गुरुवार, 3 जनवरी 2019

इतनी बड़ी आतंकवादी साजिश से बचा देश

अवधेश कुमार

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा तथा उत्तर प्रदेश आतंकवाद निरोधी दस्ते या एटीएस ने राजधानी दिल्ली से उत्तर प्रदेश तक छापा मारकर जो कुछ सामने लाया है उसका सच यही है कि भारत अनेक आतंकवादी हमलों से बचा लिया गया है। ये तैयारी के अंतिम चरण में थे। सबके पास हथियार पहुंचने के पहले ही ये पकड़ में आ गए इसलिए इनकी साजिशें सफल नहीं हुई। किंतु कुछ बुद्धिजीवियों और सक्रियतावादियों की नजर में यह पूरी कार्रवाई ही फर्जी है। एनआईए, उत्तर प्रदेश पुलिस तथा दिल्ली पुलिस इतनी नकारा है कि बिना किसी सबूत के 26 स्थानों पर छापा मारेगी? क्या वे इतने गैर जिम्मेवार हैं कि बिना किसी आधार के 10 लोगें को आतंकवादी होने के संदेह में गिरफ्तार कर लेंगे? पहले इनने 16 लोगों को पकड़ा था जिनमे से पूछताछ के बाद छः को छोड़ दिया गया। सच यही है कि छापेमारी कर आतंकवादी संगठन आईएसआईएस से प्रेरित जिस मॉड्यूल का पर्दाफाश किया है उसे सुरक्षा ऑपरेशनों के इतिहास की एक बड़ी सफलता के रुप में याद किया जाएगा। छापेमारी दिल्ली, मेरठ, अमरोहा, लखनऊ और हापुड़ में हुई। पिछले कुछ दिनों से सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर इनमें से कुछ लोग थे। जैसा एनआईए के आईजी आलोक मित्तल ने बताया ये मॉड्यूल 4 महीने से तैयार हो रहा था। इसकी जानकारी थी और 20 दिसंबर को ही इस मामले में कई धराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया जा चुका था।

गिरफ्तार हुए लोगों में सब साधरण परिवार एवं व्यवसाय से हैं। इनके साधारण होने के नाम पर छापा एवं गिरफ्तारी का उपहास उड़ाने वाले एवं विरोध करने वाले जरा बरामद सामग्रियों पर एक नजर डाल लें। छापेमारी में बड़ी संख्या में विस्फोटक, सुसाइड जैकेट, रिमोट कंट्रोल, एक देसी रॉकेट लॉंचर, 25 पिस्तौल, 100 मोबाइल फोन, 135 सिम कार्ड, लैपटॉप, 120 अलार्म घड़ियां,150 राउंड गोला-बारूद, करीब 25 किलोग्राम बम बनाने की सामग्री , पोटैशियम नाइट्रेट, पोटैशियम क्लोरेट,  सल्फर बरामद हुआ है। इनके पास से स्टील पाइप भी मिले हैं, जिसका पाइप बम बनाने में प्रयोग होता है। तलवारें भी मिलीं हैं। ये सारी सामग्रियां देश में शांति फैलाने में प्रयोग तो हो नहीं सकती थी। सर्वसामान्य ही नहीं, सुरक्षा स्थितियों को बेहतर तरीके से समझने वाले का भी कलेजा धड़क गया है। अगर ये न पकड़े जाते तो पता नहीं कहां-कहां खून और विध्वंस का खेल खेला जाता इसकी कल्पना से सिहरन पैदा हो जाती है। हाल के वर्षों में आतंकवादी इन्हीं सामग्रियों का उपयोग कर विस्फोट करते रहे हैं।

