घटनाक्रम पर ध्यान दीजिए। कांग्रेस मुख्यालय पर पार्टी प्रवक्ता ने पत्रकार वार्ता बुलाकर बताया कि 156 पूर्व सैन्य अधिकारियों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर अपील की है कि सेना के राजनीतिकरण को रोका जाए। कांग्रेस के नेता उस पत्र की कॉपी लेकर चुनाव आयोग के पास पहुच गए। बाहर आकर बयान दिया कि भाजपा सेना का वोट के लिए राजनीतिक इस्तेमाल कर रही है जिससे पूर्व सैन्य अधिकारी नाराज हैं। अगर वाकई सेना के पूर्व अधिकारियों ने मिल-बैठकर ऐसा पत्र लिखने का निर्णय किया तो वे खुद राष्ट्रपति से समय मांग कर मिल सकते थे। ये स्वयं चुनाव आयोग के पास जा सकते थे। इसका अर्थ हुआ कि इसकी योजना कहीं और से बनी। योजना बनाने वालों ने पत्र लिखा। उसके बाद सेवानिवृत अधिकारियों को मेल और व्हाट्सऐप पर भेजकर पूछा गया कि क्या आप इससे सहमत हैं? कुछ लोगों ने सहमति व्यक्त की। हालांकि उन्हें भी इसके राजनीतिक उपयोग का अनुमान था या नहीं कहना कठिन है। योजनाकारों की सोच यही थी कि कि एक बार पूर्व सैन्याधिकारियों के नाम से पत्र जारी करके इसका अपने अनुसार राजनीतिक दुरुपयोग किया जाए। यही हुआ है।
उस पत्र पर जिनके नाम हैं उनमें से किसी ने नहीं कहा कि हमने आपस में बैठकर यह फैसला किया। राष्ट्रपति भवन ने पत्र मिलने से ही इन्कार कर दिया। हो सकता है आगे उनके पास पत्र पहुंच जाए। कांग्रेस की पत्रकार वार्ता के बाद क्षण भर में यह खबर फैल गई कि सेना के सेवानिवृत्त बड़े अधिकारियों ने भाजपा और सरकार का विरोध किया है। यदि सेना के कुछ पूर्व अधिकारियों को लगे कि सही नहीं हो रहा है तो राष्ट्रगति को पत्र लिखने में कोई समस्या नहीं हैं। किंतु यहां स्थिति दूसरी है। जब इनकी कोई बैठक नहीं हुई तो फिर फैसला कहां हुआ? साफ है कि पूरा प्रकरण कांग्रेस ने पैदा किया। तूफान खड़ा हो ही रहा था कि कुछ लोग यह कहते हुए सामने आ गए कि मेरा नाम बिना मेरे से पूछा लिखा गया है। पत्र में पूर्व सेना प्रमुख जनरल एसएफ रॉड्रिग्ज का नाम है। उन्होंने इसे फेक न्यूज का सबसे घटिया उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि मैं कभी ऐसा पत्र लिख ही नहीं सकता हूं। 42 साल सेना में सेवा देने के बाद मैं ऐसा पत्र कैस लिख सकता हूं। एक पत्रकार ने जब उनसे पूछा कि फिर ऐसा पत्र क्यों लिखा गया? उनका जवाब था कि आप अच्छी तरह जानते हैं कि दुनिया में क्या चल रहा है। इस तरह पूर्व थलसेना प्रमुख ने संकेतों में बता दिया कि एक व्यक्ति और पार्टी को हराने के लिए बहुत सारी कोशिशें चल रहीं हैं। इसमें पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एनसी सूरी का भी नाम है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि चिट्ठी में जो कुछ भी लिखा है, मैं उससे सहमत ही नहीं हूं। यह खबर उड़ी कि नोसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल रामदास ने पत्र लिखा है। एअर मार्शल सूरी ने साफ कर दिया कि एडमिरल रामदास ने पत्र लिखा ही नहीं। उनके अनुसार यह पत्र ईमेल और ह्वाट्सएप पर घूम रहा है। पूर्व उप सेना उपप्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एमएल नायडु का नाम भी 20 वें नंबर पर है। उन्होंने पहले आश्चर्य व्यक्त किया कि ऐसे पत्र में उनका नाम शामिल हैं। उन्होंने कहा कि न पत्र के लिए मेरी सहमति ली गई और न मैंने कोई पत्र लिखा है। उनके तेवर काफी तल्ख थे।
