शनिवार, 10 जून 2017

आंदोलन को हिंसक बनाने वाले कौन हैं

 

अवधेश कुमार

किसी आंदोलन में एक भी व्यक्ति की जान चली जाए तो दिल दहल जाता है। अगर मंदसौर में आधा दर्जन किसान पुलिस की गोली का शिकार हो गए तो इसे एक त्रासदी मानना ही होगा। इसके लिए कोई भी तर्क स्वीकार नहीं किया जा सकता। लेकिन आंदोलन हिंसक नहीं होता, आंदोलन में शामिल या बाहर से आकर उसमें शामिल होेने का ढोंग करने वाले ंिहंसा की अतिवादिता तक नहीं जाते तो फिर ऐसी नौबत ही नहीं आती। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही मानना होगा कि किसानों की लगभग वाजिब मांगों के साथ आंरभ हुआ आंदोलन ऐसे खूनी हिंसक मोड़ को प्राप्त हुआ कि उसमें मूल मुद्दे दब गए है तथा हिंसा पर चर्चा ज्यादा हो रही है। अगर आंदोलन अहिंसक होता, किसान अपनी मांगों को लेकर धरने पर शांति से बैठे रहते तो ऐसी नौबत नहीं आती। हमारी पुलिस को आंदोलनों की हिंसा से निपटने की कला आनी चाहिए। पुलिस इस तरह उसका सामना कर सकती है जिसमें किसी की जान नहीं जाए। गोली चलाना किसी सूरत में विकल्प होना ही नहीं चाहिए। लोगों को हिंसा से रोकने के लिए अनेक विकल्प मौजूद हैं...पानी की बौछाडें हैं आंसू गैस के गोले हैं, पावा शेल्स हैं.....। इन सबका प्रयोग किए बिना गोली चलाने का मतलब है पुलिस की नासमझी और आंदोलन की तीव्रता या इसके पीछे हिंसा की साजिश को समझे बिना आधी अधूरी तैयारी से वहां तैनात होना। गोलीचालन की न्यायिक जांच में सच्चाई सामने आ जाएगी तथा इसके लिए जो दोषी होंगे वे चिन्हित किए जा सकेंगे।

यह सवाल हम सबको अपने आप से करना होगा कि आखिर मंदसौर का किसान आंदोलन ऐसे वीभत्स रुप को क्यों प्राप्त हुआ? दो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं। एक में रतलाम में कांग्रेस नेता डीपी धाकड़ किसानों को पुलिस की गाड़ियों को जलाने का कहते सुनाई दे रहे हैं। दूसरे में शिवपुरी के करैरा में कांग्रेस विधायक शकुंतला खटिक सरेआम थाने में आग लगाने को कह रहीं हैं।  धाकड़ कह रहे हैं कि ये दम भी रखना कि एक भी गाड़ी आ जाए तो आग लगा दो, जो होगा देखा जाएगा। कोई भी किंतु, परंतु, थाना-पुलिस किसी से डरने की जरूरत नहीं है। कल तक मेरी अरेस्टिंग हो जाएगी तो आप सब लोगों की जवाबदारी है। शिवपुरी के करैरा से कांग्रेसी विधायक शकुंतला खटीक और उनके समर्थक मुख्यमंत्री का पुतला जला रहे थे। फायर बिग्रेड ने पुतले पर पानी डाला तो विधायक भी भीग गईं। भीगते ही विधायक तमतमा गईं और समर्थकों को भड़काकर बोलीं कि टीआई ने मेरे ऊपर पानी कैसे डाला, इस नालायक, भ्रष्टाचारी को 3 दिन में हटाओ। एसपी को बुलाओ, तब तक मैं धरना दूंगी। थाने में आग लगा दो। टीआई को हटा दो नहीं तो मैं खुद मर जाउंगी, या फिर इसे मार डालूंगी। मुझे कोई चिंता नहीं है मेरे तीन लड़कें हैं और दो लड़कियां हैं।

