शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

सेना के जवानों पर मुकदमा उचित नहीं

 

अवधेश कुमार

यह खबर निश्चय ही हर भारतवासी को चिंतित करेगा कि जम्मू कश्मीर पुलिस ने वहां कार्रवाई कर रहे सेना के जवानों पर मुकदमा दर्ज किया है। जिनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है वे जवान 10 गढ़वाल यूनिट के हैं और इनमें एक मेजर स्तर का अधिकारी भी शामिल है। मुकदमा 302 यानी हत्या और 307 यानी हत्या के प्रयास के तथा 336 यानी जिन्दगी को खतरे में डालने वाले के तहत दर्ज हुआ है। पिछले काफी समय से जम्मू कश्मीर पुलिस, सेना, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल और सीमा सुरक्षा बल के बीच गजब किस्म का समन्वय देखा जा रहा था। कश्मीर में शांति की कामना करने वाले हर व्यक्ति की चाहत है कि यह समन्वय बना रहे और राज्य के अंदर के आतंकवादी तथा सीमा पार से आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले परास्त हों। आपसी समन्वय के कारण ही 2017 में सुरक्षा बलों को बड़ी कामयाबी मिली और 200 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए। कई आतंकवादी बने नवजवान वापस आम जिन्दगी में लौटे हैं। इस एक घटना ने समन्वय की स्थिति पर गहरा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है। यह प्रश्न उठने लगा है कि सुरक्षा एजेंसियां आपसी तालमेल से जो ऑपरेशन ऑल आउट चला रहीं हैं उनका क्या होगा? क्या पुलिस और सेना के बीच फिर से किसी प्रकार के टकराव के दौर की शुरुआत होगी और आतंकवादी एवं अलगाववादी इसका लाभ उठाएंगे?

ऐसा होता है तो निश्चय ही जम्मू कश्मीर के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा। आखिर सेना के जवानों पर मुकदमा दर्ज की नौबत क्यों आई और क्या यह सही कदम है? आरोप लगाया गया है कि सेना की गोलीबारी में दो लोगों की मौत हो गई। इसके अनुसार सेना की कार्रवाई से कुछ और लोगों की मौत हो सकती थी लेकिन वे संयोग से बच गए। वैसे इस घटना की न्यायिक जांच के आदेश भी दे दिए गए हैं। घटना शोपियां जिले के गावं गनोवपोरा का है। सेना का काफिला वहां से गुजर रहा था। दरअसल काफिला बड़ा था जिसमें से पांच गाड़ियां पीछे छूट गईं थीं। उस पर लोगों ने पत्थर फेंकने शुरु कर दिए। आरंभ में संख्या कम थी लेकिन धीरे-धीरे उनकी संख्या बढ़ने लगी। सेना की ओर से जवाबी कार्रवाई न देख वे पूरी तरह हमलावर हो गए थे। एक जवान को उन्होंने खींच लिया और उस पर हमला कर दिया। जो कुछ दृश्य दिख रहा है उसमेें साफ है कि सेना ने कार्रवाई न की होती तो पत्थरबाज उन्हें पीट-पीटकर मार डालते। अब सेना के पास दो ही विकल्प था, या तो अपने साथी को उन पत्थरबाजों के हाथों मरता छोड़कर भाग जाती या उसे बचाने के लिए कार्रवाई करती। इनके लिए भागना भी आसान नहीं था। कारण, हमलावरों की संख्या ज्यादा हो गई थी, गाड़ियों पर पत्थर बरस रहे थे, लोग डंडों से भी प्रहार कर रहे थे। पूरे घटनाक्रम का निष्पक्ष विश्लेषण करने वाला कोई भी यह स्वीकार करेगा कि एक विकट स्थिति पैदा हो गई थी जिसमें सेना को कार्रवाई करनी पड़ी।

