शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

ईवीएम को निशाना निर्दोष को जा देने जैसा अपराध

 

अवधेश कुमार

यह भारत देश है जहां एक हैकर लंदन के एक कार्यक्रम में अमेरिका से मुंह ढंके हुए दावा करता है कि चुनावों में ईवीएम की हैकिंग बड़े पैमाने पर होती है और हमारे यहां उस पर हंगामा मच जाता है। हालांकि हैकर सैयद शुजा ने केवल 2014 के आम चुनाव में ही बड़े पैमाने पर हैकिंग का दावा नहीं किया, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान को भी इसमें शामिल किया है और कहा कि इन चुनावों में उसने हैकिंग को नाकाम कर दिया। उसने आम आदमी पार्टी से लेकर सपा, बसपा सब पर हैकिंग के लिए संपर्क करने का आरोप लगा दिया है। इन सबका क्या अर्थ है? लंदन में यह हैकथॉन कार्यक्रम इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा आयोजित किया गया। कार्यक्रम में कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल की मौजूदगी तो प्रश्नों के घेरे में है ही। वैसे आयोजकों का दावा है कि उन्होंने सभी दलों को आमंत्रित किया था, चुनाव आयोग को भी। जैसा नाम से जाहिर है यह भारतीय पत्रकारों का संगठन है, पर इसके निशाने पर ईवीएम क्यों है इसका जवाब नहीं मिलता। इस संगठन ने पिछले वर्ष पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के पूर्व अगस्त 2018 में भी लंदन में एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमंे राहुल गांधी शामिल हुए थे। किंतु हम इसमें यहां नहीं जाना चाहेंगे। मूल प्रश्न यह है कि क्या एक हैकर का दावा स्वीकर कर आम चुनाव के पहले ईवीएम पर हमें घमासान करना चाहिए? चुनाव आयोग ने शुजा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा दिया है। उसे पकड़कर भारत लाया जाए ताकि पता चल सके कि उसके पीछे कौन सी शक्तियां हैं।

  मान लें कि ईवीएम में गड़बड़ी हो सकती है। किंतु, ऐसा करने के लिए भारतीय चुनाव आयोग, राज्यों के चुनाव आयोग, उपर से नीचे तक का पूरा प्रशासन, हजारों की संख्या में ऐसा करने वाले विशेषज्ञ चाहिए। हर क्षेत्र में उम्मीदवार अलग होते हैं और उसी अनुसार ईवीएम में बटन बनाए जाते हैं। तो प्रत्येक क्षेत्र में गड़बड़ी के लिए आपको अलग टीम चाहिएं। इतने व्यापक पैमाने पर धांधली संभव है क्या? वस्तुतः यह एक प्रश्न सारे आरोपों पर भारी पड़ता है। जहां तक हैकिंग का प्रश्न है तो न यह इंटरनेट से जुड़ा होता है और न ही अन्य मशीन से कि इसे हैक किया जाए या ऑनलाइन दूसरी गड़बड़ियां पैदा की जा सके। यहां ईवीएम की तकनीक और प्रक्रिया का भी उल्लेख आवश्यक है। इसमें वन टाइम प्रोग्रामेबल चिप होता है। इसके संचालन के लिए वाईफाई और किसी कनेक्शन की आवश्यकता नहीं। ईवीएम का सॉफ्टवेयर कोड वन टाइम प्रोग्रामेबल नॉन वोलेटाइल मेमोरी के आधार पर बना है। निर्माता से बगैर कोड हासिल किए छेड़छाड़ हो ही नहीं सकती। ईवीएम में एक कंट्रोल यूनिट, बैलेट यूनिट और पांच मीटर केबल होता है। कंट्रोल यूनिट मतदान अधिकारी के पास होता है व बैलेटिंग यूनिट वोटिंग कम्पार्टमेंट के अंदर रखा होता है। कंट्रोल यूनिट के प्रभारी मतदान अधिकारी द्वारा बैलेट बटन दबाने के बाद ही मतदाता बैलेटिंग यूनिट पर उम्मीदवार एवं चुनाव चिन्ह के सामने बटन दबाकर मत डाल पाता बनाता है। मतदान अधिकारी मतपत्र को कंट्रोल यूनिट के साथ जोड़गा नहीं तो वोट नहीं हो सकता।

  अब मतदान प्रक्रिया और अन्य व्यवस्थाओं पर नजर दौड़ाइए। ईवीएम मशीन की कौन सी सीरीज किस मतदान केन्द्र पर होगी इसका पता मतदान कराने वाले दल को एक दिन पहले चलता है। मतदान आरंभ होने से पहले ईवीएम के हर पहलू की जांच की जाती है। सभी उम्मीदवारों के उपस्थित पोलिंग एजेंटों की सहमति के बाद ही मतदान आरंभ होता है। मतदान आरंभ करने के पहले मॉक पोलिंग की प्रक्रिया भी संपन्न होती है। इसमें सभी पोलिंग एंजेट वोट डालते है जिससे यह पता चल जाता है कि उनके दबाए गए बटन से सही उम्मीदवार को वोट गया या नहीं। किसी मशीन में टेंपरिंग या अन्य गड़बड़ी होगी तो इससे पता चल जाएगा। पोलिंग एंजेट द्वारा मतदान पार्टी के प्रभारी को सही मॉक पोल का प्रमाण पत्र देने के बाद मतदान शुरू होता है। हर मतदान केन्द्र में एक रजिस्टर बनाया जाता है जिसमें मतदान करने वाले मतदाताओं का विस्तृत विवरण अंकित रहता है। रजिस्टर में जितने मतदाताओं का विवरण होता है उतने ही मतदाताओं की संख्या ईवीएम में भी होती है। अब इसमें वीवीपैट यानी वोटर वेरीफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल मशीन जोड़ दिया गया है। मतदान करने के बाद वीवीपैट में लगी शीशे के स्क्रीन पर जिसे वोट दिया गया हो उस उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिह्न छपी हुई पर्ची सात सेकंड तक दिखाई देती है। किसी तरह का विवाद होने पर ईवीएम में पड़े वोट के साथ पर्ची का मिलान की जा सकती है। सभी ईवीएम को वीवीपैट से जोड़ने की व्यवस्था कर दी गई है इसलिए संदेह की गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए थी।