ये दो वीडियो हमारे सामने आए हैं इसका अर्थ यह नहीं है कि ये दो नेता ही हिंसा को भड़काने के लिए जिम्मेवार होंगे। और भी नेता होंगे जिन्होंने ऐसे भड़काउ भाषण दिए होंगे। और भी लोग होंगे जिन्होंने छिपकर हिंसा की साजिशें रची होंगी या आंदोलन में घुसकर ऐसी स्थिति पैदा करने की कोशिश की होगी कि पुलिस मजबूर हो जाए बल प्रयोग के लिए तथा हालात बेकाबू हो जाए। ये सब केवल अनुमान नहीं है। आंदोलन के घटनाक्रम पर नजर रखने से साफ दिख रहा है कि ऐसा हुआ है और हो रहा है। जो घटनाक्रम सामने आया है उसके अनुसार 1000 से ज्यादा किसान 6 जून को मंदसौर और पिपलियामंडी के बीच पार्श्वनाथ फोरलेन पर उतर आए। क्यों? वहां तक आने के लिए उन्हें किसने प्रेरित किया या उकसाया? पहले चक्का जाम करने की कोशिश की। पुलिस ने रोकने की कोशिश की तो पथराव शुरू कर दिया। जाहिर है, जब आप पथराव करेंगे तो फिर पुलिस को बल प्रयोग करना होगा। पुलिस ने उनको खदेड़ा तो वो दो टुकड़ों में बंट गए। खबर के अनुसार एक टुकड़ी सीआरपीएफ से उलझ गई। सीआरपीएफ ने गोली चलानी आरंभ कर दी। हालांकि इसमें कोई मरा नहीं। दूसरी टुकड़ी थाने के पास चली गई और वहां हिंसा करने लगी। हालात बेकाबू देख थाने में स्थित करीब एक दर्जन पुलिसवालों ने भी गोली चलानी शुरू कर दी। इसी गोलीबारी में 6 लोगों की मौत हो गई। स्वाभाविक था कि किसानों की मौत की खबर फैलते ही हालात बेकाबू हो गए। आसपास के क्षेत्र हिंसा और आगजनी की चपेट में आ गए।

अगर पूरे घटनाक्रम का विश्लेषण करें तो निष्कर्ष आपके सामने होगा। हम किसानों की ज्यादातर मांगों से सहमत हैं। भाजपा ने 2014 के अपने चुनाव घोषणा पत्र में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने का वायदा किया था तो उस दिशा मे सरकार को आगे बढ़ना चाहिए। इसके अनुसार लागत और मूल्य आयोग किसानों की लागत का जो आकलन करेगा उसमें 50 प्रतिशत जोड़कर न्यूनतम मूल्य तक किया जाना है। किसानों की यह मांग वाजिब है। अगर किसान कह रहे हैं कि उनको बिना ब्याज कर्ज दिया जाए तो उसके बीच का रास्ता निकल सकता है। यानी 4 प्रतिशत ब्याज पर कर्ज दिया जा सकता है। इसी तरह मंडी से दलालों को खत्म होना ही चाहिए। मंडी में किसानों का शोषण न हो, उनको कम मूल्य पर माल बेचने को मजबूर न किया जाए ऐसे हालात बनने चाहिए। वे अगर दूध के दाम बढ़ाने की मांग कर रहे हैं तो इस पर विचार न करने का कोई कारण नहीं है। हां, कर्ज माफी का मामला थोड़ा जटिल जरुर है, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक इसके विपरीत मत व्यक्त कर चुका है। किंतु भाजपा ने उत्तर प्रदेश के लघु और सीमांत किसानों का करीब 36 हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर दिया तो इसकी मांगे दूसरे प्रांतों में भी उठेंगी और इसके बारे में तार्किक तरीके से विचार होना चाहिए।

लेकिन इन मांगों के बीच में ऐसी हिंसा कहां से आ गई? पुलिस ने जिन 44 लोगों पर मुकदमा दर्ज किया है उनमें ज्यादातर कांग्रेस के लोग ही है। इसका अर्थ क्या है? चूंकि आधा दर्जन लोग मारे जा चुके हैं, इसलिए आम किसान और जनता में गुस्सा भी है। इसमें कुछ लोग बिना भड़काए भी अब हिंसा कर रहे हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदसौर जाने के लिए रौबिनहुड की छवि बनाने की कोशिश की। ऐसा लगा कि कांग्रेस से बढकर किसानों का कोई हितैषी ही नहीं। विपक्ष के नेता के नाते उनके किसानों के बीच जाने पर हमें कोई आपत्ति नहीं, किंतु उतनी हिंसा पर भी तो कुछ शब्द उनके मुंह से निकलने चाहिए थे। अभी तक कांग्रेस ने हिंसा को लेकर कोई तार्किक बयान नहीं दिया है। केवल आरएसएस और भाजपा पर ऐसा करने का आरोप लगाया है जिसके कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। जो प्रमाण सामने आए हैं वे केवल कांग्रेसी नेताओं के हैं। इस पर कांग्रेस की क्या प्रतिक्रिया है इसका देश इंतजार कर रहा है। कुल मिलाकर इसे एक विडम्बना ही कहेंगे कि किसानों का एक आंदोलन जिसकी मांगों में उनकी पीड़ा और व्यथा झलक रही थी....जिसके साथ सहानुभूति स्वाभाविक थी...वह कुछ नेताओं या असामाजिक तत्वों की खलनायकी से पैदा हुई हिसा के कारण बदनाम हो गया है। बावजूद इसके सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। किसानों की वाजिब मांगांें को तुरत मानकर ऐसी स्थिति पैदा करनी चाहिए जिससे किसी को साजिश करने या हिंसा भड़काने का मौका न मिले।

अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 9811027208

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