शुक्रवार, 10 मार्च 2017

चुनाव में न्यायालय की अवमानना?

 श्याम कुमार

‘कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे’, महाकवि नीरज की यह काव्य-पंक्ति हमारे वर्तमान निर्वाचन आयोग पर सटीक बैठती है। जब उसे कुछ करना चाहिए था, तब तो उसने कुछ किया नहीं और धृतराष्ट्र बना बैठा रहा। मौनी बाबा की तरह मौन धारण किए रहा। अब जब लगभग चुनाव बीत चुका है तो आयोग वे कदम उठा रहा है, जो उसे चुनाव से पहले उठाने चाहिए थे। राजनीतिक दल एवं पत्रकार महीनों से कह रहे थे कि निश्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव से सम्बंधित नौकरषाही में ऊपर से नीचे तक आमूल परिवर्तन किया जाना चाहिए तथा चुनाव केंद्रीय पुलिस बल की पूरी निगरानी में ही होने चाहिए। स्वयं आयोग ने काफी पहले वक्तव्य दिया था कि वह प्रदेश की गतिविधियों पर पैनी नजर रखे हुए है। लेकिन जब कोई ‘धृतराष्ट्र’ बन जाय तो दृश्टि के अभाव में उसके पैनेपन का सवाल ही नहीं पैदा होता है। एक समाचार के अनुसार मतदान हो जाने के बाद आयोग ने फिरोजाबाद के जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक एवं एक उपजिलाधिकारी को बदल दिया। भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी एवं अन्य दलों ने चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग से मांग की थी कि वह फिरोजाबाद के जिलाधिकारी राजेश प्रकाश को, जो पदेन जिला निर्वाचन अधिकारी भी थे, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हिमांशु कुमार को तथा शिकोहाबाद के उपजिलाधिकारी को जनपद से हटा दे। लेकिन चुनाव आयोग ने  मांग पर ध्यान नहीं दिया और वहां जब मतदान सम्पन्न हो चुका है तो अब वहां से उक्त तीनों अधिकारियों को हटा दिया है।

रामपुर में भी मतदान सम्पन्न हो चुका है और अब वहां के जिलाधिकारी को हटाकर आयोग ने लखनऊ में जिलाधिकारी के रूप में भारी ख्याति अर्जित कर चुके राजषेखर को रामपुर का जिलाधिकारी बनाया है। हरदोई के एक समाचार के अनुसार वहां चुनाव आयोग ने छह मास पहले से चुनाव की तैयारियां षुरू कर दी थीं, जो चुनाव के दिन तक पूरी नहीं हो पाईं। वहां मतदान सम्पन्न हो जाने के एक सप्ताह बाद छह थानेदारों को हटाने का चुनाव आयोग ने आदेश दिया है। इन थानेदारों में से कुछ थानेदार अपनी पहुंच के बल पर तीन साल से अधिक समय से हरदोई में जमे हुए थे। कुछ तो वर्श 2012 व 2014 के चुनाव में भी हरदोई में थानेदार थे। बताया जाता है कि चुनाव आयोग ने सितम्बर में ऐसे थानेदारों को हटाने का निर्देश दिया था, किन्तु हरदोई में तत्कालीन अधीक्षक राजीव मलहोत्रा ने उस निर्देष का पालन नहीं किया। सब जानते हैं कि हरदोई में नरेश अग्रवाल की जबरदस्त तूती बोलती है। राजीव मलहोत्रा का सरकारी वाहन रहस्यमय तरीके से गायब हो गया, किन्तु उनके विरुद्ध कार्रवाई नहीं हुई। चुनाव के समय राजनीतिक दलों द्वारा बहुत षोर मचाए जाने पर चुनाव आयोग ने राजीव मलहोत्रा को हटाया।