हमारे देश की हालत यह है कि अगर कोई ईवीएम या वीवीपैट खराब हुआ और कुछ देर मतदान रुक गया तो भी उसे ईवीएम के साथ छेड़छाड़ बताने का हास्यास्पद तर्क दिया जाता है। कोई मशीन नहीं जिसमें खराबी आए नहीं। खराबी आने पर उसे ठीक करने या तुरत बदल देने की व्यवस्था होनी चाहिए। हर चुनाव में 20 से 25 प्रतिशत अतिरिक्त मशीने सेक्टर अधिकारी की निगरानी में रखी जाती हैं, जिन्हें वह मशीनों के खराब होने पर बदलता है। प्रत्येक सेक्टर अधिकारी के क्षेत्राधिकार में लगभग दर्जन भर मतदान केन्द्र आते हैं। कई बार ईवीएम या वीवीपैट में संचालन करने वालों के भूल से कुछ समस्यायें पैदा होतीं हैं। कुछ देर में ठीक से संचालित होने लगता है किंतु तब तक हंगामा हो जाता है। मतदान के पूर्व मतदान कर्मियों को ईवीएम एवं वीवीपैट चलाने का पूरा प्रशिक्षण दिया जाता है। बावजूद कुछ भूलें हो जातीं हैं। अतिरिक्त गरमी या अन्य कारणों से कुछ समय के लिए सेंसर वगैरह में समस्या आती है जिससे मशीनें हैंग होतीं हैं। ये स्थितियां स्वाभाविक हैं। किंतु कई बार तो अति होती है। पिछले वर्ष चार लोकसभा एवं 10 विधानसभा उपचुनावों में प्रचार किया गया कि करीब 25 प्रतिशत ईवीएम में गड़बड़ी हुई और मतदान प्रभावित हुआ। चुनाव आयोग के अनुसार कुल 10365 ईवीएम में से केवल 96 को खराबी की वजह से बदलना पड़ा। नेताओं ने तो यहां तक आरोप लगाया कि जहां भाजपा विरोधी मत पड़ने हैं वहां ईवीएम में खराबी पैदा की गई ताकि मतदान बाधित हो सके। आरोप लगाने वाले भूल गए कि वे चुनाव आयोग को आरोपित कर रहे हैं, क्योंकि निष्पक्ष मतदान करने की जिम्मेवारी उसकी है। यह कितना दुखद है इसे व्यक्त करने के लिए शब्द छोटे पड़ जाएंगे।

कहने का तात्पर्य यह कि ईवीएम को निशाना बनाना निर्दोष को अपराधी बनाकर कठोर दंड देने के समान है। यह एक अपराध है जो राजनीतिक दल कर रहे हैं। अगर ईवीएम पर थोड़ी भी शंका होगी तो चुनाव आयोग इसे बनाए रखने पर अड़ा क्यों रहेगा? पूरा चुनाव आयोग और वह भी 2001 से  राजनीतिक दलों के हाथों खेलेगा ऐसा मान लें तो कोई संस्था विश्वसनीय बचेगी ही नहीं। चुनाव आयोग ने कई बार राजनीतिक दलों या सामाजिक संगठनों एवं व्यक्तियों को आमंत्रित किया, चुनौती भी दी कि आकर इसे हैक करने या इसमें गड़बड़ी करने का प्रमाण दीजिए। कोई गया नहीं। यह मामला अनेक उच्च न्यायालयों से लेकर उच्चतम न्यायालय गया और हर बार याचिकाकर्ताओं को मुंह की खानी पड़ी। उच्चतम न्यायालय 13 बार इस संबंध में अपना मत दे चुका है। पिछले वर्ष 23 नवंबर को ही मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने ईवीएम की जगह मतपत्रों से चुनाव कराने की याचिका खारिज करते हुए कहा कि हर व्यवस्था में संदेह की गुंजाइश रहती है। ऐसा लगता है कि कुछ शक्तियां भारत की हर संस्था, हर व्यवस्था को संदेह के घेरे में लाने के लिए सक्रिय हैं और दुर्भाग्य से हमारी पार्टियां, नेता उसमें अपनी भूमिका से योगदान करते हैं। दुनिया में कौन देश ईवीएम का प्रयोग करता है और कौन नहीं इसके आधार पर हम अपने यहां की व्यवस्था का आकलन क्यों करें? 2004 के आम चुनाव से हमारे यहां ईवीएम की सम्पूर्ण व्यवस्था हो गई और यह पूरी तरह सफल है। मतदान पत्रों के काल में हमने मतपत्रों को लूटकर मुहर लगाते तथा बाहुबल के अनुसार परिणाम प्रभावित होते देखा है। मतपत्रों से मतदान में धांधलियों के बाद ही तो बदलाव की मांग हुई और ईवीएम का प्रयोग आरंभ हुआ। यहां तक आने के बाद पीछे लौटने की सोच राजनीतिक दलों के दिशाभ्रम के अलावा कुछ नहीं।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

 

 

 

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