रविवार, 10 नवंबर 2013

‘सच’ ‘झूठ’ बन गया है, ‘झूठ’ ‘सच’

श्याम कुमार

सुप्रसिद्ध लेखिका तवलीन सिंह का एक आलेख प्रकाषित हुआ है, जिसका सार यह है कि तथ्य के अनुसार गोधरा में हिन्दू तीर्थयात्रियों से भरी हुई रेल बोगी फूंक दिए जाने की प्रतिक्रिया में गुजरात का जो दंगा हुआ, उसमें मुसलमानों के साथ अच्छीखासी संख्या में हिन्दू भी मारे गए थे। किन्तु विगत एक दशक से चारों ओर गुजरात के दंगे को लेकर लगातार हल्ला मचाया जा रहा है और यह प्रदर्शित किया जा रहा है कि जैसे उसमें केवल मुसलमान मारे गए। मोदी को ‘हत्यारा’, ‘मौत का सौदागर’ ‘खून का प्यासा’ आदि तमाम तरह की गालियां दी जा रही हैं। किन्तु इसके विपरीत 1984 में सिक्खों का जो नरसंहार हुआ, उसमें गुजरात की अपेक्षा तिगुनी संख्या में सिक्खों को नृशंसतापूर्वक मार डाला गया, किन्तु उसकी कोई चर्चा भी नहीं करता। राजीव गांधी का यह वाक्य-‘जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है’ इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि उन्होंने सिक्खों के नरसंहार को सही ठहराया।

तवलीन सिंह के आलेख पर जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई है तथा लोगों का कहना है कि यह विडम्बना है कि मोदी ने गुजरात के दंगों की निन्दा की, फिर भी उन्हें अपराधी कहा जाता है। किन्तु 1984 में हजारों सिक्खों की जिस निर्ममतापूर्वक हत्या की गई, उसकी कोई चर्चा भी नहीं करता है। कश्मीर से हजारों हिन्दू भगा दिए गए, जो अभी भी शरणार्थीवाला जीवन जी रहे हैं। किन्तु इतने वर्शों बाद भी उनकी चर्चा तो दूर, कोई उनके पास हाल पूछने तक नहीं जाता है। मुसलिम नेता अकसर अलानिया यह कहते हैं कि वे पहले मुसलमान हैं, फिर भारतीय हैं तो उनकी कोई आलोचना नहीं करता। किन्तु जब मोदी ने यह कहा कि वह हिन्दू हैं और राश्ट्रवादी हैं तो इस कथन की निन्दा की जा रही है।

लोगों का मत है कि हमारे समाज में फर्जी सेकुलरवाद जिस भीशण रूप में हावी है, उसके परिणामस्वरूप ‘सच’ ‘झूठ’ बना हुआ है और ‘झूठ’ ‘सच’ के स्थान पर छाया हुआ है। जैसे किसी मुहल्ले में एक गुण्डे के आगे बड़ी संख्या में सारे शरीफों को मौन व नतमस्तक रहना पड़ता है, बिलकुल वही स्थिति है। आदर्ष स्थिति यह है कि शासन को ‘सबके साथ न्याय, अन्याय किसी के साथ नहीं’ सिद्धान्त का अनुसरण करना चाहिए। धर्म या मजहब व्यक्ति की बिलकुल निजी बात है और उससे शासन की नीतियों को कोई मतलब नहीं होना चाहिए। आवष्यकता इस बात की है कि समाज के सभी वर्गों में किसी भी प्रकार का भेदभाव न किया जाय और देशभक्त भारतीय के रूप में पूरे समाज को एकजुट करने का हर तरह से प्रयास किया जाय। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। जिस प्रकार खोटा सिक्का असली सिक्के को बाजार से बाहर कर देता है, उसी प्रकार फर्जी सेकुलरवाद ने असली सेकुलरवाद का दमन कर डाला है। झूठ सच पर हावी हो गया है। फर्जी सेकुलरवादी देश के वातावरण में ऐसा जहर घोल रहे हैं और विभाजन की दीवारें खड़ी कर रहे हैं, जिससे हमारे देश और समाज को भीशण क्षति पहुंच रही है। विघटनकारी तत्व हर जगह सिर उठा रहे हैं और हावी हो रहे हैं। पता नहीं हमारे देश का क्या भविष्य होने वाला है!

(श्याम कुमार)

सम्पादक, समाचारवार्ता

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