अवधेश कुमार
निस्संदेह, गुरुदासपुर हमले में हमारे सुरक्षा बल मन मसोसकर रह गए थे। वे चाहते थे कि उसमें से एक भी आतंकवादी जिंदा पकड़ा जा सके ताकि हम दुनियां को बता सकें कि देखो, ये है पाकिस्तान का असली चेहरा। उसमें सफलता नहीं मिली और पाकिस्तान को नकारने का अवसर मिल गया। आत्मघाती आतंकवादी चूंकि जान देने की कसमें खाकर हमला करने आते हैं और उनके अंदर मौत के बाद की मजहबी भावनाएं इतनी हाबी होतीं हैं कि उनको जिन्दा पकड़ना संभव नहीं होता। यह पूरी दुनिया की स्थिति है। इसका लाभ ही आतंकवाद को प्रायोजित करने वालों से लेकर साजिशकर्ता संगठनों को मिलता है। इस दृष्टि से विचार करें तो उधमपुर में हमारे हाथ आया पाकिस्तानी आतंकवादी कितनी बड़ी सफलता है यह बताने की आवश्यकता नहीं रह जाती। वास्तव मे जबसे आत्मघाती हमले आरंभ हुए हमने इसके पूर्व मुंबई हमलेे के दौरन केवल एक आतंकवादी अजमल अमीर कसाब को पकड़ा था। उसके कारण मुंबई हमलों की पूरी साजिश दुनिया के सामने उजागर हुई। जिस तरह अभी पाकिस्तान नावेद उर्फ उस्मान को अपने देश का वासी मानने से इ्रन्कार कर रहा है उसी तर उसने आरंभ में कसाब को भी पाकिस्तानी नहीं माना था, पर बाद में मुंबई हमले की अपने यहां हुई साजिश स्वीकार किया और बेमन से ही सही उसके साजिशकर्ताओं पर मुकदमा चलाया। कारण, अमेरिका एवं पश्चिमी देशों ने भी कसाब को आतंकवादी माना, उसके बयानों को सच मानकर पाकिस्तान पर दबाव बनाया। उसके बाद यह दूसरी सफलता है।
यह ठीक है कि बीएसएफ की गाड़ी पर आतंकवादियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में हमारे दो जवान शहीद हो गए और 10 अन्य घायल हुए। यह बड़ी क्षति है। कल्पना करिए अगर यह पकड़ में नहीं आता तो न जाने और हमलों की कितनी साजिशों को अंजाम दिया जाता।एक तो वहीं मारा ही गया। आत्मघाती आतंकवादियों के मारे जाने का विशेष महत्व नहीं है, क्योंकि वो आते ही हैं मरने के लिए। दूसरा भी मर जाता तो यह भी एक खबर बनकर रह जाती। ऐसा हुआ नहीं। यह पाकिस्तान के लिए पिछले दो दिनों में दूसरा बड़ा आघात है। एक दिन पहले संघीय जांच एजेंसी के पूर्व प्रमख तारिक खोसा ने डॉन अखबार में एक लेख लिखकर कहा कि किस तरह उनकी जांच में साफ हुआ था कि 26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई पर हमले की योजना, उसके संसाधन, प्रशिक्षण, हमलों के दौरान निर्देश.... आदि सबका केन्द्र पाकिस्तान ही था। उन्होंने कसाब को भी पाकिस्तानी बताया और कहा कि हमारे देश को इसकी उचित कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। क्यों? क्योंकि जांच में सब कुछ पता चल गया था और सही कानूनी कार्रवाई न करने से आतंकवाद के विरुद्ध पाकिस्तान का आचरण दुनिया भर के लिए संदेहों के घेरे में रहेगा। उसे लेकर पाकिस्तान में परेशानी महसूस की ही जा रही थी कि अब पाकिस्तान के फैसलाबाद निवासी कासिम खान उर्फ उस्मान खान हमारे हाथ आ गया है। संयोग देखिए, अजमल कसाब भी फैसलाबाद का ही रहने वाला था। तो क्या वहां से ज्यादा नवजवानों को भारत और जम्मू कश्मीर मेें आतंकवाद को अंजाम देने के लिए तैयार किया जाता है?
