अवधेश कुमार
यह तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के घोर विरोधी भी स्वीकार करेंगे कि उन्होंने नेपाल की संविधान सभा सह संसद में अविस्मरणीय भाषण दिया है। मोदी के कट्टर समर्थकों को भी इतने उम्दा और प्रभावी भाषण की उम्मीद नहीं थी जिसमें एक साथ भावनाओं का निश्च्छल उद्रेक भी झलके और ठोस व ऐतिहासिक प्रस्ताव भी, जिसमें इतिहास और वर्तमान का ऐसा अनूठा पुट हो जो दिलों को छुए और विरोधियों को भी अपना बना लेेने की क्षमता रखे, जिसमें सांस्कृतिक, आघ्यात्मिक, सामाजिक....प्राकृतिक अविच्छिन्नता का प्रतिबिम्ब हो और हाथ से हाथ, कंधा से कंधा मिलाकर विकास का प्रतिमान कायम करने का आह्वान और प्रेरणा भी, जिसमें नेपाल को संविधान बनाकर पूरे विश्व के लिए शांति और अहिंसा के लोकतांत्रिक रास्ते से राजनीतिक व राष्ट्रीय लक्ष्य हासिल करने का ऐसा उद्वेलन का भाव हो कि कुछ सभासदन वहीं यह प्रण लेने लग जाएं कि अब हम अपना संविधान निर्माण करके ही रहेंगे.......। सच कहा जाए तो नेपाल ने इसके पूर्व किसी भारतीय प्रधानमंत्री को तो छोड़िए, किसी का भी ऐसा भाषण नहीं सुना होगा जिससे उनके अंदर अपनत्व के साथ ऐसा आत्मविश्वास और आत्मगौरव का भाव पैदा कर सके। नेपाल तो छोडिए, किसी भी दो पड़ोसी देशों के संबंधों में किसी मेजबान प्रधानमंत्री के इस तरह के भाषण का उदाहरण इतिहास मंें भी विरले ही होगा। इसलिए यदि आम मीडिया की यह टिप्प्णी है कि मोद का जादू नेपाल में सिर चढ़कर बोला या मोदी ने नेपालियों का दिल जीता तो इसमें अतिशयोक्ति तलाशना मुश्किल है।
आखिर जब विचार से भाजपा जैसी पार्टी के धुर विरोधी माओवादी प्रचंड तक कह रहे हैं कि उनका भाषण दिल को छू गया है और इससे दोनों देशों के संबंधों में नई गरमी की शुरुआत हो गई है तो इससे आगे मोदी की सफलता का और क्या प्रमाणपत्र चाहिए! प्रचंड और उनके सहयोगी तथा उन्हीं की तरह पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई अगली कतार में बैठे थे और दोनों को कई बार मेजें थपथपाते देखा गया। प्रचंड ने कहा कि मोदी का भाषण ऐतिहासिक रहा। जिस तरीके से मोदीजी ने गौतम बुद्ध, सम्राट अशोक, राम और सीता से होते हुए दोनों देशों को जोड़ने की कोशिश की वह लाजवाब है। मैं मानता हूं मोदी की इस यात्रा से दोनों देशों के बीच रिश्तों में सहयोग और भरोसे का माहौल मजबूत होगा। जब उनसे पूछा गया कि भारत नेपाल से ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग चाहता है, क्या नेपाल इस समझौते पर आगे बढ़ेगा? प्रचंड ने कहा कि अब कोई समझौता मुश्किल नहीं है। भारत से ऊर्जा समझौता होकर रहेगा। जाहिर है, इस प्रतिक्रिया के बाद कुछ कहने की आवश्यकता नहीं रह जाती। नेपाल के विदेश मंत्री ने प्रधानमंत्री सुशील कोइराला के साथ मोदी की बातचीत के बाद कहा कि ऐसा लगा कि हम एक मजबूत और दूरदर्शी व्यक्तित्व से बात कर रहे हैं। हम उनकी बातों और प्रस्तावों से बहुत प्रभावित हैं।
मैंने नेपाल में काम किया है खासकर मधेस आंदोलन के दौरान। इस नाते मैं कह सकता हूं कि दोनों देशों में सबसे ज्यादा यदि किसी बात का महत्व है तो भावनाआंे का। हाल के वर्षों में भावनाओं की जगह कूटनीतिक यांत्रिकता संबंधों का निर्धारण कर रहीं थीं, जिनसे वहां भारत को लेकर निराशा और कुछ हद तक क्षोभ का भी माहौल बना हुआ था। भारत विरोधी भाषा केवल माओवादी नहीं बोलते थे सभी पार्टी के नेता गाहे बगाहे ऐसी भाषा का प्रयोग करते थे। चीन ने इसी का लाभ उठाकर पिछले सात-आठ सालांें में वहां अपना व्यापक प्रसार किया है। पहली बार वहां के बजट में चीन का वित्तपोषण हुआ। यह भारत के राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल था, पर हमारे राजनीतिक नेतृत्व की विफलताओं के कारण