शनिवार, 24 जून 2017

क्या चीन पाकिस्तान में अपने नागरिकों तथा परियोजना की रक्षा के लिए सुरक्षा बल भी तैनात करेगा

अवधेश कुमार

चीन पाकिस्तान में अपनी आर्थिक एवं सामरिक स्थिति मजबूत करने के इरादे से यदि चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा में अरबों डॉलर झोंक रहा है, हजारों चीनी पाकिस्तान में इस काम में लगे हैं, तो स्वाभाविक है कि वह पाकिस्तान से संबंध किसी कीमत पर खराब नहीं कर सकता। लेकिन बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा से दो चीनी नागरिकों के अपहरण के बाद उनकी हत्या ने दोनों के संबंधांे में कुछ समय के लिए समस्याएं अवश्य पैदा की हैं। कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में चीनी राष्ट्रपति शि जिनपिंग का पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से द्विपक्षीय मुलाकात न होने के पीछे यही कारण बताया जा रहा है। दुनिया भर के अनेक पर्यवेक्षकांे का मानना है कि चीन ने इसके द्वारा अपनी नाराजगी प्रकट की है। चीनी राष्ट्रपति द्वारा अप्रत्याशित रूप से की गई पाक प्रधानमंत्री की उपेक्षा की तात्कालिक वजह चीन के दो नागरिकों की हत्या के अलावा कुछ नहीं हो सकता।  हालांकि इस प्रकार की खबरें दुनिया भर में प्रसारित-प्रकाशित होेने के बाद चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कैंग ने बयान दिया कि एससीओ राष्ट्राध्यक्षों की 17वीं बैठक के दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की कई बार भेंट हुई। उन्होंने यह भी कहा कि चीन और पाकिस्तान सदाबहार रणनीतिक साझेदार हैं। किंतु इस खंडन में भी यह नहीं बताया कि दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय बैठक कब हुई। जब बैठक हुई ही नही ंतो फिर बताएंगे कैसे? चीन ने इसका जवाब भी नहीं दिया कि दोनों नेताआंे के बीच द्विपक्षीय बैठक क्यों नहीं हुई?

इतना तो स्वीकार किया जा सकता है कि कम से कम उस समय चीनी राष्ट्रपति ने नवाज शरीफ से बैठक को नजरअंदाज किया ताकि पाकिस्तान को सही संदेश जाए। चीनी नागरिकों की नृशंस हत्या को लेकर स्वाभाविक ही चीन में गहरी निराशा और आक्रोश का माहौल है। इसे पाकिस्तान नजरअंदाज नहीं कर सकता। अब पाकिस्तान के गृह मंत्री चौधरी निसार कह रहे हैं कि बलूचिस्तान में मारे गए दोनों चीनी नागरिक कारोबारी गतिविधियों के बजाय धर्म प्रचार में शामिल थे, जबकि उन्होंने पाकिस्तान आने का अपना घोषित उद्देश्य कारोबारी गतिविधियों को बताया था। निसार के बयान के अनुसार अगवा किये गये दोनों चीनी नागरिक क्वेटा गये थे और वे जुआन वोन सीओ नामक कोरियाई नागरिक से उर्दू सीखने की आड़ में धर्म प्रचार के काम में शामिल थे। जुआन एआरके इन्फो टेक का मालिक था।  ध्यान रखिए इससे पहले दोनों को चीनी भाषा का शिक्षक बताया गया था। ली जिंग यांग (24) और मेंग ली सी (26) नाम के दोनों नागरिकों को 24 मई को हथियारबंद लोगों ने बलूचिस्तान प्रांत में क्वेटा शहर के जिन्ना से अगवा किया था। आतंकवादी संगठन आइएस की समाचार एजेंसी अमाक ने कहा था कि हथियारबंद लोग उसके जिहादी थे और अगवा किये गए चीनी नागरिकों की हत्या कर दी गई है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि चीनी नागरिक धर्म के प्रचार के किन तरीकों का इस्तेमाल कर रहे थे। दोनों के शव अभी बरामद नहीं हुए हैं।