अगर नावेद के पकड़े जाने के पूर्व का घटनाक्रम देखें तो यह वैसे ही सामान्य था जैसे आम हमले आजकल हो रहे हैं। जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर ऊधमपुर जिले के नरसू नल्लाह इलाके में सुबह बीएसएफ के काफिले पर आतंावादियों द्वारा हमला किया जाना उसी तरह है जैसा वहां अन्यत्र हमला किया जाता रहा है। इधर ज्यादातर हमले सुरक्षा बलों पर सुबह ही हुए हैं। ध्यान रखिए गुरुदासपुर हमला भी सुबह ही हुआ था। हां, यह क्षेत्र काफी समय से आतंकवादी गतिविधियों से मुक्त रहा था। एक आतंकवादी के मरने के बाद जरा दृश्य पलट गया। दूसरा एक विद्यालय में घुस गया था जहां उसने संभवतः पांच लोगों को बंधक बना लिया। बंधक बनाने के बाद सुरक्षा बलों के लिए मुकाबला कठिन हो जाता है, क्योंकि आतंकवादियों को मारने, पकड़ने के साथ बंधक बने आम लोगों को सुरक्षित बचाना प्राथमिकता हो जाती है। हो सकता है कि वह गुरुदासपुर की तरह ही वहां लंबे समय तक सुरक्षा बलों से मुकाबला कर अपनी जान देना चाहता रहा हो। लेकिन बंधक बनाए गए लोग उस पर भारी पड़े। इन लोगों का कहना है कि उसने उन्हें जान से मारने की धमकी देते हुए किसी सुरक्षित स्थान की ओर से निकल भागने में मदद करने को कहा। शायद वह वहां लड़ते हुए मरने की बजाय भागना चाहता था। आत्मघाती आतंकवादियों को भी इस बात का प्रशिक्षण दिया जाता है कि यदि जान बच सकती हो तो भागो ताकि दूसरे हमले में काम आ सको। खैर, वह लोगों को लेकर काफी दूर गया, लेकिन उन लोगों ने किसी तरह काबू कर लिया और फिर....।
नावेद की उम्र केवल 20 साल है जो उर्दू और पंजाबी बोल रहा है। इतनी कम उम्र में किसी को भटकाना आसान होता है। कसाब भी लगभग इसी उम्र का था। नावेद लश्कर-ए-तैयबा का सदस्य है। उसके पास से एक एके47 और कई मैगजीन बरामद हुई है। अगर सुरक्षा बलों की मानें तो वह गुरदासपुर में हुए आतंकी हमले के मॉड्यूल में शामिल था। यह सच है तो फिर गुरदासपुर हमले को भविष्य के अन्य बड़े हमलों का पहला सोपान मानना होगा। अब कासिम से ही यह पता चलेगा कि आगे ऐसे और कितने मॉड्यूल हैं जिनकी योजना इस तरह के हमले करने की है। जैसा बताया जा रहा है ये गुरदासपुर में हमला करने वाले आतंकियों के साथ आए थे तो इनके अलावा और कितने हैं जो अभी बचे हुए हैं?
वस्तुतः इस विवाद में पड़ने की आवश्यकता नहीं कि उसके निशाने पर कौन-कौन थे। चूंकि बीएसएफ की बस के ठीक पीछे अमरनाथ यात्रियों का एक जत्था आने वाला था, इसलिए कुछ लोग कह रहे हैं कि उनके निशाने पर अमरनाथ यात्री थे। गुरदासपुर में मुख्य हमले के पूर्व तीनों आतंकवादियों ने अमरनाथ यात्रा जा रही बस पर गोल चलाई थी लेकिन चालक किसी तरह उन्हें बचाकर ले गया। ये समरोली इलाके में झाड़ियों में छिप हुए थे। बीएसएफ की बस पहुंचते ही हमला कर दिया। इसके मीन मेख से हमें कोई लाभ नहीं होने वाला। आतंकवादियों के निशाने पर एक साथ कई होते हैं। एक में असफल तो दूसरे पर हमला करो, न मिले तो फिर कहीं हमला कर दो। दूसरे, वे कहीं न कहीं हमले के लिए घात लगाने स्थान तलाशते ही है। हमारे लिए महत्वपूर्ण है उसका साक्षात पाकिस्तानी होना। उसके द्वारा पाकिस्तानी होने की स्वीकृति। उसका यह बताना कि हमले की योजना कैसे बनी और उसके पीछे किसका हाथ है। इसके बाद हमारी भूमिका उससे पूरी जानकारी लेकर पाकिस्तान को दुनिया के सामने बेनकाब करना होना चाहिए।
वैसे तर्क यह भी दिया जा रहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बातचीत रोकने के लिए हमले हो रहे हैं। मान लें यह सच है तो? पाकिस्तान ने इसे रोकने के लिए क्या किया? नावेद के पकड़ में आने से यह जानी हुई बात प्रमाणित हो गई कि लश्कर ए तैयबा जैसा आतंकवादी संगठन प्रतिबंध के बावजूद पाकिस्तान में बना हुआ है, उसे प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध है तो संरक्षण भी। बगैर संरक्षण के कैसे आराम से वह गतिविधियां चला सकता है और योजना बनाकर आतंकवादियों को इस पार भेज सकता है? पाकिस्तानी रेंजर्स वहां क्या कर रहे हैं? नावेद बता सकता है कि लगातार पिछले कई दिनों से जो सीमा पर गोलीबारी हो रही थी वह कहीं उनकी मदद में तो नहीं था? या दूसरे अन्य आतंकवादियों को घुसपैठ कराने के लिए तो नहीं है?
सच यह है कि पाकिस्तान पश्चिमोत्तर और अपने देश के विरुद्ध जारी आतंकवाद के खिलाफ तो पूरी ताकत से संघर्ष कर रहा है, आतंकवादियों को फांसी पर चढ़ाने का रिकॉर्ड बना रहा है, पर उसकी सीमा से भारत में आने वाले आतंकवाद को उसके यहां अभी भी शरण, संसाधन और संरक्षण हासिल है। उसका केवल तंत्र और तरीका बदल गया है। नावेद इसका ऐसा सबूत हमारे हाथ आया है जिसे वह कितना भी इन्कार करे, दुनिया उस पर यकीन नहीं करने वाली। नावेद के बयान देकर हम पाकिस्तान को बता सकते हैं कि ये हैं आपकी असलियत और आप हमेशा हमें घाव देने की नीति पर चलते हुए कहते हैं कि ये तो हमारे अपने दोष से है। यानी जम्मू कश्मीर में हमारे कब्जे के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह का आपका राग झूठा है, सबके पीछे आप हैं। आप अपना रवैया बदलिए नही ंतो हमें भी आपको रास्ते पर लाने के लिए कदम उठाना होगा।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः 01122483408, 09811027208
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