चुनाव आयोग की ‘निष्पक्ष चुनाव की सक्रियता’ का एक और उदाहरण सामने आया है। चुनाव आयोग ने ‘सख्त’ निर्देष दिया था कि मतदान से पूर्व लखनऊ जनपद की समस्त 78 शस्त्र दुकानों की जांच की जाय तथा उन दुकानों से बेचे गए कारतूसों का ब्योरा संग्रहित किया जाय। लेकिन प्रशासन द्वारा एक भी दुकान की जांच नहीं कराई गई। शस्त्र जमा करने के निर्देष का भी समुचित पालन नहीं हुआ। चुनाव के समय थानों से मिली नोटिस के बावजूद 50 प्रतिशत से अधिक शस्त्रधारकों ने अपने हथियार नहीं जमा कराए। सर्वाेच्च न्यायालय ने चुनाव से पूर्व फैसला दे दिया था कि चुनाव में चुनाव लड़ने वाला या उसे समर्थन देने वाला जाति एवं मजहब का हरगिज इस्तेमाल नहीं करेगा। लेकिन चुनाव आयोग ने उस फैसले पर अमल नहीं किया, उसके परिणामस्वरूप फैसले का जमकर उल्लंघन हुआ। बुद्धिजीवियों की संस्था ‘विचार मंच’ की महत्वपूर्ण संगोष्ठी में वरिष्ठ मजदूर नेता सर्वेश चंद्र द्विवेदी ने कहा कि सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले की अवहेलना पर न केवल उम्मीदवारों आदि के विरुद्ध, बल्कि निर्वाचन आयोग के विरुद्ध भी न्यायालय की अवमानना का मामला बन सकता है।

उत्तर प्रदेश विधानसभा का यह चुनाव जाति एवं मजहब के ‘नंगेनाच’ के लिए याद किया जाएगा। चुनाव आयोग की निष्क्रियता भी स्मरणीय रहेगी। लोग उदाहरण दिया करेंगे कि कहां टीएन शेषन और कहां नसीम जैदी! नसीम जैदी उत्तर प्रदेश संवर्ग के आईएएस अधिकारी रहे हैं तथा उनकी छवि धाकड़ अफसरों वाली नहीं थी। वह सामान्य अधिकारी माने जाते थे। उत्तर प्रदेश में मुख्य निर्वाचन अधिकारी टी वेंकटेश की छवि भी धाकड़ अधिकारी की नहीं रही है। वह अच्छे अधिकारी माने जाते रहे हैं, किन्तु चुनाव कराने वाले अधिकारी के रूप में जिस योग्यता की आवश्यकता होती है, वह उनमें नहीं है। अंततः पूरी जिम्मेदारी तो निर्वाचन आयोग एवं मुख्य चुनाव आयुक्त की ही थी, जिनकी विफलता का परिणाम चुनाव में जाति एवं मजहब के खुले इस्तेमाल के रूप में मिला। सौभाग्य से शेषन के समय निर्वाचन आयोग का जो रोबदाब एवं साख स्थापित हो गई थी तथा बाद में मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी ने उसे कायम रखा, उसी का फल है कि उस चली आ रही आभा के प्रभाव से पांच राज्यों में वर्तमान चुनाव सफलतापूर्वक सम्पन्न हो रहे हैं। किन्तु जब उक्त आभा क्षीर्ण होगी तथा चुनाव आयोग की वर्तमान-जैसी शिथिलता जारी रहेगी तो भविष्य में परिस्थितियां संभाले नहीं संभलेंगी। डाॅ. नसीम जैदी के बाद मुख्य निर्वाचन आयुक्त पद पर बहुत सोच-समझकर तैनाती होनी चाहिए। यह पद कितना महत्वपूर्ण है, इसका प्रमाण इसी बात से मिल जाता है कि टीएन शेषन ने हमारे लोकतंत्र को नष्ट होने से बचा लिया था। यदि शेषन न हुए होते तो हमारे यहां चुनाव ‘जंगलराज’ का नमूना पेश कर रहे होते।


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