 जो कोई भी सेना के जवानों को दोष देता है उनसे पूछा जाना चाहिए कि उनकी जगह आप होते तो क्या करते?  सेना के खिलाफ इनका गुस्सा किस कारण था? कुछ दिन पहले उसी गांव में एक आतंकवादी छिपा हुआ था जिसे सेना ने मुठभेड़ में मार दिया था। अगर आतंकवादियों के पक्ष में किसी की हमदर्दी है और वह पत्थरों और डंडों से सेना के काफिले पर हमले के रुप में निकालेगा तो फिर उसका जवाब देना पड़ेगा। जितना फुटेज सामने आया है उसमें देखा जा सकता है कि सेना आरंभ में बल प्रयोग से बच रही है। इसका परिणाम है कि उनकी गाड़ियों के शीशे तक चनक रहे हैं। मौत किसी का हो दुख तो होगा किंतु लोगों को सोचना चाहिए कि आप सेना पर हमला करने आएंगे तो जवाब में आपको फुल नहीं मिलेगा। हमला का मतलब आप अपराध कर रहे हैं, आप हमलावर हैं।  दुर्भाग्य देखिए, प्रदेश की मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती तक ने सेना की कार्रवाई की तीखी आलोचना कर दी। जो खबरें आईं हैं उनके अनुसार उन्होंने तो रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को फोन करके अपनी नाराजगी व्यक्त की। उनके बयान में पत्थरबाजों के खिलाफ एक भी शब्द नहीं सुना गया। ऐसा ही आचरण उमर अब्दुल्ला का है। ऐसा भी नहीं है कि लोगों के हमले में सेना को क्षति नहीं पहुंची। हिंसक भीड़ के हमले में एक जेसीओ (जूनियर कमीशंड ऑफिसर) समेत सात सैन्यकर्मी घायल हो गए थे। सेना के जवान मर जाएं तो कोई बात नहीं लेकिन आतंकवादियों की समर्थक हिंसक भीड़ के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए!

अलगाववादियों को तो बहाना चाहिए। उन्होंने बंद का आह्वान कर दिया। किंतु मेहबूबा मुफ्ती प्रदेश की मुख्यमंत्री है। प्रदेश की कानून व्यवस्था उनकी जिम्मेवारी है। क्या उन्हें नहीं पता कि 2017 में आतंकवादियों से जूझते हुए 88 जवानों ने अपनी बलि दे दी है? इस वर्ष ही 11 जवान शहीद हो चुके हैं। सेना के जवानों के बलिदान को कोई भूल सकता है क्या?  मेहबूबा मुफ्ती और उनकी पार्टी पीडीपी सरकार में होते हुए भी प्रदेश से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून यानी अफस्पा हटाने की पक्षधर हैं। नेशनल कॉन्फ्रंेस भी इसकी मांग कर रही है। ये पार्टियां चाहती हैं कि ऐसे आधार बन जाए जिनसे वे केन्द्र पर इसके लिए दबाव बना सकें। इस कानून में सैन्य बलों को कुछ विशेष अधिकार एवं कानूनी सुरक्षा कवच मिले हुए हैं। अगर ऐसा नहीं होगा तो आतंकवाद से लड़ना कठिन हो जाएगा। हम यहां अफस्पा के बहस में नहीं पड़ना चाहते। लेकिन हाल में ऐसी खबर आई है जिसमें कहा गया कि सरकार अफस्पा को थोड़ा सरल और नरम बनाने पर विचार कर रही है। हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है और केन्द्र सरकार के रवैये को देखते हुए इस पर विश्वास करना संभव भी नहीं कि इस समय वे अफस्पा पर पुनर्विचार करेंगे। थलसेनाध्यक्ष जनरल विपीन रावत ने भी इसकी संभावना से इन्कार किया है। किंतु ऐसी खबरों के पीछे कोई लोग तो हैं।

हमें यह समझना होगा कि सुरक्षा बलों को आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष के स्थलों पर बड़ी कठिनाई में काम करना पड़ता है। बाहर रहकर सेना की आलोचना करना आसान है, लेकिन उनकी जगह स्वयं को रखकर विचार करिए तो  सब कुछ आसानी से समझ में आ जाता है। एक ओर आतंकवादी हैं जिनसे आपको मुठभेड़ करना है, जिनके हमलों से जनता को बचाना है और दूसरी ओर उनके समर्थन में उनका ढाल बने पत्थर उठाए या किसी तरह से खड़े लोग हैं। आपको लोगों को बचाना है और आतंकवादी या आतंकवादियों को पकड़ना या मारना है। इसमें कई बार लोग भी मारे जाते हैं। सेना के जवानों के जो बयान हम टीवी पर देखते हैं उसमें वे कहते हैं कि हम एक भी आम आदमी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते लेकिन कई बार जब बिल्कुल जान पर बन आती है तो बल प्रयोग करना पड़ता है। आज सेना की कार्रवाइयों का ही प्रतिफल है कि घाटी में पत्थरबाजी में भारी कमी आई है। जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक ने ही सेना की प्रशंसा करते हुए कुछ दिनों पहले बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि 2017 में पत्थरबाजी में 90 प्रतिशत की कमी आई उसमें सेना के ऑल आउट ऑपरेशन तथा एनआइए द्वारा आतंकी फंडिग के मामले में अलगाववादियों के खिलाफ हुई कार्रवाई की भूमिका है। उन्होंने साफ कहा था कि ऑपरेशन ऑल आउट में बड़े आतंकवादियों के मारे जाने से पत्थरबाजी में कमी आई। अगर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ऐसी धारणा रखते हैं तो वे सेना के किसी टुकड़ी के खिलाफ आसानी से मुकदमा दर्ज करने के लिए तैयार नहीं होंगे। निश्चय ही इसके पीछे राजनीतिक दबाव होगा। यह दबाव किसका हो सकता है बताने की आवश्यकता नहीं। किंतु देश ऐसे मुकदमे के पक्ष में नहीं हो सकता। इस तरह सेना के जवानों के खिलाफ मुदकमे होंगे तो फिर ऑपरेशन ऑल आउट में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जो अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच रही है उसमें बाधा उत्पन्न हो जाएगी। यह उनका मनोबल तोड़ने का काम करेगा। हालांकि कोई चारा न देख सेना की ओर से भी प्राथमिकी दर्ज करा दी गई है। इससे एकपक्षीय कार्रवाई संभव नहीं होगा। वैसे भी देश इस मामले में सेना के जवानों के साथ है।

