गुरुवार, 29 अगस्त 2019

बुद्धिमतापूर्ण कूटनीति की मिसाल

 अवधेश कुमार

फ्रांस के समुद्र किनारे बसे मनोरम दृश्यों वाले शहर बिआरित्ज में आयोजित जी 7 सम्मेलन पर दुनिया की नजर कई कारणों से रही होगी। किंतु विशेष आमंत्रित अतिथि के रुप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र की उपस्थिति से इसका आयाम विस्तृत हो गया था। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद पाकिस्तान ने जिस तरह से अपनी विदेश नीति को पूरी तरह भारत के खिलाफ झोंक दिया है उसमें दुनिया के एक हिस्से की नजर इस कारण भी थी कि मोदी वहां उपस्थित नेताओं से क्या बात करते हैं और नेतागण कश्मीर और भारत पर क्या बोलते हैं। सबसे ज्यादा ध्यान मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बैठक पर था। अगर दुनिया के कूटनीतिक इतिहास के आइने में देखा जाए तो दोनों नेताओं की बैठक का एक दृश्य उसके अध्याय में शामिल हो गया। ज्यादातर मीडिया ने उसी तस्वीर को अपने यहा सुर्खियां दी। ट्रंप यह कहते हुए मोदी के बायें हाथ पर अपने दायें हाथ की थपकी देते हैं कि ये अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं लेकिन यहां बोलना नहीं चाहते। इस पर मोदी ठहाका लगाते हैं और अपने बायें हाथ से उनके हाथ को पकड़े हुए दायें हाथ से ज्यादा जोर से थपकी लगाते हुए पकड़ लेते हैं। इस तरह के दृश्य दो देशों के नेताओं के शिखर सम्मेलन में शायद ही कभी सामने आया हो। इसीलिए अनेक विश्लेषकों ने उस दिन का दृश्य या सीन औफ द डे का नाम दे दिया। कूटनीति में शब्दों के साथ बडी लैंग्वेज यानी हाव-भाव का व्यापक महत्व होता है। तो आइए यह समझने की कोशिश करें कि मोदी ट्रंप के इस हाव-भाव और वहां दिए गए वक्तव्यों के मायने क्या हैं?

दोनों नेताओं के बीच प्रतिनिधिस्तरीय द्विपक्षीय बातचीत हुई। पत्रकारों के सामने आने के पहले रात में दोनों ने साथ भोजन किया था जिस दौरान भी बातचीत हुई थी। पत्रकारों ने कश्मीर पर सवाल पूछ लिया। प्रधानमंत्री मोदी ने जो जवाब दिया वह वाकई अद्भुत था। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच कई द्विपक्षीय मामले हैं जिनका हम समाधान कर सकते है। हम इस पर दुनिया के किसी भी देश को कष्ट नहीं देना चाहते हैं। मोदी ने यह भी कहा कि भारत और पाकिस्तान, जो 1947 से पहले एक ही थे, मिलजुलकर अपनी समस्याओं पर चर्चा और समाधान भी कर सकते हैं। इस तरह के वक्तव्य की उम्मीद भारत में भी शायद ही किसी ने की होगी। हालांकि कश्मीर पर सवाल पूछा जाएगा इसकी पूरी उम्मीद मोदी को रही होगी इसलिए वे जवाब पहले से सोचकर गए होंगे। इस प्रकार से जवाब देने को आप श्रेष्ठ कूटनीति का उदाहरण मान सकते हैं। इसमें विनम्रता और शालीनता थी तो दृढ़ता और आत्मविश्वास भी था। साथ ही इसमें भारत की सक्षमता का संदेश देने का भाव भी था। मोदी यह भी कह सकते थे कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मामला है और अभी हमने जो किया है वह हमारा आंतरिक विषय है जिसमें कोई दूसरा पक्ष दखलंदाजी नहीं कर सकता या किसी पक्ष की दखलअंदाजी की इजाजत हम नहीं देंगे। यह रुखी भाषा होती और शायद ट्रंप जैसा नेता या दूसरे नेता इससे भीतर ही भीतर नाराज हो सकते थे। इसकी जगह उन्होंने एकदम सहज भाव से कह दिया कि हम किसी को कष्ट नहीं देना चाहते। यानी बात वही थी कि इसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई आवश्यकता नहीं है, पर इसको शालीन तरीके से कह दिया गया। यह एक परिपक्व देश के परिपक्व नेतृत्व की परिपक्व कूटनीति मानी जाएगी। 

