावर की कमी है, भारत उन सभी जगहों पर स्किल्ड वर्कर्स या प्रशिक्षित कामगार भेजने पर काम रहा है। राजधानी मॉस्को से व्लादिवोस्तोक तक ट्रेन से पहुंचने में 7 दिन लगते हैं। यहां कम जनसंख्या की वजह से प्राकृतिक संसाधनों के खनन में भी परेशानी आती है। ऐसे में कृषि और खनन सेक्टर में भारत के लिए यह बड़ा मौका होगा। हमारे प्रशिक्षित लोग यहां काम कर दोनों देशों के विकास में योगदान दे सकते हैं।
दोनों देशों ने रक्षा, तकनीक, उर्जा से लेकर अंतरिक्ष मिशन तक 13 समझौते किए। प्रधानमंत्री ने विभिन्न क्षेत्रों में भारत और रूस के बीच साझेदारी की चर्चा करते हुए कहा कि आज हमारे बीच रक्षा, नाभिकीय उर्जा, अंतरिक्ष, बिजनस टु बिजनस समेत कई क्षेत्रों में सहयोग को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए सहमति बनी है। भारत में रूस के सहयोग से न्यूक्लियर प्लांट बन रहे हैं, कुछ समय पहले ही में भारत का एक प्रतिनिधिमंडल यहां पर आए और इस दौरान समझौतों को लेकर बातचीत हुई। भारत के एच-एनर्जी ग्लोबल लिमिटेड और रूस के नोवाटेक ने भारत और अन्य बाजारों में एलएनजी की आपूर्ति के लिए समझौता किया। इसके तहत नोवाटेक भारत, बांग्लादेश और अन्य बाजारों में एलएनजी की बिक्री के लिए भविष्य के एलएनजी टर्मिनल और संयुक्त उद्यम के गठन में निवेश करेगी। रक्षा जैसे क्षेत्र में रूसी उपकरणों के स्पेयर पार्ट्स दोनों देशों के संयुक्त उद्यम द्वारा बनाने पर हुआ समझौता रक्षा उद्योग को आगे बढ़ाने वाला साबित होगा। जैसा मोदी ने कहा भारत-रूस रक्षा, कृषि, पर्यटन, व्यापार में आगे बढ़ रहे हैं। अंतरिक्ष में दोनों देशों का सहयोग काफी ऊंचाई हासिल कर चुका है। गगनयान यानी भारतीय ह्यूमन स्पेस फ्लाइट के लिए भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिक रूस में प्रशिक्षण लेंगे। चेन्नै और व्लादिवोस्तोक के बीच एक समुद्री मार्ग तैयार किए जाने का प्रस्ताव रखा गया है। ओएनजीसी और कुछ हीरा कंपनियां अभी रूस के इस सुदूर पूर्वी इलाके में काम कर रही हैं। भारत-रूस इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर यानी अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण ट्रांस्पोर्ट गलियारा पर भी काम कर रहे हैं। यह 7200 किलोमीटर लंबा सड़क, रेल और समुद्र मार्ग होगा जो भारत, ईरान और रूस को जोड़ेगा। कॉरिडोर हिंद महासागर और फारस की खाड़ी से ईरान के चाबहार बंदरगाह होते हुए रूस के सेंट पीटर्सबर्ग को जोड़ेगा। भारत और रुस के अलग-अलग स्थानों से जुड़ाव के बाद नागरिक, व्यापारिक आदान-प्रदान कितना आसान हो जाएगा इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। प्रधानमंत्री मोदी ने रुस से आकर्टिक क्षेत्र भी खोलने का आग्रह किया है ताकि दूरियां और कम हों एवं उर्जा पर काम किया जा सके।