अवधेश कुमार, ईः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

अपेक्षाओं के अनुरुप बजट

 

अवधेश कुमार

वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा प्रस्तुत पांचवे और इस सरकार के अंतिम पूर्ण बजट को कुछ शब्दों में कहना हो तो यही कहा जाएगा कि यह निवेश को प्रोत्साहन देने के साथ रोजगार, शिक्षा, कृषि, गांव एवं स्वास्थ्य पर केन्द्रित है। जीएसटी लागू होने के बाद का यह पहला बजट है। इसलिए इसमें राजकोष के लिए उनके पास परोक्ष करों में ज्यादा परिवर्तन के लिए जगह नहीं थी। जीएसटी से कर देने वालों का दायरा अवश्य बढ़ा है लेकिन करों में बढ़ोत्तरी की जगह कमी आई है। इसलिए सरकार को राजस्व के लिए अन्य रास्ते तलाशने थे। सरकार के पास सीमा शुल्क में परिवर्तन तथा अतिरिक्त आय के लिए अधिभार बढ़ाने का ही विकल्प था। इसके साथ विनिवेश का रास्ता बचता था। दोनों स्तरों पर काम किया गया है। वैसे बजट से तीन दिनों पूर्व पेश आर्थिक सर्वेक्षण मंें ही साफ हो गया था कि सरकार की प्राथमिकताएं क्या रहने वाली हैं। कृषि क्षेत्र की विकास दर 2.1 प्रतिशत तक सीमित रहने की बात की गई थी। यही नहीं निवेश में कमी की वजह से कई क्षेत्रों के एक साथ प्रभावित होने का संदेश भी दिया गया था। आप बजट में इनको मूर्त रुप देने की कोशिश देखेंगे।

सबसे पहले किसान और गांव। इसमें सबसे बड़ी घोषणा खरीद की फसलों को लागत से कम-से-कम डेढ़ गुना कीमत देने का फैसला है। जेटली ने कहा कि किसानों को लागत से डेढ़ गुना कीमत मिले इसे सुनिश्चित करने के लिए बाजार मूल्य और न्यूनतम समर्थन मूल्य में अंतर की रकम सरकार वहन करेगी। बाजार के दाम अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम हो तो सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि बाकी पैसे किसानों को दिए जाएं। इसके लिए नीति आयोग व्यवस्था का निर्माण करेगा। इसके साथ ही कृषि कर्ज के लिए 11 लाख करोड़ आवंटित किया गया है।  हमारे देश में 86 प्रतिशत से ज्यादा किसान छोटे या सीमांत किसान हैं। इनके लिए बाजार तक पहुंचना आसान नहीं है। इसलिए सरकार इन्हें ध्यान -रखकर आधारभूत संरचना का निर्माण करेगी। जितने गांव हैं उनको कृषि के बाजारों के साथ बढ़िया सड़क मार्गों से जोड़ने की भी योजना है। टमाटर, आलू, प्याज का इस्तेमाल मौसम के आधार पर होता है। इसे साल भर उपयोग के लिए ऑपरेशन फ्लड की तर्ज पर ऑपरेश ग्रीन लॉन्च की जाएग। 500 करोड़ रुपये इसके लिए रखे जाएंगे। बटाईदारों को बैंकांे से कर्ज नहीं मिला। नीति आयोग ऐसी व्यवस्था बना रहा है कि ऐसे किसानों को कर्ज लेने में सुविधा मिले। कृषि उत्पादों को तैयार करने वाली 100 करोड़ के टर्नओवर वाली कंपनियों को कर में पूरी तरह छूट मिलेगी।