परिणाम देखिए। ट्रंप ने भी इसका समर्थन करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी पर उन्हें पूरा भरोसा है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि चीजें पूरी तरह नियंत्रण में हैं। मुझे उम्मीद है कि वे कुछ अच्छा करने में कामयाब होंगे, जो बहुत अच्छा होगा। ट्रंप ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि भारत और पाकिस्तान मिलकर समस्याओं को सुलझा लेंगे। ट्रपं के इस वक्तव्य का महत्व इस मायने में है कि इसके पहले वे तीन बार 22 जुलाई को ह्वाइट हाउस में इमरान खान से मुलाकात के दौरान, फिर 2 अगस्त एवं 21 अगस्त को मध्यस्थता करने का बयान दे चुके थे। 21 अगस्त को उन्होंने कह दिया कि वहां धर्म का मामला भी है। हिन्दू और मुसलमान हैं। इसमें भारतीय कूटनीति का एकमात्र लक्ष्य यही हो सकता था कि बिना किसी प्रकार तनाव पैदा किए, संबंधों को सामान्य बनाए रखते हुए ट्रंप को समझा दिया जाए कि आपका स्टैंड सही नहीं है जिसे आपको बदलना चाहिए। ट्रंप का बयान बताता है कि इसमें भारत को कम से कम तत्काल पूरी सफलता मिली है। इसी में हाथ पकड़ने की शारीरिक भाषा का महत्व बढ़ जाता है। उस दौरान मोदी भी ठहाका लगा रहे थे और ट्रंप भी। उपस्थित पत्रकार भी हंस रहे थे। यह हाव-भाव बता रहा था कि दोनों के बीच व्यक्तिगत संबंधी कितना सहज और अनौपचारिक है। यह समानता के स्तर पर व्यवहार करने तथा एक दूसरे पर विश्वास को भी दर्शाता है। इसकी तुलना ह्वाइट हाउस में इमरान खान एवं डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात के समय के दृश्य से कीजिए। दोनों अगल-बलग बैठे हुए थे। पर इमरान खान बिल्कुल असहज थे। पूरा माहौल औपचारिक था। साफ दिख रहा था कि पाकिस्तानी पत्रकारों को पहले से तैयार करके रखा गया था कि क्या प्रश्न पूछना है। उसी अनुसार पत्रकार प्रश्न पूछते गए और इमरान ने जवाब दिया तथा ट्रंप ने उसी में कह दिया कि कश्मीर के मामले पर वे दोनों देशों के बीच मध्यस्थता को तैयार हैं। हालांकि बाद में उन्होेंने इसमें जोड़ा था कि अगर मोदी चाहें तो।

इस तरह सधी हुई कूटनीति से मोदी ने निर्धारित लक्ष्य हासिल कर लिया। वहां उपस्थित अन्य नेताओं से भी मोदी की बात हुई। जर्मन की चांसलर एंजेला मर्केल से, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन से भी आमने सामने की बातचीत हुई। हालांकि उसका विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं है और उसके बाद पत्रकार वार्ता भी नहीं हुई जिनसे हम कुछ अंदाजा लगाएं। वैसे इमरान खान ने फोन पर इन दोनों नेताओं से बातचीत की थी। जाहिर है, इमरान ने भारत के खिलाफ ही अपना पक्ष रखा होगा। संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव एंटोनियो गुआटेरस से मुलाकात के बाद मोदी ने ट्वीट भी किया कि महासचिव के साथ बैठक शानदार रही। उसमें जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता आदि की चर्चा की जानकारी थी। एंटोनियो गुआटेरस पाकिस्तान के हस्तक्षेप के अनुरोध को यह कहकर ठुकरा चुके हैं कि मामला द्विपक्षीय है। थोड़े शब्दों मे कहा जाए तो भारत का लक्ष्य ट्रंप से अपने अनुकूल वक्तव्य दिलवा देना था। अमेरिका के राष्ट्रपति के अलावा दुनिया में किसी की हैसियत नहीं है कि वह मध्सस्थता का प्रस्ताव दे सके। उसके बाद भारत विरोधी देशों को भी नए सिरे से विचार करने को मजबूर होना पड़ रहा होगा। मोदी ने यह भी यूं ही नहीं कहा कि पाकिस्तान में चुनाव जीतने के बाद वहां के नए प्रधानमंत्री को मैंने फोन कर कहा था कि पाक और भारत दोनों को देशों को बीमारी, गरीबी, अशिक्षा आदि के खिलाफ लड़ना है। दोनों देश मिलकर इसके खिलाफ लड़ सकते हैं। इसका अर्थ भी साफ है कि हम तो शांतिपूर्ण विकास में साझेदारी करना चाहते हैं और हमारा इरादा आज भी यही है, पर पाकिस्तान साथ नहीं आता। यह अवसर नहीं था कि प्रधानमंत्री आक्रामक होकर पाकिस्तान पर आतंकवाद को पालने तथा जम्मू कश्मीर हिंसा कराने का सीधा आरोप लगाते। उन्होंने यह भी कह दिया कि राष्ट्रपति ट्रंप से भी हमारी इस संबंध में बात होती रहती है। पता नहीं क्या बात होती है, पर संदेश तो चला गया कि पाकिस्तान के संदर्भ में वे लगातार बात करते हैं। यानी यह मत समझिए कि हम पहली बार इस विषय पर बातचीत कर रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी कहा कि हम लोग व्यापार को लेकर बात कर रहे हैं, हम लोग सैन्य और दूसरी महत्वपूर्ण चीजों के बारे में बात कर रहे हैं।

इस तरह फ्रांस के बियारित्ज में परिपक्व और बुद्धिमतापूर्ण कूटनीति से प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम ने जम्मू कश्मीर के संदर्भ में स्थिति को अपने पक्ष में मोड़ने में सफलता पाई है। ट्रपं का बयान भारत के लिए एक चुनौती बन गया था। मोदी ने फोन पर हुई बातचीत में अवश्य संकेतों में उन्हें समझाया होगा। किंतु मुलाकात के बाद ट्रंप का बयान बताता है कि उन्होंने अपनी समझ पर पुनिर्वचार किया है। आगे फिर उनमें कुछ बदलाव होता है तो देखेंगे। किंतु पाकिस्तान कितना हताश हो गया है इसका प्रमाण है इस मुलाकात के बाद इमरान खान का संबोधन जिसमें वे दुनिया को बता रहे हैं कि दोनों नाभिकीय शक्ति हैं और युद्ध हुआ तो केवल पाकिस्तान और भारत पर ही इसका असर नहीं होगा दुनिया भी इसकी चपेट में आएगी। एक ओर इस तरह का उत्तेजनापूर्ण भाषण और दूसरी ओर सहजता से मामले को द्विपक्षीय बताने तथा किसी तरह की आक्रामक बात न करने के आचरण में दुनिया भी अंतर कर रही होगी।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

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