यह पाकिस्तान का मत है। चीन इसे स्वीकार करेगा या नहीं यह अभी देखना होगा। चीन ने इतना तो मान लिया है कि उसके दोनों नागरिक सीपैक के लिए काम नहीं कर रहे थे। किंतु वे यदि धर्म प्रचार भी कर रहे थे तो फिर उनकी हत्या हो जाने को कौन तार्किक ठहरा सकता है? चीन के लोगों का मानना है कि अगर उनकी गतिविधियां ठीक नहीं लगीं तो पाकिस्तान उन्हें चीन वापस भेज सकता था। निश्चय ही इनकी हत्या के बाद चीन की चिंता अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर बढ़ गई है। चीन भले इसे प्रकट न करे लेकिन पाकिस्तान में रह रहे अपने नागरिकों की सुरक्षा पर इस्लामाबाद द्वारा खास ध्यान नहीं दिए जाने से वह नाखुश तो है ही। शायद यही कारण हो कि एससीओ के सम्मेलन में शि जिनपिंग ने नवाज को नजरअंदाज किया हो। ध्यान रखिए दोनों की हत्या की खबर को 8-9 जून को हुए एसओएस सम्मेलन के ठीक पहले सार्वजनिक किया गया था। चीन खुलकर पाकिस्तान से इस हालत में नाराजगी प्रकट नहीं कर सकता। उसे पता है कि ऐसा कोई भी बयान विश्व की सुर्खियां बनेंगी और उसके अलग-अलग मतलब निकाले जाएंगे। इसलिए उसे जो करना होगा वह अंदर अंदर ही करेगा। यह मानने का कोई कारण नहीं है कि जो जिनफिंग अस्ताना में कई अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से मुलाकात कर रहे थे वे  जिसे सदबहार साझेदार मानते हैं उस पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से न मिलें। हमारे आपके लिए यह हैरान वाली घटना तो है ही।

पाकिस्तान किसी भी कीमत पर चीन की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहेगा। यह बात साफ है कि इस घटना के बाद इस्लामाबाद नुकसान की भरपाई करने की पूरी कोशिश में लग गया है। रायटर्स की एक खबर के अनुसार पाकिस्तानी अधिकारियों ने उन्हें बताया कि पूरे देश में सुरक्षा-व्यवस्था की स्थिति मजबूत करने के लिए विस्तृत योजना तैयार की जा रही है। बलूचिस्तान पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। बलूचिस्तान के लोग लंबे समय से सीपैक का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि सीपैक बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने की एक नई तरकीब है। यहां के लोगों का आरोप है कि पाकिस्तान उनके प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर दोहन तो करता है, लेकिन इसका फायदा बलूचों को नहीं दिया जाता। सीपैक की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान ने पहले ही 15,000 सैनिकों और अधिकारियों की एक खास टुकड़ी का गठन किया था। शायद उसका ध्यान चीनी नागरिकों की सुरक्षा की ओर तब नहीं था। इसलिए वर्तमान घटना के बाद चीन के नागरिकों की सुरक्षा के लिए खास इंतजाम कर पाकिस्तान चीन की नाराजगी खत्म करना चाहता है। जो खबरें आई हैं उसके अनुसार पाकिस्तान अलग-अलग राज्यों में तथा राष्ट्र स्तर पर विशेष बल गठित कर रहा है। इसका घोषित उद्देश्य विदेशियों की हिफाजत करना होगा। विदेशियों का नाम भले दिया जा रहा हो, उसका मुख्य उद्देश्य चीन के नागरिकों की हिफाजत करना है। हम जानते हैं कि चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा या सीपैक से जुड़ी परियोजनाओं के कारण चीन के कई हजार नागरिक पाकिस्तान में रह रहे हैं।

पाकिस्तान के राज्यों से जो खबर है उसके अनुसार खैबर-पख्तूनख्वा की सरकार ने अपने यहां रह रहे विदेशियों की सुरक्षा के नाम पर 4,200 सुरक्षाकर्मियों का एक विशेष फोर्स तैयार कर रहा है।यह फौज खासतौर पर विदेशियों की हिफाजत पर ध्यान देगी। कहने की आवश्यकता नहीं कि ये विदेशी पाकिस्तान में रहने वाले चीन के नागरिक ही हैं। खैबर-पख्तूनख्वा सरकार अपने इलाके में रहने वाले सभी चीनी नागरिकों का ब्योरा भी जमा करेगी, ताकि इनकी सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम किए जा सकें। खैबर-पख्तूख्वा के गृह व जनजातीय मामलों के सचिव सिराज अहमद खान के बयान के अनुसार परियोजनाओं के सिलसिले में चीन के सैकड़ों नागरिक हमारे यहां रह रहे हैं। हमें उनकी हिफाजत के लिए खास इंतजाम करने होंगे। उन्होंने जो कहा उसके अनुसार इन लोगों की सुरक्षा के लिए खास सुरक्षाबलों की टुकड़ी का गठन किया जाएगा तथ उन्हें नए और अत्याधुनिक वाहन व हथियार मुहैया कराए जाएंगे। सिंध प्रांत में भी इसी तरह के इंतजाम किए जा रहे हैं। वहां चीन के लगभग 4,000 नागरिक सीपैक परियोजना पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा कारोबार से जुड़े कामों के लिए भी यहां करीब 1,000 चीनी नागरिक रह रहे हैं। उनकी सुरक्षा के लिए 2,600 पुलिस अधिकारियों की एक विशेष टीम गठित की गई है।