अब आएं रोजगार की ओर। कृषि और गांवों के लिए जो योजनाएं हैं उनमें तो रोजगार सृजन होगा ही। वित्त मंत्री ने बजट में 70 लाख औपचारिक नौकरियों के सृजन की घोषणा की है। कपड़ा और फुटवियर क्षेत्र में 50 लाख युवाओं को 2020 तक प्रशिक्षण दिए जाने की योजना है। कपड़ा क्षेत्र के लिए सरकार ने 6 हजार करोड़ का प्रावधान किया। जेटली ने औपचारिक नौकरियों की जगह स्वरोजगार को सरकार मुख्य लक्ष्य बताया। व्यापार शुरू करने के लिए मुद्रा योजना में 3 लाख करोड़ दिया गया है। 2022 तक हर गरीब को घर देने का लक्ष्य के तहत 1 करोड़ मकान केवल मकान ही नहीं देंगे इसमें व्यापक पैमाने पर रोजगार सृजन होगा। इसी तरह  शहरी क्षेत्रों में 37 लाख मकान बनाने को मंजूरी दी गई है।

इस बजट की सबसे महात्वाकांक्षी और अनूठी घोषणा स्वास्थ्य क्षेत्र की है। नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन योजना के तहत देश के 10 करोड़ परिवार को इलाज के लिए हर साल 5 लाख रुपए का हेल्थ इंश्योरेंस किया जाएगा। माना जा रहा है इससे कुल 50 करोड़ लोगों को फायदा होगा। यह दुनिया का सबसे बड़ा स्वास्थ्य बीमा योजना है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा की स्वास्थ्य योजना हो ओबामा केयर कहा गया उसी तरह इसे मोदी केयर कहा जाएगा। इसके लिए 12000 करोड़ रुपए की जो मंजूरी दी गई है वह दुनियाभर में अपनी तरह का पहला फंड होगा। अब गरीब परिवारों को हर साल 5 लाख रुपए तक के इलाज पर अपने पैसे खर्च नहीं करने होंगे। बजट में नए 24 मेडिकल कॉलेज एवं अस्पातल खोलने का एलान किया गया है। जेटली ने कहा है कि सरकार का लक्ष्य हर 3 संसदीय क्षेत्र में एक मेडिकल कॉलेज अस्पताल की सुविधा मुहैया कराने पर है।  बजट में सरकार ने टीबी के मरीजों के लिए पोषण के लिए 600 करोड़ के फंड को मंजूरी दी है। इसमें से प्रति मरीज को इलाज तक 500 रुपया प्रति महीना पोषक आहार के लिए मिलेगा। देशभर में 1.50 लाख स्वास्थ्य केन्द्रों में दवा और जांच की मुफ्त सुविधा दी जाएगी।

बजट में शिक्षा के स्तर पर भी चिंता जताते हुए कई बड़े ऐलान किए। सरकार का जोर शिक्षा के विस्तार के साथ गुणवत्ता सुधारने पर है। सरकार प्री नर्सरी से लेकर 12वीं क्लास तक को समग्र रूप से देखना चाहती हैं, जिससे शिक्षा के क्षेत्र में विकास हो सके। 13 लाख से ज्यादा शिक्षकों को ट्रेनिंग दिए जाने का लक्ष्य है। इस लक्ष्य की राह में तकनीकी डिजिटल पोर्टल दीक्षा से मदद मिलेगी इंस्टिट्यूट्स ऑफ एमिनेंस स्थापित करने की योजना। डिजिटल इंटेसिटीसिटी को बढ़ावा दिया जाएगा। एकीकृत बीएड कार्यक्रम भी शुरू होगा। ऐसे प्रखंड जहां आदिवासियों की आबादी 50 प्रतिशत से ज्यादा होगी एकलव्य स्कूलों की स्थापना की जाएगी। ये स्कूल नवोदय की तर्ज पर आवासीय होंगे। इसके अलावा सरकार जिला स्तर के मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों को अपग्रेड कर 24 नए मेडिकल कॉलेज और अस्पताल बनाएगी। सरकार प्रधानमंत्री रिसर्च फेलो योजना शुरू करेगी जिसमें 1000 बीटेक छात्र चुने जाएंगे और उन्हें आईआईटी से पीएचडी करने का अवसर दिया जाएगा। इसके अलावा प्लानिंग और आर्किटेक्चर के संस्थान शुरू किए जाएंगे। 18 नई आईआईटी और एनआईआईटी की स्थापना की जाएगी। वडोदरा में रेलवे यूनिवर्सिटी स्थापित करने का प्रस्ताव है।