ऐसा हुआ। तत्काल भारत के राजनीतिक नेतृत्व के सामने नेपाल के संदर्भ में चार लक्ष्य हैं- एक, वहां संविधान का निर्माण हो और नेपाल का शासन उसके तहत संचालित होने लगे, दो, जो विश्वास के बीच खाई बन गई है वह पटे ही नहीं, विश्वास अपनापन और परस्पर सहकार में बदलने की दिशा में अग्रसर हो तथा तीन, उर्जा का क्षेत्र विशेषकर जल विद्युत से संबंधित पूर्व की परियोजनाएं साकार हों और नई परियोजनाओ पर आपसी सहयोग के साथ तेजी से काम हो., नेपाल विकास पथ पर अग्रसर हो जिसमें भारत की सहकारी भूमिका हो.......।
संविधान निर्माण सबसे पहली आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि इस समय जो सरकार है उसे भारत समर्थित सरकार माना जाता है। यदि इसके कार्यकाल में संविधान न बना तो फिर इसका आरोप भारत पर आएगा और विरोधी इसका लाभ उठाएंगे...खासकर माओवादी भारत विरोधी अभियान चलाकर फिर से सत्ता पर काबिज हो सकते हैं और वहां विद्रोह एवं हिंसा भी खड़ा हो सकता है। अगर संविधान निर्माण हो तो वह बिल्कुल संसदीय लोकंतत्र की कल्पना के अनुरुप सर्वसमावेशी एवं मधेसियों की मांग के अनुसार सच्चे संघीय स्वरुप वाला हो। पिछली संविधान सभा का कार्यकाल लगातार बढ़ाया गया, पर संविधान का निर्माण न हो सका। वर्तमान संविधान सभा सह संसद भी एक वर्ष पूरा करने जा रहा है पर संविधान निर्माण के लिए चार-पांच से ज्यादा बैठकें नहीं हुईं हैं। आप ध्यान दीजिए मोदी के पूरे भाषण में आपसी निकटता और अविच्छिन्नता साबित करने के आवश्यक विन्दुओं के बाद सबसे ज्यादा अंश संविधान की आवश्यकता, उसके स्वरुप एवं उसके महत्व पर ही था। मोदी ने कहा कि पूरी दुनिया की नजर आपकी ओर है कि युद्ध से बुद्ध की ओर अग्रसर एक देश ने किस तरह संविधान निर्माण कर देश का शांति और अहिंसक तरीके से रुपांतरित कर दिया है। इससे हिंसा के आधार पर बदलाव चाहने वाले दुनिया के समूहों को भी प्रेरणा मिलेगी। जाहिर है, नेपाल केन्द्रीत भारत की कूटनीति का मुख्य लक्ष्य अब वहां संविधान निर्माण में सहयोग करना तथा उसके लिए सक्रिय रहना हो गया है। मोदी ने प्रधानमंत्री कोईराला को अपनी ओर से भारत में राज्य सभा चैनल द्वारा संविधान निर्माण पर निर्मित श्रृखला की एक सीडी भेंट की। यह उनको समझाने के लिए था कि किस तरह भारत के संविधान निर्माताओं ने आपसी मतभेदों के बावजूद तय समय सीमा मेें अपने लिए संविधान का निर्माण कर दिया।
अगर पूर्व सरकार ने इस तरह की कोशिश की होती तो निश्चय मानिए नेपाल का संविधान कब का तैयार हो चुका होता। फिर आज नेपाल की स्थिति अलग होती एवं दुराव की जो खाई पैदा हुई वह नहीं होती। हमें यह स्वीकार कर चलना होगा कि नेपाल और भारत के बीच अविश्वास की एक जटिल सी खाई बन चुकी है। पहाड़ के लोगों में यह दुष्प्रचार है कि भारत नेपाल की ओर बुरी नजर रखता है एवं वह इसके संसाधनों पर कब्जा करना चाहता है। दूसरी ओर जिन मधेसियों का भारत से लगाव है वे मान रहे हैं कि भारत ने उनके अधिकार पाने के संघर्ष में जितना सहयोग करना चाहिए था नहीं किया। उर्जा परियोजनायें भी इसी का शिकार हैं। 1997 में पंचेश्वर परियोजना पर हस्ताक्षर हुआ लेकिन काम नहीं हो सकता। प्रचार यह हुआ कि भारत वहां बांध बनाकर अपने लिए बिजली ले जाएगा और हमें कुछ नहीं मिलेगा। इसलिए माओवादी उसका बराबर विरोध करते रहे, काम नहीं होने दिया। इसके विपरीत चीन ने उसके साथ मिलकर छोटी छोटी परियोजनायें पूरी कर लीं। चीन को तिब्बत के लिए बिजली चाहिए वह नेपाल के माध्यम से लेना चाहता है। मोदी ने विश्वास बहाली के लिए जितना संभव था प्रस्ताव दिए। उन्होंने कहा कि जिस दिन मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय में कदम रखा, उस दिन से ही नेपाल के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करने का मुद्दा अपनी सरकार की शीर्ष प्राथमिकता में रखा हूं। उन्होंने कहा, मैं भारत के सवा सौ करोड़ लोगों की ओर से दोस्ती और सद्भावना का संदेश लेकर आया हूं। 