प्रश्न है कि क्या चीन इन सारी तैयारियों से संतुष्ट हो जाएगा? उसे यह तो सोचना ही होगा कि जब पाकिस्तान की पूरी फौज और सारे सुरक्षा बल पाकिस्तान के नागरिकों की हिफाजत नहीं कर पा रहे हैंं तो कुछ हजार की टुकड़ियां उनके नागरिकों की रक्षा कैसे कर पाएंगी। चीन अपनी भावी आर्थिक और सामरिक विस्तार के मंसूबों के लिए पाकिस्तान को पूरी तरह अपने शिकंजे में रखने के लिए सीपैक पर काम अवश्य कर रहा है, लेकिन उसके लिए यह बहुत बड़ा जोखिम भी है। आतंकवाद से झुलस रहे पाकिस्तान में कोई सुरक्षित नहीं है। तो क्या चीन आने वाले समय में पाकिस्तान से कहेगा कि वह उसे अपने नागरिकों तथा समूचे सीपैक की सुरक्षा की जिम्मेवार भी दे दे? अगर वह ऐसा प्रस्ताव रखता है जिसकी पूरी संभावना है तो फिर पाकिस्तान का इस पर क्या रुख होगा? यह ऐसा प्रश्न है जिसके लिए हमें भविष्य पर नजर रखनी होगी। अगर ऐसा होता है यानी चीन अपने नागरिकों तथा परियोजना की सुरक्षा की जिम्मेवारी स्वयं लेकर अपने बलों को वहां तैनात करता है तो फिर हमारे लिए भी यह चिंता का कारण होगा।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208

 

 

 

 

 

 

शनिवार, 10 जून 2017

आंदोलन को हिंसक बनाने वाले कौन हैं

 

अवधेश कुमार

किसी आंदोलन में एक भी व्यक्ति की जान चली जाए तो दिल दहल जाता है। अगर मंदसौर में आधा दर्जन किसान पुलिस की गोली का शिकार हो गए तो इसे एक त्रासदी मानना ही होगा। इसके लिए कोई भी तर्क स्वीकार नहीं किया जा सकता। लेकिन आंदोलन हिंसक नहीं होता, आंदोलन में शामिल या बाहर से आकर उसमें शामिल होेने का ढोंग करने वाले ंिहंसा की अतिवादिता तक नहीं जाते तो फिर ऐसी नौबत ही नहीं आती। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही मानना होगा कि किसानों की लगभग वाजिब मांगों के साथ आंरभ हुआ आंदोलन ऐसे खूनी हिंसक मोड़ को प्राप्त हुआ कि उसमें मूल मुद्दे दब गए है तथा हिंसा पर चर्चा ज्यादा हो रही है। अगर आंदोलन अहिंसक होता, किसान अपनी मांगों को लेकर धरने पर शांति से बैठे रहते तो ऐसी नौबत नहीं आती। हमारी पुलिस को आंदोलनों की हिंसा से निपटने की कला आनी चाहिए। पुलिस इस तरह उसका सामना कर सकती है जिसमें किसी की जान नहीं जाए। गोली चलाना किसी सूरत में विकल्प होना ही नहीं चाहिए। लोगों को हिंसा से रोकने के लिए अनेक विकल्प मौजूद हैं...पानी की बौछाडें हैं आंसू गैस के गोले हैं, पावा शेल्स हैं.....। इन सबका प्रयोग किए बिना गोली चलाने का मतलब है पुलिस की नासमझी और आंदोलन की तीव्रता या इसके पीछे हिंसा की साजिश को समझे बिना आधी अधूरी तैयारी से वहां तैनात होना। गोलीचालन की न्यायिक जांच में सच्चाई सामने आ जाएगी तथा इसके लिए जो दोषी होंगे वे चिन्हित किए जा सकेंगे।