गहराई से विचार करें तो साफ दिखाई देगा कि इनकी साजिशों में आत्मघाती विस्फोट भी शामिल था। बुलेट प्रूफ सुसाइड जैकेट का इस्तेमाल आत्मघाती हमलों के लिए किया जाता है। वे रिमोट कंट्रोल बम भी बना रहे थे और आत्मघाती दस्ता तैयार कर रहे थे। दिल्ली में आतंकवादियों की टीम अगले कुछ दिनों में कई जगहों पर सिलसिलेवार बम धमाका या आत्मघाती हमले करने की तैयारी कर रहा था। ये आतंकवादी भीड़-भाड़ वाली जगहों, महत्वपूर्ण कार्यालयों और नेताओं पर आत्मघाती हमले की साजिश रच रहे थे। इनसे पूछताछ में हुए खुलासे के अनुसार दिल्ली पुलिस मुख्यालय, झंडेवालान में केशवकुंज स्थित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कार्यालय और कुछ प्रतिष्ठित व्यक्ति तथा महत्वपूर्ण स्थल उनके निशाने पर थे। इन्होंने दक्षिणी दिल्ली तथा नई दिल्ली के भीड़भाड़ वाले कुछ बाजारों की रेकी भी की थी। राजधानी में मुंबई जैसे हमले की साजिश भी शामिल थी। इन लोगों ने इंटरनेट पर मुंबई हमले और कई अन्य हमलों से संबंधित वीडियो भी कई बार देखी थी। जैसा मित्तल ने कहा ये तैयारियों के अंतिम चरण के करीब थे। वे लोग बम बनाने में सफलता मिलने का इंतजार कर रहे थे और रिमोट नियंत्रित आईईडी और पाइप बम के जरिए विभिन्न जगहों पर विस्फोट करना चाहते थे। दिल्ली के जाफराबाद से पकड़े गए संदिग्ध अनस के मोबाइल चैट से यह भी सामने आया है कि ये 29 नवंबर को अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि पर आत्मघाती आतंकवादी हमला करना चाहते थे जिसे अंजाम नहीं दे पाए। एनआईए को जो वीडियो मिले हैं उसमें ये आतंकवादी टाइम बम बनाते देखे जा सकते हैं। इस वीडियो में जो आवाज है वो भी सोहेल की है। सोहेल को ही इस मॉड्यूल का प्रमुख माना गया है।

 इतना सब कुछ सामने आने के बाद भी यदि किसी को यह कपोल कल्पित लगता है तो वैसे लोगों को क्या कहा जाए यह आप तय कर लीजिए। अब इनके संगठन को समझ लीजिए। यह आईएस से प्रभावित विदेश के कुछ आतंकवादियों से संपर्क में रहने वाला समूह है जिसका नाम हरकत-उल-हर्ब-ए-इस्लाम है।. इसका सामान्य अर्थ है, इस्लाम के हितों के लिए लड़ाई करना। उत्तर प्रदेशं विधानसभा चुनावों के दौरान कानपुर में आतंकवादियों का एक खोरासान मॉड्यूल सामने आया था। आईएस ने दुनिया में इस्लामी साम्राज्य का जो नक्शा तैयार किया था उसमें भारत का पश्चिमी भाग शामिल था और उसे खुरासान नाम दिया था। ठीक उसी के तौर-तरीके पर हरकत उल हर्ब ए इस्लाम भी काम कर रहा है। नेटवर्किंग के जरिए हरकत उल हर्ब-ए-इस्लाम आम लोगों को आतंकवादी संगठन का साथ देने के लिए कई तरीकों से प्रभावित करता है। आईएस अपने मुख्य केन्द्र इराक एवं सीरिया में पराजित किया जा चुका है लेकिन वह खत्म नहीं हुआ है। उसके जेहाद के विचार से प्रभावित अलग-अलग नामों से संगठन आतंकवाद को अंजाम देते रहे हैं।