इन तीनों पूर्व शीर्ष सेनाधिकारियों के चेहरे को पढ़ें तो साफ दिख रहा था कि अगर राजनीतिक बयान देने से इन्होंने स्वयं को अलग नहीं रखा होता तो निंदा करते तथा कुछ और बात कहते। इसमें 31 वें नबर पर एक नाम मेजर जनरल हर्ष कक्कड़ का है। उन्होंने कहा कि मेरे से ईमेल पर पूछा गया था कि क्या आप इससे सहमत हैं तो मैंने कहा, हां। किंतु उन्होंने यह साफ किया कि सरकार ने पाकिस्तान की वायुसीमा में घुसकर एअरस्ट्राइक का निर्णय किया यह बहुत साहसी कदम है। किसी सरकार ने यह साहस नहीं दिखाया था। इसने जो सर्जिकल स्ट्राइक की अनुमति दी वह भी बहुत बड़ा निर्णय था। पहले की सरकारें ऐसा करने से बचतीं थीं। इसलिए सरकार को इसके नाम पर वोट मांगने का अधिकार है। यह निर्णय उसका है और ऐसा बोलने में कोई समस्या नहीं है। मेजर जनरल कक्कड़ ने कहा कि हम केवल सेना के नाम का दुरुपयोग करने को उचित नहीं मानते। इस मामले में भी उनका मत देखिए- आदित्यनाथ योगी जी ने कह दिया मोदी जी की सेना, कांग्रेस के नेता दीक्षित ने कैसी बात बोल दी, कुमारस्वामी ने क्या बोल दिया...हम चाहते हैं कि ऐसा न हो। हम जानते हैं संदीप दीक्षित ने थल सेना प्रमुख जनरल विपीन रावत के बारे में कहा था कि सेना प्रमुख गली के गुंडों की भाषा बोलते हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कह दिया कि जिसके पास खाना नहीं, जो गरीब है वो ही सेना में जाता है। ये दोनों बयान सेना का अपमान है। आदित्यनाथ योगी ने अपमान नहीं किया लेकिन मोदी जी की सेना कहना अनुचित था। विवाद होने पर उन्होंने बोलना बंद कर दिया। पूर्व सेना प्रमुख जनरल शंकर राय चौधरी ने कहा कि मैंने पत्र पर हस्ताक्षर किया है। हालांकि उन्होंने भी नहीं कहा कि पाकिस्तान में वायुसेना की कार्रवाई तथा सर्जिकल स्ट्राइक पर राजनीति में बात किया जाना आपत्तिजनक है।
तो इसका अर्थ हुआ कि यह राजनीतिक प्रयोजन से चलाया गया पत्र अभियान था जिसके साथ बड़े सैन्य अधिकारियों का नाम जोड़कर देश में अलग प्रकार का संदेश देने की रणनीति अपनाई गई। इसमें जिनने हस्ताक्षर किया उनमें से भी ज्यादातर का मत वही नहीं था जो कांग्रेस ने बताया। ध्यान रखिए, मेजर हर्ष कक्कर कह रहे हैं कि सरकार को वायुसेना की कार्रवाई तथा सर्जिकल स्ट्राइक का फैसला करने पर वोट मांगने का अधिकार है, पर पत्र में इसे गलत बताया गया है। पत्र का वह अंश देखिए-‘ ‘महोदय हम नेताओं की असामान्य और पूरी तरह से अस्वीकृत प्रक्रिया का जिक्र कर रहे हैं जिसमें वह सीमा पार हमलों जैसे सैन्य अभियानों का श्रेय ले रहे हैं और यहां तक कि सशस्त्र सेनाओं को मोदी जी की सेना बताने का दावा तक कर रहे हैं।’