इससे समझा जा सकता है कि कितने व्यापक स्तर पर संबंधों के विस्तार की आधारशीला रख दी गई। इसे ही संबंधों की सघनता कह सकते हैं। ध्यान रखिए, यह क्षेत्र चीन के बिल्कुल पास है। चीन ने वहां काफी निवेश किया हुआ है। इस तरह भले यह यात्रा छोटी यानी केवल 36 घंटे की थी लेकिन इसकी परिणति ऐतिहासिक है। अगर लोगों को जोड़ना है, रुस में निजी निवेश करना है, अपने कुशल मैनपावर को काम में लगाना है तो परियोजनाओं की जानकारी, संभावनाएं तथा आने-जाने के सुगम मार्ग चाहिए। इन पर काम आरंभ होने का मतलब भविष्य में रुस और भारत के संबंध का वर्णक्रम बिल्कुल बदला दिखेगा। इसके सामरिक महत्व को नकारा नहीं जा सकता। पुतिन मोदी को ज्वेज्दा पोत निर्माण केंद्र भी दिखाने ले गए। यहां उन्होंने कुछ प्रदर्शनी भी देखी। संयुक्त प्रेस वार्ता के दौरान पुतिन ने भी कहा कि हमारी दोस्ती लगातार मजबूत हो रही है। हम लोग लगातार खुले और बढ़िया वातावरण में बातचीत कर रहे हैं। हमारी प्राथमिकता निवेश और व्यापार है, दोनों देशों के व्यापार में 17 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। हम भारत की कंपनियों का रूस में स्वागत करना चाहते हैं। हम भारत में मिसाइल प्रणाली और रायफल बनाने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।
भारत ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम का सदस्य नहीं है, लेकिन मोदी राष्ट्रपति पुतिन के विशेष आमंत्रण पर इसकी पांचवी बैठक में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। मोदी ने वहां बदलते हुए बेहतर भारत की तस्वीर पेश की जिसे दुनिया ने सुना। उसी मंच से उन्होंने रूस के सुदूर पूर्व में 1 अरब डौलर के लाईन औफ क्रेडिट यानी विशेष शर्तों वाले ऋण का ऐलान कर सोदश दिया कि वह पूरे क्षेत्र में प्रभावी उपस्थिति की ओर अग्रसर है। इस मंच से भारत को रूस के सुदूर पूर्व को विकसित करने के साथ एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने का अवसर मिलेगा। सम्मेलन में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद और मंगोलिया के राष्ट्रपति खाल्तमागिन बत्तुलगा आदि भी शामिल थे। प्रधानमंत्री ने कम समय में ही इन नेताओं से भी अलग-अलग बातचीत की। वैसे अमेरिका के विरोध के बावजूद भारत द्वारा रुस से एस 400 मिसाइल प्रणाली खरीदने पर दिखाई दृढ़ता एवं उसका अग्रिम भुगतान कर देने से भी रुस का झुकाव ज्यादा बढ़ा है। अमेरिका एवं पश्चिमी यूरोप ने रुस को प्रतिबंधित किया हुआ है, लेकिन भारत ने क्रीमिया और यूक्रेन पर रुस की नीति से असहमत होते हुए भी उसको बिल्कुल नजरअंदाज नहीं किया। इससे भारत और रुस के संबंधों में व्यापक बदलाव आ गया। रुस का झुकाव चीन की ओर ज्यादा हो गया था। वह पाकिस्तान को भी काफी महत्व देने लगा था। इस दौरे से साबित हो गया कि भारत उसकी प्राथमिकता में शामिल है। दोनों देशों की अनेक अंतरराष्ट्रीय मामले पर एकजुटता का व्यापक असर होगा। अफगानिस्तान को लेकर भी दोनों नेताओं के स्वर एक ही थे। पाकिस्तान और चीन वहां भारत की भूमिका बिल्कुल नहीं चाहता। इस मायने में दोनों नेताओं की यहघोषणा बहुत महत्वपूर्ण है कि हम आतंकवाद से मुक्त एक शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक बाहरी हस्तक्षेप से परे अफगानिस्तान देखना चाहते हैं।
अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208
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