यह सवाल हम सबको अपने आप से करना होगा कि आखिर मंदसौर का किसान आंदोलन ऐसे वीभत्स रुप को क्यों प्राप्त हुआ? दो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं। एक में रतलाम में कांग्रेस नेता डीपी धाकड़ किसानों को पुलिस की गाड़ियों को जलाने का कहते सुनाई दे रहे हैं। दूसरे में शिवपुरी के करैरा में कांग्रेस विधायक शकुंतला खटिक सरेआम थाने में आग लगाने को कह रहीं हैं।  धाकड़ कह रहे हैं कि ये दम भी रखना कि एक भी गाड़ी आ जाए तो आग लगा दो, जो होगा देखा जाएगा। कोई भी किंतु, परंतु, थाना-पुलिस किसी से डरने की जरूरत नहीं है। कल तक मेरी अरेस्टिंग हो जाएगी तो आप सब लोगों की जवाबदारी है। शिवपुरी के करैरा से कांग्रेसी विधायक शकुंतला खटीक और उनके समर्थक मुख्यमंत्री का पुतला जला रहे थे। फायर बिग्रेड ने पुतले पर पानी डाला तो विधायक भी भीग गईं। भीगते ही विधायक तमतमा गईं और समर्थकों को भड़काकर बोलीं कि टीआई ने मेरे ऊपर पानी कैसे डाला, इस नालायक, भ्रष्टाचारी को 3 दिन में हटाओ। एसपी को बुलाओ, तब तक मैं धरना दूंगी। थाने में आग लगा दो। टीआई को हटा दो नहीं तो मैं खुद मर जाउंगी, या फिर इसे मार डालूंगी। मुझे कोई चिंता नहीं है मेरे तीन लड़कें हैं और दो लड़कियां हैं।

ये दो वीडियो हमारे सामने आए हैं इसका अर्थ यह नहीं है कि ये दो नेता ही हिंसा को भड़काने के लिए जिम्मेवार होंगे। और भी नेता होंगे जिन्होंने ऐसे भड़काउ भाषण दिए होंगे। और भी लोग होंगे जिन्होंने छिपकर हिंसा की साजिशें रची होंगी या आंदोलन में घुसकर ऐसी स्थिति पैदा करने की कोशिश की होगी कि पुलिस मजबूर हो जाए बल प्रयोग के लिए तथा हालात बेकाबू हो जाए। ये सब केवल अनुमान नहीं है। आंदोलन के घटनाक्रम पर नजर रखने से साफ दिख रहा है कि ऐसा हुआ है और हो रहा है। जो घटनाक्रम सामने आया है उसके अनुसार 1000 से ज्यादा किसान 6 जून को मंदसौर और पिपलियामंडी के बीच पार्श्वनाथ फोरलेन पर उतर आए। क्यों? वहां तक आने के लिए उन्हें किसने प्रेरित किया या उकसाया? पहले चक्का जाम करने की कोशिश की। पुलिस ने रोकने की कोशिश की तो पथराव शुरू कर दिया। जाहिर है, जब आप पथराव करेंगे तो फिर पुलिस को बल प्रयोग करना होगा। पुलिस ने उनको खदेड़ा तो वो दो टुकड़ों में बंट गए। खबर के अनुसार एक टुकड़ी सीआरपीएफ से उलझ गई। सीआरपीएफ ने गोली चलानी आरंभ कर दी। हालांकि इसमें कोई मरा नहीं। दूसरी टुकड़ी थाने के पास चली गई और वहां हिंसा करने लगी। हालात बेकाबू देख थाने में स्थित करीब एक दर्जन पुलिसवालों ने भी गोली चलानी शुरू कर दी। इसी गोलीबारी में 6 लोगों की मौत हो गई। स्वाभाविक था कि किसानों की मौत की खबर फैलते ही हालात बेकाबू हो गए। आसपास के क्षेत्र हिंसा और आगजनी की चपेट में आ गए।