1950 की संधि की समीक्षा की बात कोइरला से बातचीत में स्वीकार कर लिया। माओवादी इसे बड़ा मुद्दा बना रहे थे। आधुनिक समय के अनुरुप यह संधि बने इसमें हमें क्यों हर्ज होना चाहिए। 10 हजार करोड़ रुपए का नया रियायती कर्ज तो इनमें से एक था। छात्रों के लिए वजीफों की संख्या बढ़ाना, तेल गैस के लिए पाइपलाईन, बिजली की आपूर्ति की मात्रा बढ़ाना, टेलीफोन बातचीत के भारी शुल्क को कम करने की पहल, सार्क उपग्रह ...आदि उसके पहलू थे।
सच यह है कि दोनों देशों के बीच दूरियां पाटने के जितने पहलू हो सकते थे उनने उठाया। यह पहली बार था जब भारत के प्रधानमंत्री ने नेपाल को विकसित देश बनने के ऐसे सूत्र दिए जो व्यावहारिक लगे और नेपालियांे ने उसका स्वागत किया। पानी का उपयोग कर बिजली बनाने और सिंचाई करने के अलावा हिमालय पर अनुसंधान, इसे जड़ी बुटियों के माध्यम से होलिस्टिक स्वास्थ्य का हब बनाना, अकार्बनिक खेती का केन्द्र बनाना, सामान्य पर्यटन केन्द्र के अलावा दुनिया के एडवेंचर चाहने वालों का पर्यटन केन्द्र बनाना आदि ऐसी बातें थीं जो इसके पूर्व भारत की ओर से कही ही नहीं गईं थीं। मोदी ने जो अंग्रेजी के तीन शब्द हिट का सूत्र दिया वह नेपाल में गूंज रहा है। उनके मुताबिक हिट का अर्थ है - एच - हाइवेज (राजमार्ग), आई - आई-वेज यानी इन्फौर्मेशन वेज, और टी से मतलब है ट्रांसवेज (पारगमन मार्ग)। उन्होंने कहा कि संयुक्त रूप से इन तीनों के जरिए देश के तीव्र विकास का रास्ता तैयार होगा और भारत जल्द से जल्द यह तोहफा प्रदान करना चाहता है। मोदी ने कहा कि बेहतर संपर्क मार्ग निर्माण में भारत नेपाल की मदद करेगा। नेपाल में सूचना हाइवे विकसित करने में भी भारत नेपाल को सहायता देगा ताकि नेपाल दुनिया के देशों में पीछे नहीं छूट जाए। नेपाल को भी डिजिटल दुनिया में आगे रहना होगा और पूरी दुनिया के साथ उसका संपर्क स्थापित होना चाहिए।
किसी को ऐसा लग सकता है कि मोदी ने पशुपतिनाथ के मंदिर में जिस पूजा में हिस्सा लिया, वो उनका निजी था। लेकिन नहीं निजी के साथ इसका प्रतीकात्मक महत्व द्विपक्षीय संबंधों के लिए महत्वपूर्ण है। इससे पहले किसी राजनेता ने इस तरह की पूजा में हिस्सा नहीं लिया है। भारत नेपाल संबंधों में धर्म, अध्यात्म का विशेष महत्व है। भय यह था कि मोदी के जनकपुर एवं लुम्बिनी न जाने से मधेसियों में निराशा पैदा होगी। लेकिन मोदी ने भाषण के अंत में घोषणा कर दी कि जब वे सार्क सम्मेलन में आयेंगे तो दोनों जगहों पर जाएंगे। इससे उनको भी आत्मसंतोष हुआ होगा। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मोदी की यात्रा से नेपाल भारत रिश्तों का सही तरीके से पहली बार ठोस मनोवैज्ञानिक एवं व्यावहारिक आधार तैयार हुआ है। इसमें उनने चीन का विरोध कहीं नहीं किया, पर अगर भारत उनकी सोच और भाषण के अनुरुप आगे बढ़ा तो चीन के विस्तार पर काफी हद तक विराम लगेगा। लेकिन इसके लिए कार्यप्रणाली भी बदलनी होगी। सबसे पहले दूतावास की मिनी दरबार की छवि तोड़कर इसी तरह संवेदनशील बनाना होगा। इसके लिए वहां राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में काम करने वाले को राजदूत बनाया जाए एवं वैसे लोगों को वहां अन्य भूमिकायें मिलें। इससे भ्रष्टाचार एवं सामंती व्यवहार खत्म होगा, अन्यथा मोदी का सपना और बनाया गया वातावरण कमजोर पड़ जाएगा।
अवधेश कुमार, ई.ः30, गणेश नगर, पांडव नगर कॉम्प्लेक्स, दिल्लीः110092, दूर.ः01122483408, 09811027208
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