मध्यम वर्ग के लिए इस मायने में इसे निराशाजनक कहा जा रहा है क्योंकि आयकर में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। हालांकि स्डैंडर्ड डिडक्शन के तहत 40 हजार रुपये की छूट मिलेगी। इसके अलावा 40 हजार रुपये तक का मेडिकल बिल कर मुक्त होगा। कौरपोरेट दुनिया की भी उम्मीद थी कि कॉरपोरेट कर को सबके लिए 30 प्रतिशत की जगह 25 प्रतिशत किया जा सकता है। इससे उनके पास निवेश के लिए और राशि बचेगी। किंतु ऐसा नहीं हुआ तो इसका कारण यही है कि सरकार का खजाना तंगी में है। साथ ही सरकार ने स्वास्थ्य, शिक्षा में अधिभार 1 प्रतिशत बढ़ाकर 3 प्रतिशत से 4 प्रतिशत कर दिया है। इस बढ़ोतरी का असर स्वास्थ्य, शिक्षा से लेकर सभी क्षेत्रों पर पड़ने वाला है। आयकर पर भी 1 प्रतिशत अधिभार लगेगा।

अगर देश चलाना है तो सरकार को धन चाहिए। सीमा शुल्क बढ़ाने की घोषणा की गई है। वित्त मंत्री ने मोबाइल फोन पर सीमा शुल्क 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत और मोबाइल व टीवी पुर्जों पर 15 प्रतिशत तक सीमा शुल्क बढ़ाने की घोषणा की है। इस फैसले से भारत में बिकने वाले सभी कंपनियों के स्मार्टफोन तथा टीवी महंगे होंगे। भले ही कंपनियां भारत में अपने फोन असेंबल कर रही हों, लेकिन इनमें ज्यादातर के कलपूर्जे चीन से ही आते हैं। कुछ ऐसा ही मामला टीवी का भी है। हालांकि वित्त मंत्री ने कहा कि इस कदम से देश में और ज्यादा रोजगारों के सृजन को बढ़ावा मिलेगा। दरअसल इस कदम से आयातित उत्पादों के तुलना में घरेलू उत्पाद सस्ते हो जाएंगे और इसके परिणामस्वरूप मांग काफी बढ़ जाएगी, जिससे आम जनता के लिए और ज्यादा रोजगार अवसर आएंगे। इन क्षेत्रों में घरेलू उद्योगों को बढ़ावा मिले तो अच्छी बात होगी। वित्त मंत्री को पता था कि देश को निवेश प्रोत्साहन की जरुरत है,क्योंकि अर्थव्यवस्था में निवेश का स्तर पिछले डेढ़ वर्षों में न्यूनतम आ चुका है। पिछले बजट में 50 करोड़ तक का व्यापार करने वाली कंपनियों के लिए कॉरपोरेट कर को 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत किया गया था। इस बार इसे बढ़ाकर 250 करोड़ कर दिया गया है तो जाहिर है सरकार मध्यम एवं लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देना चाह रही है। इससे देश की 99 प्रतिशत बहुत छोटे, छोटे मध्यम उद्योगों को फायदा होगा। जेटली ने कहा कि तीन साल पहले स्टार्ट-अप इंडिया की शुरूआत हुई थी जिसके परिणाम काफी अच्छे निकले। उनके अनुसार छोटे उद्योगों के लिए 3794 करोड़ खर्च करने की योजना है।

इस तरह कुल मिलाकर बजट को हम संतुलित और समय के हिंसाब से अपेक्षाओं के अनुरुप कह सकते हैं। गांवों और कृषि पर जोर देने का अर्थ है कि गांवों के लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी। कृषि से निराशा को लो आलम है उसे दूर करने में मदद मिलेगी। किसानों की लागत कम हो एवं उचित दाम मिले तथा सही समय पर उनको कर्ज मिल जाए यही तो मुख्य मांग थी। भारत में स्वास्थ्य पर खर्च से लोगों को गरीब होते देखा गया है। इससे मुक्ति मिल जाना बहुत बड़ी बात है। देश को गांव और कृषि केन्द्रित, रोजगारोन्मुखी तथा उद्योग एवं कारोबार को नजरअंदाज न करने वाला बजट चाहिए था। इस पर यह खड़ा उतरता है। इससे विकास दर को भी बढ़ावा मिलेगा जिसकी भारत को बहुत आवश्यकता है।

अवधेश कुमार, इः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूरभाषः01122483408, 9811027208

 

 

 

 

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