अगर पूरे घटनाक्रम का विश्लेषण करें तो निष्कर्ष आपके सामने होगा। हम किसानों की ज्यादातर मांगों से सहमत हैं। भाजपा ने 2014 के अपने चुनाव घोषणा पत्र में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने का वायदा किया था तो उस दिशा मे सरकार को आगे बढ़ना चाहिए। इसके अनुसार लागत और मूल्य आयोग किसानों की लागत का जो आकलन करेगा उसमें 50 प्रतिशत जोड़कर न्यूनतम मूल्य तक किया जाना है। किसानों की यह मांग वाजिब है। अगर किसान कह रहे हैं कि उनको बिना ब्याज कर्ज दिया जाए तो उसके बीच का रास्ता निकल सकता है। यानी 4 प्रतिशत ब्याज पर कर्ज दिया जा सकता है। इसी तरह मंडी से दलालों को खत्म होना ही चाहिए। मंडी में किसानों का शोषण न हो, उनको कम मूल्य पर माल बेचने को मजबूर न किया जाए ऐसे हालात बनने चाहिए। वे अगर दूध के दाम बढ़ाने की मांग कर रहे हैं तो इस पर विचार न करने का कोई कारण नहीं है। हां, कर्ज माफी का मामला थोड़ा जटिल जरुर है, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक इसके विपरीत मत व्यक्त कर चुका है। किंतु भाजपा ने उत्तर प्रदेश के लघु और सीमांत किसानों का करीब 36 हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर दिया तो इसकी मांगे दूसरे प्रांतों में भी उठेंगी और इसके बारे में तार्किक तरीके से विचार होना चाहिए।

लेकिन इन मांगों के बीच में ऐसी हिंसा कहां से आ गई? पुलिस ने जिन 44 लोगों पर मुकदमा दर्ज किया है उनमें ज्यादातर कांग्रेस के लोग ही है। इसका अर्थ क्या है? चूंकि आधा दर्जन लोग मारे जा चुके हैं, इसलिए आम किसान और जनता में गुस्सा भी है। इसमें कुछ लोग बिना भड़काए भी अब हिंसा कर रहे हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदसौर जाने के लिए रौबिनहुड की छवि बनाने की कोशिश की। ऐसा लगा कि कांग्रेस से बढकर किसानों का कोई हितैषी ही नहीं। विपक्ष के नेता के नाते उनके किसानों के बीच जाने पर हमें कोई आपत्ति नहीं, किंतु उतनी हिंसा पर भी तो कुछ शब्द उनके मुंह से निकलने चाहिए थे। अभी तक कांग्रेस ने हिंसा को लेकर कोई तार्किक बयान नहीं दिया है। केवल आरएसएस और भाजपा पर ऐसा करने का आरोप लगाया है जिसके कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। जो प्रमाण सामने आए हैं वे केवल कांग्रेसी नेताओं के हैं। इस पर कांग्रेस की क्या प्रतिक्रिया है इसका देश इंतजार कर रहा है। कुल मिलाकर इसे एक विडम्बना ही कहेंगे कि किसानों का एक आंदोलन जिसकी मांगों में उनकी पीड़ा और व्यथा झलक रही थी....जिसके साथ सहानुभूति स्वाभाविक थी...वह कुछ नेताओं या असामाजिक तत्वों की खलनायकी से पैदा हुई हिसा के कारण बदनाम हो गया है। बावजूद इसके सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। किसानों की वाजिब मांगांें को तुरत मानकर ऐसी स्थिति पैदा करनी चाहिए जिससे किसी को साजिश करने या हिंसा भड़काने का मौका न मिले।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208

शुक्रवार, 2 जून 2017

"डेंगू और चिकनगुनिया की रोकथाम" विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया


 संवाददाता

नई दिल्ली। "डेंगू और चिकनगुनिया की रोकथाम" विषय पर गाँधी शांति प्रतिष्ठान के सभागृह में एक सेमिनार आयोजित किया गया।इस कार्यक्रम में दिल्ली की लगभग सौ सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

 मुख़्य वक्ता डॉ एस एम् रहेजा,एडीजीएचएस, दिल्ली सरकार ने उपस्थित लोगो को डेंगू और चिकनगुनिया के फैलने और उसकी रोकथाम के सभी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की।साथ ही इन भयानक बिमारियों को नियंत्रित करने में सामाजिक संस्थाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि हम सब मिलकर ही इन बिमारियों पर नियंत्रण कर सकते हैं जरुरत है बस अपने आस पास साफ़ सफाई रखकर समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने की। चर्चा उपरान्त डॉ रहेजा ने प्रतिभागियों के सवालो के उत्तर भी दिए।

 कार्यक्रम के अंत आयोजक अमित मिश्रा ने सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद देते हुए कहा कि डेंगू और चिकनगुनिया मुक्त दिल्ली के लक्ष्य को पूरा करने के लिये दिल्ली के कोने कोने से संस्थाएं एक मंच पर आकर प्रयास कर रहे हैं। आगामी पच्चीस जून को इसी क्रम में डेंगू और चिकनगुनिया मुक्त दिल्ली के लिये संवेदीकरण यात्रा का आयोजन किया जाएगा और घर घर जाकर लोगो को जागरूक किया जाएगा।

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