पकड़े गए संदिग्ध आतंकवादियों पर नजर डाल लें तो स्थिति ज्यादा स्पष्ट हो जाएगी। हरकत उल हर्ब-ए-इस्लाम संगठन का अमीर 29 वर्षीय मुफ्ती मोहम्मद सोहैल उर्फ हजरात मूलरूप से उत्तर प्रदेश के अमरोहा का रहने वाला है। लेकिन वह पूरे परिवार के साथ दिल्ली के जाफराबाद में लंबे समय से रह रहा था। सुहैल ने मदसरता जामा मस्जिद अमरोहा और देवबंद के किसी मदरसे में पढ़ाई की है। अमरोहा में वह कम आता था। किंतु हाल के दिनों में अमरोहा ही उसका केन्द्र हो गया था। इस समय वहा अमरोहा में हकीम महताबउद्दीन मदरसे में बतौर मुफ्ती का काम कर रहा था। पूछताछ में पता चला कि किसी विदेशी आतंकवादी के निर्देशन में वह नेटवर्क संचालित करता था। दिल्ली के अनस ने अपने घर से 5 लाख का सोना चोरी किया था, जिसे बेचकर हथियार खरीदे गए। अनस यूनुस एमिटी यूनिवर्सिटी से सिविल इंजीनियरिंग कर रहा है। वह इलेक्ट्रिकल सामान जुटाकर बम और रॉकेट लॉन्चर बनाने की तैयारी कर रहा था। तीसरा राशिद ज़फ़र है जो गारमेंट के कारोबार में है और जाफराबाद का रहने वाला है। चौथा सईद अमरोहा का रहने वाला है और बेल्डिंग की दुकान चलाता है। पांचवा सईद का ही भाई रईस अहमद है जो दूसरी शॉप चलाता है। इन दोनों भाइयों ने बड़ी मात्रा में केमिकल और बम बनाने का सामान इकट्ठा किया था। छठवां जुबेर मालिक है जो दिल्ली विश्वविद्यालय में बीए तृतीय वर्ष का छात्र है। सातवां जुबेर का भाई ज़ैद मालिक है। वह फ़र्ज़ी दस्तावेजों पर सिम कार्ड, बैटरी, कनेक्टर्स इकट्ठा कर रहा था। आठवां इफ्तिखार हापुड़ का रहने वाला है और एक मस्जिद में इमाम है। उसने सुहैल को हथियार मुहैया करवाने में मदद की थी।

ये सभी लोग विदेश में बैठे एक हैंडलर के संपर्क में थे। दो ऑनलाइन हैंडलरों ने विदेश से संगठन के लोगों को बम, टाइमर और रिमोट कंट्रोल बम बनाना सिखाया। जो लोग कह रहे हैं कि एक बेल्डिंग करने वाले का आतंकवाद से क्या लेना-देना वे जरा इसे समझ लें। चूंकि बम बनाने के लिए वेल्डर की जरूरत होती है, इसलिए अमरोहा के रईस को शामिल किया गया। संगठन ने आतंकवादी हमलों के लिए सारे बम अमरोहा में ही तैयार कराए। इनमें से सिर्फ लांचर बम को ये लोग दिल्ली भेज पाए थे। बाकी बमों की आपूर्ति हमलों के मुताबिक होनी थी। इसके पहले ही ये पकड़ में आ गए। इसमें एक चौंकाने वाला सूत्र लखनउ की महिला है। अभी तक की जानकारी इतनी ही है कि महिला ने अपने जेवर बेचकर संदिग्ध आतंकवादियों को करीब पौने तीन लाख रुपये भिजवाये थे। महिला के साथ उसका बड़ा बेटा (18) दीनी तालीम हासिल कर रहा है, भी संदिग्ध आतंकवदियों के संपर्क में था। वह आठवीं कक्षा तक शहर के एक प्रतिष्ठित स्कूल का छात्र था। महिला ने उसका नाम मदरसे में लिखवाया था। संदिग्ध महिला की कथा पढ़कर यह समझ में आ जाता है कि किस तरह इस्लाम की कट्टरवादिता एक सामान्य घरेलू महिला को जेहादी आतंकवाद के प्रति समर्पित कर देता है। महिला आभूषण बेचकर आतंकवादियों की मदद कर रही थी तो सोचना चाहिए कि हमारे यहां उग्र इस्लामीकरण यानी रैडिकलाइजेशन के लिए किस तरह के तत्व व सामग्रियां उपलब्ध हैं। जाहिर है, ऐसे और भी लोग न जाने कहां-कहां जेहाद की गलत व्याख्या का शिकार होकर आतंकवाद का हथियार बन रहे होंगे। वर्तमान ऑपरेशन को एक बड़ी सफलता स्वीकार कर यह कहना होगा कि हमारे सुरक्षा एजेंसियों ने आतंकवाद की बड़ी साजिशों को नष्ट किया है।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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