इसमें कहा गया है कि सेवारत तथा सेवानिवृत्त सैनिकों के बीच यह चिंता और असंतोष का मामला है कि सशस्त्र सेनाओं का इस्तेमाल राजनीतिक एजेंडा चलाने के लिए किया जा रहा है। पत्र में चुनाव प्रचार अभियानों में भारतीय वायु सेना के पायलट अभिनंदन वर्धमान और अन्य सैनिकों की तस्वीरों के इस्तेमाल पर भी नाखुशी जताई गई है। तो क्या सहमति लेने के बाद इसका मजमून बदला गया? हर्ष कक्कड़ अगर मानते हैं कि सरकार ने साहसी फैसले किए और उसे पूरा अधिकार है कि जनता के सामने इसे रखकर वोट मांगे तो पत्र में इस पर चिंता क्यों प्रकट की गई है? जाहिर है, कांग्रेस की जो भी रणनीति रही हो, इससे पूरा मामला संदेहास्पद हो जाता है। पूरे प्रकरण को देखते हुए सेवानिवृत्त विंग कमांडर प्रफुल्ल बख्सी का बयान सही लगता है कि असल में यह पत्र लिखना ही सेना पर राजनीति है। हजारों की संख्या में ऐसे सेवानिवृत्त सेनाधिकारी हैं जो इस पत्र को बिल्कुल गलत मानते हैं।
यह प्रश्न भी उठता है कि सेना का राजनीतिक दुरूपयोग किसे कहेंगे? सेना का राजनीतिक दुरुपयोग तब होता जब कार्यरत जवानों को साथ लेकर वोट मांगा जाता या सेना के जवान किसी पार्टी के लिए वोट मांगते। जिस दिन भारत में ऐसा हुआ वह लोकतंत्र के लिए दुर्दिन होगा। पर यदि सरकार ने इतना बड़ा फैसला किया और जवानों ने उसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया तो इसका श्रेय लेगी। 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बारे आज तक कांग्रेस कहती है कि इंदिरा जी ने पाकिस्तान को तोड़कर बांग्लादेश बनाया। वास्तव में ऐसा निर्णय प्रधानमंत्री के स्तर पर ही होता है। उसके एक वर्ष बाद विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए यह सबसे बड़ा मुद्दा था और उसे भारी सफलता मिली। कोई भी सरकार होगी वह अपने ऐसे फैसले की चर्चा करके वोट पाने की कोशिश करेगी। यह सेना का दुरूपयोग कैसे हो गया? ऐसा माहौल बनाया जा रहा है मानो सेना के शौर्य की चर्चा करना या चुनावी मंचों पर शहीद या वीरता प्रदर्शित करने वाले जवानों की तस्वीरे लगाना राजनीतिक अपराध है। यह गलत सोच है। बलिदान हुए जवान या वीरता प्रदर्शित करने वाले जवानों से देश के लिए मरने-मिटने की, अनुशासनबद्ध, संकल्पबद्ध रहने या होने की प्रेरणा मिलेगी। इससे भ्रष्टाचार करने, देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने, कायर बनने की प्रेरणा तो नहीं मिलेगी। वीरता और शौर्य राजनीति का मुद्दा बने इससे बढ़िया कुछ हो ही नहीं सकता। इससे जो माहौल बनेगा उससे देश के लिए काम करने, मरने मिटने के लिए हजारों तैयार हो सकते हैं। भाजपा भी ऐसा करे, कांग्रेस भी करे, दूसरी पार्टियां भी करें। लेकिन भारत की नासमझ पार्टियां इसके उलट सोच रही है।
अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092,01122483408, 9811027208
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